मुरैना में बढ़ सकती हैं कांग्रेस की मुश्किलें

ग्वालियर,चंबल संभाग की प्रतिष्ठापूर्ण सीटों में गिनी जाने वाली मुरैना विधानसभा पर इस बार अंचल के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ आने से बने ताजा समीकरण कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बीजेपी यहां 2018 में चुनाव जीतने वाले रघुराज सिंह कंषाना को फिर मैदान उतार सकती है। वहीं कांग्रेस के पास इस सीट पर प्रबल प्रताप सिंह उर्फ रिंकू मावई पर दांव लगाने का ही एकमात्र विकल्प नजर आता है।

बताना मुनासिब होगा कि मुरैना जिले की इस विधानसभा पर ज्यादातर भाजपा और कांग्रेस में ही सीधा मुकाबला होता आया है। अब तक के चुनाव में भाजपा कुल 5 बार और कांग्रेस 3 बार इस सीट पर अपना परचम लहरा चुकी है, जबकि एक बार यह सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में जा चुकी है। वहीं अब उपचुनाव को लेकर नए सिरे से बनते राजनीतिक समीकरणों ने इस विधानसभा क्षेत्र के गणित को कांग्रेस के लिए काफी उलझा दिया है। दरअसल कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस सीट पर खासा प्रभाव रहा है, ऐसे में ताजा सूरते हाल में यहां कुछ हद तक भाजपा के लिए अनुकूल माहौल बन सकता है।

गौरतलब है कि मुरैना विधानसभा की राजनीति में हमेशा से गुर्जर और ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में रहे हैं। इस सीट पर अब तक 4 बार गुर्जर समाज का प्रत्याशी विजयी भी रहा है। सबसे पहले महाराज सिंह मावई 1980 में कांग्रेस से जीते। इसके बाद 1993 में सिंधिया खेमे से सोवरन सिंह मावई ने जीत दर्ज की। इसी क्रम में 2003 और 2013 में बीजेपी के टिकिट पर रुस्तम सिंह विजयी रहे। इस बीच 2008 में बसपा से परसराम मुदगल से बाजी मारी थी। वहीं बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से रघुराज सिंह कंषाना ने 20849 मतों से जीत दर्ज की।  

इस बीच उपचुनाव के लिए बीजेपी को यहां से दो बार चुनाव जीतने वाले पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के समर्थकों को साधने में मशक्कत करना होगी। वहीं कांग्रेस में दिग्गी गुट से राजनीति करने वाले प्रबल प्रताप के लिए अपनी ही पार्टी के जिलाध्यक्ष राकेश मावई का समर्थन हासिल करना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। दरअसल मुरैना में कांग्रेस जिलाध्यक्ष सिंधिया के समर्थक माने जाते हैं, हालांकि उन्होंने अब तक उनके साथ पार्टी नहीं छोड़ी है। PLC.

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