रेल सफाई अभियान और होनहार रेल यात्री

– निर्मल रानी –   

भारत का रेल विभाग स्वच्छता की दिशा में गत् पंद्रह वर्षों से काफी सक्रियता दिखाता आ रहा है। तुलनात्मक दृष्टि से यदि देखें तो देश के अधिकांश रेलवे स्टेशन,प्लेटफार्म तथा रेल ट्रैक अब पहले से अधिक साफ-सुथरे दिखाई देने लगे हैं। इसका कारण जहां ट्रेन शौचालयों में इस्तेमाल की जाने वाली बायो टॉयलेट प्रणाली है वहीं रेलवे विभाग द्वारा तैनात किए गए समर्पित सफाई कर्मचारियों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है। भारतीय रेल विभाग को साफ-सुथरा बनाकर देश की इज़ज्त-आबरू को बचाने में लगे यह सफाई कर्मचारी पूरे भारतवर्ष में बिना किसी विपरीत मौसम की परवाह किए दिन-रात रेल ट्रैक पर सफाई करते अथवा प्लेटफार्म को साफ-सुथरा बनाते देखे जा सकते हैं। परंतु इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र यह भी उठता है कि क्या केवल भारत सरकार व रेल मंत्रालय द्वारा खर्च किए जाने वाले सैकड़ों करोड़ रुपये के बल पर या सफाई कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली जी तोड़ मेहनत मात्र की बदौलत रेलवे ट्रैक,रेलवे स्टेशन,प्लेटफार्म या यात्री डिब्बों को साफ-सुथरा रख पाना संभव है? क्या इसमें रेल यात्रियों की कोई सहभागिता या जि़म्मेदारी नहीं है? क्या रेल यात्री सरकार द्वारा जारी किए गए सफाई संबंधी निर्देशों का पालन पूरी तरह कर रहे हैं?

पिछले दिनों मुझे अपने गृहनगर दरभंगा जाने का अवसर मिला। दरभंगा के प्लेटफार्म नं० एक को तथा रेल ट्रैक नंबर एक को सफाई कर्मचारियों द्वारा पूरी मेहनत से साफ-सुथरा किया जा रहा था। ट्रैक पर रेल यात्रियों द्वारा किया गया शौच कई जगहों पर दिखाई दे रहा था। मेहनतकश सफाई कर्मी उन्हें पानी की मोटी धार से साफ कर रहे थे। दूसरी ओर सफाई कर्मचारी झाड़ू से ट्रैक पर फैली खानपान संबंधी दूसरी गंदगी साफ कर रहा था। रेल ट्रैक पूरी तरह साफ-सुथरा होने के पश्चात प्लेटफार्म नंबर एक पर एक ट्रेन आकर रुकी और कुछ ही मिनटों बाद वह ट्रेन आगे बढ़ गई। मैं यह पूरा दृश्य प्लेटफार्म नंबर एक व दो के मध्य बने पैदल पार करने वाले पुल पर खड़ी देख रही थी। जैसे ही वह ट्रेन प्लेटफार्म से रवाना हुई उसके बाद वही रेल ट्रैक जो मात्र चंद मिनट पहले मेहनतकश सफाई कर्मियों द्वारा साफ किया गया था पुन: अपने पहले वाले रूप में अर्थात् गंदगी व शौच से भरपूर नज़र आने लगा। सवाल यह है कि चंद मिनटों में फैली इस गंदगी का जि़म्मेदार कौन है? रेल के डिब्बों से लेकर प्लेटफार्म तक विभिन्न स्थानों पर कूड़ा-करकट फेंकने हेतु कूड़ेदान की व्यवस्था की जा चुकी है। परंतु हमारे ’सजग’ रेल यात्रियों को अपनी सीट से उठकर डिब्बे में मौजूद कूड़ेदान तक जाने में तकलीफ होती है। प्लेटफार्म से लेकर रेल के डिब्बे में अपनी सीटों पर बैठे लोग जहां बैठकर खाते-पीते हैं उसी जगह गंदगी भी फैलाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सफाई के बीच में रहना या अपने बैठने की जगह के आस-पास सफाई रखना इन्हें भाता ही नहीं।

