नई दिल्ली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. इस दौरान खुशी और निराशा के कई अवसर आए. सत्ता के अनुभव की कमी के बावजूद योगी ने कदम-कदम पर सीखने, समझने और एक्शन लेने में हिचक नहीं दिखाई. मोदी-शाह की जोड़ी ने भी जो भी टास्क और हुक्म दिया, योगी ने उसे पूरा करने में पूरी एनर्जी लगाई. योगी ने दिन-रात काम करके खुद को साबित कर दिखा. शायद इसी का नतीजा है कि बीजेपी में मोदी-शाह के बाद तीसरे सबसे कद्दावर नेता के तौर पर अपना सियासी कद बनाया.
नोएडा जाने का मिथक तोड़ा
योगी आदित्यनाथ ने केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं को यूपी की जमीन पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने नोएडा जाने का मिथक तोड़ा. एक बार नहीं, कई बार नोएडा आए. भव्य कुंभ का आयोजन. क्राइम और करप्शन पर उनकी जीरो टॉलरेंस और यूपी में दो बार सफल इन्वेस्टर्स समिट उनकी उपलब्धियों में हैं. सूबे में सीएए विरोधियों पर कड़ा एक्शन और प्रदर्शनकारियों से जुर्माना वसूलने से लेकर हिंदुत्व की छवि को सीएम रहते हुए योगी ने बरकरार रखा, उससे सरकार ही नहीं बल्कि पार्टी पर भी पकड़ मजबूत हुई है.
मोदी-शाह की नाराजगी की चर्चा भी चली
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद से हटाने की बातें पिछले तीन साल में कई बार उड़ीं. ये भी कहा गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उनसे नाराज है और उनकी केंद्र में चलती नहीं, लेकिन योगी इन सबकी परवाह किए बगैर अपने मिशन को धार देने में जुटे रहे.
यूपी उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद लोकसभा चुनाव योगी सरकार के लिए बड़ा चैलेंज था. सपा-बसपा गठबंधन ने सिरदर्द बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सूबे में तमाम मिथक, कयास और गठबंधनों के बावजूद बीजेपी ने यूपी में शानदार प्रदर्शन करते हुए 62 सीटें जीतीं, इसका श्रेय योगी आदित्यनाथ को मिला.
विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा रैलियां कीं
गुजरात से लेकर कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह के बाद सबसे ज्यादा रैलियां सीएम योगी ने किया. इसके अलावा कर्नाटक और त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय को बीजेपी ने सीएम योगी के सहारे साधने का काम किया है. लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल में बीजेपी बेहतर नतीजों के पीछे योगी आदित्यनाथ की रैलियों का बड़ा योगदान माना जाता है.
संगठन और सरकार में बनाई पकड़
हालांकि मार्च 2017 में यूपी में दो डिप्टी सीएम का फैसला होते ही यह साफ हो गया था कि सूबे में सत्ता के एक नहीं कई केंद्र होंगे. डिप्टी सीएम केश्व प्रसाद मौर्य की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. इसके बावजूद सीएम योगी ने पिछले तीन सालों में अपने कार्यों और राजनीतिक एजेंडे के जरिए जिस तरह बीजेपी संगठन और सरकार पर पकड़ बनाई है, उसे सूबे में न तो पार्टी के अंदर और न ही विपक्ष में कोई चुनौती देता नजर आ रहा है. इससे साफ है कि देश में मोदी-शाह बीजेपी को कई तीसरी सबसे बड़ा नाम है तो वह योगी आदित्यनाथ का है. PLC.