2014 लोकसभा चुनाव- आम चुनाव या फिर ख़ास मुद्दोँ को हवा?

434641_plain_map{सोनाली बोस***} बुधवार 7 मई 2014 को लोकतंत्र के महोत्सव का आठवाँ चरण पूरा होने जा रहा है। जिस तरह से इन चुनावोँ का मौसम अपने शबाब पर आया है उसमेँ तमाम तरह के चीथड़ोँ को सत्ता और विरोधी पक्षोँ ने उभारा है। राहुल गाँधी और नरेन्द्र मोदी के खेमोँ का परस्पर दंगल हम सभी कई दिनोँ से देख ही रहे हैँ  और इसमेँ कोई दो राय नहीँ है कि आज के मतदान के  साथ ही आरोप प्रत्यारोप के दौरोँ का एक और अध्याय अपनी पराकाष्ठा को पार कर लेगा।  मोदी की ‘जसोदाबेन’ के चर्चे हो या फिर ‘माँ बेटे की सरकार’ या ‘ जीजाजी’ के धन्धे… बाबू ये लोकसभा का चुनाव नहीँ, ये तो आपसी छींटाकशीँ का महापर्व है।

 लेकिन यहाँ ये बात ग़ौर तलब है कि दोनोँ ही खेमोँ की अपनी अपनी स्ट्रैटेजी है जो कि अलग अलग सन्देश देती है।जहाँ एक ओर राहुल एक populist campaign पर ज़ोर देते हुए नरेन्द्र मोदी के तथाकथित Gujarat model की धज्जियाँ उड़ाने से नहीँ चूकते हैँ वहीँ दूसरी ओर भाजपा के इकलौते स्टार पीएम उम्मीदवार एक सेवक के तौर पर 60 महिने सेवा करने का मौक़ा मांगते हैँ। और अपने ‘कुछ नहीँ’ से ‘सेवक’ बनने के सपने मेँ चाय बेचने के दिनोँ को याद करते हुए अपने पिछड़े तबके से ताल्लुक रखने की बात भी बार बार याद दिलाने से नहीँ चूकते हैँ और रही सही कसर भाजपा ‘जीजाश्री’ के कारनामोँ को जनता के सामने उजागर करने से पूरा करती है।

वैसे देखा जाये तो सभी पार्टीयाँ देश की जनता को भावुकता के सैलाब मेँ बहाने का पूरा पूरा इरादा रखती हैँ। जिस तरह से नमो और राहुल कैंपेन काम कर रहे हैँ उस वजह से आए दिन हम किसी ना किसी  नये ‘कारनामे’ से रुबरु ज़रुर हो रहे हैँ। जहाँ गाँधी परिवार अपने पूर्वजोँ की शहादत और नाम का भरपूर दोहन कर रहा है वहीँ मोदी खेमा भी देश को पारिवारिक सच्चाई के दर्शन कराने से बाज़ नहीँ आ रहा है। मोदी की अमेठी रैली इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसमेँ कि मोदी ये कहते हैँ कि किस तरह गाँधी परिवार अपने आपको देश की first family होने के नाम और काम के बलबूते किसी और कांग्रेसी को आगे बढ़ने का मौक़ा नहीँ दे रहा है। उसी तरह राहुल की पुरज़ोर कोशिश होती है कि किस तरह मोदी को एक कुशासक, तानाशाह और देश के लिये घातक सिद्ध किया जा सके।राहुल गांधी ये भी कहते हैँ कि उत्तर प्रदेश और बिहार जाकर बड़ी-बड़ी बातें करने और महाराष्ट्र में इन राज्यों के लोगों को मारकर भगाने वालों से गलबहियां करने वाले मोदी के दो अलग-अलग चेहरे है।
प्रियंका वाड्रा एक नये और सुखद बदलाव के रूप मेँ देश के सामने देर से ही सही लेकिन आईँ और जबसे आई तबसे अपनी तरफ से लगातार इस प्रयास मेँ हैँ कि किसी ना किसी तरह भाई की बिगड़ी बात बनाई जा सके लेकिन वो भी जनता के सामने कुछ नया न हीँ रख पा रही है और सिर्फ अपने पतिव्रता होने का सबूत देती और  ‘मोदी ब्रांड’ की बुराई और कमियाँ गिनाती ही नज़र आ रही हैँ। साथ ही ये भी कहती हैँ कि  इस बार चुनाव में  किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने जा रहा है।
मोदी के लिये ये चुनाव वैसे भी काफी जद्दोजहद भरे साबित हो रहे हैँ क्यूंकि उनके विरोधी लगातार उनके और अडानी के रिश्तोँ को लेकर उनपर आरोप लगा रहे हैँ। हालांकि अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी ने इन सब आरोपों को बेबुनियाद करार दिया है। लेकिन फिर भी लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान के दौरान आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बार−बार नरेंद्र मोदी और अडानी के रिश्तों पर सवाल उठाए हैं। हम सभी भी जानते हैँ कि अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि नरेंद्र मोदी अडानी के विमान पर क्यों घूमते हैं? इसके अलावा यह आरोप भी लगता रहा है कि मोदी ने अडानी को बहुत फायदा पहुंचाया है। फिर भी चाहे कितनी भी बुराई मोदी की हो रही है फिर भी कहीँ ना कहीँ वो जनता के बीच ये जतलाने मेँ  क़ामयाब रहे है कि वो देश के लिये कुछ कर गुज़रने की ताब लिये आये हैँ और अगर मौक़ा दिया जाये तो खुद को साबित ज़रुर करना चाहेंगे।लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियोँ पर उनके हाल के बयान से बांगला भाषी लोगोँ और पश्चिम बंगाल की जनता का दिल अवश्य दुखा है। टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की टिप्पणी मोदी के प्रति जनता के रोष को दर्शाने के लिये काफी है।
बहरहाल, UPA  का अपने कार्यकाल मेँ बूरी तरह फ्लॉप होना और बढ़ती हुई गरीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार से जनता का त्रस्त होना ये कुछ ऐसे कारण हैँ जो कांग्रेस से जनता का मोहभंग करने मेँ बेहद कारगर साबित हुए हैँ। फिर भी कांग्रेस का अपना एक सुरक्षित vote bank अभी भी है और वो है दलित और आदीवासी vote bank। ये वो तबका है जो आज भी कांग्रेस के साथ काफी हद तक जुड़ा हुआ है। और काफी सारे  opinion polls के रुझान भी इसी ओर इशारा करते हैँ कि आज भी दलित और आदीवासी बड़ी संख्या मेँ कांग्रेस का सपोर्ट करते हैँ।

