दलित ईसाइयों तथा मुस्लिमों आरक्षण -अनुसूचित जाति हितों को भारी क्षति-रामनाथ कोविन्द

रामनाथ कोविन्द**

भारत सरकार ने 29 अक्टूबर, 2004 को राष्ट्रीय धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया था। आयोग की रिपोर्ट 18 दिसम्बर, 2009 को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी गई थी। जस्टिस रंगनाथ मिश्र इस आयोग के सभापति थे। इसीलिए इस आयोग को उन्हीं के नाम पर ”रंगनाथ मिश्र आयोग” के रूप में जाना जाता है।
इस आयोग की उक्त रिपोर्ट सर्वसम्मत नहीं थी। आयोग ने अन्य बातों के साथ-साथ शिक्षा, सरकारी रोजगार और सामाजिक कल्याण स्कीमों में पिछड़ा वर्ग कोटा के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों को 15 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। इस 15 प्रतिशत आरक्षण में से 10 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिम समुदाय को देने की और शेष बचे 5 प्रतिशत आरक्षण को अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को देने की सिफारिश की गई है। आयोग ने आगे यह भी सिफारिश की है कि धर्मांतरित दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कर लिया जाए।
वर्तमान में धर्मांतरित मुस्लिमों और ईसाइयों को पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के अर्न्तगत सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल रहा है। प्रश्न यह उठता है कि जब उन्हें पिछड़ा वर्ग श्रेणी में पहले से ही आरक्षण प्राप्त हो रहा है, तब वे अनुसूचित जाति वर्ग में आरक्षण क्यों चाहते है ? इसका उत्तर स्पष्ट है। उनकी विशेष रूचि सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त करने में नहीं है, बल्कि वे ग्राम पंचायतों से लेकर लोकसभा तक के चुनाव लड़ने के लिए अनुसूचित जाति की श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि वे पिछड़ा वर्ग आरक्षण के तहत आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं बन सकते हैं। यदि सरकार रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लेती है, तो धर्मांतरित ईसाई और मुस्लिम अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के पात्र बन जाएंगे। इस प्रकार, अनुसूचित जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों और राजनीतिक क्षेत्रों में अपने शेयर को धर्मांतरित ईसाइयों और मुस्लिमों के साथ बांटना पड़ेगा।
धर्मांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की मांग सबसे पहले पूना पैक्ट के बाद 1936 में उठाई गई थी, जब ब्रिटिश शासन के दौरान अनुसूचित जातियों की पहली सूची प्रकाशित की गई थी। ब्रिटिश सरकार ने यह कहते हुए, इस मांग को खारिज कर दिया था कि ”कोई भी भारतीय ईसाई अनुसूचित जाति की श्रेणी की मांग करने का हक़दार नहीं है।” अत: ब्रिटिश सरकार द्वारा इस मांग को अंतिम रूप से अस्वीकृत कर दिया गया था।
संविधान सभा में चर्चा के दौरान धर्मांतरितों को आरक्षण प्रदान करने की मांग भी उठाई गई थी। किंतु, डॉ. अम्बेडकर, श्री जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, सी. राजगोपालाचारी सहित सभी वरिष्ठ नेताओं ने इस मांग को यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया था कि हिन्दुओं को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अनुयायी को कोई आरक्षण मंजूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि तथाकथित अनुसूचित जातियां शताब्दियों से अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव की यंत्रणा झेल रही हैं। इसके अतिरिक्त, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने 27 जून, 1961 को सभी मुख्यमंत्रियों को संबोधित अपने पत्र में धर्म-आधारित आरक्षण को स्पष्ट रूप से नामंजूर कर दिया था।
वर्ष 1996 में तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले एक अध्यादेश के माध्यम से धर्मांतरित ईसाइयों तथा मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करना चाहा था किंतु, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने उक्त अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। इसी प्रकार 1997 में, देवगौड़ा सरकार धर्मांतरितों को अनुसूचित जातियों में शामिल किए जाने के बारे में संसद में एक संविधान संशोधन विधेयक लाना चाहती थी। किंतु, इस विधेयक को प्रतिपक्षी दलों द्वारा कड़े विरोध के कारण लाया नहीं जा सका था। बाद में राज्य सरकारों से इस विधेयक पर अपनी राय देने के लिए कहा गया था और राज्य सरकारों ने भी इसका विरोध किया था।
कर्नाटक के कांग्रेसी नेता श्री हनुमन्थप्पा के सभापतित्व के अर्न्तगत गठित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग ने भी धर्मांतरित ईसाइयों तथा मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल किए जाने की मांग को अस्वीकृत कर दिया था। बाद में उक्त आयोग के सभी परवर्ती सभापतियों अर्थात् डॉ. सूरजभान, श्री विजय सोनकर शास्त्री तथा वर्तमान सभापति श्री बूटा सिंह ने भी इसी के अनुरूप निर्णय किया।
उच्चतम न्यायालय ने अपने विभिन्न फैसलों के जरिए स्पष्ट राय व्यक्त की है कि धर्मांतरित दलित ईसाइयों तथा मुस्लिमों को अनुसूचित जातियों के समान नहीं माना जा सकता है।
निष्कर्ष यह है कि ब्रिटिश सरकार, संविधान सभा, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग तथा उच्चतम न्यायालय – सभी ने एक स्वर से राय व्यक्त की है कि धर्मांतरितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मंजूर नहीं किया जाना चाहिए। आप जानते ही हैं कि अनुसूचित जातियों के बच्चों का शैक्षिक स्तर धर्मांतरित ईसाइयों तथा मुस्लिमों के बच्चों के शैक्षिक स्तर से कहीं अधिक निम्न रहता है। अत: धर्मांतरितों के बच्चे सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बड़े भाग को हड़प कर जाएंगे। धर्मांतरित दलित ईसाई तथा मुस्लिम अनुसूचित जातियों हेतु आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के पात्र हो जाएंगे। अत:, अनुसूचित जातियों को सभी क्षेत्रों में सभी कोणों से नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, इससे धर्मांतरण को और अधिक बढ़ावा मिलेगा तथा भारतीय समाज का ताना-बाना पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

26 जनवरी, 2010 को भारतीय संविधान ने अपने 60 वर्ष पूरे कर लिए हैं किंतु, इतनी लंबी अवधि के बावजूद अनुसूचित जातियों का आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक विकास तथा सशक्तिकरण इस कारण से सुस्त रहा है कि सरकार की स्कीमों का कार्यान्वयन उचित रूप में नहीं किया जा सका। आज भी समाज के इस वर्ग को सरकारी स्कीमों का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। अब अनुसूचित जातियों की जनसंख्या बढ़कर 18 प्रतिशत हो गई है। केन्द्रीय सरकार अनुसूचित जातियों के आरक्षण अनुपात को बढ़ाने के बजाय धर्मांतरित दलित ईसाइयों तथा मुस्लिमों को उनके 15 प्रतिशत आरक्षण में से आरक्षण का शेयर देने के बारे में सोच रही है। इसके कारण अनुसूचित जाति के लोगों के हितों को भारी क्षति होगी।

**भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता

BJP National Spokesperson, Shri Ramnath Kovind, Shri Shyam Jaju, BJP Headquarter Incharge and Shri Shrikant Sharma, BJP National Media Co-Convener during a press conference
BJP National Spokesperson, Shri Ramnath Kovind, Shri Shyam Jaju, BJP Headquarter Incharge and Shri Shrikant Sharma, BJP National Media Co-Convener during a press conference

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