– दीपक राजदान –
सरकार ने बड़ी संख्या में श्रम कानूनों को सरल बनाने तथा उनके एकीकरण की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया जब, उसने इसे देश के समक्ष प्रस्तुत किया। मजदूरी संहिता, 2017, एक ऐसा विधेयक है जो मजदूरी से संबंधित चार वर्तमान श्रम कानूनों की विशेषताओं और प्रावधानों को जोड़ता है। यह विधेयक 10 अगस्त, 2017 को संसद के मानसून सत्र के दौरान लोक सभा में प्रस्तुत किया गया। इस संहिता का उद्वेश्य चार केंद्रीय श्रम कानूनों, जिनके नाम हैं- मजदूरी भुगतान कानून, 1936; न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948 ; बोनस भुगतान कानून, 1965 और समान पारिश्रमिक कानून, 1976 के महत्वपूर्ण प्र्रावधानों के एकीकरण, सरलीकरण और विवकीकरण के जरिये कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं दोनों को ही राहत पहुंचाना है।
इस विधयेक के पारित होने के साथ ही चारों कानून निरस्त समझे जाएंगे। कानून के सरल अनुपालन को सुगम बनाने के लिए, यह संहिता अंततोगत्वा अधिक उपक्रमों की स्थापना एवं नए रोजगार अवसरों का सृजन करने के लिए स्थितियों का निर्माण करेगी।
विधेयक के लक्ष्यों के वक्तव्य में कहा गया है कि कानूनों का एकीकरण उनके कार्यान्वयन को सुगम बनाएगा एवं श्रमिकों के कल्याण एवं लाभों की मूलभूत अवधारणाओं के साथ समझौता किए बगैर परिभाषाओं एवं अधिकारियों की बहुलता को दूर करेगा। प्रस्तावित कानून इसके कार्यान्वयन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करेगा और इसके माध्यम से कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही लाएगा। सभी श्रमिकों तक न्यूनतम मजदूरी के दायरे को विस्तारित करना समानता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
इस विधेयक में मजदूरी से संबंधित सभी अनिवार्य तत्वों-समान पारिश्रमिक, भुगतान एवं बोनस का प्रावधान है। मजदूरी से संबंधित प्रावधान असंगठित एवं संगठित दोनों ही क्षेत्रों से संबंधित सभी रोजगारों पर लागू होंगे और न्यूनतम मजदूरी को निर्धारित करने का अधिकार उनके संबंधित क्षेत्रों में केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास बने रहेंगे। नियोक्ता, कर्मचारी, श्रमिक, न्यूनतम मजदूरी एवं मजदूरी की सुस्पष्ट व्याख्या की गई है।
यह संहिता उपयुक्त सरकारों को उन कारकों को निर्धारित करने में सक्षम बनाएगी जिनके द्वारा कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय की जाएगी। कारकों का निर्धारण आवश्यक कौशल, सौंपे गए कार्य की कठिनता, कार्यस्थल की भौगोलिक जगह एवं अन्य पहलुओं, जिन्हें उपयुक्त सरकार आवश्यक समझती है, पर विचार करने के बाद किया जाएगा। समय पर मजदूरी के भुगतान एवं मजदूरी से अधिकृत कटौती से संबंधित प्रावधान, जो वर्तमान में केवल 18,000 रु, मासिक मजदूरी पाने वाले कर्मचारियों पर ही लागू होते हैं, मजदूरी की अधिकतम सीमा पर विचार किए बगैर सभी कर्मचारियों पर लागू किया जाएगा। उपयुक्त सरकार ऐसे प्रावधानों के दायरे को सरकारी प्रतिष्ठानों तक भी विस्तारित कर सकती है।
यह सुनिश्चित करते हुए कि मजदूरी के भुगतान में जेंडर के आधार पर कोई भेदभाव न हो, विधेयक अपने पहले अध्याय में ही धारा 3 में ‘समान पारिश्रमिक‘ के लिए प्रावधान को सम्मिलित करता है, जिसमें कहा गया है कि ‘एक ही नियोक्ता द्वारा मजदूरी से संबंधित मामलों में, किसी अन्य कर्मचारी द्वारा किए गए समान कार्य या समान प्रकृति के कार्य के संबंध में जेंडर के आधार कर्मचारियों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।‘
