संसार में आख़री नबी की पैदाइश का दिन

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Most-HD-Islamic-First-Kalma-Photo-300x200– अब्दुल काबिज खान –

  • यौमे ईद मीलादुन नबी स0अ0व0

“ईद मीलादुन्नबी” ईदुल फित्र या ईदुल अज़हा की तरह कोई इस्लामी त्यौहार नहीं है। ईद के मायने होते हैं खुशी के और जिस दिन अल्लाह के आख़री नबी की पैदाइश हुई हो कौन बद किसमत है जो उस दिन खुशी नहीं मनायेगा।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम तकरीबन एक लाख चौबीस हज़ार इस्लामी पैगम्बरों की आखरी कड़ी हैं इनके बाद कयामत तक कोई पैगम्बर या रसूल पैदा नहीं होगा। हम आप सब खुश किसमत हैं जो अल्लाह के आखरी नबी को अपना रहबर तसलीम करते हैं। हम रसूलुल्लाह स.व. के उम्मती हैं हमें उनके मार्गदर्शन को अपनाकर अपने दोनों जहान को कामयाब बनाना हैं। न कि व्यर्थ के काम करके इस दिन अल्लाह को नाराज़ करना है।
आज से लगभग 1445 वर्ष पूर्व 22 अप्रैल सन् 571 ईसवी को हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 मक्का में पैदा हुवे एतिहासिक गणनाओं के आधार पर इस्लामी सन हिजरी के तीसरे महीने यानी रबीउल अव्वल की बारह तारीख को पीर के दिन सुबह के वक्त आपका जन्म हुआ था पूरे संसार में लोग इसी दिन ईद मीलादुन्नबी के तौर पर पूरे जोश खरोश के साथ मनाते हैं। क्या अच्छा होता कि नबी के कण कण और क्षण क्षण का अनुकरण हम अपने जीवन में समाहित कर लेते।
हजरत मुहम्मद स0अ0व0 के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अब्दुल मुत्तलिब के बेटे थे। आपके वंश का नाम कुरैश था जो अरब का एक प्रमुख और इज्ज़त वाला वंश था। आपके दादा ने नज़र मानी थी कि अगर अल्लाह ने उन्हें दस लड़के अता किये और सबके सब इस उम्र को पहुंचे कि इन का बचाव कर सके तो वह एक लड़के को काबे के पास कुर्बान कर देंगे। जब अब्दुल मुत्तलिब के दस लड़कों की संख्या पूरी हो गई। और वह बचाव करने की उम्र तक बड़े हो गए। तो उनको अपनी नजर की बात बताई। सबने बाप की बात मान ली किन्तु सवाल यह था, कि किस बेटे की कुर्बानी दी जाय। इस के लिए कुरआ डाला गया। और लाटरी अब्दुल्लाह के नाम निकली अब्दुल मुत्तलिब ने बेटे अब्दुल्लाह का हाथ पकड़ा और छुरी लेकर काबे के पास पहंुच गए किन्तु अब्दुल्लाह के नन्हिाल वाले और कुरैश आड़े आ गए आखिरकार अब्दुल्लाह को बचाने एक महिला पुजारिन ने सुझाव दिया कि अब्दुल्लाह के बदले दस ऊंट जिब्हा करने के लिए कुरआ निकाला जाय और हर बार दस दस ऊंटों की संख्या बढ़ाई जाये। जब तक कुरआ ऊंटों के नाम न निकले, इस तरह जब 100 ऊंटों की तादाद पहुंच गई तो कुरआ ऊंटों के नाम निकला और सौ ऊंट कुर्बान करके अब्दुल्लाह को बचा लिया गया।
बड़े होने पर अब्दुल्लाह की शादी आमना से हुई और उन्हीं के बतन से ह0 मुहम्मद का जन्म हुआ आपके जन्म से पहले ही आपके वालिद का इन्तेकाल हो गया था, उस वक्त उनकी आयु मात्र 25 वर्ष थी। दादा अब्दुल मुत्तलिब ने ही आपका नाम “मुहम्मद” रखा था। अरब के रिवाज और दस्तूर के मुताबिक वहां के लोग अपने बच्चों को शहरी बीमारियों से बचाने के लिए देहाती औरतों के सुर्पुद दूध पिलवाने के लिए कर देते थे। ह0 मुहम्मद को भी दाई हलीमा सादीया के सुर्पुद कर दिया दाई हलीमा सादीया ने आपको पूरे दो साल दूध पिलाया और आपकी बरकतों से फैज उठाने हेतु आगे भी अपने पास रखा। आप गॉव में करीब छः वर्ष रहे। गॉव से लौटने के थोड़े ही दिन बाद आपकी माता का भी देहांत हो गया। इस दुर्रे यतीम को उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब ने पूरे लाड प्यार से पाला पोसा और जब आठ साल की आयु हुई तो दादा का साया भी सर से उठ गया। दादा के बाद आपके सगे चचा अबूतालिब ने आपकी किफालत की जिम्मेदारी निभाई। जब आपकी उम्र दस बारह साल की हुई तो आपने हम उम्र लड़कों के साथ बकरिया भी चराई।
