{ तनवीर जाफ़री } अलकायदा प्रमुख एमन-अल-जवाहिरी द्वारा पिछले दिनों जारी किए गए अपने एक वीडियो ंसंदेश में कश्मीर व गुजरात के मुसलमानों के प्रति हमदर्दी जताते हुए उन्हें अपने साथ जोडऩे की कोशिश की गई थी। जवाहिरी द्वारा यह संदेश क्यों जारी किया गया? क्या वह वास्तव में भारत में अलकायदा का विस्तार करना चाहता है? क्या वह भारतीय मुसलमानों को अलकायदा के साथ जोडऩे की गंभीर कोशिश कर रहा है? या फिर अल बगदादी के नेतृत्व वाले इस्लामी स्टेट के मौजूदा बढ़ते प्रभाव व आतंक के सामने अपना वजूद खोने के भय से जवाहिरी ने अलकायदा को जीवित रखने की गरज़ से यह वीडियो संदेश जारी किया है? हालांकि यह एक अलग शोध का विषय है। परंतु इतना ज़रूर है कि जवाहिरी की भारतीय मुसलमानों के प्रति हमदर्दी जताने वाले इस संदेश पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दे डाली है। अपनी अमेरिका यात्रा से पूर्व अमेरिकी चैनल सीएनएन के लिए पत्रकार फरीद ज़करिया को मोदी ने यह साक्षात्कार दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी विदेशी चैनल को दिया जाने वाला नरेंद्र मोदी का यह पहला साक्षात्कार था। इसी साक्षात्कार में जब उनसे अलकायदा की भारत में घुसपैठ की कोशिश पर सवाल किया गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। अगर किसी को लगता है कि भारतीय मुसलमान उनके इशारों पर नाचेंगे तो वे मुगालते में हैं। भारतीय मुसलमान भारत के लिए जिएंगे और भारत के लिए ही मरेंगे। वे कभी भारत का बुरा नहीं चाहेंगे।
नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रभक्ति तथा उनकी राष्ट्रवादिता का प्रमाण पत्र देने को लेकर भी भारतीय समाज मेें यह बहस छिड़ गई है कि आिखर मोदी को मुसलमानों के लिए ही ऐसा प्रमाणपत्र जारी करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई?क्या किसी भी देश के नागरिक के लिए इस प्रकार के प्रमाणमत्र जारी करना ज़रूरी है? और दूसरी बात यह भी है कि मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा से ठीक पहले ही यह सर्टििफकेट क्यों जारी किया? यह जानने के लिए हमें नरेंद्र मोदी पर गोधरा व उसके बाद गुजरात दंगों को लेकर पैदा होने वाले संदेह की ओर देखना होगा। गौरतलब है कि नरें्रद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री होने के बावजूद गुजरात दंगों के संबंध में भारतीय मीडिया से लेकर भारतीय जांच एजेंसियों तथा अदालतों का इस हद तक सामना करना पड़ा कि अमेरिका ने अपने यहां उनका प्रवेश निषेध घोषित कर दिया। उन्होंने अमेरिका में प्रवासी भारतीयों के निमंत्रण पर जाने की कोशिश भी की परंतु अमेरिका द्वारा उन्हें वीज़ा नहीं जारी किया गया। अमेरिका ने भी मोदी को वीज़ा न दिए जाने के अपने कारणों में एक बात यह भी कही थी कि गुजरात का मुख्यमंत्री होते हुए मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में माया कोडनानी जैसी उस महिला को क्यों शामिल किया जिस पर गुजरात के दंगों के समय नरोदा पाटिया जैसे बड़े एवं वीभत्स सामूहिक हत्याकांड का आरोप था? जिसे बाद में अदालत ने दोषी करार देते हुए सज़ा भी सुनाई। गोधरा व गुजरात में मोदी की संदिग्ध भूमिका के लिए भले ही उन पर कितना ही आरोप क्यों न मढ़ा जाता रहा हो परंतु उन्होंने आज तक इनमें अपनी भूमिका को न तो स्वीकार किया है न ही मुसलमानों से माफी मांगने की कोशिश की। बजाए इसके गुजरात दंगों को गोधरा की प्रतिक्रिया स्वरूप होने वाली घटना बताकर गुजरात दंगों को जायज़ ठहराने की ही कोशिश की जाती रही है।
नरेंद्र मोदी की चतुराई तथा उनकी राजनैतिक मौकापरस्ती व राजनैतिक दूरदर्शिता के विषय में उनके किसी आलोचक को क्या कहना। स्वयं उनके राजनैतिक गुरु व नरेंद्र मोदी की इसी विशेष राजनैतिक शैली के शिकार लाल कृष्ण अडवाणी स्वयं कह चुके हैं कि मैंने आज तक नरेंद्र मोदी जैसा राजनीतिज्ञ नहीं देखा। निश्चित रूप से मोदी ने जिस कला-कौशल के साथ प्रधानमंत्री की कुर्सी झपटी है तथा वरिष्ठ भाजपाई नेताओं को हाशिए पर धकेला है देश में इस प्रकार की राजनैतिक कलाबाज़ी की दूसरी मिसाल पहले कभी देखने को नहीं मिली। भारतीय मुसलमानों की शान में दिया गया उनका ‘बोल वचन’ भी उसी राजनैतिक कौशल का ही एक उदाहरण है। सोचने का विषय है कि अमेरिका यात्रा से पूर्व जिन मुसलमानों को मोदी जी राष्ट्रभक्त व देश पर मिटने वाला तथा आतंकवादी संगठनों के झांसे में कभी न फंसने वाला मुसलमान बता रहे हैं उसी कौम के लिए लोकसभा चुनाव से पूर्व मोदी ने गुजरात दंगों में मारे गए मुसलमानों के प्रति अपने उद्गार इन शब्दों मेें व्यक्त किए थे कि यदि कोई कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आकर मर जाए तो दु:ख होता है। यह भी राष्ट्रभक्त मुसलमानों के हक में बोला गया वाक्य था। जिसे इस अंदाज़ व इन शब्दों में बोलने की इस ‘कुशल राजनीतिज्ञ’ को उस समय ज़रूरत महसूस हुई थी जबकि देश लोकसभा चुनावों का सामना करने जा रहा था। सभी धर्मो से जुड़े धर्मस्थानों पर तो मोदी जी जाना पसंद करते हैं पंरतु इन ‘राष्ट्रभक्त मुसलमानों’ के धर्मस्थानों पर आप कभी नहीं जाते? अपने सर पर इस्लामी प्रतीक वाली टोपी धारण करने से मोदी ने उस समय इंकार कर दिया था जबकि वे कथित सद्भावना यात्रा पर निकल कर गुजरात का भ्रमण कर रहे थे। आिखर उन्हीं के अनुसार देश पर मर-मिटने वाली तथा देश का कभी बुरा न सोचने वाली कौम के लिए उनके इस सौतेले बर्ताव की वजह क्या है?