रेल विभाग दशकों से यात्रियों को लिखित निर्देश देता आ रहा है कि-‘कृपया खड़ी गाड़ी में शौचालय का इस्तेमाल न करें’। परंतु दुर्भाग्यवश हमारे ‘सम्मानित’ यात्रीगण अधिकांशत: गाड़ी खड़ी होने पर ही शौचालय का प्रयोग करते हैं। ज़ाहिर है जब ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी होगी और शौचालय का प्रयोग किया जाएगा तो यात्रियों का शौच रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म की ही ‘शोभा’ बढाएगा।  इसी प्रकार यदि पूरे भारतवर्ष में रेल यात्रियों के असहयोग  तथा सरकारी निर्देशेां के प्रति उनकी नाफरमानी का सिलसिला चलता रहा तो भारत सरकार के स्वच्छता अभियान तथा रेल विभाग के  स्वच्छता प्रयास कभी सफल नहीं हो सकते। हद तो यह है कि मैंने स्वयं अधेड़ तथा वृद्ध उम्र के समझदार लोगों को प्लेटफार्म की बेंच पर बैठकर साफ-सुथरे प्लेटफार्म पर आम खाकर छिलके व गुठलियां प्लेटफार्म पर ही फेंकते देखा है। महिलाएं अपने बच्चों को प्लेटफार्म पर जहां चाहे खड़ा कर शौच कराते देखी जा सकती हैं। पान,खैनी व सुरती खाकर थूकना तथा बीड़ी-सिगरेट के टुकड़े व माचिस की तीलियां फेंकना तो गंदगी फैलाने में माहिर यह वर्ग शायद अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। स्लीपर क्लास अथवा सामान्य श्रेणी के यात्रियों की तो बात ही छोडि़ए आपको वातानुकूलित श्रेणी के शौचालयों में भी ऐसा दृश्य देखने को मिल जाएगा जिससे आप तथाकथित सजग व सभ्य रेलयात्रियों की करतूतों का भी अंदाज़ा लगा सकते हैं। शौचालय की सीट पर तथा उसके इर्द-गिर्द भी शौच कर यात्रीगण यह सोचकर गंदगी फैलाकर चले जाते हैं कि शायद अब उनकी यात्रा समाप्त होने तक उन्हें दोबारा इस शौचालय का प्रयोग ही न करना पड़े और यदि करना भी पड़ा तो वे किसी दूसरे शौचालय का प्रयोग कर लेंगे।

पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में रेल यात्रियों में गंदगी फैलाने के प्रति भय पैदा करने के लिए रेल विभाग द्वारा एक आकर्षक विज्ञापन भी जगह-जगह लगाया गया है। शोले िफल्म में गब्बर सिंह तथा कालिया के मध्य बोले जाने वाले सुप्रसिद्ध डॉयलाग का दृश्य दिखाकर ऊपर लिखा गया है कि-‘कालिया कितना इनाम रखा है सरकार ने गंदगी फैलाने वालों पर- पूरे पांच सौ रुपये सरकार’। निश्चित रूप से लोगों को सफाई के प्रति आगाह करने तथा गंदगी फैलाने के प्रति भय पैदा करने का यह अच्छा उपाय है। परंतु बड़े दु:ख की बात है कि रेल यात्रियों पर विज्ञापन,दिशा निर्देशों तथा देश के अधिकांश रेलवे स्टेशन पर होने वाली सफाई संबंधी घोषणाओं का भी कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं देता। हद तो यह है कि रेल के नए डिब्बों में लगाए जा रहे बायो टॉयलेट भी कई बार लबालब भरे तथा बदबू मारते दिखाई देते हैं। रेल के डिब्बों के भीतर तथा प्लेटफार्म पर जल सुविधा के केंद्रों पर भी यदि आप नज़र डालें तो खाने-पीने के सामान,पान की पीक,खैनी आदि सबकुछ आप को वाश बेसिन में पड़ा हुआ दिखाई देगा। इस प्रकार की गंदगी जहां दूसरों के मन में घृणा का कारण बनती है वहीं यह बीमारी फैलने का भी माध्यम है। रेल यात्रियों के अतिरिक्त लगभग पूरे भारतवर्ष में खासकर उत्तर भारत के रेलवे स्टेशन पर आपको साधू वेशधारियों तथा मवाली िकस्म के लोगों के अड्डे दिखाई देंगे। ऐसे निखटू िकस्म के लोग रेलवे स्टेशन को ही अपना घर समझते हैं और वहीं पड़े रहकर शराब,बीड़ी-सिगरेट आदि का सेवन करते हैं और अनेक स्थानों पर तो यह लोग प्लेटफार्म के किसी पेड़ की लकड़ी काटकर वहीं धुंआ करते हैं और आग जलाकर भोजन बनाते हैं। अपनी ‘कारगुज़ारी’ पूरी करने के बाद यह निठल्ला वर्ग अपनी फैलाई गई गंदगी को उठाने का कष्ट भी नहीं करता बल्कि इसे बेचारे रेल सफाई कर्मियों के जि़म्मे छोडक़र चले जाता है। और जब तक उस जगह की सफाई नहीं होती तब तक वहां मक्खियां भिनकती रहती हैं। कई बार तो इस प्रकार के आवारा िकस्म के नशेड़ी लोग साधू व भिखारी वेश में ही प्लेटफार्म पर बेसुध होकर नशे में बेहोश अवस्था में निर्वस्त्र हो कर पड़े देखे जाते हैं।

स्वच्छ भारत की कल्पना केवल सरकारी धन तथा सफाई कर्मचारियों की जी तोड़ मेहनत या मात्र विज्ञापनों के भरोसे करना कतई संभव नहीं है। इसके लिए रेल यात्रियों का सहयोग पूर्ण रवैया,उनकी सजगता,गंदगी के प्रति उनका दुराग्रह तथा स्वच्छता के प्रति उनका लगाव जैसी भावनाओं का पैदा होना नितांत आवश्यक है। एक स्वच्छता प्रेमी रेल यात्री का कर्तव्य है कि वह अपने पास बैठे गंदगी फैलाने वाले दूसरे रेल यात्री को उसकी गंदगी फैलाने वाली हरकतों से रोके व टोके। भारतीय रेल, देश की रेल व्यवस्था यह हम सब की है और हम सबके लिए है इसलिए इसे स्वच्छ रखना भी हम सभी रेल यात्रियों का ही दायित्व है।

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003 E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.






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