राजनीतिक नियुक्तियों का खेल : भारत रत्न सम्मान

Bharat Ratn for Major Dhyan Chand{ सोनाली बोस  } इस दुनिया में ऐसे बहुत से महान लोग हुए हैं जिनकी प्रतिभा कभी भी किसी ईनाम या अवार्ड की मोहताज नहीं रही है| लेकिन जितनी ये बात सच है उतनी ही ये बात भी सच है कि अक्सर कुछ अवार्ड्स प्राप्तकर्ता की वजह से ख़ास बन जाते हैं| ‘भारत रत्न’ हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है| इस खिताब की तुलना किसी भी दुसरे खिताब से नहीं की जा सकती है | मेजर ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की सिफ़ारिश ने यक़ीन मानिए इस सम्मान के सम्मान को बढ़ाया है और अब यही आशा की जा सकती है कि इस बार तो ये सर्वोच्च नागरिक सम्मान हॉकी के इस महान जादूगर को ज़रूर ही हासिल होगा|

हॉकी के इस महान ‘जादूगर’ मेजर ध्यानचंद का 109वां जन्मदिन हमने बस बीते कल ही मनाया है। ये कैसी विडंबना है ना कि जिस खिलाड़ी के जन्मदिन को भारत में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के तौर पर मनाया जाता है, उसी को ‘भारत रत्न’ से नवाज़ने की कवायद में हम सभी ना जाने कब से जुटे हुए हैं। हम सभी जानते हैं कि  मेजर ध्यानचंद की बदौलत कई सालों तक हॉकी में भारत का दबदबा बना रहा।। ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन के बराबर माना जाता है। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी स्टिक अपने हाथ में थामी थी। सोलह साल की आयु में वह आर्मी की पंजाब रेजिमेंट
में शामिल हुए। चौथाई सदी तक विश्व हॉकी जगत के शिखर पर जादूगर की तरह छाए रहने वाले मेजर ध्यानचंद का 3 दिसंबर, 1979 को नई दिल्ली में देहांत हो गया था। इसे मेजर साहब की हॉकी के प्रति दीवानगी ही कही जायेगी कि मेजर ध्यानचंद का अंतिम संस्कार किसी घाट पर नहीं किया गया बल्कि उनका अंतिम संस्कार झांसी के उस मैदान पर किया गया जहां वो हॉकी खेला करते थे।

भारतीय फील्ड हॉकी के खिलाड़ी और कप्तान रहे ध्यानचंद को भारत और दुनिया भर के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है। ध्यानचंद तीन बार उस भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रहे जिसने ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था। उसमें 1928 का एम्सटर्डम ओलम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलंपिक और 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है। जब ध्यानचंद ब्राह्मण रेजीमेंट में थे Bharat-Ratn-for-Major-Dhyan-Chand-300x168उसी समय मेजर बले तिवारी से हॉकी सीखा था। ध्यानचंद सेना की ही प्रतियोगिताओं में हॉकी खेला करते थे। दिल्ली में हुई वार्षिक प्रतियागिता में जब इन्हें सराहा गया तो इनका हौसला बढ़ा और 13 मई 1926 को न्यूजीलैंड में पहला मैच खेला था। मेज़र ध्यानचंद ध्यानचंद ने अप्रैल 1949 को प्रथम कोटि की हॉकी से संन्यास ले लिया था। उन्होंनेअंतरराष्ट्रीय मैचों में 400 से अधिक गोल किए। ध्यानचंद ने हॉकी में जो कीर्तिमान बनाए, उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है।

गौर तलब है कि महान हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को देश का शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किए जाने की सिफारिशें केंद्र सरकार को मिली हैं और उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया गया है। हम सभी जानते हैं कि भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और इसे मानवीय व्यवहार से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व सेवा या उच्च क्षमता का प्रदर्शन करने वाले नागरिक को प्रदान किया जाता है। वैसे तो भारत रत्न के लिए किसी औपचारिक सिफारिश की ज़रूरत नहीं है लेकिन स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न प्रदान किए जाने के बारे में विभिन्न सिफारिशें मिली हैं। और शायद इसी वजह से इन सिफारिशों को प्रधानमंत्री कार्यालय को विचार करने के लिए भेज दिया गया है।

