– तनवीर जाफरी –
यह और बात है कि अब तक भारत का कोई भी पूर्व प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के अथवा किसी अन्य आरोप अथवा अपराध में जेल तो ज़रूर नहीं गया परंतु यह भी सच है कि हमारे देश के ‘क्रांतिकारी’ विपक्ष ने शायद ही देश के कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप से अछूता छोड़ा हो। स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री बनते ही पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासन में 1948 में भारत सरकार ने लंदन की एक कंपनी से दो हज़ार जीप खरीदने का सौदा किया था। इस सौदे को स्वयं पंडित नेहरू ने ही मंज़ूरी दी थी। उस समय 80 लाख रुपये में हुए इस सौदे के लगभग 9 महीने बाद लंदन से दो हज़ार जीप के बजाए केवल 144 जीप ही भारत पहुंची। शेष जीप कहां गई कुछ पता नहीं। और जो 144 जीप भारत आईं भी वे सौदे के समय तय किए गए मानक पर खरी नहीं उतरीं। उस समय इस सौदे में दिखाई दे रहे भ्रष्टाचार के छींटे ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी के कृष्णा मेनन से लेकर पंडित नेहरू तक पर पड़े थे। यह मामला 6 वर्षों तक अदालतों में लटका रहा और अंतत: सबूतों के अभाव में अदालत ने इस मामले को खारिज करते हुए 1955 में हमेशा-हमेशा के लिए इस घोटाले की फाईलों को बंद कर दिया। न तो कोई पंडित नेहरू का बाल बांका कर सका न ही कृष्णा मेनन पर कोई आरोप साबित हुआ। बजाए इसके मेनन 1957 में पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में रक्षामंत्री के रूप में ज़रूर शामिल हो गए।
स्वतंत्र भारत का उपरोक्त घोटाला देश का पहला ऐसा घोटाला माना जाता है जो कथित रूप से उच्च स्तर पर सरकारी संरक्षण में किया गया। परंतु चूंकि इस घोटाले में कोई भी दोषी साबित नहीं हुआ और जनता का पैसा भी लुट गया ऐसे में निश्चित रूप से जनता इस सवाल के उत्तर से वंचित रह गई कि उसके टैक्स के पैसों पर आिखर किसी ने डाका डाला भी या नहीं और यदि डाला तो किसने डाला? यह हालात हमें इस निष्कर्ष पर भी पहुंचाते हैं कि किसी भी आरोप को साबित करने देने या न करने देने में सत्ता संरक्षण की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सच को दबाना और झूठ को सच में बदलने की शक्ति निश्चित रूप से सत्ताधीशों में होती है। परंतु हमारे ही देश में कई बार ऐसा भी देखा गया है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा विपक्ष द्वारा इतनी ज़ोरों से उठाया गया कि देश की सरकार को भी औंधे मुंह गिरना पड़ा। और कथित भ्रष्टाचार उजागर करने वाले दल आरोपी सत्ताधारी को सत्ता से नीचे उतारकर स्वयं सत्ताधीश बन बैठे। अब यहां पंडित नेहरू के कार्यकाल से ऐसे हालात की तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि यदि यह मान लिया जाए कि पंडित नेहरू ने स्वयं प्रधानमंत्री के पद पर रहने की वजह से जीप घोटाले की जांच व उससे संबंधित दस्तावेज प्रभावित किए होंगे फिर आिखर 1986 में जिस बोफोर्स सौदे को लेकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप सौदे में दलाली खाने का आरोप लगया गया था और वह आरोप भी कांग्रेस परिवार के ही विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सबसे मुखरित होकर लगाया गया और इसी आरोप ने राजीव गांधी के विरुद्ध विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में विपक्ष ने इक_ा होकर जनता में राजीव गांधी की छवि को धूमिल करने की सामूहिक कोशिश की और इस कोशिश में विपक्ष सफल भी हुआ।
क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को सबसे पहले उसी कथित बोफोर्स तोप दलाली की जांच कराकर दोषियों को जेल भेजकर यह प्रमाणित नहीं करना चाहिए था कि जो आरोप उनके द्वारा लगाए जा रहे थे वह सही थे? परंतु आज तक इस सौदे से संबंधित कोई भी व्यक्ति जेल नहीं भेजा गया। कमोबेश यही स्थिति उस 2जी घोटाले की भी रही जिसकी पीठ पर सवार होकर वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है। अदालत ने 2जी के लगभग सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस उठापटक का नतीजा केवल यह निकला कि एक दल सत्ता से बाहर हो गया तथा आरोपों की ढोल बजाने वाले