– निर्मल रानी –
हालांकि विश्व में लगभग 250 विभिन्न धर्म व विश्वास स्वीकार्य हैं। परंतु भारतवर्ष में बहुसंख्या में रहने वाला हिंदू समाज जो विश्व का सबसे प्राचीन धर्म होने का दावा भी करता है विश्व का एक अकेला ऐसा धर्म है जिसमें महिलाओं को सबसे अधिक पूज्य एवं आस्था का केंद्र बताया गया है। हिंदू धर्म में जितनी देवियां हैं तथा हिंदू शास्त्रों के अनुसार जितनी पूज्य एवं स मानित महिलाएं इस धर्म में हुई हैं उतनी किसी अन्य धर्म के इतिहास में नहीं देखी जातीं। परंतु दुर्भाग्यवश ठीक इसके विपरीत इसी हिंदू धर्म में प्रचलित रूढ़ीवादी परंपरा व रीति-रिवाज तथा कुछ धार्मिक शास्त्रों में उल्लिखित बातों पर यदि हम नजर डालें तो हमें यह भी देखने को मिलेगा कि इसी धर्म की महिलाओं को हमेशा दूसरे दर्जे का प्राणी तथा एक तिरस्कृत मानव समझने का प्रयास भी किया गया है। इन सबके बावजूद यह भी एक कटु सत्य है कि इसी हिंदू धर्म में सबसे अधिक धार्मिक प्रवृति की तथा धर्म के प्रति अपनी गहन आस्था जताते हुए महिलाएं ही देखी जाती हैं। संक्षेप में यह कहा जाए कि जिन धर्मग्रंथों या जिन धर्माचार्यों द्वारा महिलाओं को तिरस्कृत या अपमानित करने की कोशिश की जाती है, महिलाओं द्वारा पूरी श्रद्धाभाव से उन्हीं धर्मग्रंथों व धर्माचार्यों की पूजा भी की जाती है।
राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी फरमाते हैं, ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताडना के अधिकारी।’ इस श्लोक में महिलाओं के साथ-साथ शुद्र समाज को भी यहां तक कि उन ग्रामीणों को भी जो पूरी मानवजाति के लिए अन्नदाता के समान हैं, इन सबकी तुलना ढोल तथा पशु से की गई है। परंतु महिलाएं अपने विरुद्ध लिखे गए इस अपमानजनक श्लोक को भी पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ पढ़ती व गाती हैं। इसे महिला जगत की सहनशीलता या अंधभक्ति के रूप में देखा जा सकता है। परंतु ठीक इसके विपरीत हिंदू धर्म के ठेकेदारों द्वारा यहां तक कि शंकराचार्य जैसी स मानित व अति प्रतिष्ठित गद्दी पर बैठे धर्माचार्यों द्वारा कभी-कभी महिलाओं के संबंध में ऐसे कटु वचन बोले जाते हैं जिन्हें सुनकर इस बात का विश्वास हो जाता है कि हिंदू रूढ़ीवादी परंपराओं को संरक्षण देने वाले पूर्वाग्रही धर्माचार्य महिलाओं के प्रति आज के युग में भी विद्वेष की भावना का पोषण कर रहे हैं। हमारे देश में ऐसे हजारों प्रमुख मंदिर व धर्मस्थल हैं जहां पुरुष प्रधान समाज से संबध रखने वाले धर्माधिकारियों द्वारा महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है। ठीक उसी तरह जैसे कि दलित व शूद्र समाज के लोगों को देश के सैकड़ों मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं है। इन्हें धर्मस्थानों में न जाने से रोकने वाले स्वयंभू धर्म के ठेकेदारों का यह मानना है कि महिलाएं अपवित्र होती हैं तथा अमुक मंदिरों में उनके प्रवेश से मंदिर तथा वहां स्थापित भगवान या देवता की पवित्रता भंग होती है। जबकि वास्तव में यदि महिलाएं या पुरुष भी स्वयं को कभी अपवित्रता की स्थिति में महसूस भी करते हैं तो वे स्वयं किसी पवित्र धार्मिक स्थल में जाने से परहेज करते हैं। परंतु केवल लिंग अथवा जाति के आधार पर मंदिरों में प्रवेश करने से रोकने का पुरुष प्रधान समाज से संबद्ध धर्माचार्यों या धर्माधिकारियों का निर्णय तो सर्वथा अुनचित है।
