भारतीय सीमेंट उद्योग : अवसर और चुनौतियां

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समीर पुष्प
सीमेंट ही वह गोंद है जो बुनियादी ढांचा क्षेत्र को खड़ा करता है और सीमेंट उद्योग का विकास प्रत्यक्ष रूप से बुनियादी ढांचा क्षेत्र विकास से जुड़ा हुआ है। भारत आज विश्व की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है और सीमेंट एवं निर्माण क्षेत्र उसके प्रमुख उन्नायक हैं। कुल 21 करोड़ 90 लाख की स्थापित क्षमता वाला भारतीय सीमेंट उद्योग विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक देश है और प्रतिवर्ष 9 से 10 प्रतिशत की दर से विकास कर रहा है। आने वाले समय में आवासीय आवश्यकताओं, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे, शहरीकरण आदि की बढ़ती मांगों के फलस्वरूप निर्माण गतिविधियों में और भी तेजी आने की संभावना है।
यह निर्माण क्षेत्र ही है जिसे वैश्विक आर्थिक मंदी के लिए दोष दिया जाता है और जिसके कारण आवासीय क्षेत्र में मांग की कमी आई बताई जाती है, परन्तु इस कठिन समय के बावजूद हमारा सीमेंट उद्योग, 5 प्रतिशत के वैश्विक औसत की तुलना में 10 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा है। भारतीय उद्योग का यह सौभाग्य है कि उसे राष्ट्रीय सीमेंट एवं भवन निर्माण सामग्री परिषद की सेवाएं और सहयोग मिला हुआ है। यहां परिषद उत्उाएृष्ट अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) अवस्थापना सुविधाओं और अमूल्य बौध्दिक पूंजी से परिपूर्ण है। हाल ही में नई दिल्ली में सीमेंट एवं भवन निर्माण सामग्री पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने कहा कि वैश्विक मंदी और मांग में गिरावट के बावजूद, विपरीत परिस्थितियों से निपटने और 2007-08 तथा 2008-09 में करीब 8 प्रतिशत की सराहनीय विकास दर बनाए रखने के लिए सीमेंट उद्योग बधाई का पात्र है। मौजूदा वर्ष 2009-10 में, अब तक सीमेंट उद्योग की विकास की गति दहाई की संख्या से ऊपर ही बनी हुई है, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
भारतीय सीमेंट उद्योग की स्थापित क्षमता 24 करोड़ 20 लाख टन की हो गईहै और इसका लक्ष्य 2011-12 तक 30 करोड़ टन तथा 2020 तक 60 करोड़ टन की क्षमता हासिल करना है। भारत की स्थापित क्षमता का 97 प्रतिशतशुष्क प्रक्रिया से निर्मित है। भारतीय सीमेंट उद्योग ऊर्जा संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ विशेषज्ञ प्रणालियों और प्रयोगशाला स्वचलन (आटोमेशन) के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपना रहा है। देश में भारी मांग के बावजूद, प्रति व्यक्ति सीमेंट की खपत काफी कम है। जहां विश्व औसत 396 किलोग्राम की है, भारत की प्रति व्यक्ति औसत खपत केवल 156 किलोग्राम की है। युवा पीढी क़ा देश होने के कारण भारत में विशाल संभावनाएं हैं, और सामाजिक एवं आर्थिक आधार भूत ढांचे में विस्तार के चलते घरेलू मांग में काफी वृध्दि अपेक्षित है।
भारतीय सीमेंट उद्योग एक कार्य कुशल और पर्यावरण-हितैषी उद्योग है। जहां तक ऊर्जा संरक्षण का प्रश्न है, उद्योग की उपलब्धि उच्चस्तरीय है। आंकड़ों के अनुसार प्रति किलो क्लिंकर (बुझा हुआ कोयला पत्थर) पर 687 किलो कैलोरी और प्रति टन सीमेंट पर 66 किलोवाट घंटे की ऊर्जा की बचत विश्व में श्रेष्ठतम स्तर के बराबर ही है। उत्सर्जन के नियंत्रण, पर्यावरण संतुलन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति इसकी कार्पोरेट सामाजिक दायित्व के लिए किए जा रहे सीमेंट उद्योग के प्रयास प्रशंसनीय हैं। कार्बनिक गैसों के उत्सर्जन के लिए किये जा रहे संपोषणीय और दीर्घकालिक प्रयास भी काफी सराहनीय हैं। वर्ष 2006 में उत्पादित प्रति टन सीमेंट पर कुल 0.82 टन कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन हुआ, जो कि 1996 के 1.12 और 2000 के 0.94 के स्तर से पर्याप्त कम है।
प्रौद्योगिकी केमोर्चे पर भारतीय सीमेंट उद्योगने आमतौर पर अत्याधुनिक उत्पादन प्रौद्योगिकी को अपनाया है। सीमेंट के साथ-साथ विद्युत के उत्पादन तथा एनओ एक्स और एसओ2 के उत्सर्जन में कमी लाने वाली प्रौद्योगिकियों को अभी अनेक लक्ष्य हासिल करने हैं। बेकार और फालतू सामग्री के उपयोग के लिए सीमेंट उद्योग ने जो पहल की है उसका इसी बात से पता लग जाता है कि 2008-09 में देश में मिश्रित (ब्लैंडेड) सीमेंट का उत्पादन 2000-01 के कुल 34 प्रतिशत के मुकाबले बढक़र 74 प्रतिशत हो गया था। भारतीय सीमेंट उद्योग प्रति वर्ष 3 करोड़ टन पऊलाई ऐश के पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) के अलावा देश के इस्पात संयंत्रों की धमन भट्टियों के बचे हुए लौह चून के दानों का पूरा-पूरा इस्तेमाल कर लेता है।
ऊर्जा परिवहन (पारेषण) कीबढती हुई लागत और कच्चे माल के सतत बढ़ रहे दबाव से सीमेंट और निर्माण उद्योग पर भारी बोझ पड़ रहा है। परिणाम स्वरूप भारतीय कम्पनियों को न केवल ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों और सामग्रियों का इस्तेमाल करना होता है, बल्कि प्रचालन क्षमता में वृध्दि के लिए विशेष प्रयास भी करना होता है। परन्तु विकास की भारत की संभावनायें ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। समय की मांग है कि उन्नत प्रौद्योगिकियों और निर्माण पध्दतियों, परियोजना प्रबंधन निर्माण मुकदमेबाजी, बीमा, वित्त आदि जैसी निर्माण उद्योग की व्यवसायिक आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ मानव संसाधनों के विकास में पर्याप्त रूप से निवेश और व्यय किया जाए।
भारतीय सीमेंट उद्योग प्रतिस्पर्धात्मक लाभ लेने की फिराक में है। अत: नए-नए प्रयोग और उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम उपयोग की दिशा में निरन्तर प्रयासरत है। विकास और वैश्विकस्त र पर प्रतिस्पर्धा के लिए संकल्पबध्द होने के बावजूद भारतीय सीमेंट उद्योग पारिस्थिति की और पर्यावरण की आवश्यकताओं की उपेक्षा नहीं कर रहा है। क्षेत्र ने ऊर्जा का उपयोग करते समय संपोषणीय वैकासिक पध्दतियों और संरक्षण उपायों को अपनाया है। सीमेंट उद्योग जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए पूर्णत: प्रतिबध्द है।

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