– के. कृष्णमूर्ति –
भारतीय संस्कृति, सभ्यता को विश्व में गरिमामय पहचान दिलाने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द जी का युवा भारत के युवाओं के लिए आह्वान!-आओ भाइयो, हम सब सतत कार्य में लगे रहें, यह सोने का समय नहीं। हमारे कार्य पर भारत का भविष्य निर्भर है। हमारी भारतमाता तैयार है- बस बाट जोह रही है। उसे केवल तंद्रा भर आ गई है। उठो, जागो और देखो अपनी इस मातृभूमि को- वह किस प्रकार पुनः नवशक्तिसंपन्न हो, पहले से भी गौरवान्वित हो अपने शाश्वत सिंहासन पर विराजमान है।
स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे सन्यासी थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत था। स्वामी जी निजी मुक्ति को अपना लक्ष्यनहीं बनाया था, बल्कि उन्होंने करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। और राष्ट्र के दीन-हीन जनों की सेवा को ही वह ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। स्वामी जी जाति, धर्म-संप्रदाय, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब जैसे बंधनों से ऊपर उठकर राष्ट्र के गरीब, नीच, अज्ञानी, दरिद्र, चमार, मेहतर, शुद्र, चांडाल सभी को बिना किसी प्रकार का भेद कियेऔरअक्षुत मानते हुए सभी को हृदय से गले लगाएं। और उन्होंने स्वदेश मन्त्र दिया।‘गर्व से कहो कि मैं भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है; कहो कि अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चांडाल भारतवासी- सब मेरे भाई हैं; तुम भी केवल कमर में ही कपड़ा लपेट गर्व से पुकारकर कहो कि भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देव-देवियां मेरे ईश्वर हैं, भारत का समाज मेरे बचपन का झूला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है। भाई बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है।‘स्वामी जी के उपर्युक्त प्रेरणादायी युक्ति को आत्मसात करते हुए युवा भारत यानि लगभग60% युवा देश भारत के युवाओं को अब जागने का समय आ गया है। नेतृत्व अपने हाथों में लेकर भारत की गरिमा जो कभी विश्वगुरु का दर्जा प्राप्त था। उसे पुनः स्थापित करने हेतु पवित्र, ईमानदार राजनीतिक नेतृत्व में आज के युवाओं को अपनी योग्यता, दक्षता का सम्पूर्ण समर्पण भाव से समर्पित कर सक्रिय भूमिका में आकर देश में गरीबी और भ्रष्टाचार जैसे लगे कलंक धोकर एक विकसित भारत का सपना साकार करने में सराहनीय भूमिका सुनिश्चित करनी होगी।
क्योकि… आज देश के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ एवं समस्यायें बरकरार है,जैसे: गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक विषमता, भ्रष्टाचार और प्रशासकीय अकुशलता, कार्य-संस्कृति का अभाव, शिक्षा का लगातार गिरता स्तर आदि प्रमुख रूप से हमसब के सामने है। इन सभी मुद्दों के समाधान की दृष्टि से देखे तो अबतक सामान्यतः नाकामयाबी और निराशा ही नजर आयेगी।इसके पीछे एक जो बड़ा कारण है वह-दूर-द्रष्टा, स्वप्न-द्रष्टा, योग्य-दक्ष, ईमानदार, नैतिक-चरित्र एवं राष्ट्रप्रेमी कुशल नेतृत्वकर्ताओं का अभाव। आज समाज राज्य और देश में जो राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करने वाले हैं, उनमें से अधिकतर अपराधी-प्रवृति, आर्थिक-भ्रष्टाचारी, चरित्रहीन, बाहुबली, अकुशल, अनपढ़, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय मुद्दों की समझदारी का अभाव जैसे अन्य और अपर्याप्त गुणों से लैस होकर आज संपूर्ण व्यवस्था पर हावी हो गए हैं। ऐसे नेतृत्वकर्ताओं का प्रमुख एजेंडा जाति धर्म के नाम पर हिंसा और तनाव फैलाना, आरक्षण के नाम पर सामाजिक व आपसी संबंद्धो को तोड़कर सड़क पर लाना, वंशवाद के वर्चस्व कायम रखने के लिए योग्य व्यकि को रास्ते से अलग कर देना, पद पर बने रहने के लिए चापलूसी करने जैसे प्रमुख गुणों से युक्त होकर समाज और देश को तोड़ने एवं एकता और अखंडता को नष्ट करने का काम कर रहे हैं।
