{सोनाली बोस} मुज़्ज़फ़रनगर मेँ फैली भयावहता और शासन प्रशासन की अनदेखी शायद उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कम नहीँ थी कि उसने ‘’सैफ़ई महोत्सव’ मेँ किये शाही खर्च और आलीशान दिखावे से रही सही कसर भी पूरी कर दी। अपने नाम से ही समाजवाद दर्शाने वाली इस पार्टी के इस ‘असामाजिक’ बर्ताव ने सभी आम और ख़ास को अन्दर तक हिला कर रख दिया है। उत्तर प्रदेश की जनता ने मायावती के शासन से छुटकारा पाने के लिहाज से जिस सपा को अपना मत देकर एक बार फिर सत्ता की कमान सौँपी उसी अखिलेश सरकार की कारगुज़ारियोँ से वही जनता हर लम्हा त्रस्त नज़र आ रही है।
अखिलेश सरकार की इन अमानवीय हरकतो को देख कर कई सवाल हैँ जो बार बार ज़ेहन की दहलीज़ लांघते हैँ। अपने नाम के ठीक विपरित हरकतोँ मेँ उलझी इस सरकार का नाम लगता है अब बदल कर ‘मौजवाद’ ही रखना सार्थक होगा।वैसे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पैतृक गांव सैफई में बुधवार को जो नज़ारा देखने को मिला है उसे किसी कीमत पर जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। कहावत है ‘’दुनिया जाये भाड़ मेँ, कलाकन्द खाओ आड़ मेँ’’ ऐसा ही कुछ नज़ारा उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिला। एक तरफ मुज़्फ्फरनगर दंगों के पीडि़तों की सिसकियां थी तो दूसरी तरफ धमाकेदार संगीत की स्वर लहरियाँ।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह का पैतृक गांव है सैफई और इस गाँव मेँ हर साल इस महोत्सव का आयोजन होता है। तो फिर इस साल ऐसा क्या हुआ है जो ये महोत्सव इतनी आलोचनाओँ का शिकार हो रहा है? तो जनाब, इस सवाल का जवाब देश का बच्चा बच्चा जानता है। मुज़फ़्फ़रनगर दंगोँ की सिसकियाँ अभी तक कमज़ोर नहीँ पड़ी हैँ और उस पर सर्दी ने अपना कहर अलग बरपाया है। जिस सरकार की ज़िम्मेदारी अपनी रियाया की देखभाल करना है वो अपने फ़र्ज़ को भूल नृत्य संगीत मेँ मशगूल है? एक तरफ़ बच्चे सर्द रातोँ मेँ नंगे बदन जीने को मजबूर हैँ वहीँ उनके सरपरस्त नग्न नाच को देख अपनी आँखे सेँक रहे हैँ? ये कहाँ का इंसाफ़ है?
दंगा पीड़ीतो के बदन ढकने और कंबल का इंतज़ाम करने के लिये सरकार के पास वक़्त और पैसा नहीँ है, लेकिन हर साल की तरह होने वाले 14 दिनों के इस महोत्सव में इस साल तमाम फिल्मी हस्तियों के जमावड़े के लिये वक़्त और पैसा दोनोँ की ही कोई कमी नहीँ की गई। बॉलीवुड के कलाकार छह चार्टर्ड विमानों से सैफई पहुंचे। इन चार्टर्ड प्लेन को दो लाख से 2.80 लाख रुपये प्रति घंटे तक के हिसाब से किराए पर लिया गया था। ये भी बताया जा रहा है कि बॉलीवुड कलाकारों को सैफई लाने और ले जाने का इंतजाम तीन कॉरपोरेट घरानों के ज़िम्मे कर दिया गया था।
इस महोत्सव के आयोजन पर 200 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। एक करोड़ की सब्सिडी फिल्म निर्माताओं को भी दी गई। माधुरी की नई फिल्म ’’डेढ़ इश्क़िया’’ की शूटिंग भी यही हुई है। इससे पहले फिल्म ‘बुलेट राजा’ की शूटिंग भी इसी सूबे में हुई थी। इसीलिए सरकार ने इन दोनों फिल्मों के निर्माताओं को एक करोड़ रुपये की सब्सिडी दी।महोत्सव के दौरान प्रदेश की पूरी सरकार सैफई में जुटी रही। अखिलेश मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक सैफई के लिए 334 करोड़ रुपए की योजना की घोषणा कर चुके हैं। जबकि उस गांव की आबादी महज सात हज़ार है। और ये सब तब हो रहा है जब उसी प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर के दंगो की यातना सहने को आज भी जनता परेशान है। कई लोग अभी कैंपों में रह रहे हैं। वहां सर्दी से बच्चे मारे जा चुके हैं। सपा सरकार के इस बेतुके आयोजन और निर्मम व्यवहार की जितनी आलोचना की जाये वो कम है।
