राम को छोड़कर क्या शिव के होंगे मोदी- बहुत कठिन है डगर बनारस घाट की?

02_03_2013-modidelhi{सोनाली बोस} आखिरकार भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पहली बार लोकसभा चुनाव के घमासान मेँ बनारस से चुनावी मोर्चा संभालने के लिये पार्टी की चुनाव समिती द्वारा चुन लिये गए हैँ। जैसे ही मोदी के वाराणसी से चुनावी मैदान में उतरने की खबर आई वैसे ही सनातन धर्म की पावन धरा जो घाटों, कर्मकांडों की नगरी वाराणसी या काशी के नाम से जानी जाती है वो अचानक ही देश और विदेश की नजरोँ मेँ निहायत अहम हो गई हैं। वाराणसी केवल मोदी के लिए अहम नहीं है, ये चुनावी समर उनके लिये आर पार की लड़ाई भी है। भाजपा इस बार अपने इसी तुरूप के इक्के पर अपना सारा दांव लगा रही है। दांव चला तो बल्ले बल्ले वर्ना मोदी और भाजपा का हाशिये पर जाना तय है।

वैसे भी चुनाव की इस रस्सी पर अपने पैर जमा के चलने मेँ मोदी को अपनोँ से ही चुनौती मिलने की संभावना ज़्यादा नज़र आ रही है। राष्ट्रीय स्वयँ संघ अपनी नीति साफ कर चुकी है कि संघ परिवार किसी भी ‘व्यक्ति विशेष’ के मद्देनज़र चुनावी कार्य नहीँ करेगा। संघ परिवार के प्रमुख मोहन भागवत ‘नमो नमो’ के मंत्र से अपने कार्यकर्ताओँ को दूर रहने की हिदायत दे चुके हैँ और सिर्फ भाजपा के लिये प्रचार करने की रणनीति पर ही स्वयँ सेवकोँ को चलना होगा।

भाजपा की लोकप्रियता और काफी हद तक मोदी लहर के प्रभाव से इंकार नहीँ किया जा सकता है लेकिन, इतना तो तय है कि मोदी की राह मेँ ‘ Corporate leanings’ और ‘media manipulation’ नाम के कांटे रोड़े ज़रूर अटकायेंगे। और हमारे राजनैतिक पटल पे उभरी सबसे नवजात पार्टी ‘आम आदमी पार्टी’ तो खैर उनकी कठिनाईयाँ बढ़ाने के लिये एक पैर पर तैयार बैठी ही है। आम आदमी पार्टी की पूर्व घोषणा है कि अगर काशी से मोदी लड़ेंगे तो उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल उनका मुकाबला करेंगे। और अपनी रविवार की रैली मेँ केजरीवाल इस बाबत ऐलान कर भी चुके हैँ।

एक पत्रकार की नज़र से मैँने मोदी की लोकप्रियता और उनकी परेशानियाँ भी देखी हैँ। आम जनता से लेकर राजनीतिक पंडितोँ और नामचीन लेखकोँ को उनके प्रधानमंत्री बनने से होने वाली दिक्कतोँ को महसूस भी किया है। बक़ौल अमर्त्य सेन,” एक हिन्दुस्तानी होने के नाते मैँ नहीँ चाहता हूँ कि मोदी पीएम बनेँ। उन्होने अल्प संख्यकोँ के लिये कोई भी बड़ा काम नहीँ किया है।” लेकिन इन सबके बावजूद इस सच्चाई से इंकार नहीँ किया जा सकता है कि देश मेँ एक ज़बर्दस्त ‘मोदी लहर’ है जो मुख्य रूप से एक ही ओर ईशारा कर रही है कि 16 मई को NDA नरेन्द्र मोदी की अगुवाई मेँ केन्द्र मेँ सरकार बनाएगी।

मोदी की लहर से जहाँ एक ओर तो क़तई तौर पर इंकार नहीँ किया जा सकता है लेकिन फिर भी ऐसी कुछ बांते हैँ जिनकी ओर मोदी जी और उनके भक्तोँ का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। अव्वल तो, नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि या तो आप उनसे बेहद प्यार कर सकते हैँ या फिर बेहद नफरत। बीच के भाव की यहाँ कोई गुंजाईश नहीँ है। उनके विरोधी मानते हैँ कि यदी उनके हाथ मेँ देश की कमान आ गई तो वो अपने ‘बहुसंख्यक प्रेम ‘ के ऐजेंडे से देश को बर्बाद कर देंगे। New York Times के मुताबिक़,” भारत अनेक धर्मोँ,जातियोँ और कई तरह की भाषा बोलने समुदायोँ वाला एक नायाब देश है। इनमेँ से कई समुदायोँ के दिल मेँ डर और द्वेष पैदा करके मोदी कभी भी सफलता से भारत की कमान नहीँ संभाल पायेंगे।” इस अखबार की इस टिप्पणी की सच्चाई से किसी भी सूरत मेँ इंकार नहीँ किया जा सकता है।