कोई भी नियोक्ता किसी कर्मचारी को उपयुक्त सरकार द्वारा अधिसूचित मजदूरी की न्यूनतम दर क्षेत्र, प्रतिष्ठान या कार्य के लिए, जैसाकि किसी अधिसूचना में निर्दिष्ट किया गया है, से कम भुगतान नहीं करेगा। संहिता के तहत पहली बार किसी रोजगार के संबंध में न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करते समय, उपयुक्त सरकार, जो राज्य सरकार या केंद्र सरकार हो सकती है, सभी मुद्वों पर ध्यान देने एवं अनुशंसाएं करने के लिए नियोक्ताओं, कर्मचारियों एवं स्वंतत्र सदस्यों के प्रतिनिधियों से निर्मित्त एक समिति नियुक्ति करेगी। यह सभी हितधारकों को न्याय सुनिश्चित करेगी। न्यूनतम मजदूरी से संबंधित अध्याय में कहा गया है‘ उपयुक्त सरकार पांच वर्षों के अंतराल पर मजदूरियों की न्यूनतम दरों की समीक्षा या संशोधन करेगी।‘
विधेयक के तहत, केंद्र सरकार के पास, इस प्रावधान के साथ कि विभिन्न राज्यों या भौगोलिक क्षेत्रों के लिए विभिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी दरें हो सकती हैं, एक राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी को निर्धारित करने का अधिकार होगा। राज्य सरकारें राष्ट्रीय दर से कोई दर निर्धारित नहीं करेंगीं। राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी दर निर्धारित करने से पहले केंद्र सरकार एक केंद्रीय परामर्श बोर्ड की सलाह लेगी। किए गए ओवरटाइम कार्य के लिए भुगतान का प्रावधान है।
मजदूरी प्रावधान के भुगतान के तहत संहिता में कहा गया है, ‘ सभी प्रकार की मजदूरियों का भुगतान वर्तमान सिक्कों या करेंसी नोटों में या चेक द्वारा या डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक मोड के जरिये या कर्मचारी के बैंक खाते में डालने के द्वारा किया जाएगा। ‘ मजदूरी का भुगतान रोजाना, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक रूप से किया जा सकता है और विधेयक में भुगतानों के लिए समय-सीमाएं निर्धारित की गई हैं।
बोनस के भुगतान पर प्रावधान में कहा गया है कि बोनस का भुगतान वैसे कर्मचारियों को भी किया जाएगा जिन्होंने केवल एक महीने ही सेवा दी है। खंड 26 में कहा है कि यह भुगतान ‘ आठ की दर से गणना की गई और कर्मचारी द्वारा अर्जित मजदूरी का एक तिहाई प्रतिशत या सौ रुपये, इनमें जो भी अधिक हो, का वार्षिक न्यूनतम बोनस‘ होगा, चाहे नियोक्ता के पास पिछले लेखा वर्ष में कोई आवंटन योग्य अधिशेष हो या न हो। ‘
धारा में कहा गया है कि बोनस भुगतान में समानुपातिक रूप से बढोतरी होगी, अगर किसी लेखा वर्ष में आवंटन योग्य अधिशेष उच्चतर है, जो मजदूरी के अधिकतम 20 प्रतिशत के अध्यादीन है।
किसी वर्ष के लिए आय, लाभ एवं मुनाफा पर प्रत्यक्ष कर समेत स्वीकार्य कटौती के बाद, लेखा वर्ष के लिए उपलब्ध अधिशेष उस वर्ष के लिए सकल लाभ होगा। विनियोज्य अधिशेष बैंकों के लिए उपलब्ध अधिशेष का 60 प्रतिशत तथा अन्य प्रतिष्ठानों के लिए 67 प्रतिशत है।
धारा 39 के अनुसार, इस संहिता के तहत बोनस के जरिये किसी कर्मचारी को भुगतान की जाने वाली सभी राशियां लेखा वर्ष की समाप्ति के आठ महीनों के भीतर उसके नियोक्ता द्वारा उसके बैंक खाते में जमा करा दिया जाएगा। नियोक्ता को अधिक समय दिया जा सकता है लेकिन ‘किसी भी स्थिति में‘ यह अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होगी।
इंस्पेक्टर राज का खात्मा करते हुए, इस संहिता में सुगमकर्ताओं का प्रावधान किया गया है जो कानून के समुचित कार्यान्वयन में नियोक्ताओं एवं कर्मचारियों की सहायता करेंगे। सुगमकर्ता की नियुक्ति केंद्र या राज्य सरकार द्वारा की जा सकती है और उन्हें पूरे राज्यों या ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में काम करने का अधिकार दिया जा सकता है जो उन्हें सौंपे गए हैं।
