– डा एसएस सुंदरम् –
सी. सुब्रमण्य भारतियार तमिलनाडु से एक कवि, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे। उन्हें महाकवि भारतियार के नाम से जाना जाता था। महाकवि की सराहनीय उपाधि का अर्थ है, महान कवि। उनकी गिनती भारत के महानतम कवियों में की जाती है। भारत की स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद संबंधी उनके गीतों ने तमिलनाडु में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जन समर्थन जुटाने में मदद की थी।
सुब्रमण्य भारतियार का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को तमिलनाडु के तिरूनेलवेल्ली जिले में एट्टियापुरम नामक गांव में हुआ था। उनका बचपन का नाम सुभैया था। उनके पिताजी चिन्नास्वामी अय्यर और उनकी माता का नाम लक्ष्मी अम्माल था।
7 वर्ष की आयु में सुभैया ने तमिल में कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था। 11 वर्ष की आयु में वे ऐसा कुछ लिखने लगे थे कि उनके ज्ञान और कौशल की सराहना विद्वत्जन भी करने लगे थे। जीवन के 11वें वर्ष में सुभैया ने अपनी खास पहचान कायम करने की ठान ली थी। उसने विद्वानों की मंडली में वरिष्ठ विद्वानों को चुनौती दी कि वे बिना किसी पूर्व सूचना या तैयारी के किसी भी विषय पर उनके साथ शास्त्रार्थ कर सकते हैं। ये शास्त्रार्थ एट्टियापुरम दरबार की एक विशेष बैठक में आयोजित किया गया, जिसमें राजा स्वयं मौजूद थे। विषय के रूप में ‘‘शिक्षा’’ को चुना गया। सुभैया ने सक्षमतापूर्वक शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की। सुभैया की जिंदगी में यह एक यादगार क्षण था। अभी तक जो बालक ‘‘एट्टियापुरम सुभैया’’ के नाम से जाना जाता था, अब उसे ‘‘भारती’’ के रूप में जाना जाने लगा। बाद में राष्ट्रवादियों और विश्वभर में फैले उनके लाखों तमिल प्रशंसकों ने उन्हें ‘‘भारतियार’’ का नाम दिया।
जून, 1887 में भारती की आयु जब मात्र 15 वर्ष की थी, तो उनका विवाह बाल-वधु चेल्लाम्मल से कर दिया गया। भारती बनारस के लिए रवाना हुए, जिसे काशी और वाराणसी भी कहा जाता था। उन्होंने वहां अपनी चाची कुप्पाम्मल और उनके पति कृष्ण सिवान के साथ अगले 2 वर्ष बिताए। उन्होंने वहां बड़ी तेजी से संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी की अच्छी जानकारी प्राप्त की। उन्होंने इन भाषाओं में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा विधिवत रूप से उत्तीर्ण की। बनारस में प्रवास से भारतियार के व्यक्तित्व में जबर्दस्त निखार आया। उनके बाहरी व्यक्तित्व की बात करें तो वे मूंछें रखते थे और सिख साफा बांधते थे। चलते समय वे बड़ी तेजी से कदम बढ़ाते थे।
भारती: एक कवि और राष्ट्रवादी
सुब्रमण्य भारती तमिल साहित्य में एक नए युग का सूत्रपात करने वाले महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाओं के बड़े हिस्से को लघु गीतिकाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो राष्ट्र प्रेम, भक्ति और रहस्यवादी विषयों से संबंधित हैं। भारती मुख्य रूप से एक गीतकार थे। उनकी महान काव्यात्मक रचनाओं में ‘‘कन्नम पट्टू’’, ‘‘नीलवम वम्मिनुम क‘त्रम’’, ‘‘पांचालिसबतम’’, ‘‘कुयिलपट्टु’’ शामिल हैं।
भारती को राष्ट्रीय कवि समझा जाता है, क्योंकि उनकी अधिकांश कविताएं राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत थीं, जिनके माध्यम से वे लोगों का आह्वान करते थे कि वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हों और देश की आजादी के लिए कड़ा संघर्ष करें। अपने देश पर गर्व करने मात्र की बजाय उन्होंने स्वतंत्र भारत के अपने लक्ष्य को रेखांकित किया था। 1908 में उनकी एक क्रांतिकारी रचना ‘‘सुदेश गीतांगल’’ प्रकाशित हुई।
भारती एक पत्रकार के रूप में
भारती ने अपने जीवन के अनेक वर्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यतीत किए। युवा भारती ने नवंबर, 1904 में ‘‘स्वदेसमित्रन्’’ में उप संपादक के पद पर एक पत्रकार के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की।
मई, 1906 में उन्होंने ‘‘इंडिया’’ का प्रकाशन आरंभ किया। इस प्रकाशन ने फ्रांस की क्रांति के तीन नारों, स्वतंत्रता, समानता और भाई चारा, को अपना लक्ष्य घोषित किया। तमिल पत्रकारिता में इसके प्रकाशन से एक नई प्रवृत्ति सामने आई। अपने क्रांतिकारी स्वरूप को व्यक्त करते हुए भारती ने साप्ताहिक पत्र ‘‘इंडिया’’ का मुद्रण लाल कागज पर प्रारंभ किया। इंडिया तमिल में प्रकाशित ऐसा पहला पत्र था, जिसमें राजनीतिक कार्टून छपते थे। उन्होंने ‘‘विजया’’ जैसे कुछ अन्य पत्र पत्रिकाओं का भी संपादन किया।
अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं था कि अतिशीघ्र पत्रिका के संपादक की गिरफ्तारी के लिए ‘‘इंडिया’’ के कार्यालय के बाहर एक गिरफ्तारी वारंट इंतजार कर रहा था। 1908 में बिगड़ती स्थिति के कारण भारती ने पुद्दुचेरी जाने का निर्णय किया, जो उस समय फ्रांस के अधीन एक क्षेत्र था। उन्होंने वहां से इंडिया पत्रिका का प्रकाशन जारी रखा। भारती ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के प्रकोप से बचने के लिए कुछ समय पुद्दुचेरी में रहे।
