आलोक कुमार की टिप्पणी : “कविता क्या है ? वह अभिव्यक्ति जिसमें भावावेग हो , कल्पना हो , पद लालित्य हो , रस हो और प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हो l प्रयोजन की सीमा समाप्त होने पर ही अलौकिक रस का साक्षात्कार होता है और इस साक्षात्कार से रूबरू कराने की कला में महारथ हासिल है श्री शुभेन्दु शेखर जी को l
मन की गुहार
कौन सी गली मुड़ी
पिछली ऋतु की बयार
झुलसा गई मुझे
मन हुआ है तार तार !!
बैरन बन आई साँझ
ताकूँ टिक तेरी डगर
जलती रहूँ चाँदनी में
पी के बिरहा की ज़हर !!
आँखें कर बंद सोंचू
बाँहों का तेरे हार
ॲंखियाँ खुल नहीं पाऐ
मन की बस ये गुहार !!
परिचय – :
शुभेन्दु शेखर
रांची , झारखंड .कोई भी साहित्यकार – सृजनकार अपने मन्तव्य को पाठकों तक पहुँचाने के लिए साहित्य की विविध विधाओं को चुनता है। कविता, कहानी, नाटक, निबन्ध, उपन्यास आदि के रूप में वह अपने भाव एवं विचार को संप्रेषित करता है। लेकिन रचनाकार चाहे जिस विधा को चुने अपने कथ्य को संप्रेषित करने के लिए वह अपनी अलग शैली चुनता है। भाषा तो केवल उपादान है शैली एक अलग पहचान है। ऐसे ही श्री शुभेन्दु शेखर जी की एक अपनी ही विशिष्ट – शैली है , भाव-पूर्ण और छायावाद का पुट लिए इनका लेखन ठंडी – हवा सा सुखद अहसास
आभार आपका डा. रेणुका जी !!
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शानदार ,दिल के करीब कविता ,साथ में टिप्पणी पढ़कर देल बाग़ बाग़ हो गया !
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बहुत सुंदर कविता है। किन्तु कविता की कोई निर्धारित परिभाषा अभी तक तय नही हो पायी है , इस पर शोध अभी जारी है शायद।
आभार नित्यानन्द जी !!
उम्दा कविता,लिखने के बाद शायद लेखक को बहुत सकून मिला होगा !
आभार सलोनी जी …… लेखनी को काग़ज़ पर दर्ज करना सुकून देता ही है ….. भटकती भावना के पिण्डदान जैसा कृत्य है लेखन !!!
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आभार दीनदयाल जी !!
आपकी कविता बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही हैं ! बधाई
आभार महक नाज जी !!!
कविता या टिप्पणी …..फैसला बहुत मुश्किल हैं दोनों एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं ! मन की गुहार …बार बार ,,,,,,,
आभार कुनिका जी !!
शुभेन्दु शेखर जी आपका लिखने का अंदाज़ निराला हैं ! आप बेहिसाब लिखते हैं ! आलोक जी आपकी टिप्पणी बहुत ही उम्दा हैं ! दुनिया की पहली दस हज़ार में से एक !
आभार डा. निर्मल जी
आह्ह्ह ….शानदार ….आलोक जी आपने जो टिप्पणी की हैं उसका मज़ा भी उम्दा हैं ! आजके इस बिकाऊ मीडिया के दौर में चलो कोई तो जगह जहां सब बढिया सा ही पढ़ने को मिलता हैं ! वैसे INVC को फंडिंग कौन करता हैं ?
वाह शानदार कविता !! आपकी कविताएं कब एक साथ कई पढ़ने को मिलेंगी ! आलोक जी आप लाजबाब हैं
आभार निहारका जी !!
आपकी कविता ….बस …तारीफ के लियें शब्द कम हैं ! आलोक जी आप सच में टिप्पणी करने योग्य हैं !
आभार अतुल भाई !!
आभार निहारिका जी !!