संहिता की धारा 51 में कहा गया है कि सुगमकर्ता अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर, (क) इस संहिता के प्रावधानों का सर्वाधिक प्रभावी तरीके से अनुपालन करने से संबंधित सूचना एवं सलाह नियोक्ताओं एवं कर्मचारियों को दे सकता है ; (ख) जांच योजना के आधार पर प्रतिष्ठान का निरीक्षण कर सकता है। सरकार द्वारा बनाई गई यह जांच योजना एक वेब आधारित जांच कार्यक्रम के सृजन का प्रावधान करेगी।
धारा 51 में कहा गया है कि सुगमकर्ता मजदूरों की जांच कर सकता है, ‘ऐसे रजिस्टर, मजदूरी के रिकॉर्ड या नोटिसों या तत्संबंधी हिस्सों की तलाशी, जब्ती या उसकी प्रतियां ले सकता है जिन्हें सुगमकर्ता इस संहिता के तहत किसी अपराध के संदर्भ में महत्वपूर्ण मानता हो और उसके पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण हो कि नियोक्ता द्वारा कोई अपराध किया गया है।‘ सुगमकर्ताओं को आईपीसी एवं सीआरपीसी के तहत उनके कार्य के लिए अधिकारसंपन्न बनाया गया है।
इस संहिता के तहत अपराधों के लिए शिकायतें सुगमकर्ताओं, कर्मचारियों, पंजीकृत ट्रेड यूनियनों, या सरकार द्वारा की जा सकती हैं। संहिता में अपराधों के लिए व्यापक सजाओं का प्रावधान है। अगर कोई नियोक्ता अपने कर्मचारियों को संहिता के तहत बकाये से कम राशि का भुगतान करता है तो उस पर 50,000 रुपये तक का आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता है। पांच वर्ष के भीतर इस गलती को दुहराने की स्थिति में तीन महीने तक की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों ही लगाए जा सकते हैं।
संहिता या इसके तहत बनाये गए किसी नियम का उल्लंघन करने पर 20,000 रुपये तक का आर्थिक जुर्माना और पांच वर्ष के भीतर इसे दुहराए जाने की स्थिति में एक महीने तक की कैद या 40,000 रुपये का आर्थिक जुर्माना या दोनों ही लगाए जा सकते हैं। सुगमकर्ता नियोक्ता को संहिता का अनुपालन करने का समय और अवसर प्रदान कर सकता है और अगर अनुपालन कर लिया जाता है तो दंडात्मक कार्रवाई आरंभ नहीं कर सकता है।
विधेयक के खंड 55 में अपराधों की संरचना से संबंधित प्रावधान है। केवल ऐसे अपराध, जिनके लिए कैद की कोई सजा नहीं है, संयोजित किए जाएंगे। योग राशि अधिकतम आर्थिक दंड का 50 प्रतिशत होगी। दूसरी बार या पांच वर्ष की अवधि के भीतर फिर से या पहले संयोजित किए गए, ऐसे ही अपराध या जिसके लिए दोषसिद्धि हो चुकी हो, के लिए कोई योग नहीं किया जाएगा।
संहिता द्वारा विभिन्न धाराओं के तहत कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाती है। यह सिद्ध करने की जिम्मेदारी नियोक्ताओं पर है कि बगैर किसी अनुचित कटौती के समुचित भुगतान कर दिया गया है।
मजदूरी संहिता, 2017 व्यवसाय करने की सरलता को और अधिक बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा प्रस्तावित चार संहिताओं में पहली संहिता है। अन्य तीन संहिताएं औद्योगिक संबंध, सामाजिक जांच एवं कल्याण तथा सुरक्षा और कार्य स्थितियों से संबंधित होंगी। जहां इनसे श्रम कानूनों में लंबे समय से प्रतीक्षित स्पष्टता आएगी, और इसकी विविधता भी न्यूनतम हो जाएंगी, वहीं संहिता के आधारभूत लाभों से कामकाजी वर्ग को उनके अधिकारों एवं जिम्मेदारियों के बारे में जानने में मदद मिलेगी और वे बड़े रोजगार अवसरों की उम्मीद कर सकेंगे।
_______________
About the Author
Deepak Razdan
Author and senior journalist
Deepak Razdan, senior journalist and author of book “President Pranab: Power of Speech,” is at present Editorial Consultant with The Statesman, New Delhi.
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.