अपने वनवास के दौरान भारती को अरबिंदो, लाजपत राय और वीवीएस अय्यर जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक उग्रपंथी नेताओं से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। पुद्दुचेरी में बिताए गए 10 वर्ष भारती के जीवन में सर्वाधिक मूल्यवान रहे।
उन्होंने पुद्दुचेरी से मद्रास में तमिल युवाओं को राष्ट्रवाद के मार्ग पर अग्रसर करने में उनका मार्गदर्शन किया। इससे भारती के लेखन के प्रति अंग्रेजों का गुस्सा बढ़ गया, क्योंकि वे महसूस करते थे कि उनकी रचनाएं तमिल युवाओं की राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित एवं प्रभावित कर रही थीं। भारती 1919 में मद्रास के राजाजी गृह में महात्मा गांधी से मिले। भारती ने नवंबर, 1918 में कुड्डालूर के निकट ब्रिटिश इंडिया में प्रवेश किया और उन्हें शीघ्र गिरफ्तार कर लिया गया। कारागार में भी उन्होंने स्वतंत्रता, राष्ट्रवाद और देश के कल्याण के बारे में कविताएं लिखा जारी रखा।
अपनी जवानी के प्रारंभिक दिनों में वी.ओ. चिदम्बरम, सुब्रमण्य सिवा, मंडयम तिरूमलाचारियार और श्रीनिवासाचारी जैसे राष्ट्रवादी तमिल नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध थे। वे इन नेताओं के साथ ब्रिटिश शासन के कारण देश को झेलनी पड़ रही समस्याओं के बारे में विचार विमर्श करते थे। भारती भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशनों में हिस्सा लेते थे और बिपिन चन्द्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और वीवीएस अय्यर जैसे उग्रपंथी भारतीय राष्ट्रीय नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार विमर्श करते थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बनारस अधिवेशन (1905) और सूरत अधिवेशन (1907) में हिस्सा लिया और अपने राष्ट्रवादी तेवर से कई राष्ट्रीय नेताओं को प्रभावित किया। भारती ने कुछ राष्ट्रीय नेताओं के साथ बेहतर संबंध कायम किए और राष्ट्र के बारे में विचारों और भावनाओं का आदान प्रदान किया। उन्होंने राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए अपने सुझाव भी दिए। निश्चित रूप से उनके बुद्धिमतापूर्ण सुझावों और राष्ट्रवाद के लक्ष्य के प्रति सुदृढ़ समर्थन ने अनेक राष्ट्रीय नेताओं में नई जान डाल दी थी। इस तरह, भारती ने भारत की स्वतंत्रता में अपनी ध्रुवीय भूमिका अदा की।
समाज सुधारक के रूप में भारती
भारती जाति व्यवस्था के भी खिलाफ थे। उन्होंने घोषणा की थी कि केवल दो जातियां हैं – पुरुष और महिला, और कोई जाति नहीं है। सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने अपना जनेऊ उतार कर रख दिया था। उन्होंने कई दलितों को जनेऊ पहनाया था। वे मुसलमानों द्वारा संचालित दुकानों पर बेची जा रही चाय का इस्तेमाल करते थे। वे अपने परिवार के सदस्यों के साथ सभी त्योहारों के अवसर पर गिरजाघर जाते थे। उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश देने का समर्थन किया। अपने सभी सुधारों की बदौलत उन्हें अपने पड़ोसियों से विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन भारती का नजरिया साफ था कि जब तक भारतीय अपने को मां भारती के बच्चों की तरह एकजुट नहीं करेंगे, तब तक हमें आजादी नहीं मिल सकती। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, लिंग समानता और महिलाओं की मुक्ति के लिए काम किया। उन्होंने बाल विवाह और दहेज का विरोध किया तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
11 सितंबर, 1921 को भारती का देहांत हो गया। भारती ने एक कवि, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक के रूप में न केवल तमिल समाज पर, बल्कि समूचे मानव समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने जो कहा, उस पर अमल किया और इसी से उनकी महानता प्रकट होती है। भारत की स्वतंत्रता के बारे में उन्होंने औपनिवेशिक शासन के दौरान जो भविष्यवाणी की थी, वह उनकी मृत्यु के ढाई दशक बाद सत्य सिद्ध हुई। उन्होंने गरिमापूर्ण भारत का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, वह स्वतंत्रता-परवर्ती युग में साकार हो रहा है। भारती अपने लिए नहीं, राष्ट्र और लोगों के लिए जिए। इसीलिए उन्हें सम्मानपूर्वक भारतियार कहा जाता है।
______________
डॉ. एस एस सुंदरम,
शिक्षक व् लेखक
________________
’डॉ. एस एस सुंदरम, मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई (तमिलनाडु) के भारतीय इतिहास विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। वे स्कूल आफ हिस्टोरिकल स्टडीज़, चेन्नई के अध्यक्ष हैं।
______________
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS
_____________