– तनवीर जाफरी –
भारतीय कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी आतंकी संगठन हिज़बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान मुज़्फ्फर वानी की गत् 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में मौत के बाद एक बार फिर कश्मीर हिंसा व अशांति की चपेट में आ गया। सूत्रों के अनुसार इस घटनाक्रम में अब तक 40 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं जबकि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक इस हिंसा में 38 नागरिकों की मृत्यु हुई है तथा एक सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुआ है। गृहमंत्री के अनुसार 2180 लोगों के घायल होने का समाचार है इसमें 1739 सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं। कश्मीर में फैली इस हिंसा में एक बार फिर कश्मीरी युवाओं तथा सुरक्षाबलों के बीच होने वाली मुठभेड़ों में संघर्ष का वही तजऱ् देखने को मिला। यानी बच्चों से लेकर बड़ों तक जिनमें अधिकांश लोग अपने मुंह पर रुमाल अथवा मास्क पहने हुए सुरक्षाबलों पर पथराव करते देखे गए। कई जगहों पर सुरक्षा कर्मियों की प्रदर्शनकारियों ने बुरी तरह पिटाई भी की और उन्हें गंभीर रूप से ज़ख्मी भी कर दिया। ज़ाहिर है इसके जवाब में सुरक्षाबलों ने भी अपनी शक्ति व शस्त्र का इस्तेमाल करते हुए प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने व उनपर नियंत्रण हासिल करने की अपनी विभागीय जि़म्मेदारी निभाने की कोशिश की। परिणामस्वरूप वही सबकुछ देखने को मिला जोकि आमतौर पर पुलिस अथवा सुरक्षा बलों व हिंसक प्रदर्शनकारियों के बीच होने वाले संघर्ष में देखने को मिलता है। निश्चित रूप से ऐसे हालात न केवल कश्मीरवासियों के लिए अफसोसनाक हैं बल्कि इन संघर्षों में शहीद होने अथवा घायल होने वाले भारतीय सुरक्षा बलों अथवा कश्मीर पुलिस के लोगों व उनके परिजनों के लिए भी कष्टदायक हैं।
हिंसा किसी समस्या का समाधान हरगिज़ नहीं हो सकती। इज़राईल-िफलिस्तीन से लेकर इराक,अफगानिस्तान,सीरिया तथा पाकिस्तान जैसे देशों में और कई अफ्रीकी देशों में फैली हिंसा और इसके परिणामस्वरूप और जटिल होती जा रही वहां की समस्याएं इस बात का प्रमाण हैं। परंतु बड़े आश्चर्य की बात है कि कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतें दुनिया के इन अशांतिपूर्ण हालात से सबक लेने के बजाए स्वयं उसी रास्ते पर चलते दिखाई दे रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारत प्रशासित कश्मीर का भूभाग एक जटिलतम समस्या के समान है। और भारत सरकार इस विषय पर समय-समय पर कश्मीर के नेताओं से यहां तक कि वहां के अलगाववादी नेताओं से भी बातचीत करती रहती है। वर्तमान समय में जम्मु-कश्मीर राज्य में सत्तासीन पीडीपी व भाजपा की संयुक्त सरकार भी इस विषय पर कुछ न कुछ प्रयास करती रही है। परंतु वास्तव में कश्मीर समस्या का समाधान उस समय और भी जटिल हो जाता है जब पाकिस्तान, कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतों के हमदर्द के रूप में खड़ा दिखाई देता है। और कश्मीरियों की हमदर्दी में घडिय़ाली आंसू बहाता नज़र आता है। कश्मीर में पाकिस्तान की दखलअंदाज़ी की उस समय और भी इंतेहा हो जाती है जबकि दुर्भाग्यवश किसी कश्मीरी प्रदर्शनकारी नवयुवक के हाथों में पाकिस्तानी झंडे दिखाई देते हैं और यह प्रदर्शनकारी पाकिस्तानी झंडों के साथ भारतीय सुरक्षा बलों पर पथराव करते नज़र आते हैं।
दूसरी ओर जिस बुरहान वानी की मौत पर कश्मीर में प्रदर्शनकारियों ने राज्य का जनजीवन अस्त-व्यस्त करने का माहौल बना रखा है वही आतंकी भारत के हमलों के गुनहगार तथा मोस्ट वांटेड आतंकी हािफज़ सईद के संपर्क में रहता है। यह बात स्वयं हािफज़ सईद ने स्वीकार की थी। यदि हािफज़ सईद के इशारों पर काम करने वाले बुरहान वानी को कश्मीर के युवकों का एक वर्ग उसे अपना आदर्श मानता हो और इसके बाद वही युवक भारतीय सुक्षा बलों पर हमलावर होते भी नज़र आएं ऐसे में यह प्रदर्शनकारी भारतीय सुक्षा बलों से आिखर क्या उम्मीद रख सकते हैं? यह प्रदर्शनकारी भारतीय कश्मीर में रहने के बावजूद न केवल पाकिस्तानी झंडे लहराते हैं बल्कि कभी-कभी यह लोग भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को जलाते व अपमानित करते भी देखे जाते हंै। पाकिस्तान में कश्मीर हिंसा के विरोध में गत् 20 जुलाई को कश्मीर के अलगाववादियों के साथ हमदर्दी जताने की गरज़ से वहां काला दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भी अपने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए यह फरमाया कि-‘हम कश्मीर के लोगों को कभी भी अकेला नहीं छोड़ेंगे और सभी कूटनीतिक,राजनैतिक व मानवाधिकारी मंचों पर हम उनके लिए लड़ेंगे। पाकिस्तान में सरकारी मंत्रालयों,वहां की राज्य सरकारों तथा समस्त सरकारी विभागों को भी यह निर्देश जारी किए गए थे कि वे कश्मीर में भारतीय सेना के कथित ‘अत्याचार’ के विरोध में तथा कश्मीरियों के प्रति अपनी हमदर्दी जताने के पक्ष में काला दिवस मनाएं तथा सभी सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपनी बाज़ू पर काली पट्टी बांधें।