बारह वर्ष की आयु में आप अपने चचा के साथ व्यापार के लिए मुल्क शाम के सफर को निकले। आप निहायत ही ईमानदार और अमानतदार थे लोग आपके पास अपनी अमानते लाकर रखते  और आपको सादिक और अमीन कहते थे।
आज दुनिया में आपकी कोई तसवीर नहीं है न ही आपकी कोई काल्पनिक तसवीर बना सकता। अल्लाह ने आपको जो नूर दिया था उसकी कोई मिसाल नहीं है। आप निहायत दिलेर भी थे आपके पसीने से खुशबू निकलती थी आपके दोनों कंधों के बीच में अंडाकार मुहरेनुबुव्वत थी जिसे देख कर उस वक्त के यहूदी और ईसाई धर्म गुरू आपको नबी पहचान लेते थे।
आज दुनिया की आबादी में आधे से अधिक लोग मुहम्मद स0अ0व0 को बिन देखे आप पर ईमान रखते हैं आपकी प्रत्येक शिक्षाओं को अक्षरशः नतमस्तक स्वीकार करते हैं क्योंकि आप अल्लाह के बन्दे भी थे और रसूल भी आपकी नाफरमानी अल्लाह की नाफरमानी है और आप पर अवतरित आकाशवाणी कुरआन अल्लाह की किताब हैं। जो करीब 23 साल की मुद्दत में आप पर समय समय पर नाज़िल हुई और जो सारे संसार के मनुष्यों के लिए अन्तिम दिन तक मार्गदर्शक है। कुरआन अरब में उतरा है इस की मूल भाषा अरबी है इसमें एक मात्रा की भी घट बढ़ कोई नहीं कर सकता यह करोड़ों हाफिज़ों के सीने में कंठस्थ और सुरक्षित है  इस की हिफाजत का जिम्मा भी ऊपर वाले ने ले रखा है।
हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 नबी ए उम्मी थे गोया आप पढ़े लिखे नहीं थे आपको फरिश्ता आकर कुरआन सिखा जाता और आप उसे लोगों को वैसा ही सिखा देते। दुनिया के पहले इंसान आदम और उनकी बीवी हव्वा से लेकर कयामत तक के हालात, क्या कोई निरक्षर आदमी बता सकता है यही आपका मौजज़ा है। आपने ऊंगली के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर दिए थे इस मौजज़े का जिक्र कुरआन पाक में भी है।
आप ने अल्लाह का दीन हम इंसानों और जिन्नों तक पहुंचाया है कि हम उस पर बिला चूं व चरा अमल करें आपके द्वारा अल्लाह के प्रत्येक आदेश पर अमल करके दिखाया गया है जिसे लाखों लोगों ने अपनी गवाही से सत्य प्रकट किया है जिसे हदीस कहते हैं आपकी प्रत्येक शिक्षा हदीस में लिखी हुई है। आपका अनुसरण अल्लाह से प्रेम की पहचान है। आपकी आज्ञा पालन से अल्लाह की दयालुता प्राप्त होती है। अल्लाह और रसूल का आज्ञा पालन करोगे तो तुम्हारा कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जायगा। आपका इंकार करने वाले कयामत के दिन बहुत पछताएगें। आप की पत्नियां मुसलमानों की मॉं है। आप पूरी दुनिया के लिए दयालुता बनाकर भेजे गए हैं। आप पर नुबूवत का सिलसिला खत्म हुआ आपके के बाद कोई नबी कयामत तक नहीं आयेगा। नबी का काम अल्लाह का संदेश पहुंचा देना था वे अल्लाह की बातों को अपनी इच्छा से नहीं बदल सकते थे। आपकी कुल ग्यारह बीवियॉं थी। जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो आपने 40 वर्षीय एक विधवा खातून हज़रत खदीजा का निकाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उनकी मृत्यु के पहले आपने कोई दूसरा निकाह या शादी नहीं किया। हज़रत खदीजा से आपके दो बेटे और चार बेटियॉं पैदा हुई। आपके सब बच्चे आपके जिन्दगी में ही इन्तेकाल कर गए सिर्फ हज़रत फातिमा का इन्तेकाल आपके छः महीने बाद हुआ। आपका एक बेटा दूसरी बीवी से हुआ था इस तरह आपके कुल 4 बेटी और 3 बेटे थे। आपको चार से अधिक बीवियों से निकाह करने का विशेष अधिकार था क्योंकि कबीलों में बटे समाज की रूढ़ीवादी परम्परा में इस्लामी सुधार और आपसी भाईचारा स्थापित करने की आवश्यकता थी।
