बुन्देली कवि महेश कटारे ‘सुगम’ बुन्देली भाषा में रचनाएँ
1-
पुरखा एक कहावत कत हैं
बैठ ऊँट पै सब मलकत हैं
जित्ती चाय सीख लो विद्या
कितऊँ कितऊँ तौ सब अटकत हैं
बाजे बजें नचनहारी के
हाथ पाँव कूल्हे मटकत हैं
जोंन होत हैं बुरये आदमी
आँखन में सबके खटकत हैं
जिनखौं करनें धरनें नईंयाँ
बातें बड़ी बेई मशकत हैं
मानत नईंयाँ मौड़ा मोड़ी
हम तौ उनें खूब हटकत हैं
गैलन में जब होय गिलारौ
सम्भरौ सुगम मनौ सरकत हैं
सुगम
मलकत =हिलना डुलना /अटकत =रुकावट /मटकत =हिलना /मशकत =हांकना /हटकत =मना करना
2-
खर्चा में आमद है ऐसें
ऊँट के मौ में जीरौ जैसें
शैर में मौड़ा मोड़ी पढ़ रये
हम सें पूछौ कैसें कैसें
भाटे खौं आबाद करौ है
लै कें दै कें जैसें तैसें
कस लो कमर कमानें पर है
अब नईं चल है ऐसें वैसें
दूध मठा सपने की बातें
सुगम बिकीं सब गैंयाँ भैसें
आमद =आमदनी /भाटे=परती ज़मीन/
3-
आकें कुर्सी पै धर रये हौ
ऐसें मास्टरी कर रये हौ
मंगा मंगा कें तुम मौड़न सें
खैनी गुटका सब चर रये हौ
टूशन घरै पढ़ा रये ऐसें
जैसें कै भूखन मर रये हौ
अच्छे रूख बने रुपयन के
हर मईना खूबई फर रये हौ
बन गए हौ दमाद सरकारी
टारे सें तक नईं टर रये हौ
झूठी मूटी फ़ीस उगा कें
अपनी सुगम जेब भर रये हौ
धर=बैठना /चर =खाना /फर=फलना /टर =जाना /
4-
धरम करम और जातें पातें हम का जानें
जे हैं सबई किताबी बातें हम का जानें
टीका लगुन चढाव भाँवरें पंगत डोली
गाजे बाजे व्याव बरातें हम का जानें
ऊपर सें तौ मिसरी जैसी बात करत हैं
का हैं उनके मन में घातें हम का जानें
जिनके लानें पालौ पोसौ बड़ौ करौ है
काय हमें वे दै रये लातें हम का जानें
दिन हो गए पागल कुत्ता से काटत फिर रये
काय डरा रईं रोज़ऊं रातें हम का जानें
5-
धरम और ईमान बेंच दऔ
मान पान सुख ज्ञान बेंच दऔ
करी किसानी लदे क़र्ज़ सें
खेत और खरयांन बेंच दऔ
दूध करूला करवे वारौ
पुरखन कौ वरदान बेंच दऔ
तीन साल सें व्याज नईं भरौ
सो घर कौ सामान बेंच दऔ
छोडौ गांव शैर में बस गए
घर देहरी दालान बेंच दऔ
भरत भरत भुगतान अघा गए
सो पुरखन कौ थान बेंच दऔ
खरयांन =खलिहान /दूध करूला =दूध के कुल्ला /थान =ठिकाना/
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बुन्देली भाषा के एक सशक्त हस्ताक्षर
बुन्देली भाषा के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं आप बीना म.प्र. में रहते हैं
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