शैक्षिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं पर किया लोक जागरण

गोपाल प्रसाद*
शैक्षिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं  पर किया लोक जागरण, लोकशिक्षण और लोकसंघर्ष के प्रयासों से ही ज्ञान-शील-एकता की साधना पथ पर चलने की प्रेरणा, वास्तव में हमें अखिल भारतीय परिषद् से मिली है. वर्ष 1987 – 89 में दरभंगा (बिहार) में इस संगठन से जुड़कर हमने काफी कुछ सीखा . हमारे आन्दोलन सहकर्मी राजेश अग्रवाल वर्तमान में बखरी (बेगुसराय) के हिंदुस्तान संवाददाता है. सहरसा कॉलेज  में मैथली के विभागाध्यक्ष डा.रामनरेश सिंह जिनके माध्यम से हमने वाद- विवाद और  भाषण कला सीखा, वे बाद में अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के ध्येय से न हटते  हुए निरंतर उसी दिशा में बढ़ने तथा व्यक्ति परिवर्तन से समाज परिवर्तन की सीख भी हमने हमें इसी परिवार से मिली है. उस वक्त हमने हजारों, लाखों विद्यार्थियों तक पंहुचने और उनको सामाजिक कार्य हेतु आह्वान करने का कार्य किया. व्यापक जनसंपर्क अभियान चला कर अभाविप को समाज में सर्वव्याप्त करने का प्रयास किया था परन्तु आज उसी संगठन की प्रेरणा पाकर विगत तीन वर्षों से ” एक आन्दोलन देश के लिए : सूचना का अधिकार क्रांति” की उन्मुख हुआ. इस अवधि में केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों ने तीन हजार से अधिक आर टी आई फ़ाइल कर चुका हूँ. हमारा मुख्य उद्देश्य जनता को मिले अधिकार को जन -जन तक पंहुचाना, उस के माध्यम से संपूर्ण क्रांति का आह्वान करना है. विभागों में आरटीआई के माध्यम से सूचना निकालकर विभागीय नाकामियों व भ्रष्टाचार को उजागर करना ही नहीं बल्कि समाज को जागरूक बना कर उसे वास्तविकता का एहसास दिलाना ही हमारा एक सूत्री कार्यक्रम है. कार्य कठिन तो है परन्तु असंभव नहीं. व्यवस्था परिवर्तन हेतु जनजागरूकता एवं पारदर्शिता और संवाद के साथ-साथ समन्वय भी आवश्यक है. हमें गर्व है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के बाद अखिल भारतीय साहित्य परिषद् से भी जुड़ने का मौका प्राप्त हुआ. मातृभाषा मैथिली व मातृभूमि दरभंगा के विकास के लिए कर्मक्षेत्र दिल्ली से ही अनेक सपने संजोये हैं. हमें अभिमान है कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद् में श्री सूर्यकृष्ण , श्री श्रीधर पराडकर, डा. बलबंत भाई जानी, डा. कृष्णचंद गोस्वामी, डा. रीता सिंह, डा. कांता शर्मा, अनिल मित्तल आदि का सानिध्य प्राप्त हुआ. जिनके कार्यप्रणाली से प्रेरित होकर हमने कुछ अलग एवं प्रभावी प्रकल्प पर कार्य करने की  ठानी. स्वाधीनता के पश्चात् अपने भारत देश की हजारों वर्षों की गौरवशाली एवं वैभव संपन्न परम्पराओं को ध्यान में रख कर उसे पुनः आधुनिक, विकसित एवं परिस्थितिजन्य दोषों से मुक्त करने का सपना सारा देश देख रहा था. ऐसे ही कुछ युवाओं ने इन सपनों को साकार करने के लिए देश के महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय परिसरों को अपना केंद्र बनाकर अखिल भारतीय परिषद् ABVP के नाम से गतिविधियाँ प्रारंभ की.फिर ये यात्रा रुकी नहीं , अनंत बाधाएँ जरूर आई , निरंतर पीढीयाँ बदली, परन्तु कार्य निरंतर छः दसकों से बढ़ता जा रहा है. हर पीढी में संख्यात्मक वृद्धि ,विस्तार गतिविधियाँ और विशेषकर देशभक्ति का जज्बा एवं समाज के प्रति आत्मीयता अधिकाधिक उभरती जा रही है तथा संकल्प दृढ होता जा रहा है. यह धारा तो आगे बढ़ेगी , अधिक विस्तृत , अधिक तेज तथा और अधिक कल्याणकारी बनती जाएगी . उस धारा को गंगा की भांति समझाना ठीक होगा ताकि पूरा समाज इसके महत्त्व को पहचाने , तथा यह प्रभावी रूप से बिना कोई रूकावट के प्रवाहित रहे , यही वर्तमान समय की मांग है.