लेकिन एक अजीब और अलग स्थिती नज़र आ रही है, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ध्‍यानचंद को भारत रत्‍न की सिफारिश से इनकार किया है। उन्‍होंने कहा कि भारत रत्‍न पर सरकार में कोई चर्चा नहीं हुई है। भारत रत्‍न के लिए किसी नाम पर विचार नहीं हुआ है। ये प्रश्‍न विचाराधीन नहीं है। वहीं, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वैंकेया नायडू ने भी इस तरह की खबर से इनकार किया है| हाल में ऐसी अटकलें थीं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और महान हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को इस वर्ष यह शीर्ष सम्मान प्रदान किया जा सकता है। गृह मंत्रालय द्वारा पांच भारत रत्न मेडल बनाने का आर्डर किए जाने के बाद इन अटकलों को और बल मिला है। इससे पहले इस साल फरवरी में क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर और प्रख्यात वैज्ञानिक सीएनआर राव को यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।

कैसी विडंबना है ना कि जिस खिलाड़ी ने विश्व के सबसे बड़े  sporting festival ‘ओलंपिक’ में हमारे देश की आन बान और शान को आसमां की बुलंदियों तक पहुंचाया उसी ‘रत्न’ को ‘भारत रत्न’ पाने के लिए कितनी सदियों तक इंतज़ार करना पड रहा है!  इस महान खिलाड़ी की अनदेखी को हम सभी ने देखा और भोगा है| लेकिन यहाँ पर मेरा क़तई ये कहना नहीं है कि सचिन तेंदुलकर को ये सम्मान नहीं देना चाहिए था वरन यहाँ मैं यही कहना चाहती हूँ कि सचिन को भारत रत्न देने के लिए जो भी बदलाव उस वक़्त की सरकार ने किये क्या वही फेरबदल तब मेजर ध्यानचंद के लिए नहीं किये जा सकते थे? क्या ये सम्मान पाने वाले पहले खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद नहीं होने चाहिए थे? कहीं इस देरी ने सचिन को दिए हुए ‘भारत रत्न’ की अहमियत को उनकी अभूतपूर्व क्रिकेटीय प्रतिभा होने के बावजूद कम नहीं किया है? शायद एक महान और सच्चे खिलाड़ी होने की कसौटी पर हमेशा खरे उतरने वाले सचिन तेंदुलकर भी दिल ही दिल में यही मानते होंगे कि सबसे पहले जिस खिलाड़ी को ये सम्मान दिया जान था वो मेजर ध्यानचंद ही हैं|

बहरहाल, जब ‘भारत रत्न’ की केटेगरी में खिलाड़ियों का भी शुमार होने लगा है तो अब विश्वनाथन आनंद , मिल्खा सिंह, बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण इत्यादी को भी इस फेहरिस्त में शामिल किया जाना चाहिए और भविष्य में इन नामों के साथ साथ अन्य विधाओं जैसे कि कुश्ती, मुक्केबाज़ी, शूटिंग और एथलेटिक्स में पारंगत खिलाड़ियों के नामों की भी घोषणा हो यही दुआ की जा सकती है|

अब तो यही आशा है कि मौजूदा सरकार इस असली रत्न की और अनदेखी ना करते हुए भारत के इस असली कोहीनूर को ‘भारत रत्न’ के खिताब से ज़रूर नवाज़ेगी| इस देश की जनता की भावनाओं को समझेगी और ‘वोट बैंक’ की राजनीति से परे सोचते हुए इस सर्वोच्च सम्मान को तमाम सियासी चालों से अलहदा रखेगी|

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sonali boseसोनाली बोस

लेखिका सोनाली बोस वरिष्ठ पत्रकार है
उप सम्पादक

अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम
व्
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
https://internationalnewsandviews.com/

 

16 COMMENTS

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