इन दिनों देश में इसी विषय से जुड़ा ताजातरीन विवाद महाराष्ट्र राज्य में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश से जुड़ा है। यहां सैकड़ों वर्षों से महिलाओं का प्रवेश यहां से जुड़े धर्मगुरुओं तथा पुजारियों द्वारा वर्जित कर दिया गया था। जबकि स्थानीय महिलाएं इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश के अपने अधिकार के लिए काफी समय से संघर्ष भी कर रही थीं। आखिरकार देश के उच्चतम न्यायालय व मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में महिलाओं के पक्ष में अपना निर्णय देते हुए इस विवाद को समाप्त करने की कोशिश की गई। माननीय उच्चतम व उच्च न्यायालयों द्वारा महिलाओं के मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश को महिलाओं का अधिकार बताया गया। इस अदालती आदेश के बाद मंदिर में प्रवेश को लेकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही महिलाओं ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर पूरी श्रद्धा, जोश व उत्साह के साथ सैकड़ों वर्षों की रूढ़ीवादी व अंधविश्वासी परंपराओं व मान्यताओं को तोड़ते हुए शनि शिंगणापुर मंदिर में पहुंचकर शनि देवता की पूजा-अर्चना की। हालांकि अदालती आदेश के बाद भी महिला विरोधी मानसिकता रखने वाले धर्म के ठेकेदारों ने महिलाओं द्वारा शनि देवता की पूजा किए जाने में अडंगा लगाने की कोशिश की परंतु आखिरकार महिलाओं के संघर्ष की जीत हुई। इसी विषय पर एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति एक बार फिर उस समय पैदा हो गई जबकि महिलाओं के पक्ष में दिए गए अदालती आदेशों के बावजूद द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने एक ऐसा विवादित बयान दे डाला जिसकी उन जैसे प्रतिष्ठित व सर्वोच्च धार्मिक पीठ की गद्दी पर बैठे किसी भी व्यक्ति से उ मीद नहीं की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में प्रेवश करने के बाद महिलाओं को विजयी महसूस नहीं करना चाहिए। उन्हें इस संबंध में ढोल पीटना बंद कर देना चाहिए। शनि की पूजा करने से उनकी मुसीबतें बढ़ जाएंगी और उनके विरुद्ध बलात्कार जैसे अपराध बढ़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए शनि पूजा करना अच्छा नहीं है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने ही कुछ समय से शिरडी वाले साईं बाबा के विरुद्ध भी एक बड़ा मोर्चा खोल रखा है। साईं बाबा के प्रति अपनी गहन आस्था तथा विश्वास रखने वाले लोग उन्हें भगवान साईं या साईं राम के नाम से भी पुकारते हैं। देश में साईं बाबा की मूर्तियों वाले हजारों मंदिर देखे जा सकते हें। साईं भक्त साईं की पूजा करते हैं तथा उनकी आरती व जागरण आदि करते रहते हैं। शंकराचार्य को साईं बाबा के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था को लेकर भी तमाम आपत्तियां हैं। उन्होंने साईं की मूर्तियां मंदिरों में स्थापित न करने तथा उनकी पूजा न किए जाने की सलाह भी दी है। उन्होंने साईं को हनुमान जी द्वारा खदेड़े जाने का चित्रण करता हुआ एक विवादित पोस्टर भी अपने हाथों से जारी किया जो सरासर साईं बाबा को अपमानित करने का चित्रण करता दिखाई दे रहा है।
