” मेरे वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय के मित्र व शत्रु इसको न्यायालय की अवमानना न मानें और इसका चोरी छिपे प्रिंट लेकर न रखें व दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट भेजने के लिए अपने पैसे खर्च न करें. बल्कि मैं ही कल इस पत्र को रजिस्टर्ड पोस्ट करूंगा : डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ”
ओ मी लार्ड !!! मेरे माई डियर मी लार्ड !!! आपने याकूब मेमन को फांसी के लिए बहुत मेहनत की है. आपने बहुत ही कर्मठता का उदाहरण प्रस्तुत किया है. आपने देर रात में सोते उठकर आधी रात के बाद अपनी अदालत लगाई और आपने बहुत ही परिश्रम से अपने तीन न्यायाधीशों वाली पीठ को सुनवाई के लिए अदालत कक्ष अभूतपूर्व रूप से रात में खोला गया और अलसुबह 03 बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई जो 90 मिनट तक चली. अर्थात सुबह 3:20 + 90 = 4: 50 बजे प्रात: तक। इस पीठ के अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा जी ने सुप्रीम कोर्ट के कक्ष संख्या 04 में एक आदेश में कहा कि मौत के वारंट पर रोक लगाना न्याय का मजाक होगा और याचिका खारिज की जाती है।
आपने अपनी नींद को खराब किया. मी लार्ड! क्या आप अगले दिन का इंतजार नहीं करवा सकते थे, केंद्र की भाजापानीत मोदी सरकार से और देश के माननीय गृहमंत्री ठाकुर राजनाथ सिंह जी से.? यह तो और भी अमानवीय है कि उसी दिन याकूब मेमन का जन्मदिन भी था. याकूब को आपने अपराधी बता दिया है, मैं उस बहस में पड़ना नहीं चाहता जो हमारे घाघ नेता, आपके लर्निड कंसोल रूपी तीक्ष्ण बुद्धीमत्ता वाले वकील, समाजिक कार्यकर्ता, टी.वी. वाले और वालियां चला रहे हैं. आपने रात में अपनी अदालत लगाई और फैसला सुनाया कि याकूब मेमन दोषी है, तो मैं आपके फैसले को सर-आखों पर रखता हूँ मी लार्ड! क्योंकि मैं कोई विधिवेत्ता नहीं हूँ, बल्कि एक साधारण आम-आदमी हूँ, जो साल का पचास हजार तो इन्कम टैक्स अपने वेतन से ही सरकार को देता हूँ. जिससे आपकी और हमारे नेताओं की तनख्वाह व अन्य भत्ते दिए जाते हैं. इसलिए मैं उन सब लोगों पर बहुत नजर रखता हूँ, जिनके घर के चूल्हे मेरे वेतन के मामूली अंश से चलते हैं.
माई डियर मी लार्ड आपको तो पता ही होगा कि हमारे देश की अदालतों में 03 करोड़ केस अपने फैसलों का इंतज़ार कर रहें हैं. यह तथ्यपरक बात रात में मुझे सपने में नहीं आयी और ना ही किसी ने मुझे रात में जगाकर बताया. बल्कि यह आपने खुद कहा है यह रहा सबूत जो मैं अंगरेजी में ही दे रहा हूँ ताकि आप जल्दी से समझ सकें कि यह आपने ही कहा है, वैसे मैं और मेरे जैसे करोड़ों भारतीय तो हिंदी ही पढ़ते और समझते हैं, यहाँ तक कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी जी भी. लेकिन मुझे पता है कि आपका कामकाज अंगरेजी में ही चलता है, तो आपको मैं भी हिन्दी में सबूत देकर और जगाना नहीं चाहता. तो मी लार्ड यह रहा आपका कहा: “More Than 3 Crore Court Cases Pending Across Country India (Press Trust of India | Updated: December 07, 2014 11:28) NEW DELHI: Concerned over a backlog of more than three crore cases in courts across the country, Chief Justice of India HL Dattu has asked the Chief Justices of all High Courts to ensure expeditious disposal of cases pending for five years or more. A Supreme Court official said that the CJI has written a letter to all High Court Chief Justices asking them to look into the dockets of cases pending for five or more years in subordinate judiciary of all states.
मी लार्ड! आप क्या इन तीन करोड़ केसों वाले भारतीय लोगों के लिए थोड़ा जग नहीं सकते ? मी लार्ड! क्या आप अपनी रात काली नहीं कर सकते, वैसे भी दिल्ली में रात के समय सड़कों के सोडियम बल्ब बहुत पीली रोशनी देते हैं, जो घने कुहासे में देखने के लिए सर्वोत्तम हैं. मी लार्ड! अब आप शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन छुट्टियों को अपनी अदालत में बंद कीजिये और खूब देर रात काम करिये व करवायें और फैसले सुनाईये ताकि तीन करोड़ केस और उससे जुड़े करोड़ों लोगों को न्याय मिल सकें. और हाँ! फैसले सुनाते समय आप मनुस्मृति का उद्धरण न दें, जिसको हमारे संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जलाया था, उद्धरण देने के लिए आपके पास हमारा भारतीय दण्ड संहिता का कोश ही काफी. मी लार्ड! मैं और भी बहुत कुछ कहना और लिखना चाहता हूँ आपके लिए. लेकिन यह उपयुक्त समय नहीं है, बस मैं यह कहूंगा कि आज भी बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जहाँ आपको निष्पक्षता-संवेदनशीलता और न्यायप्रियता से देर रात तक काम करने की जरुरत है. बस आज मेरा मन उदास है..?
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परिचय – :
डॉ. सुरजीत कुमार सिंह
प्रभारी निदेशक व सहायक प्रोफेसर
डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र , महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा.
वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक हैं. उन्होंने उ.प्र. के रामपुर स्थित गवर्नमेंट रज़ा कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग से एम.ए., एम.फिल. और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है. वे पालि भाषा एवं साहित्य अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के महासचिव हैं और संगायन नामक बौद्ध अध्ययन की अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल के सम्पादक हैं. इसके अलावा कई शोध पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल के सदस्य हैं. कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमीनारों में आलेख पढ़ चुके हैं और सम-सामयिक मुद्दों पर हमेशा सक्रिय आवाज़ उठाते रहते हैं !
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