15 सितम्बर अभियंता दिवस पर विशेष – नररत्न डा0 मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

{ प्रभात कुमार राय }
भारतरत्न डा0 विश्वेश्वरैया (15.9.1860-12.4.1962) बहुमुखी प्रतिभा के धनी, उत्कृष्ट अभियंता, दूरदर्शी एवं कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने अपने दीर्घ कामकाजी जीवन में ईमानदारी, शुचिता, अध्यवसाय, कार्यदक्षता, कर्त्तव्यपरायणता, समय प्रबंधन, विलक्षण प्रतिभा, कठोर अनुशासन, राष्ट्र निर्माण के लिए दृढ़ संकल्प तथा राष्ट्रीय हितों के लिए पूर्ण समर्पण का अद्भुत मिसाल प्रस्तुत किया। वे यश एवं प्रचार से हमेशा दूर भागते रहे लेकिन उपलब्धियों, प्रगतिशील सोच एवं तकनीकी कौशल के कारण उनकी ख्याति देश-विदेश में फैल गयी। भारत के कई विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी। वे कभी स्व-प्रशंसा के मायाजाल में नहीं फॅंसे और अनवरत चुपचाप अपनी साधना की लौ में जलते रहे।

उनके द्वारा अभिकल्पित कई बड़े बाँध, पुल एवं जल आपूर्ति योजनाएँ अभी भी महाराष्ट्र, मैसूर एवं अन्य राज्यों में मौलिक रूप में पूरी विश्वसनीयता के साथ कार्यरत है। मैसूर का प्रसिद्ध कृष्णाराज्य सागर डैम उनकी देन है। वे भारत की आर्थिक योजना के सूत्रधार माने जाते है। आर्थिक योजना संबंधी उनके विचार स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजना में शामिल किये गये। महान राजनीतिज्ञ गोपाल कृष्ण गोखले तथा राष्ट्रीय स्तर के आर्थिक विशेषज्ञ एम0 जी0 रानाडे से विस्तृत चर्चा कर उन्होंने अपने आर्थिक विकास संबंधी विचारों को सुदृढ़ किया। उनकी किताब ‘प्लांड इकोनोमी फॉर इडिण्या‘, जो 1936 में प्रकाशित हुई, राष्ट्र निर्माण की दिशा में पहला और ठोस पहल था।
यह उनकी प्रबल धारणा थी कि आधुनिक औद्योगिक सभ्यता को अपनाकर ही सर्वागींण विकास हासिल किया जा सकता है। वे मानते थे कि उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा दिये बिना राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता है। महात्मा गाँधी के औद्योगीकरण संबंधी विचार से वे सहमत नहीं थे। उन्होंने 1921 में गाँधी जी द्वारा आहूत असहयोग आन्दोलन में भाग नहीं लिया था।

उन्होंने कई उद्योगों की स्थापना की लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भद्रावती आइरन एंड स्टील वर्क्स था। महात्मा गाँधी जब अगस्त,1927 में मैसूर गये थे तो उन्होंने विश्वेश्वरैया की भूरि-भूरि प्रश्ंासा की थीः ”भद्रावती आइरन एंड स्टील वर्क्स, कृष्णाराज्य सागर डैम की भाँति, विश्वेश्वरैया के अप्रतिम राष्ट्रप्रेम तथा सृजनात्मकता का परिचायक है। इन्होंने प्रतिभा, ज्ञान, अध्यवसाय और पूरी ऊर्जा मैसूर राज्य की सेवा में समर्पित कर दिया है।“ वे अपने भाषण में पश्चिम के विकसित देशों तथा भारत की स्थिति का तुलनात्मक विवेचन आँकड़ों के आधार पर करते थे तथा भारत के पिछड़ेपन के कारको को रेखांकित करते थे। वे बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के लिए पाश्चात्य देशों के अनुकरण के पक्षधर थे। एशिया में जापान द्वारा पश्चिमी देशों के अनुकरण कर त्वरित विकास को हासिल किया जाना उनकी धारणा को बलवती बना दिया था। राष्ट्र के विकास में बेैंक की सशक्त भूमिका के मद्देनजर उन्होंने बैंक ऑंफ मैसूर की स्थापना की। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बैंगलोर तथा मैसूर में पर्यटकों की सुविधा हेतु   अच्छे होटलों का निर्माण उनकी पहल से शुरू हुआ था। उस समय मैसूर राज्य का रेल लाईन केन्द्र सरकार के अधीन थी। उन्होंने इसे तत्कालीन राज्य सरकार के नियंत्रण में लाकर नई लाईनों का योजनाबद्ध निर्माण कराया जिससे विकास की गति तेज हुई। तिरूमला और तिरूपति के बीच सड़क निर्माण की रूपरेखा उनके द्वारा तैयार की गयी थी। उन्होंने स्थानीय संस्थाओं में व्यापक सुधार के लिए प्रभावी कार्य-योजना तैयार की।

