दिल्ली,,
संसद के षीतकालीन सत्र में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के फैसले के संभावित विरोध को निरस्त करने के लिए यूपीए सरकार ने कमर कस ली है। यूपीए के घटक दलों, बाहर से समर्थन करने वाले दलों और अब मुख्य विपक्षी दल भाजपा के नेताओं को रात्रि भोज पर आमंत्रित करना सरकार की उसी रणनीति का हिस्सा है। मीडिया हलकों में इसे बड़ी सराहना के साथ प्रधानमंत्री की डिनर डिप्लोमेसी कहा जा रहा है। लेकिन सोषलिस्ट पार्टी प्रधानमंत्री के रात्रि भोज को मेहनतकष गरीबों के मृत्यु भोज की संज्ञा देती है जो सरकार के इस तरह के नवउदारवादी फैसलों से लाखों की संख्या में मारे गए हैं और आगे मारे जाने के लिए अभिषप्त हैं। विदेषी कंपनियों की जीहजूरी में कांग्रेस ने समस्त संवैधानिक और नैतिक दायित्वों को उतार कर फेंक दिया है। ‘त्याग की मूर्ति’ सोनिया गांधी और ‘ईमानदारी के देवता’ मनमोहन सिंह अपने असली रंग में खुल कर सामने आ गए हैं। अपने को समाजवाद और सामाजिक न्याय का चैंपियन कहने वाले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी राश्ट्रीय जनता दल, लोक जनषक्ति पार्टी, द्रविड मुनेत्र कजगम आदि दलों के नेता खुदरा में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के सरकार के फैसले पर षुरू से लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं। उन्हें उन गरीब तबकों की परवाह नहीं है जिन्होंने उन पर विष्वास किया और उन्हें सत्ता की ताकत सौंपी। उनके आचरण का सबसे लज्जास्पद पहलू यह है कि डिनर डिप्लोमेसी के नाम पर प्रधाननमंत्री द्वारा आयोजित गरीबों के मृत्युभोज में वे खुषी-खुषी जीम रहे हैं।
अगर प्रधानमंत्री की डिनर डिप्लोमेसी सफल नहीं होती तो संसद में विष्वास मत जीतने के लिए वे वही नजारा दोहरा सकते हैं जो भारत-अमेरिका परमाणु करार के वक्त अंजाम दिया गया था। अथवा, नवउदारवादी सुधारों की बलिवेदी पर अपने को कुर्बान कर देने की घोशणा करने वाले प्रधानमंत्री संसद को समय से पहले भंग कर दे सकते हैं। उन्हें यह पूरा विष्वास होगा कि वालमार्ट को भारत में घुसाने की एवज में अमेरिका उन्हें फिर से फतहयाब बना देगा। ऐसे संकटपूर्ण माहौल में सोषलिस्ट पार्टी खुदरा में एफडीआई का सच्चा विरोध करने वाले दलों से अपील करती है कि वे एकजुट होकर सरकार को यह फैसला हमेषा के लिए रद्द करने के लिए बाध्य करें। पार्टी की खुदरा व्यापारियों के संगठनों से भी अपील है कि वे एकजुट होकर यूपीए सरकार की मुहिम को असफल करें। सोषलिस्ट पार्टी संवैंधानिक संप्रभुता और समाजवाद में विष्वास रखने वाले देष के नागरिकों से अपील करती है कि वे मिल कर आगे आएं और निर्णायक रूप से नवउदारवाद के इस सबसे तेज हमले को निरस्त करें। सोषलिस्ट पार्टी षुरू से ही इस फैसले के खिलाफ संघर्श करती आ रही है जबकि नवउदारवादी नीतियों पर चलने वाली यूपीए सरकार इस फैसले को लागू करने पर षुरू से आमादा रही है। सोषलिस्ट पार्टी का मानना है कि इस फैसले से देष के खुदरा व्यापारियों और किसानों के हितों की कीमत पर वालमार्ट, कारफुर, टेस्को जैसी बहुराष्ट्रीय रिटेल चेन कंपनियों को फायदा होगा। इस फैसले का भारत की अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, सांस्कृतिक-सामाजिक मूल्यों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। यूपीए सरकार ने यह फैसला पिछले साल नवंबर में किया था जिसे संसद में विपक्षी पार्टियों और खुदरा क्षेत्र