जब आप पैंतीस साल के हुये तो काबे में भारी सैलाब आया जिससे काबे की दीवारें फट गई आपने काबे के पुनर्निर्माण में हिस्सा लिया आप स्वंय पत्थर ढोते थे। जब काबे की दीवारें उठ गई तो हज्रे असवद यानी काला पत्थर रखने के लिए कबीलों में झगड़ा होने लगा हर कबीला चाहता था कि यह काम वह करें किन्तु आपने एक चादर बुलवाई इसमे हज्रे असवद को रखा और हर कबीले के सरदारों से चादर का किनारा पकड़ाकर उठवाया और हज्रे असवद को उसके रखने की जगह पर रख दिया। सब खुश हो गए।
जब आपकी उम्र 40 वर्ष की हो गई तो आपको रिसालत अता की गई सबसे पहले गारे हिरा में जिब्राईल फरिश्ता कुरआन मजीद की चन्द आयात लेकर आपके पास आया और कहा पढ़ों आपने कहा मैं पढ़ा हुआ नहीं हॅूं जिब्राईल ने आपको पकड़ कर जोर से दबोचा और यही क्रम तीन बार चला फिर कहा “पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया इंसान को लोथड़े से, पढ़ों तुम्हारा रब निहायत करीम है यह वाक्या 10 अगस्त सन 610 ईसवी पीर के दिन रात को पेश आया। इसके बाद आप पर वही (आकाशवाणी) का सिलसिला 23 साल तक समय समय पर चलता रहा और आप लोगों को अल्लाह तआला के अहकामात से वाकिफ कराते रहे और खुद भी अमल करके दिखाते रहें।
आपने जब अल्लाह के एक होने और अपने आपको अल्लाह का बन्दा और रसूल मानने की दावत दी तो आपकी कौम आपका विरोध करने लगी क्योंकि वह बाप दादा का दीन छोड़ने को तैयार नहीं थी फिर भी आपने अपने घरवालों से लेकर, राजा और रंक तक इस्लाम की तब्लीग की आपने बताया कि अल्लाह एक है उसके सिवा कोई माबूद पूज्य नहीं है। मुहम्मद स0अ0व0 अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं। माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। किसी की ना हक हत्या करना सारे मानवों की हत्या करने के समान है। हर प्रकार की अश्लीलता को अल्लाह ने हराम ठहरा दिया है। किसी को बुरे नाम से न पुकारों। किसी के घर में अनुमति के बिना प्रवेश न करना। अल्लाह घमंड करने वालों को पसंद नही करता। आत्महत्या निषिद्ध है। ऐसी बातें मत कहो जिनको तुम स्वंय नहीं करते। दरिद्रता के भय से औलाद की हत्या करना पाप है। ज़िना व्यभिचार के निकट भी न फटको। अल्लाह अप व्यय करने वालों को पसंद नहीं करता। गर्ज़ आपका हर हर कौल व अमल उम्मत के लिए काबिले तकलीद है।
इस्लाम की खातिर आपको दुश्मनों ने मारा, पीटा, लहुलुहान कर दिया, आपके रास्ते पर कांटे बिछाये आपको धन, दौलत, राजपाठ और सुन्दर स्त्रियों की लालच भी दी गई। लेकिन आप टस से मस नहीं हुये यहां तक तक कि आपको जान से मार डालने की साज़िशें रची गई। आखिरकार आपको अल्लाह के हुक्म से अपना घर बार छोड़ कर मक्का से मदीना हिजरत करना पड़ी। आपने अपने सताने वालों की आपके मानने वालों का कत्ल करने वालों को भी आम माफी दे दी और किसी से कोई बदला नहीं लिया जिसके कारण लोगों ने आपका दीने इस्लाम स्वीकार करने में होड़ मचा दी। अल्लाह ने आपको कामयाबी दी। सारी दुनिया में इस्लाम का बोलवाला हो गया और कैसर व किसरा की सलत्नतंे पामाल हुई।
आप फरमाते तुम लोग जमीन वालों पर मेहरबानी करो तुम पर आसमान वाला मेहरबानी करेगा। वह व्यक्ति मोमिन नहीं जो खुद पेट भर खा ले और उसके बाजू में रहने वाला पड़ोसी भूखा रहें। सदका गुनाहों को ऐसे ही बुझा देता है जैसे पानी आग को बुझा देता है। आपने हज्जतुल विदाअ के मौके पर फरमाया औरतों के बारे में अल्लाह से डरो क्योंकि तुमने इन्हें अल्लाह की अमानत के साथ लिया है और अल्लाह के कलमे के जरिये हलाल किया है।
