व्यंग्य : इस मय को मुबारक चीज़ समझ

– तनवीर जाफ़री – 

 
सरकार की किन्हीं नीतियों की आलोचना करना तो समझ आता है परन्तु सरकार द्वारा लॉक डाउन जैसी कठिन,ग़मगीन व उबाऊ घड़ी में ‘मयख़ाने’ खोले जाने के पुनीत निर्णय पर जो हो हल्ला मच रहा है मैं उससे बिल्कुल सहमत नहीं।क्यों ?
आइये इनके कारण आपको समझाता हूँ। क्योंकि….. अच्छों को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है। ‘इस मय’ को मुबारक चीज़ समझ,माना कि बहुत बदनाम है ये।।
मेरी और आपकी नहीं बल्कि ‘साहिर’ लुधियानवी जैसे मशहूर शायर की इन पंक्तियों क परिपेक्ष में   ‘मयख़ाने’ खोले जाने की अहमियत को समझा जा सकता है।
फिर भी न समझ आए तो -‘मुझे पीने का शौक़ नहीं पीता हूँ ग़म भुलाने को’ इन पंक्तियों से इस ‘मुबारक चीज़’ की अहमियत को समझिये।
कोरोना काल से ज़्यादा ग़म इन्सान को पहले कब रहा होगा। और अगर अब सरकार ने ग़म भुलाने में जनता की मदद करने की ठानी है तो उसमें भी एतराज़ ???
हद है भाई …
ख़ैर,चलिए अगर अब भी मयख़ाने खोले जाने का कारण समझ में न आए तो इनके कुछ प्रसिद्ध  ब्रांड के नामों की अहमियत से समझने की कोशिश करिये।
रहा सवाल इसका कि कुछ ‘पढ़े लिखे कम बुद्धि ‘ (सी डी एस जनरल विपिन रावत द्वारा प्रयुक्त शब्द समूह ) वाले लोग कहते हैं कि जो शराब ख़रीद कर पी रहे हैं उन्हें भोजन सामग्री जैसी निःशुल्क सहायता से महरूम रखा जाए। और उन ‘मय के क़द्रदानों’ की उँगलियों में वोटिंग वाले निशान की तरह स्याही लगा दी जाए ताकि उन्हें साहयतार्थ निःशुल्क आवंटित की जाने वाली खाद्य सामग्री न मिल सके। हद है भाई …अमानवीयता की इंतेहा ??? क़द्रदानों को भूखा मारने जैसा षड्यंत्रकारी विचार ???न जाने आते कहाँ से हैं ऐसे विचार ?
ऐसे ‘पढ़े लिखे कम बुद्धि ‘वालों को मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
जब मिर्ज़ा ग़ालिब को बहादुरशाह ज़फ़र के दरबार से उनका माहाना नज़राना मिलता तो वे अपनी पूरी तनख़्वाह से सिर्फ़ ‘मय मुबारक’ ख़रीद कर ले आते। और जब बेगम आजिज़ी से यह सवाल करती कि आप अपनी पूरी तनख़्वाह से इस नामुराद शराब को ख़रीद लाए तो अब आख़िर घर का राशन कैसे आएगा ? क़ुर्बान जाऊँ फ़क़ीराना मिज़ाज के उस अज़ीम हक़ गो शायर के …..वह फ़रमाते, -‘बेगम …. अल्लाह ने अपनी हर मख़लूक़ को इस वादे के साथ पैदा किया है कि वह उसे भूखा नहीं सोने देगा। मगर उसने ‘मय मुबारक’ देने का वादा नहीं किया है। इसलिए इसका इंतेज़ाम मुझे ख़ुद करना पड़ता है। लिहाज़ा अल्लाह पर भरोसा रखो वह रिज़्क़ ज़रूर देगा।
इसलिए सरकार के मयख़ाने खोले जाने के फ़ैसले का दिल से इस्तेक़बाल कीजिये। हाँ इस बात को लेकरआप सरकार की आलोचना ज़रूर कर सकते हैं कि सरकार ने पूरे देश में इसे निःशुल्क वितरित करने की नीति क्यों नहीं बनाई।आलोचना दिल्ली व तेलंगाना जैसे उन राज्य सरकारों की करिये जिन्होंने ‘ग़म भुलाने’ के इस पवित्र पेय की क़ीमतों में बेइंतेहा इज़ाफ़ा कर दिया। और दुआएं दीजिये उन मयकशों व ‘मयकशियों’ को भी जो देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने जैसे राष्ट्र भक्ति के जज़्बे से सराबोर होकर ब्रह्म महूर्त में जा कर लाइनों  लग गए और ज़रूरत पड़ी तो देश हिट में पुलिस की लाठियां भी खाईं। सौ सौ सलाम है ऐसे राष्ट्रभक्तों पर जिन्होंने अर्थ व्यवस्था को ऊपर ले जाने का ज़िम्मा उठाने वालों पर जगह जगह पुष्प वर्षा की। और सलाम है ‘पटियाला पैक ‘ के जनक पटियाला राज परिवार के वर्तमान चश्म-ए-चिराग़ मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरेंद्र सिंह के उस फ़ैसले को जिसके अंतर्गत उन्होंने ‘मय मुबारक’  की होम डिलेवरी कराए जाने का फ़ैसला किया है।  
डिस्क्लेमर-वैसे मैं बदक़िस्मती से ‘मय मुबारक के क़द्रदानों’में नहीं हूँ। लेकिन जो हैं उनका क़द्रदान ज़रूर हूँ। जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

 

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

 

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com

 

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