यह जानने के लिए मोदी के संस्कारों को समझना भी ज़रूरी है। जैसाकि उनके विषय में लिखे जाने वाले आलेखों से पता चलता है कि बचपन में जिस समय वे अपने पिता की चाय की दुकान पर चाय बेचा करते थे उसी दौरान उनकी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवकों से हुई थी। और वे बचपन में ही संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर संघ के लिए काम करने लगे थे। गेाया संघ की विचारधारा उनके संस्कारों में शामिल है। और संघ की विचारधारा क्या है यह संघ संस्थापक गुरू गोलवरकर ने बंच ऑफ थॉटस नामक पुस्तक में स्पष्ट किया है। गुरू गोलवरकर के अनुसार मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ज़ाहिर है केवल मोदी ही नहीं बल्कि देश का प्रत्येक वह सदस्य जो संघ की विचारधारा को मानता है वह भी वर्ग विशेष के प्रति नफरत का पाठ पढ़ता चला आ रहा है। और इस ज़हरीली विचारधारा की परिणिती देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों के रूप में अक्सर नज़र आती है। क्या अशोक सिंघल,क्या प्रवीण तोगडिय़ा तो क्या मोहन भागवत यह सब समय-समय पर ऐसी बातें बोलते रहते हैं जिनसे इनकी वास्तविक मानसिकता व विचारधारा उजागर होती है।
अब यहां एक प्रश्र यह भी उठ सकता है कि फिर आिखर नजमा हैपतुल्ला,मुख्तार अब्बास नकवी तथा शाहनवाज़ हुसैन जैसे मुस्लिम लोगों की संघ वर्चस्व वाले संगठन भाजपा में आिखर क्या भूमिका है? दरअसल सत्ता व शोहरत की चाह इन नेताओं को भाजपा के साथ जोड़े हुए है। दूसरे यह कि दुनिया को स्वयं को उदारवादी व धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए भाजपा के लिए यह भी ज़रूरी है कि वे कुछ मुस्लिम चेहरों को अपने साथ रखे। वैसे भारतीय मुसलमानों को नरेंद्र मोदी के इस बोल-वचन का शुक्रगुज़ार होना चाहिए तथा उनका आभार व्यक्त करना चाहिए कि जिस कौम को गुरु गोलवरकर देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे उस कौम पर मोदी ने देश के लिए मर-मिटने वाली कौम होने जैसा भरोसा जताया है। परंतु हकीकत तो यह है कि जिस समय देश का विभाजन कुछ स्वार्थी व सत्ता के भूखे व सांप्रदायिक प्रवृति रखने वाले मुसलमानों द्वारा कराया जा रहा था और अंग्रेज़ इस काम में सबसे अधिक दिलचस्पी लेते नज़र आ रहे थे उसी समय खान अब्दुल गफ्फार खान,अबुल कलाम आज़ाद व रफी अहमद िकदवईजैसे नेता भारतवर्ष को एकजुट रखने की कोशिश करते हुए विभाजन का विरोध कर रहे थे। जिस समय अंग्रेज़ों के विरुद्ध चंद्रशेखर आज़ाद,भगतसिंह,राजगुरु व सुखदेव जैसे क्रांतिकारी अंग्रज़ों के विरुद्ध अपनी क्रांतिकारिता का परिचय दे रहे थे उस समय अशफाक उल्ला खां जैसे कई मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी भी देश पर अपनी जानें न्यौछावर कर रहे थे। जिस समय मोदी जी चाय की दुकान पर चाय बेचते हुए संघ के संस्कारों से प्रभावित हो रहे थे उसी समय भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तान से युद्ध करते हुए वीर अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त होकर परमवीर चक विजेताओं में अपना नाम दर्ज करवा रहे थे। इसके बाद भी आज़ादी से लेकर अब तक वायु सेना अध्यक्ष एयरमार्शल यावर जंग तथा एयर मार्शल वाई एच लतीफ से लेकर भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम तक ने अपने देश के लिए जो कुछ किया है वह भारतीय मुसलमानों के लिए निश्चित रूप से गर्व का विषय है। इन सभी वास्तविकताओं के बावजूद भारतीय मुसलमानों को दिया जाने वाला मोदी का राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र सराहनीय है तथा उनके द्वारा दर्शाई जा रही इस ‘नई सोच’ का स्वागत किया जाना चाहिए।
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columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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