सत्ता पर काबिज़ हो गए। मोदी सरकार ने सत्ता में आने से पहले देश को अपराध मुक्त,भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा किया था। हालांकि केंद्र सरकार तथा भाजपा के प्रवक्ता अब भी यह दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार देश को भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दे रही है। वे देशवासियों को अच्छे दिन की सौगात भी देने का दावा कर रहे हैं। परंतु इस समय कांग्रेस पार्टी द्वारा सत्तारूढ़ मोदी सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में बोर्फार्स तथा 2 जी घोटाले से भी खतरनाक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया गया है। स्वयं को पाक-साफ तथा भ्रष्टाचार मुक्त बताने वाली मोदी सरकार राफेल तोप सौदे में बुरी तरह उलझती जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर राफेल सौदे को प्रधानमंत्री के संरक्षण में की गई एक बड़ी लूट की संज्ञा दे रहे हैं। यहां तक राहुल गांधी द्वारा इतनेआत्मविश्वास के साथ ऐसे तर्क व तथ्य पेश किए जा रहे हैं जिससे मोदी सरकार बौखला उठी है।
राफेल सौदे के तरीकों,उसकी कीमत तथा विमान के रख-रखाव के लिए रिलायंस कंपनी का नाम प्रधानमंत्री द्वारा कथित रूप से सुझाने जैसे आरापे केवल राहुल गांधी द्वारा ही नहीं बल्कि भाजपा के अपने ही नेताओं व सहयोगियों यशवंत सिन्हा,शत्रुघ्र सिन्हा,अरूण शौरी व वरिष्ठ वकीलों प्रशांत भूषण व कपिल सिब्बल द्वारा पर्याप्त दस्तावेज़ों के आधार पर लगाए जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस विषय में दिलचस्पी दिखानी शुरु कर दी है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राफेल विमान सौदे की विस्तृत जानकारी सीलबंद लिफाफे में मांगी गई तो दूसरी ओर अदालत की सक्रियता देखकर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण अचानक ही फ्रांस जा पहुंची। रक्षामंत्री के इस अकस्मात फ्रांस दौरे पर भी विपक्ष ने निशाना साधा और इसे संदेहपूर्ण दौरा बताया। कांग्रेस इस सौदे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाए जाने की मांग कर रही है। परंतु सरकार जेपीसी बनाने से परहेज़ कर रही है। कांग्रेस जेपीसी न गठित किए जाने के मुद्दे पर भी सरकार पर हमलावर है और सरकार की नीयत पर संदेह कर रही है। राहुल गांधी बहुत ही तीखे शब्दों में प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर हैं। जगह-जगह वे कहते सुनाई दे रहे हैं कि-‘जनता के 30 हज़ार करोड़ रुपये देश के प्रधानमंत्री ने अनिल अंबानी की जेब में डाले हैं। प्रधानमंत्री ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री नहीं चौकीदार बनना चाहता हूं। अब पता चला है कि वे अंबानी के प्रधानमंत्री हैं हिंदुस्तान के नहीं। प्रधानमंत्री अनिल अंबानी की चौकीदारी कर रहे हैं’। उनका आरोप है कि ‘मोदी ने हिंदुस्तान की जनता का पैसा अंबानी की जेब में डाला’। वे यह भी सवाल कर रहे हैं कि ‘जो अनिल अंबानी खुद 45 हज़ार करोड़ रुपये के कजऱ् में डूबा है उसी की मात्र दस दिन पहले खोली गई नाममात्र कंपनी को प्रधानमंत्री ने देश की जनता तथा वायुसेना का तीस हज़ार करोड़ रुपया कैसे उसकी जेब में डाल दिया’? ,
पिछले दिनों राहुल गांधी बंगलोर स्थित एचएएल कंपनी के उन कर्मचारियों के आंसू पोंछने भी जा पहुंचे जिनके मुंह से निवाला छीनकर कथित रूप से अंबानी को परोसा गया है। परंतु इस पूरी कवायद में एक बार फिर वही सवाल अपनी जगह बरकरार है कि क्या राफेल सौदे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुनहगार साबित किया जा सकेगा? या फिर आरोपो-प्रत्यारोपों का यह सिलसिला भी जीप,बोफोर्स तथा 2जी जैसे तथाकथित घोटालों की ही तरह शोर-शराबे व आरोपों-प्रत्यारोपों का पर्याय बनकर ही रह जाएगा और देश की जनता एक बार फिर नेताओं की चतुराई के समक्ष स्वयं को असहाय व लाचार महसूस करती रह जाएगी?
_________________
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
Contact – :
Email – tjafri1@gmail.com – Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana) Pin. 134003
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.