की यूनियनों के कड़े विरोध के चलते स्थगित कर दिया था। तब कहा गया था कि इस मसले पर व्यापक बहस के बाद ही आगे कदम उठाया जाएगा। इस बीच विद्वान और सरोकारधर्मी नागरिक यह अच्छी तरह से स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार का यह फैसला देष के खुदरा व्यापारियों और किसानों की कीमत पर विदेषी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाला है। भारी मुनाफे के लालच में भारत में घुसने को बेताब वालमार्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों के काले कारनामों का भी पूरा ब्यौरा इस बीच सामने आ चुका है। लेकिन कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की जमात और केंद्रीय मंत्री आनंद षर्मा वही तर्क दे दिए जा रहे हैं जिन्हें बहस में विद्वानों द्वारा खारिज किया जा चुका है। मसलन, यह तर्क कि विदेषी निवेष होने से फलों और सब्जियों को ताजा बनाए रखने का इंतजाम हो जाएगा। पूछा जा सकता है कि क्या कोल्ड स्टोरेज और रेफ्रिजेरेषन का इंतजाम भारत खुद नहीं कर सकता? मई के षुरू में भारत आई अमेरिकी विदेष मंत्री हिलेरी क्लिंटन का मुख्य एजेंडा था कि खुदरा क्षेत्र में विदेषी कंपनियों को जल्दी से जल्दी प्रवेष दिया जाए। वे 6 साल तक वालमार्ट कंपनी की डायरेक्टर रह चुकी हैं। संसद में यूपीए के घटक दलों में इस फैसले का सबसे ज्यादा विरोध पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था। इसीलिए हिलेरी क्लिंटन उन्हें मनाने की नीयत से सबसे पहले उन्हीं से जाकर मिलीं। इसके कुछ समय बाद फ्रांस की कंपनी कारफुर के भारत स्थित एमडी ने ध्द्योग और वाणिज्य मंत्री आनंद षर्मा से मिल कर जल्द से जल्द फैसला लागू करने को कहा। नवउदारवादी नीतियों पर चलने वाली यूपीए सरकार किसी भी समय फैसले को लागू करने की घोषणा कर सकती है। सोषलिस्ट पार्टी का मानना है कि खुदरा क्षेत्र में विदेषी निवेष का फैसला लागू होने पर छोटे दुकानदारों और किसानों की भारी तबाही होगी। साथ ही भारतीय समाज के सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस आसन्न खतरे के मद्देनजर सोषलिस्ट पार्टी ने 28 मई 2012 को जंतर मंतर पर एक दिवसीय धरना दिया और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई है कि राष्ट्रपति सरकार को सलाह दें कि वह खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिषत विदेषी निवेष की अनुमति देने वाले फैसले को हमेषा के लिए रद्द कर दे। पार्टी ने यह ज्ञापन देष की सभी गैर-कांग्रेस पार्टियों के पदाधिकारियों और खुदरा क्षेत्र के संगठनों को इस निवेदन के साथ भेजा कि वे इस फैसले को रद्द कराने के लिए सरकार पर अविलंब दबाव बनाएं। फैसले के पद्वा में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की लाबिंग के मद्देनजर सोषलिस्ट पार्टी ने सभी गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजा कि वे इस जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी फैसले को अपने राज्य नहीं लागू करने की घोषण करें। पार्टी ने 9 अगस्त के भारत छोड़ो दिवस को ‘एफडीआई नहीं’ दिवस के रूप में मनाया। तत्पष्चात 20 सितंबर 2012 को एफडीआई के विरोध में आयोजित भारत में बंद में पार्टी ने राश्ट्रीय स्तर पर हिस्सा लिया। उसके तुरंत बाद पार्टी ने 22 सितंबर 2012 से जंतर मंतर पर एक हफ्ते की क्रमिक भूख हड़ताल की। पार्टी अपने स्तर पर इस फैसले के खिलाफ अभी भी लगातार जनजागरण अभियान चला रही है।