उन्होंने इंजीनियरिंग शिक्षा की महत्ता को गंभीरता से समझा और इसके उन्नयन के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। उनका मानना था कि अशिक्षा के कारण ही भारतीय गरीब, पिछड़ा, शोषित एवं पीड़ित हैं। जब 1912 में उन्होंने मैसूर राज्य के दीवान का पद संभाला, उस समय मात्र 4500 विद्यालय थे। 6 साल के अथक परिश्रम और लक्ष्यबद्ध ढंग से कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप उनके द्वारा 6500 अतिरिक्त विद्यालयों की स्थापना की गई। उन्होंने सर्वप्रथम अनिवार्य शिक्षा को तत्कालीन मैसूर राज्य में लागू किया, जिसे आजादी के बाद भारत के संविधान में मौलिक अधिकार के तहत शामिल किया गया। यह उनकी दूरदर्शिता का द्योतक है।

विश्वेश्वरैया तत्कालीन बंबई सरकार (महाराष्ट्र) की सेवा 23 वर्षो तक करते रहे तथा अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा, कुशाग्र बुद्धि एवं कार्यकुशलता के बल पर विभाग में ऊँचे पदों को हासिल किया। उस समय सर्वोच्च पद एकमात्र मुख्य अभियंता का हुआ करता था जो अंग्रेज के लिए सुरक्षित था। उनकी अप्रितम प्रतिभा एवं विलक्षण योग्यता के बावजूद इनका चयन विभाग के सर्वोच्च पद पर नहीं किया गया। उन्होंने नाराज होकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय उनकी आयु 46 वर्ष थी। विभागीय नियमों के अनुसार पेंशन तथा अन्य समापक भुगतान के लिए और दो वर्षो की सेवा आवश्यक थी। उनके शुभचिंतकों ने उन्हें कम से कम दो वर्षो तक और सेवा की सलाह दी। लेकिन यह उनके आत्म-सम्मान का सवाल था, क्योंकि भारतीय होने के नाते विभाग के सर्वोच्च पद से वंचित होना पड़ा। तत्कालीन सरकार ने उनकी उत्कृष्ट सेवा से प्रभावित होकर नियम को श्रांत कर उन्हें पेंशन आदि की सुविधा मुहैया करने का अभूतपूर्व निर्णय लिया।

जब उन्हें मैसूर राज्य के दीवान का पद ऑफर किया गया तो उन्होंने अपने सारे सगे-संबंधियों एवं परिचितों को रात्रि-भोज में आमंत्रित किया। सबों ने उन्हें उच्चस्थ पद प्राप्ति के लिए बधाई दी। विदाई के वक्त विश्वेश्वरैया ने नम्रतापूर्वक आग्रह किया कि वे इस महत्वपूर्ण पद को तभी ग्रहण करेंगे जब सारे कुटुंबगण उन्हें वचन देंगे कि किसी पैरवी या व्यक्तिगत लाभ के लिए सिफारिश आदि के लिए ये लोग उनके पास नहीं आयेंगे। अतिथिगण द्वारा पूर्ण आश्वस्त होने के बाद उन्होंने दीवान का पद ग्रहण किया। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उनके निकटतम संबंधी जो सरकारी सेवा में थे तथा जिनका विश्वेश्वरैया काफी सम्मान करते थे उनसे मिलकर अपने पदोन्नति, जिससे उनके मासिक वेतन में 50 रूपये की वृद्धि होती, के लिए मदद का निवेदन किया। विश्वेश्वरैया ने इसे स्पष्टवादिता के साथ  दृ़ढ़तापूर्वक नकार दिया। लेकिन जब तक उनका वह संबंधी जीवित रहा वे हर महीने उन्हें सौ रूपये व्यक्तिगत रूप से देते रहे। वर्त्तमान में व्याप्त वंशवाद एवं भाई-भतीजावाद की अपसंस्कृति में ऐसे आचरण से एक नई रोशनी मिल सकती है।

उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया लेकिन वेश-भूषा की औपचारिकता को गंभीरता से लेते थे तथा हर अवसर पर अच्छी वेश-भूषा में रहते थे। जब महात्मा गाँधी राउन्ड टेबुल कान्फ्रेंस में भाग लेने जा रहे थे तो विश्वश्वरैया ने उन्हें बेहतर एवं उपयुक्त वेश-भूषा में जाने की सलाह दी थी। उनके स्मारक में उनकी संकलित पुस्तकों में दो किताबें, ‘पोयम्स ऑफ कबीर‘ तथा ‘प्रोमोशन ऑफ जेनरल हैपीनेस‘, असंख्य विज्ञान और तकनीकी संबंधित पुस्तकों के बीच प्रमुखता से रखी हुई है। यह उनके मानवतावादी एवं उदार दृष्टिकोण को दर्शाता है।
वे हर क्षेत्र में होनेवाली बर्वादी से चिन्तित रहते थे तथा समाज को अनावश्यक खर्च से बचने एवं उत्पादकता बढ़ाने हेतु प्रेरित किया करते थे। उनका मानना था कि हमारी मूल्यवान मानसिक ऊर्जा ग्रामीण विवाद, जातीय द्वेष, एवं अन्य संकुचित प्रवृत्तियों में बर्वाद हो जाता है। जातीय विषमता के कारण व्यक्तिगत ऊर्जा का महतम सदुपयोग समाज निर्माण में नहीं हो पाता है। शिमोगा जिला के जाँग जलप्रपात को देखकर विस्मित होकर उन्होंने कहा थाः ”यह कैसी बर्वादी है! यहाँ पनबिजली का भरपूर उत्पादन किया जा सकता है। राष्ट्र हित में इसकी उपयोगिता मनोरम दृश्य से कहीं श्रेयस्कर है।“

399 (ईसा के पहले) चीनी यात्री का चाणक्य से मुलाकात की कहानी नैतिक शिक्षा का महत्वपूर्ण तत्व है। चाणक्य ने रात में आये अतिथि का स्वागत कर जल्द अपने काम को निबटाकर लेम्प को बुझा दिया तथा दूसरे लेम्प को जला दिया। चीनी यात्री आश्चर्य से यह पूछाः ”क्या यह भारतीय रीति है कि अतिथि के आगमन पर जल रहे लैम्प को बुझाकर दूसरे लैम्प को जलाया जाता है?“ चाणक्य ने बतायाः “यह कोई रीति नहीं है। दरअसल जब आपने प्रवेश किया उस समय मैं सरकारी कार्य का निष्पादन कर रहा था। यह लैम्प सरकार का था। उसमें जिस तेल का इस्तेमाल हुआ है वह राष्ट्रीय राजस्व से खरीदा गया है। अब मैं आपसे व्यक्तिगत और मित्रतापूर्ण बात कह रहा हूँं अतः मैं दूसरा लैम्प तथा तेल जो व्यक्तिगत पैसे से खरीदा गया है, उसका इस्तेमाल कर रहा हूँ।” नैतिकता की चर्चा करते वक्त इसका हर समय उद्वरण दिया जाता है लेकिन विश्वेश्वरैया द्वारा 20वीं सदी के भारत में भी इसी कोटि की नैतिकता अपनायी गयी थी। उनकी ईमानदारी के बारे में कहा जाता है कि जब वह सरकारी दौरे पर जाते थे तो निरीक्षण भवन में सरकारी काम-काज निष्पादन के बाद बिजली की बत्ती बुझा देते थे और अपनी मोमबत्ती जलाकर व्यक्तिगत कार्य किया करते थे। वे अपनी जेब में दो कलम रखते थे। एक का इस्तेमाल सरकारी कार्य के लिए करते थे और दूसरे, जो अपने पैसे से खरीदा गया था, उसका व्यक्तिगत कार्य के लिए। आज न केवल भ्रष्टाचार का बोलबाला है बल्कि सरकारी सेवक बहुधा सरकारी खर्चे पर विलासिता में संलिप्त पाये जाते है।

ऐसा कहा जाता है अक्सर पर्याप्त योग्यता रहने के बावजूद दूरदर्शिता के अभाव में व्यक्ति की उपलब्धि सीमित रह जाती है लेकिन विश्वेश्वरैया के पास प्रतिभा की विपुलता के साथ-साथ पैनी दूरदृष्टि भी थी जिससे उन्हें कामकाजी जीवन में महती सफलता मिली।
‘उपदेश से उदाहरण अच्छा है‘-इस आदर्शवाक्य का उन्होंने अक्षरक्षः पालन किया। लंबे कामकाजी जीवन में कभी भी आदर्श के दीप को निर्वापित होने नहीं दिया। सरकारी सेवकों खासकर अभियंताओं को उनके देवोपम गुणों से सीख लेकर भारत को विकसित देश में परिणत करने के लिए सार्थक एवं निःस्वार्थ योगदान देना इस महापुरूष के प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी।

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prabhat rai..प्रभात कुमार राय
मुख्यमंत्री, बिहार के ऊर्जा सलाहकार हैं 

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7 COMMENTS

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