कविताएँ
1. ख़ामोश ईश्वर
मैं जब दलितों की बात करती हूँ
माँ गौर से सुनती है
मैं उनकी दशा बताती हूँ
साथ आक्रोश जताती है
मैं उनके उत्थान की बात करती हूँ
तो साथ सहमती दिखाती है
पर मैं जब किसी दलित मित्र से
ब्याहने की बात करती हूँ
माँ चुप हो जाती है
ठीक वैसे ही
जैसे मन्दिर की चौखट पर
दलित पीट दिया जाता है सवर्णों द्वारा
और ईश्वर ख़ामोशी से देखता है !
2. जब होंगे तुम्हारे तेज से आकर्षित
और नहीं पा पायेंगे तो जला देंगे
चेहरे पर तेज़ाब उड़ेलकर
देख लेंगे जब गौर से देह तुम्हारी
तुम्हें नौच डालेंगे
कर देंगे तुम्हारा सामूहिक बलात्कार
जब जल्दी में होंगे
तो राह चलते ही
सीने पर हाथ मार देंगे
और निकाल लेंगे अपनी भड़ास
कुछ नहीं होगा तो
अश्लील शब्दों की भाषा से
छेद देंगे तुम्हें
नहीं तो
यूँ आँखों ही आँखों में
कर देंगे निर्वस्त्र तुम्हें / हर रोज
और ये भी न हो पाया तो
एक लम्बा जाल बिछायेंगे
फिर बारी-बारी
आत्मा..भावना..देह..प्रेम सबसे खेलेंगे
असल में ये सबसे आसान भी है
वैसे बात वही है
जैसे आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता
मानसिक विकृत पुरुष का भी कोई धर्म नहीं होता..!
3 . साजिश
हमें नहीं जाने दिया जाता
शमशान घाटों पर
चिता को आग नहीं दी जाने देती
नहीं मुढवाने दिए जाते बाल
रोक दिया जाता है
बहुत मेहनत के कामों से
तेज चलने से
धूप-धूल में जाने से
कहा जाता है
आहिस्ता बोलने को
उबटन लगाने को
अनजाने में ही लगे
मासिक धर्म के दागों पर शर्माने को
और बहुत शातिराना ढंग से
लिबास उढ़ा दिया जाता है सहनशीलता का
असल में हमेशा से ही
एक सामजिक साजिश रही है
हमें कमजोर बनाए रखने की !
4. सबसे सुन्दर लड़की
एक सुन्दर देह से अलग
कभी कोई लिखे..
किसी लड़की की आँख के गहरे काले घेरे
कि वे उसकी तमाम दर्दीली रातों की गवाही हैं
उसके चेहरे पर जमा हुयीं मृतक कोशिकाएं
कि वह कब से बच रही है लोगों की नज़र से
उसके रूखे- अकड़ीले बाल
जो रोज की उलझती ज़िन्दगी से कभी सुलझे ही नहीं
उसकी देह पर पड़े ज़िन्दगी की धूप के तपते निशान
कि वह कितना लड़ी होगी इक रौशनी के लिये
तमाम जख्मों से छलनी उसका सीना
जो अब भी धड़क रहा है अगली उम्मीद भरी सुबह के लिये
कि वही दुनियाँ की सबसे खूबसूरत लड़की है–
5 . रोहित वैमुला
भयानक सच नहीं है मृत्यु
हाँ एक उत्सव है
स्वाभाविक मृत्यु को पाना भी
और बहुत भयानक नहीं है
किसी गाड़ी की चपेट में आ जाना
मर जाना कुचलकर
या कहीं दूर से
मार दिया जाना
निशाना साध कर
लेकिन बहुत भयानक है
मृत्यु को योजनाबद्ध करना
स्मरण करना मृत्यु का बार-बार
विचार करना
मृत होने के वीभत्स तरीकों पर
और सोचना
मेरे मरने के बाद
कितना कुछ होगा
जो जीवन से हाथ धो बैठेगा
देह की सारी ऊर्जा चढ़कर
मस्तिष्क तक आ जाती होगी
शरीर शिथिल हो जाता होगा
कान सुन्न हो जाते होंगे
और आत्महत्या करने से पहले
मरा जाता होगा अनगिनत बार
क्योंकि मृत्यु इतनी भयानक नहीं है
जितना योजनाबद्ध मृत्यु का स्मरण –
6 . छोड़ी हुयी प्रेयसी
दूर सम्बन्ध का तुम्हारा भाई
जिसने चिढ़ाया था कभी भाभी कहकर
आज भी दिखता है तो मुस्कुरा देती हूँ
तुम्हारे कुछ मित्र
जो बड़े सलीके से बात कर लिया करते थे
दिख जाते हैं कहीं तो अदब आ जाता है
तुम्हारी एक महिला मित्र से
आज भी बात हो जाती है दीदी कहकर
छोड़ी हुयी प्रेयसी
तुम्हारे न होने पर भी
निभा रही है तुम्हारा हर सम्बन्ध
छोड़ी हुयी प्रेयसी
जब गुजरती है
तुम्हारे मज़हब वाले मंदिर से
तो उसमें दाखिल हो जाती है
कभी बातों ही बातों में
सिखायी गयी पूजा पद्धति को याद करती है
विसरे से मन्त्र पढ़ती है
और मांग लेती है सलामती तुम्हारी
छोड़ी हुयी प्रेयसी
संजो के रखती है
वो हर एक वस्तु
जो जुड़ी है तुमसे
तुम्हारी छोड़ी हुयी प्रेयसी
प्रतिबद्ध है
तुम्हारे द्वारा माँग ली गयी सौगंध पर
कि वो आजीवन तुम्हारी है
तुम्हारे रहते
जी रही है बेवाओं वाला जीवन
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आकांक्षा अनन्या
शिक्षिका ,लेखिका व् कवयित्री
कुछ अपने ही बारे में – :
आकांक्षा अनन्या..उम्र 27 वर्ष..मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की करैरा तहसील में जन्मीं..उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में रह रही हूँ..विज्ञान वर्ग से पढ़ी और एक स्कूल में विज्ञान की शिक्षिका हूँ..
साहित्य की दुनियाँ में रेत पर हस्ताक्षर हूँ..जीवन की खाली जगहों से कलम थमा दी जिसे कविताओं से भरने की कोशिश करती हूँ .
संपर्क – :
ईमेल – akankshaseth81@gmail.com
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Tumhari kavita ke madhyam se ki gai abhibyakti ucch koti ki atyant sunder hai aknsksha bahut sunder
Aapki dalit ke upar jo ke upar likhi kavita “khamose eswar ” bahut achchi lagi