विनोद श्रीवास्तव के गीत

विनोद श्रीवास्तव के गीत

1-
जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे आज़ाद नहीं हैं हम

पिंजरे जैसी इस दुनिया में
पंछी जैसा ही रहना है
भरपेट मिले दाना-पानी
लेकिन मन ही मन दहना है

जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे संवाद नहीं हैं हम

आगे बढ़ने की कोशिश में
रिश्ते नाते सब छूट गये
तन को जितना गढ़ना चाहा
मन से उतना ही टूट गये

जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे आबाद नहीं हैं हम

पलकों ने लौटाये सपने
आँखें बोली अब मत आना
आना ही तो सच में आना
आकर फिर लौट नहीं जाना

जितना तुम सोच रहे साथी
उतना बरबाद नहीं हैं हम

2-
शाम-सुबह महकी हुई
देह बहुत बहकी हुई
ऐसा रूप कि बंजर -सा-मन
चन्दन-चन्दन हो गया

रोम-रोम सपना सँवरा
पोर-पोर जीवन निखरा
अधरों की तृष्णा धोने
बूंद-बूंद जलधर बिखरा

परमल पल होने लगे
प्राण कहीं खोने लगे
ऐसा रूप कि पतझर-सा-मन
सावन-सावन हो गया

दूर हुईं तनहाइयाँ
गमक उठीं अमराइयाँ
घाटी में झरने उतरे
गले मिलीं परछाइयाँ

फूलों सा खिलता हुआ
लहरों-सा हिलता हुआ
ऐसा रूप कि खंडहर-सा-मन
मधुवन-मधुवन हो गया

डूबें भी, उतरायें भी
खिलें और कुम्हलायें भी
घुलें-मिलें तो कभी-कभी
मिलने में शरमायें भी

नील वरन गहराइयाँ
सांसों में शहनाइयाँ
ऐसा रूप कि सरवर-सा-मन
दर्पण-दर्पण हो गया

3.
नदी के तीर पर ठहरे
नदी के बीच से गुजरे
कहीं भी तो लहर की बानगी हमको नहीं मिलती

हवा को हो गया है क्या
नहीं पत्ते खड़कते हैं
घरों में गूँजते खण्डहर
बहुत सीने धड़कते हैं

धुएँ के शीर्ष पर ठहरे
धुएँ के बीच से गुजरे
कहीं भी तो लहर की बानगी हमको नहीं मिलती

नकाबें पहनते हैं दिन
कि लगता रात पसरी
जिसे सब स्वर्ग कहते हैं
न जाने कौन नगरी है

गली के मोड़ पर ठहरे
गली के बीच से गुजरे
कहीं भी तो लहर की बानगी हमको नहीं मिलती

कहाँ मंदिर, कहाँ गिरजा,
कहाँ खोया हुआ काबा
कहाँ नानक, कहाँ कबिरा,
कहाँ चैतन्य की आभा

अवध की शाम को ठहरे
बनारस की सुबह गुजरे
कहीं भी तो लहर की बानगी हमको नहीं मिलती

4.
एक सन्नाटा हमारे बीच है
तुम कहो तो तोड़ दूँ पल में

सिरफिरी तनहाईयों का
वास्ता हमसे न हो
जो कहीं जाए नहीं
वह रास्ता हमसे न हो

एक तहखाना हमारे बीच है
तुम कहो तो बोर दूँ जल में

फूल हैं, हैं घाटियाँ भी
पर कहाँ खुशबू गई
क्यों नहीं आती शिखर से
नेह्धारा अनछुई

एक सकुचाना हमारे बीच है
तुम कहो तो छोड़ दूँ तल में

रूप में वय, प्राण में लय
छंद साँसों में भरें
और वंशी के सहारे
हम भुवन भर में फिरें

एक मोहक क्षण हमारे बीच है
तुम कहो तो रोप दूँ कलमें
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vinod srivastvपरिचय
विनोद श्रीवास्तव 

 लेखक ,कवि व् पत्रकार 

निवास स्थान – ग्राम – गोहना, पोस्ट-एकोनी तहसील – लालगंज जिला – रायबरेली
शिक्षा –  एम.ए. अर्थशास्त्र एवं हिंदी साहित्य
गीत संग्रह – भीड़ में बाँसुरी (1987) एवं  अक्षरों की कोख से (2001)

गीतों का प्रसारण – आकाशवाणी के लखनऊ , नई टिहरी, जम्मू-कश्मीर, छतरपुर एवं आगरा केन्द्रों से , दूरदर्शन के लखनऊ, इंदौर तथा भोपाल के केन्द्रों से

दैनिक जागरण के सप्तरंग साहित्यिक पुनर्नवा से सम्बद्ध एवं लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी, कानपूर में प्रबंधक
वर्तमान निवास – आनयन, म.न.- 695, सेक्टर–ई, आवास विकास,कल्यानपुर, कानपूर–208017

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