जो पाकिस्तान भारतीय कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा रखने वाले लोगों व संगठनों के प्रति हमदर्दी जताता रहता है उस पाकिस्तान की कारगुज़ारियों से पाक अधिकृत कश्मीर के लोग कितना खुश हैं तथा वे कितनी तरक्की कर रहे हैं और वहां की प्रतिभाएं कितना फल-फूल रही हैं यह बात आज किसी से छुपी नहीं है। एक तरफ जहां पाकिस्तान कश्मीर में अलगाववादी आतंकी संगठनों को नैतिक,राजनैतिक तथा आर्थिक सहायता देकर वरगला रहा है वहीं पाक अधिकृत कश्मीर में बड़े पैमाने पर यह विचारधारा पनप रही है कि वहां की कश्मीरी अवाम किस प्रकार यथाशीघ्र पाकिस्तान के चंगुल से निजात पा सके। दूसरी ओर भारतीय कश्मीर में सक्रिय भारत विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने वाले युवाओं को लेकर एक और कड़वा सच यह सामने आ रहा है कि कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी नेता स्वयं तो ऐशपरस्ती की जि़ंदगी गुज़ारते आ रहे हैं। भारत से लेकर विदेशों तक में उनके लंबे-चौड़े कारोबार फैले हुए हैं। अपने बच्चों को विदेशों में उच्च शिक्षा दिलवाने तथा स्थानीय बेरोज़गार नवयुवकों को कभी पैसों की लालच देकर तो कभी धर्म के नाम पर या फिर कश्मीर की आज़ादी का वास्ता देकर उनकी भावनाओं को भडक़ा कर उन्हें पत्थरबाज़ी करने के लिए या फिर हथियार उठाने के लिए तैयार करते रहते हैं। इस प्रकार के हिंसक प्रदर्शनों में आमतौर पर कश्मीर के सामान्य व साधारण परिवार का कोई नवयुवक ही मरता या घायल होता दिखाई देता है।
पिछले दिनों कश्मीर में फैली हिंसा के बाद मीडिया ने ऐसे कई उदाहरण पेश किए। मिसाल के तौर पर हिज़बुल मुजाहिद्दीन का सरगना सैय्यद सलाहुद्दीन इन दिनों पाकिस्तान में ऐशपरस्ती की जि़ंदगी गुज़ार रहा है तथा कश्मीर घाटी में उसका पूरा परिवार चैन व सुकून की जि़ंदगी बसर कर रहा है। उसके कुल पांच में से तीन बेटे राज्य सरकार में उच्च सेवा में कार्यरत हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान में महिला आतंकी संगठन दुख़तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया इंद्राबी के विषय में यह खुलासा हुआ कि 2015 में घाटी में सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए एक आतंकी को जिस समय आसिया श्रद्धांजलि भेंट कर रही थी ठीक उसी समय कासिम नाम का उनका बेटा मलेशिया में अपने मित्रों के साथ मौज-मस्ती कर रहा था तथा अपने फेसबुक स्टेटस को इन शब्दों में अपडेट कर रहा था-‘चिलिंग एरांऊड विद फे्रंडस’। यही दुख़तरान-ए-मिल्लत कभी-कभी कश्मीरी महिलाओं के बापर्दा रहने का फरमान भी जारी करती है। यहां तक कि इस विषय पर कश्मीरी लड़कियों को धमकाया भी जा चुका है। परंतु यह ड्रेसकोड केवल धार्मिक भावनाओं को भुनाने हेतु कश्मीर की आम महिलाओं पर तो लागू होता है महबूबा मुफती अथवा यासीन मलिक की पत्नी मुशहाला पर नहीं? इस प्रकार की और दर्जनों ऐसी मिसालें हैं जिनसे यह साबित होता है कि अलगाववादी नेता अपने बच्चों को तो ऊंचा व्यापार करा रहे हैं तथा उन्हेंउच्च शिक्षा देकर डॉक्टर व इंजीनियर आदि बना रहे हैं। परंतु पत्थरबाज़ी करने तथा सुरक्षाबलों का मुकाबला करने के लिए स्थानीय गरीब व साधारण बेरोज़गार युवाओं को उकसाते रहते हैं।
ऐसे में समस्त कश्मीरवासियों को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि पाकिस्तान की शह पर तथा कश्मीर में रह रहे पाक समर्थित अलगाववादियों के बहकावे में आकर पाकिस्तान को अपना हमदर्द समझना और अपने हाथों में पाकिस्तानी ध्वज लेकर भारतीय सुरक्ष बलों से मुठभेड़ करने जैसा दु:स्साहस करना उनकी समस्याओं को और जटिल तो बना सकता है परंतु इससे कोई समाधान कतई नहीं निकल सकता। भारतीय कश्मीर के युवाओं को स्वयं को भारतीय नागरिक समझते हुए भारत सरकार से कोई भी वाजिब मांग करनी चाहिए। आज कश्मीरी युवा लगभग पूरे भारत में न केवल उच्च व तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं बल्कि अनेक सरकारी सेवाओं में भी कार्यरत हैं। कश्मीर का विकास केंद्र सरकार के साथ मधुर संबंध बनाकर ही संभव है। कश्मीर में पाकिस्तानी ध्वज फहराकर, भारतीय ध्वज जलाकर तथा पाकिस्तान जि़ंदाबाद के नारे लगाकर तो कतई नहीं।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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