                                   देश एवं समाज के हित में सार्थक कार्य करना है तो दलगत राजनीति एवं विध्वंसक मार्गों को छोड़कर रचनात्मक कार्य करना ही योग्य है ,आन्दोलन भी होंगे लेकिन उनका उद्येश्य रचनात्मक होना आवश्यक है.  अतः इस निष्कर्ष पर आया कि आरटीआई को ही वर्तमान समय के सर्वोत्तम मार्ग के रूप में स्वीकार किया जाए . यह एक लम्बी श्रृंखला बन गयी , जिसने आम छात्रों को महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय परिसरों में अच्छा माहौल प्रदान किया , यह मौका उनके लिए प्रेरक व् दिशादर्शक बन गया . सैकड़ों ऐसे कार्यकर्त्ता जिन्होंने इस कार्य को आगे बढाया वे स्वयं भी सार्वजानिक जीवन के लिए वरदान साबित हुए हैं . बहुत ऐसे विद्यार्थी एवं युवा हैं जो देश के लिए कुछ करने के लिए तैयार हैं , बस जरूरत उनको अवसर प्रदान करने भर की है .
                 भारत के  उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश श्रीमान बालकृष्णन कुछ दिन पूर्व केरल के निजी चैनल से वार्तालाप कर रहे थे . संवाददाता ने उनसे जनहित याचिकाओं के बारे में पूछा , तो उनका जबाब था की अधिकतम याचिकाओं में तथ्य एवं अध्ययन का अभाव एवं नकारात्मकता रहती है , परन्तु अभी एक सकारात्मक , अध्ययनपूर्ण एवं पीड़ितों को न्याय देने के उद्देश्य से याचिका आई है. इस में विशेष बात यह है की यह याचिका छात्र संगठन ” अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् “ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रावासों के सर्वे के आधार पर उन्हें न्याय देने के उद्येश्य से दाखिल की थी.
         आज देश आगे बढ़ाना चाहता है , सभी क्षेत्र में शीर्ष पर आना चाहता है . हर युवा प्रयास कर रहा है, देश के लिए छोटी सी उपलब्धि पर भी लोग खुशी  मनाना चाहते हैं . कल्पना चावला का आकाशयान में सहभाग हो या भारत की मिसाईल क्षेत्र की प्रगति हो. डा.ए.पी.जे.कलाम जैसा वैज्ञानिक ऐसी ईच्छाओं की पूर्ति करनेवाला प्रतीक बनकर पेरणास्पद आदर्श बन कर उभर आता है. अ.भा.वि.प  ऐसा सपना देखने के लिए प्रेरित करती है, सहायक बनती है. अब बदली दुनिया में भारत के युवा काफी कुछ कर सकते हैं . आर्थिक दृष्टि से संपन्न होना , यह एक स्वाभाविक ईच्छा सभी के मन में है. दुनिया में जितनी बातें हैं वह सब कुछ पाने की ईच्छा है . दुनिया की सभी सुविधा भारत में हो , मेरे जीवन में भी वह आए यह विचार भी प्रबल है . यह विचार भी जरूरी समझा जा रहा है की हमारी पहचान क्या है ? क्या हम एक गरीब , पिछड़े देश के लोग हैं या भविष्य के सबसे संपन्न एवं प्रभावशाली देश के लोग हैं . दूसरों की कृपा पर जीने वाले देश के लोग है या स्वयंसिद्ध देश के लोग हैं. अपनी बुद्धि से व्यक्तिगत कुछ पाकर दूसरे का विकास करनेवाले लोग हैं या स्वयं कष्ट सहकर अपने देश को विकसित करनेवाले हैं . ऐसे कई प्रश्न हमारे नौजवानों के मन में आते हैं . हमारे देश के रीति- रिवाज , परम्पराएं भी काफी शालीन हैं जो दुनियां के लिए भी अनुकरणीय  हैं. क्या हमारे लिए आधुनिक समय में इनके साथ चलाना संभव है?