दूसरी बात ये है कि, अल्पसंख्यक, विशेषकर मुस्लिम,  मोदी की सरकार की छत्रछाया मेँ खुद को कभी भी महफूज़ नहीँ मान पायेंगे। मोदी जी को अभी भी ‘सेक्युलर’ स्वरूप को अपनाने के लिये काफी मशक़्क़त करनी पड़ रही है। याद रहे, 2002 के दंगोँ के लिये उन्होने आज तक माफ़ी नहीँ मांगी है। 170 करोड़ मुसलमानो की संख्या वाले देश मेँ आज भी जहाँ 169 मुसलमान मोदी नाम से भागते हैँ वहाँ खुद को साबित करना उनके लिये खासा मशक़्क़त का काम साबित होगा।

फिर भी एक बात ग़ौर तलब है कि जबसे मोदी को भाजपा ने अपना पीएम कैंडीडेट बनाया है तभी से मोदी मुसल्मान और पाकिस्तान के इशूज़ पर काफी संभल संभल कर चल रहे हैँ। अब उनके ऐजेंडे मेँ सिर्फ विकास और नौकरी जैसे मुद्दे ही नज़र आते हैँ, भाजपा का चहेता चुनावी मुद्दा ‘अयोध्या’ भी इस मर्तबा हाशिये पर ही मौजूद है। लेकिन फिर भी ‘मुज़फ्फरनगर ‘ की याद ताज़ा है और हम सभी ये भी जानते हैँ कि चाहे कुछ भी हो जाये ‘संघ’ अपनी कार्य शैली मेँ कोई बदलाव ना लाते हुए अपने पुराने कम्यूनल ऐजेंडे पर चले जा रहा है।

चलिये इन सभी मुद्दोँ को छोड़कर अब हम लौट चलते हैँ अपने खास मुद्दे पर। बनारस सीट से मोदी की चुनावी समर मेँ उतरने की घोषणा के बाद से भाजपा और ‘आप’  के अपनी-अपनी पार्टी के दो दिग्गजों की संभावित भिड़ंत के चलते इस सीट पर चुनावी पारा सबसे गरम है। वजह यह भी है कि इसी सीट से बाहुबली मऊ विधायक मुख्तार अंसारी भी अब यहीं से चुनाव लड़ सकते हैं। कौमी एकता दल ने अपने कार्यकर्ता सम्मेलन में ऐलान किया है कि अगर मोदी लड़ते हैं तो पार्टी मुख्तार को बनारस से लड़ाएगी। वहीं पूर्वांचल में अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए सपा का आज़मगढ़ से मुलायम सिंह को उतारने का दांव भी इस बार काशी को देश के चुनावी संग्राम के केंद्र में रखेगा।

लेकिन मोदी को वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ाने के साथ ही बीजेपी एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश कर रही है। मोदी के यहां से चुनाव लडऩे से भाजपा पूर्वांचल की 27 सीटों पर मोदी को भुनाने की कोशिश करेगी और पार्टी को उम्मीद है कि काशी में मोदी की उपस्थिति का असर, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, आजमगढ़, मऊ, बलिया, गोरखपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर सहित कई जिलों पर पड़ेगा। यही नहीं पश्चिमोत्तर बिहार की 19 सीटों पर भी मोदी के प्रभाव से पार्टी अच्छी संख्या में सीट अपनी झोली में लाने की संभावना जता रही है|

ख़ैर ये तो सब बांते अपनी जगह हैँ ही लेकिन अब ये जानना बेहद दिलचस्प होगा कि कांग्रेस किसे बनारस से उतारेगी? आखिर वो कौन होगा जो इस चुनावी क्षेत्र से मोदी को टक्कर देगा? केजरीवाल ने तो इस चुनौती को खुद ही स्वीकार करते हुए मोदी के ख़िलाफ़ लड़ने का मन बनाया है। केजरीवाल ने कहा कि 23 मार्च को वाराणसी में रैली करेंगे और जनता से पूछकर ऐलान कर देंगे वैसे पार्टी में पहले से तय है है कि जहां से मोदी लड़ेंगे वहीं से केजरीवाल लड़ेंगे।

बीजेपी देश कि दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और इस समय सारे ओपिनियन पोल कह रहे हैं कि वो देश की सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है और नरेंद्र मोदी बीजेपी के बहुत बड़े नेता हैं आम आदमी पार्टी अभी अभी आयी है और अरविंद केजरीवाल नए नए नेता हैं। अब जब दोनों का मुक़ाबला होगा तो क्या होगा। वैसे राजनीति और वाराणसी को समझने वाला कोई भी जानकार ये नहीं कह रहा कि केजरीवाल जीत सकते हैं, हालांकि टक्कर अच्छी दे सकते हैं ये बात तो मानी जा रही है।

बहरहाल, इस चुनाव के जो भी नतीजे आयेँगे वो तो बाद की बात है लेकिन इतना तो ज़रूर तय है कि चुनावी आकर्षण का केन्द्र इस बार सिर्फ और सिर्फ बनारस ही होगा। एक पत्रकार और एक आम नागरिक होने के नाते मेरे लिये इस बार का ये चुनावी संग्राम बेहद अहम है जो इस देश की दशा और दिशा दोनोँ बदलने मेँ काफी हद तक ज़िम्मेदार होगा। खैर तब तक काशी विश्वनाथ को याद करते हुए आईये अपना दिल और दिमाग ‘बनारस मय’ कर लेँ।

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sonali-boseसोनाली बोस,

लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम –

 

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