भाजपा अपने साथ उंची जाति का वोट बैंक लेकर खुश है। वैसे एक राहत तो उन्हे भी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के यादवोँ को छोड़कर एक काफी बड़ा  OBC का तबका अभी भी उनके साथ है। भले ही जातिगत वोट भाजपा का सबसे बड़ा हथियार ना हो लेकिन ये चुनाव भाजपा के लिए वोटर्स के आय के स्तर और प्रवृत्ति के बीच एक मज़बूत सकारात्मक लिंक दिखाते हैं। लेकिन इन सभी सकारात्मक बातोँ के बावजूद कई राजनीतिक पंडितोँ के मुताबिक़ मोदी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी, तथाकथित ‘जासूसी कांड’ मोदी को इस देश के लिये काफी हद तक घातक सिद्ध करता है। और शायद यही वो वजह भी है जो opinion polls मेँ महिलाओँ को पुरूषोँ की अपेक्षा भाजपा मेँ कम दिलचस्पी लेती दिखाई गई हैँ। वहीँ राहुल गाँधी का कांग्रेस को देश के भाग्य और विकास के लिये default setting बनाना उनकी अति महत्त्वाकाँक्षी सोच और सच्चाई से उनकी कोसोँ दूरी ही करार दी जा सकती है।

ख़ैर, अब ये तो आने वाले 10 दिन ही बतायेंगे कि हिन्दुस्तान के भाग्य का उँट किस करवट बैठता है। वैसे भी इन 2014 के आम चुनावोँ ने बहुत से ‘खास’ मुद्दोँ को हवा देने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ी है। आज राहुल गांधी, वरुण गांधी, स्मृति ईरानी, कुमार विश्वास, कुंवर रेवती रमण सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, राजकुमारी रत्ना सिंह, कीर्तिवर्धन सिंह, ब्रजभूषण शरण सिंह और निर्मल खत्री सहित कुल 243 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी। साथ ही देश अपनी नई सरकार पाने और अपने विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने के सपने को साकार करने हेतु एक क़दम और आगे बढ़ायेगा।
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लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम –

2 COMMENTS

  1. 16 मैं को ऊँट पहाड़ के नीचे आही जाएगा , देश के बाकी मीडिया का ध्यान इन मुद्दों की तरफ क्यूँ नहीं जाता ?

  2. आपने सारे मुद्दों को हवा दे दी , कीच भी हैं इस साईट पर कुछ न कुछ पढ़ने को बहुत अच्छा मिल ही जाता हैं

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