         भारत के नौजवानों ने आजादी के आन्दोलन में महती भूमिका निभाई . अब उन्हें देश को आगे बढ़ने में रचनात्मक भूमिका भी निभानी है. कई नई अच्छी परम्पराएं भी स्थापित करनी होगी. भारत को भारत रहना है तो अपने तरीके ढूँढने होंगे . अपने स्वाभाव व स्वधर्म के अनुरूप भविष्य की गतिविधियाँ निश्चित करनी होंगी और यह प्रयास कोई सरकार या किसी एक संगठन के करने से पर्याप्त नहीं होगा , सभी को शामिल होना होगा . कोंई देश तभी विकास की तरफ बढ़ पता है , जब उसकी युवा शक्ति सक्रिय होती है. डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम अपनी पुस्तक “तेजस्वी मन” में लिखते हैं ( कौन सी बातें है जो हमसे छूट रही है? कौन सी बात है जो ठीक करना जरूरी है? समस्या हमारी सोंच में है. हम स्वयं के स्वार्थ की पूर्ति में धन्य मानने की प्रवृति से निकल नहीं पाते.
          व्यक्तिगत जीवन में संयमित साधनों से संतुष्टि सराहनीय है लेकिन देश व समाज को तो आगे बढ़ाना ही चाहिए परन्तु कई बार होता विपरीत है . हम देश के बारे में तो ज्यादा सोंचते नहीं लेकिन व्यक्तिगत साधन जुटाने में पूरी शक्ति लगा देते हैं . हम सभी देश के विकास में अपनी थोड़ी- थोड़ी शक्ति भी लगा देंगे तो , देश तेज गति से आगे बढेगा तथा हर प्रकार के लोगों को खुशहाली भी मिलेगी. हमें खुशी से जीना है तो देश की व्यवस्थाएं ठीक रखनी होगी . सामान्य रूप से साक्षरता की भी समस्या  आप लेते हैं तो, यह निरक्षरता कितने करोड़ लोगों के जीवन को दुर्बल व पराबलम्बी कर देती है. उनके जीवन को कितना संकटमय बना देती है . जिस देश में करोड़ो ऐसे लोग हों उसे हम कैसे विकसित कर सकते है? सरकारी तंत्र पर निर्भर रहकर क्या कभी यह समस्या हल होगी ?  संभव नहीं लगता क्योंकि शासन पर जनता ऐसी दबाब ही नहीं बना पाती जो या तो अनपढ़ हो या अनपढ़ों के प्रति उदासीन हो . हमारे देश का युवा अगर संकल्प लेकर प्राथमिकता से इसके समाधान में जुट जाए , तो सरकारी तंत्र भी सक्रिय होकर कार्य करना प्रारंभ कर देगा . देश में बहुत सारे मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खुलने जा रहें हैं लेकिन हमारे अच्छे डॉक्टर मिलकर भी स्वास्थ्य व्यवस्था एवं स्वास्थ्य के स्तर को ऊपर उठाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं .ऐसे प्रेरित डॉक्टर समाज को चाहिए जो इस दिशा में कुछ कार्य करें , तभी देश विकसित होगा. ऐसे कई प्रकार से जितना हम सोचते हैं , तो एक बात एकदम स्पष्ट  हो जाती है कि महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय  परिसरों में ऐसा वातावरण उत्पन्न होना जरूरी है कि हमारे छात्र , परिसरों में एवं बाहर निकलने के पश्चात देशभक्ति एवं समाज के प्रति आत्मीयता से ओतप्रोत होकर अपने क्षेत्र में कार्यरत रहें तथा उस क्षेत्र का नेतृत्व करें. हमारे देश में हर व्यक्ति को रोटी , कपड़ा , माकन शिक्षा एवं चिकित्सा जैसी प्राथमिक  सुविधाएँ प्राप्त हों तथा सामाजिक सम्मान और आगे बढ़ने का सामान मौका भी मिल सके ऐसा माहौल रहे . व्यवस्थाएं ऐसी हों जिसमें सभी को न्याय मिले . यह देश वैभवशाली बनने के साथ ही रक्षा कि दृष्टि से संपन्न बने . समाज में सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन मूल्यों एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्ति कि रक्षा हो . ऐसे परस्पर स्नेहपूर्ण एवं पूरक भाव रखनेवाला समाज जो विश्वबंधुत्व का भाव रखता हो तथा साथ में अपनी मातृभूमि हेतु जीने मरने के लिए लालायित हो इस राष्ट्र के लिए आवश्यक है. यह राष्ट्र तो पुराना है लेकिन पूर्वजों के अमूल्य ज्ञान की रक्षा करते हुए हमें आधुनिक एवं संपन्न बनाना है . सामाजिक कुप्रथाएँ एवं गलत परम्पराओं से आनेवाली पीढी को मुक्त रखने का समाज का संकल्प ले, ऐसा वातावरण अपेक्षित है .