बहरहाल, इस सब बातोँ से जो तस्वीर सामने आई है उसने तो लगता है कि सीधे तौर पर समाजवाद का असल मतलब ही बदल दिया है। जिस सरकार पर यूपी की जनता को एतबार होना था उसी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा के प्रमुख मुलायम सिंह के साथ पार्टी के अन्य बड़े नेता फिल्मी सितारों के साथ मस्ती करते दिखे।जिन लोगोँ को परेशानी मेँ जनता के साथ खड़ॆ होना चाहिये था उन्हे इस तरह फिल्मी सितारोँ के आगे पीछे मंडराते देख कर कोफ़्त हो रही है। लेकिन यहीँ पर आकर बात रूकती नहीँ है एक तस्वीर और नज़र आती है जिसमें अखिलेश के चरणों में आईजी साहब दिखाई देते हैँ। महोत्सव में मेरठ और मुजफ्फरनगर का लॉ और आर्डर संभाल रहे आईजी आशुतोष सीएम के पैरों में दिखाई दिए।
यूपी सरकार ने जहां करीब 200 रूपए खर्च करके सैफई महोत्सव का आयोजन किया वहीं दूसरी और मुज़फ्पफरनगर में दंगा पीडितों के बच्चे ठंड के मारे मर रहे हैं। समारोह में सपा नेताओं, प्रदेश के मंत्रियों और अधिकारियों के मनोरंजन के लिए मुंबई से फिल्मी सितारें ने महोत्सव में शिरकत की। महोत्सव के आखिरी दिन पर अभिनेता सलमान और माधुरी दीक्षित ने ठुमके लगाए। गांव के लोगों ने अपने पसंदीदा सितारों के साथ डांस किया और बदायूं से सपा के सांसद धर्मेंद्र यादव ने लोगों से वादा किया कि अगले साल बड़े लेवल पर समारोह का आयोजन किया जाएगा। इस तरह के अमानविय बरताव की इतिश्री यहीँ नहीँ होती है बल्कि आप सुनकर दंग रह जाएंगे कि इस महोत्सव में फिल्मी सितारों के ठुमकों के लिये म्यूज़िक और लाइट सिस्टम पर दो करोड़ रुपये खर्च किये गये। पांच घंटे तक चले इन नाच गानोँ के लिए मुंबई और दिल्ली से फिल्मी सितारों को लाने के लिए 7 चार्टर्ड प्लेन किराए पर लाए गए थे। 25 हज़ार लोगों के बैठने का इंतज़ाम किया गया और एक लाख लोग प्रोग्राम को देखने पहुंचे। सुरक्षा के लिए दो हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। एक ही प्रदेश और एक ही सर्दी। लेकिन गर्म रहने के इंतज़ाम अलग अलग।
पैसा आपकी दुनिया कैसे बदल देता है ये मुज़फ्फरनगर से सैफई का फासला बताता है। इन दोनोँ जगहोँ की दूरी महज़ पाँच घंटे की है और अगर आप पांच घंटे का ये सफर तय कर लें, तो हम जहन्नूम से जन्नत के अंतर को बखूबी समझ जायेंगे। मुज़फ्फनगर में दंगा पीड़ितों के राहत शिविर की बदइंतज़ामी के साथ सैफई महोत्सव की ऐय्याशी को देखें तो यक़ीन मानिये हर इंसान के दिल में कुछ सवाल उठना लाज़मी होगा कि आखिर यूपी सरकार की ये कैसी लीला है? क्या चोरी और सीनाज़ोरी की कहावत इन पर सही नहीँ बैठती है?
एक बात और ग़ौर करने लायक़ है कि क्या समाजवादी पार्टी जो मुसलमानो की सबसे बड़ी हिमायती पार्टी मानी जाती है उसी समाजवादी पार्टी के कर्ता धर्ता मुलायम और उनके मुख्यम्ंत्री पुत्र अखिलेश ने जितना खर्चा सैफ़ई के इस महोत्सव के उपर खर्च किया है उतने पैसे मेँ तो उन सभी दंगा पीड़ितो के घर बन और बस जाते जो आज इस सरकार की नज़रअन्दाज़ी की वजह से इस सर्दी मेँ खुले आसमान के नीचे दिन और रात गुज़ारने को मजबूर हैँ। क्या आज मुलायम और उनकी पार्टी को अपने इस इतने बड़ॆ वोट बैंक का कोई ख़्याल नहीँ आया? क्या इस महोत्सव को इस साल ना करके उसी पैसे को मुज़फ्फरनगर के दंगा पीड़ितोँ पर खर्च करके समाजवादी पार्टी अपनी साख मेँ चार चाँद नहीँ लगा सकती थी?
कल ही झाँसी मेँ समाजवादी पार्टी एक महारैली का आयोजन कर रही है।अब एक सबसे बड़ा सवाल तो यहीँ उठ खड़ा होता है कि कल ये सरकार किस मुँह से इस जनता का सामना करेगी जिसने अपने ‘मौजवाद’ से पूरी उत्तर प्रदेश की जनता को त्रस्त करके रख दिया है?अब आलम कोई भी हो इस सरकार और इस पार्टी का भविष्य अब इस प्रदेश की जनता को ही करना है और लगता है अब अपने कर्मो की सज़ा पाने का वक़्त इस सरकार से ज़्यादा दूर नहीँ है। अपने इस ग्रैन्ड सेलीब्रेशन को भरपूर मनाने के बाद आज जब अखिलेश सरकार को मीडिया के तीखे और सीधे सवालोँ का सामना करना पड़ रहा है तो उनके जवाब और रिएक्शन देखकर बार बार एक ही कहावत याद आ रही है ‘’खिसियानी बिल्ली ख्ंबा नोचे’’!!!!
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*सोनाली बोस
लेखिका सोनाली बोस वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम