बुन्देली भाषा में ग़ज़ले
1-
नंगे सपरें ,धोवें और निचोवें का
सतुआ नईंयाँ घर में बोलौ घोरें का
घी होतौ तौ हलुआ तनक बना लेती
चून ख़तम है भूँजें और अकोरें का
नईंयाँ एक छदाम मुठी में मुद्द्त सें
धुतिया के पल्लू में बांधें छोरें का
रूख निखन्नौ डरौ आम वारी रुत में
अमियाँ नईंयाँ एक डार पै टोरें का
ओछी होती अगर गुज़ारौ कर लेते
चददर नईंयाँ अपने पाँव ककोरें का
सपरना =नहाना /घोरना=घोलना /धुतिया =धोती /रूख =पेड़ /निखन्नौ =खाली/टोरें
=तोडना /ओछी =छोटी
ककोरें =समेटना /
2-
चल रये सबरे काम हमें का
खुश हैं अपने राम हमें का
अपनी तौ पाँचई घी में हैं
खूब मचै कुहराम हमें का
दारू ,मुर्गा ,पी ,खा रये हैं
बढ़ें दार के दाम हमें का
रिश्पत खा रये, खात रहन दो
सब हाकम ,हुक्काम हमें का
जब तक हम कुर्सी पै बैठे
अपने सबई गुलाम हमें का
मौका मिलौ काय खौं छोडौ
मरै आदमी aam हमें का
3-
डींग लगाई जा रई है का ?
कछू समझ में आ रई है का ?
मेंगाई लोहू पी रई है
जा नईं उनें दिखा रई है का ?
क्यारी फूलन की बर रई है
लाज शरम नईं आ रई है का ?
लगीं देह में कित्ती फाँसें
एकऊ नईं अटा रई है का ?
कितै ,कितै ,का ,का ,हो रऔ है
खबर कान नईं जा रई है का ?
बड़े बड़े घपला बाजन खौं
सत्ता नईं बचा रई है का ?
पैलें अपनौ घर तौ देखौ
बात समझ नईं आ रई है का ?
डींग =बड़ी ,बड़ी बातें /लोहू =खून /बर =जलना /अटाना=महसूस होना /
4-
बातें कर रये बड्डी,ठड्डी
खेलत फिर रये झूठ कबड्डी
राजनीत में कान काट रये
पढ़वे में जो हते फिसड्डी
नें उगलत ,नें लीलत बन रई
गरे फंसी लालच की हड्डी
इक्का धरें तुरुप को फिर रये
लयें फिर रये ताशन की गड्डी
खोटे सिक्का दौड़ लगा रये
जीवन भर जो रहे उजड्डी
सड़कन पै तौ सांड बनत्ते
पद पा कें भई गीली चड्डी
बड्डी =बड़ी /फिसड्डी =पिछड़े हुए /गरे =गले /उजड्डी =झगड़ालू /
5-
हँस ,हँस कें कै रऔ अँध्यारौ
को है हमें भगावे वारौ
काम मिलत पैसा वारन खौं
पढ़ लिख सब अपनी झक मारौ
जब तक नईं अच्छे दिन आ रये
भूखे मर कें बखत गुजारौ
राजा भऔ आँधरौ,बैरौ
गाओ आरती ,पाँव पखारौ
उनकी मंशा साफ़ दिखा रई
आ नईं पाय कभऊँ उजयारौ
कित्ते आये ,पचा गए कित्तौ
उनकौ कीनें कया उखारौ
वोट हतौ सो बौई बेंच दऔ
अब देखत हौ काय सहारौ
अँध्यारौ=अँधेरा /आँधरौ =अँधा /बैरौ =बहरा /पखारौ =धोना /कीनें =किसने
/कया =क़्या/उखारौ =बिगाड़
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महेश कटारे ‘सुगम’
लेखक व् कवि
बुन्देली भाषा के एक सशक्त हस्ताक्षर
आप बीना म.प्र. में रहते हैं
स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे
संपर्क –
mobile : 097130 24380 , mahesh.katare_sugam@yahoo.in
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बुन्देली गजल के जनक सुगम जी की अनूठी गजलें.
मुहावरों का गज़ब प्रयोग है …….भाषा और कथ्य का ताल मेल इतना सटीक कि पढने वाला मगन हो जाता है ………..प्रणाम महेश जी को