    परिषद् ने  अपने स्थापना कल से ही एक छात्र संगठन के रूप में विभिन्न प्रकार से अपना दायित्व निभाना प्रारंभ किया . जैसी देश व समाज कि आवश्यकता हो , वैसे परिषद् के कार्यकर्त्ता कार्य में जुटे रहे . साथ ही हजारों छात्रों का समय- समय पर जागरण किया व उन्हें भी ऐसे कार्य में सहभागी होने का आह्वान किया .विद्यार्थी परिषद् के सभी कार्यकर्त्ता भी भाग्यशाली हैं कि उन्हें स्वाधीन भारत में देश के लिए कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है . कई संगठन आए और बिखर गए विवादस्पद हुए या दिशाहीन हो गए परन्तु विद्यार्थी परिषद् गत 60  बर्षों से सतत अपने कार्य में निष्ठापूर्वक लगी है . परिषद् में भी कई पीढीयाँ बदल गयी लेकिन उसी उत्साह एवं निष्ठा से हर पीढी के छात्र कार्य करते रहे हैं . इसी का परिणाम है कि बीते बर्षों में संगठन का विस्तार भी हुआ तथा प्रभाव एवं विश्वसनीयता में सतत वृद्धि गत 60  बर्षों में होती रही . आज परिषद् के कार्यकर्त्ता वे वर्तमान हों या पूर्व सभी इस संगठन पर गर्व कर सकते हैं तथा आज भी संगठन उनके लिए प्रेरणास्पद है . विद्यार्थियों के लिए कई निराशाओं के बीच विद्यार्थी परिषद् जैसा नौजवानों का संगठन  आशा एवं विश्वास का कारण बना है . यही कारण है कि लगातार देश के कोने में छात्रो ने परिषद् कार्य को भारी पतिसाद दिया ,उसमें सहभागी हुए, समर्थक बने तथा समाज भी लगातार तन -मन-धन से ऐसे कार्य का खुलकर सहयोग कर रहा है . इसीलिए विद्यार्थी परिषद् का कार्य देश के हर हिस्से में पहुंचा है  एवं प्रभावी होता जा रहा है.  परिषद् का कार्य किसी लहर , राजनैतिक सत्ता , धनबल, बाहुबल , आकर्षक नारे एवं घोषणा या झूठे प्रचारों के आधार पर नहीं बढ़ा है अपितु हजारों कार्यकर्ताओं के परिश्रम , निष्ठा, कष्ट एवं कर्तव्य तथा बलिदान के आधार पर बढ़ता गया है . इसलिए 60 बर्ष पूर्ति पर हमें उन्हें याद करना जरूरी है , जिन्होंने भारत माता की जय, वन्दे मातरम के नारों को साकार करने में अपने श्रम , धन तथा आवश्यकता पड़ने पर प्राण भी न्योच्छावर कर दिए. ऐसे लोगों की नींव पर खड़ा होने से ही यह संगठन मजबूत एवं विश्वसनीय बना है. देश व समाज पर जब भी किसी प्रकार की विपत्ति आई तो परिषद् के कार्यकर्त्ता सीना तानकर खड़े हुए व सभी प्रकार से परिस्थिति से डटकर मुकाबला किया. “पहले देश की सुरक्षा , देशवासियों के दुखदर्द की चिंता महत्वपूर्ण है
*इसी सूत्रवाक्य को हमने सूचना के अधिकार आन्दोलन का मुख्य आधार बनाया है.
(लेखक सूचना के अधिकार  कार्यकर्त्ता हैं )
गोपाल प्रसाद (RTI ACTIVIST)
मंडावली, दिल्ली – 92

मो० – 9289723144

EMAIL: gopal.eshakti@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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