पौराणिक मान्यता के अनुसार वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान भोलेनाथ सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंपकर कैलाश की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
प्राचीन नगरी उज्जयिनी यानी उज्जैन में इस पर्व को इसी मान्यता के अनुसार मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान भोलेनाथ महाकाल की सुंदर यात्रा गोपाल मंदिर पंहुचती है। पालकी से भगवान भोलेनाथ उतर कर श्री हरि को तुलसी भेंट करते हैं और श्री हरि उन्हें बदले में बिल्वपत्र देते हैं। इस सुंदर प्रसंग को हरि हर मिलन के नाम से जाना जाता है।
दूसरे शब्दों में इस दिन वैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन सवारी निकाली जाती है। जो अलग-अलग स्थानों, शहरों के विभिन्न मार्गों से होते हुए श्री महाकालेश्वर मंदिर पर पहुंचती है। वैकुंठ चतुर्दशी पर भक्तजनों का तांता लग जाता है।
ठाठ-बाठ से भगवान शिव पालकी में सवार होकर आतिशबाजियों के बीच भगवान भगवान विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवन शिवजी श्रीहरि से खुद मिलने जाते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव चार महीने के लिए सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंप कर हिमालय पर्वत पर चले जाएंगे।
प्रति वैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन होता है। भगवान शिव व विष्णु जी मिलते हैं एवं जो सत्ता भगवान शिव के पास है, वह विष्णु भगवान को इसी दिन सौंपते हैं। इस परंपरा को
देखने के लिए मंदिरों में वैकुंठ चतुर्दशी पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं, इसीलिए इन दिनों में शुभ कार्य नहीं होते। उस समय सत्ता शिव के पास होती है और वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं।
जब सत्ता भगवान विष्णु जी के पास आती है तो संसार के कार्य शुरू हो जाते हैं। इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी या हरि-हर मिलन कहते हैं।
जब भगवान विष्णु ने चढ़ा दी अपनी आंखें शिव जी को
प्राचीन मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया।
अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं।
मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।
विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- “हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है।
आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव, इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं।
इसी दिन शिव जी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें।
मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा। PLC