स्वामी जी का सारा चिंतन का केंद्रबिंदु राष्ट्र था। भारत राष्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए जितना चिंतन और कर्म स्वामी जी ने किया।शायद ही उतना पूर्ण समर्पितहोकर देश के राजनीतिज्ञों ने कभीकिया हो। अंतर सिर्फ इतना था कि स्वामी जी सीधे राजनीतिक धारा में भाग नहीं लिया। लेकिन, स्वामी जी के कर्म और चिंतन की प्रेरणा से हजारों ऐसे चरित्रवान व राष्ट्रप्रेमी लोग तैयार हुए जो राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए खुद को समर्पित कर दिए।भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक शक्ति से नहीं वरण आत्मा कि शक्ति द्वारा।
स्वामी जी कहते थे मेरी आशा, मेरा विश्वास नवीन-पीढ़ी के नवयुवकों से है, हे वीरह्रदय युवकों, तुम यह विश्वास रखों कि अनेक महान कार्य करने के लिए तुम सब का जन्म हुआ है। बस आज जरूरत है पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुणों से लैस होकर त्याग और सेवा को केंद्र में रखकर, निस्वार्थ देश-प्रेम के लिए, मन में बदलाव की क्रांति का दीप-प्रज्वलित कर, राष्ट्र के प्रति आत्मीय प्रेम का भावना जाग्रत कर, एक विकसित भारत निर्माण के लिए- राष्ट्र में फैले व्याप्त भ्रष्टाचार कुशासन अशिक्षा बेरोजगारी जैसे गंभीर समस्याओं का समाधान हेतु वेहतर वैकल्पिक विकल्प देने के लिए आज के युवाओं को कमर कस कर, सर पर कफन बांध राजनीतिक-नेतृत्व लेने के लिए सामने आने की। भारत में लगभग साढ़े 6 लाख गाँव है इसलिए, भारत को कम-कम 13 लाख चरित्रवान, ईमानदार देशप्रेमी महाआत्माओं की जरूरत है। उनमें से कहीं एक आपके अंदर तो छिपा नहीं बैठा है। समय आ गया कि अब जाग उठे युवा महा-आत्मा! सबल महा-आत्मा! जाग्रत महा-आत्मा!तभी एक नवीन भारत निकल पड़ेगा; निकले हल पकड़ कर, किसानों की कुटी भेदकर, मछुआ, मेहतरों की झोपड़ियों से। एक नवीन भारत निकल पड़े – बनियों की दुकानों से, कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकले झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।
भारत के सवा सौ करोड़ से भी अधिक भारतवासियों के लिए स्वामी विवेकानन्द जी का आह्वान; संसार चाहता है चरित्र। संसार कों आज ऐसे लोगो की आवश्कता है, जिनके ह्रदय में नि:स्वार्थ प्रेम प्रज्वलित हो रहा है। उस प्रेम से प्रत्येक शब्द का बज्रवत् प्रभाव पडेगा। जागो, जागो! ऐ महान् आत्माओ, जागो ! संसार दु:खाग्नि से जला जा रहा है। क्या तुम सोये रह सकते हो?
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के. कृष्णमूर्ति
लेखक व् स्वामी विवेकानन्द विचारक
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लेखक के. कृष्णमूर्ति स्वामी विवेकानन्द मिशन के संस्थापक है
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भारतीय संस्कृति, सभ्यता को विश्व में गरिमामय पहचान दिलाने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द जी का युवा भारत के युवाओं के लिए आह्वान विषय पर राष्ट्र के युवाओं के लिए श्री कृष्णमूर्ति जी द्वारा बिल्कुल सटीक विश्लेषण किया गया है।