आपने कहा लोगों याद रखो मेेरे बाद कोई नबी नहीं और तुम्हारे बाद कोई उम्मत नहीं लिहाजा अपने रब की इबादत करना पांचों वक्त की नमाज पढ़ना, रमजान के रोजे रखना, खुशी खुशी अपने माल की जकात देना अपने परवरदिगार के घर का हज करना और अपने हुकमरानों की इताअत करना, ऐसा करोगे तो अपने परवर दिगार की जन्नत में दाखिल होंगे। तुमसे मेरे मुताल्लिक पूछा जाने वाला है तो तुम लोग क्या कहोगे ? सहाबा ने कहा हम शहादत देते हैं कि आपने तबलीग कर दी। पैगाम पहुंचा दिया। खैर ख्वाही का हक अदा करदिया आपने तीन बार शहादत की उंगली आसमान की तरफ उठाया और लोगों की तरफ झुकाते हुए फरमाया। ए अल्लाह गवाह रह।
जब आप खुत्बे से फारिगहुवे तो अल्लाह ने यह आयत नाज़िल फरमाई “आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया। और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम को बहैसियत दीन पसंद कर लिया।” इस वक्त आपके पास एक लाख चवालीस हजार इंसानों का समुन्दर ठाठें मार रहा था आपने लोगों से कहा तुम लोग बहुत जल्द अपने परवर दिगार से मिलोगे और वह तुमसे तुम्हारे आमाल के मुतअल्लिक पूछेगा लिहाजा देखो मेरे बाद पलट कर गुमराह न हो जाना कि आपस में एक दूसरे की गर्दनें मारने लगो। जो शख्स मौजूद है वह गैर मौजूद तक मेरी बातें पहुंचा दे क्योंकि वह लोग जिन तक यह बातें पहुंचाई जायेगी वह मौजूदा सुन्ने वालों से कहीं ज्यादा इन बातों को समझ सकेंगे।
63 वर्ष की आयु में 12 रबीउल अव्वल सन 11 हिजरी सोमवार के दिन सुबह के वक्त फज्र की नमाज के बाद आपने बेटी फातिमा को बशारत दी कि आप सारी ख्वातीने आलम की सरदार है आपने अपने नवासों हसन हुसैन को चूमा उनके बारे में खैर की वसीयत की ओर अज़वाजे मुतहरात(पत्नियों) को बुलाया और वाज़ नसीहत की आपको हज़रत आयशा ने मिसवाक कराई आप ला इलाहा इललल्हाह पढ़ते रहे और अल्लाह से दुआ करते रहे ए अल्लाह मुझे रफीके आला में पहुंचादे तीन बार दुहराया और दुनिया से रूखसत हो गये।
आपकी मौत की खबर फौरन फैल गई लोगों पर गम का पहाड़ टूट गया आपके सहाबा को आपकी वफात को मानने के लिए एक दूसरे को समझाना पड़ा। मंगल के दिन आपको गुस्ल दिया गया, तीन यमनी सफेद चादरों में कफनाया गया मंगल का पूरा दिन और बुध को आपकी नमाजे़ जनाज़ा अदा की जाती रही और बुध की रात को आपको हजरत आयशा के हुजरे में सुर्पुद खाक कर दिया गया। हर साल लाखो अज़मीने हज मदीना जाकर आपके रोजे की ज्यारत करते है और हर मुसलमान आप पर दुरूद और सलाम पेश करता है।
शंहशाहे दो आलम की वफात के वक्त आपकी जिरह एक यहूदी के पास तीस साअ यानी 75 किलो जवार में गिरवी रखी थी आपकी गुर्बत का यह हाल था कि आपने जिन्दगी भर फर्श पर खजूर की चटाई पर सोया आपकी वफात के एक दिन पहले  रात में चराग जलाने को तेल एक पड़ोसन से उधार लिया गया था जबकि आपके पास मात्र 7 दीनार थे आपने उन्हे भी सदका कर दिया था और अपने हथियार मुसलमानों को हिबा कर दिये थे। आपकी सखावत बेमिसाल थी।

आज का दिन हमें आपके अहकाम पर चलने का है।
की मुहम्मद से वफ़ा तो हम तेरे हैं।
ये जहॉं चीज है क्या लौह व कलम तेरे हैं।
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ABDUL QUABIZ KHANपरिचय -:

अब्दुल काबिज खान

लेखक व् वरिष्ठ पत्रकार

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