अब इन्हीं शंकराचार्य सरूपानंद सरस्वती जी ने यह कहा है कि महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सूखा पडने का कारण भी यही है कि महाराष्ट्र के मंदिरों में साईं बाबा की पूजा की परंपरा है। उन्होंने कहा कि चूंकि महाराष्ट्र के मंदिरों में साईं बाबा की मूर्ति की स्थापना की गई है और गणेश तथा हनुमान जैसे देवताओं को उनके पैरों में बिठा दिया गया है। जब पूजा न करने लायक लोगों की पूजा मंदिरों में की जा रही है तो सूखे जैसी आपदाएं तो आएंगी ही। दूसरी ओर देश का मौसम विभाग तथा देश के वैज्ञानिक इसी सूखे के दूसरे वैज्ञानिक कारण बता रहे हैं जिसमें बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई किए जाने जैसा एक मानव निर्मित कारण भी शामिल है। कितना अच्छा होता यदि इसी सूखा पडने के विषय पर शंकराचार्य द्वारा देश के लोगों का इस बात के लिए आह्वान किया जाता कि वे हरे पेड़ों की कटाई बंद करें तथा अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण किए जाने का अभियान चलाएं ताकि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अधिक से अधिक वर्षा हो सके। परंतु ऐसा आह्वान करने के बजाए उन्होंने साईं के प्रति अपने विद्वेषपूर्ण पूर्वाग्रह की भड़ास निकालते हुए साईं की पूजा को ही सूखे का कारण बता डाला। शंकराचार्य के इस प्रकार के विवादित वक्तव्य जिनसे न केवल अदालत द्वारा दिए गए फैसलों के प्रति भी उनकी असहमति साफ नजर आती है तथा महिलाओं के प्रति उनकी नकारात्मक सोच भी स्पष्ट रूप से झलकती है, क्या यह सोचने के लिए पर्याप्त नहीं है कि ऐसे धर्माचार्य आस्थावान व धर्मभीरू महिलाओं के प्रति कितनी नकारात्मक सोच रखते हैं?
बड़े आश्चर्य की बात है कि पार्वती, सीता, राधा, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, विंध्यवासिनी, मनसादेवी, ज्वालाजी जैसी अनेकानेक देवियों की पूजा करने वाले हिंदू धर्म में उसी स्त्रीलिंग समाज के प्रति रूढ़ीवादी एवं पूर्वाग्रही धर्माचार्य कैसी सोच रखते हैं? एक स य एवं मानवतावादी समाज का संचालन पूर्वाग्रहों एवं रूढ़ीवादी परंपराओं या रीति रिवाजों को आधार बनाकर कतई नहीं किया जा सकता। ऐसे धर्माचार्यों को ऐसी दकियानूसी सोच व परंपराओं को त्याग देना चाहिए। और यदि महिलाओं के प्रति या स्त्रीलिंग के प्रति ऐसे लोगों को इतना ही विद्वेष है तो इन्हें हिंदू देवियों की ठेकेदारी भी बंद कर देनी चाहिए तथा इनका पूरा प्रबंधन महिलाओं के सुपर्द कर देना चाहिए। आखिर कोई भी देवी या देवता अथवा संत या फकीर या साईं किसी एक लिंग अथवा समाज मात्र से संबद्ध कैसे हो सकता है? कोई भी भगवान देवी या देवता समस्त मानवजाति के लिए आदर्श एवं प्र्रेरणा का केंद्र होते हैं। वे सभी को सद्मार्ग पर चलने की प्ररेणा देते हैं। इनके विषय पर इस प्रकार के वक्तव्य देने वाले धर्माचार्य ऐसे बयान देने के बाद स्वयं विवादों में घिर जाते हैं तथा इनके विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणियों का दौर शुरु हो जाता है। लिहाजा ऐसे शंकराचार्य या कोई अन्य धर्माचार्य इस प्रकार के विवादित बयानों से बचने कोशिश करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
संपर्क : – Nirmal Rani : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana , Email : nirmalrani@gmail.com – phone : 09729229728
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