हमारे देश में वैसे तो पिछले कई दशकों से पंजाब व हरियाणा को देश के सबसे विकसित राज्यों में गिना जाता रहा है। परंतु नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्वकाल में एक दूरगामी व सधी हुई रणनीति के तहत गुजरात राज्य के विकास की कुछ ऐसी मार्केटिंग कराई गई कि ऐसा प्रतीत होने लगा कि गुजरात राज्य देश का पहले नंबर का विकसित राज्य है और नरेंद्र मोदी भारत के ऐसे विकास महापुरुष हैं जिन्होंने गुजरात को गहरे गड्ढेसे निकाल कर आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दिया हो। 2002 में गुजरात में गोधरा तथा उसके बाद राज्य में फैली व्यापक सांप्रदायिक हिंसा के बाद चूंकि नरेंद्र मोदी को अपनी छवि साफ करनी थी इसलिए उन्होंने अपने ऊपर से सांप्रदायिकता के धब्बे मिटाने के लिए विकास पुरुष बनने का मार्ग चुना। जबकि हकीकत यह है कि गुजरात आज से नहीं बल्कि कई दशकों से देश के संपन्न एवं विकसित राज्यों में गिना जाता है। हरियाणा व पंजाब के विकास का कारण जहां यहां की कृषि क्षेत्र में संपन्नता है वहीं गुजरात औद्योगिक क्षेत्र में हमेशा से ही देश में अपना प्रभुत्व रखता आया है। सूरत व अहमदाबाद के कपड़ा उद्योग ने पूरे विश्व में अपनी अच्छी साख बनाई है। सूरत के हीरा उद्योग के प्रभुत्व को दुनिया में कौन नहीं मानता। वैसे भी कोस्टल प्रदेश होने के नाते भी गुजरात काफी संपन्न है। लिहाज़ा यह सोचना कि नरेंद्र मोदी ने ही वाईब्रेंट गुजरात का ढिंढोरा पीटकर गुजरात को विकास की राह दिखाई यह बिल्कुल गलत है।
ठीक इसके विपरीत बिहार अभी मात्र एक दशक पूर्व लालूप्रसाद यादव व राबड़ी देवी के शासनकाल में ही अराजकता,भ्रष्टाचार,अपहरण,बाढ़ जैस्ी त्रासदियों का शिकार था। सडक़-बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं जनता को नसीब नहीं थीं। उसी दौर में बिहार को लेकर ही यह कहावत प्रचलित थी कि बिहार में सडक़ में गड्ढे नहीं बल्कि वहां गड्ढों में सडक़ है। परंतु नितीश कुमार के प्रथम कार्यकाल में खासतौर पर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा बिहार से हरित क्रांति की शुरआत किए जाने के आह्वान करने के बाद बिहार ने विकास की जो राह पकड़ी और खासतौर पर नितीश कुमार ने जिस गंभीरता के साथ बिना किसी मार्किटिंग किए व ‘वाईब्रेंट’ नौटंकी किए बिना बिहार को विकास के पथ पर ले जाने का जो संकल्प लिया तथा नितीश के इस संकल्प को पूरा करने में जिस प्रकार यूपीए सरकार ने अपना पूरा योगदान दिया उसने निश्चित रूप से बिहार की काया ही पलट कर रख दी। आज बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग के अतिरिक्त शहरों व कस्बों को जोडऩे वाली सडक़ें भी देखी जा सकती हंै। बिहार के जिन इलाकों में महीने या हफ्ते में एक-दो बार चंद घंटों के लिए बिजली आया करती थी आज उन्हीं क्षेत्रों में 18 से लेकर 20-22 घंटे तक की विद्युत आपूर्ति होती देखी जा सकती है। बिहार के बाज़ारों में रौनक़ दिखाई दे रही है। राज्य में अनेकानेक नए स्कूल व कॉलेज खुल गए हैं जिससे शिक्षा का स्तर ऊंचा हो रहा है। नितीश कुमार ने राज्य में हज़ारों अपराधियें को जेल भिजवा कर कानून व्यवस्था पर भी नियंत्रण पाने में काफी सफलता हासिल की।
और निश्चित रूप से बिहार में धरातल पर किए गए ऐसे ही अनेक विकास कार्यों की वजह से ही एक बार फिर राज्य की जनता ने वास्तविक विकास के पक्ष में अपना मतदान करते हुए नितीश कुमार को ही पुन: सत्ता सौंपी है। हालांकि देश में संप्रदाय के नाम पर हो रहे राजनैतिक ध्रुवीकरण की वजह से बिहार में तीन प्रमुख राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी अर्थात् कांग्रेस,नितीश कुमार व लालू यादव इस बार एक साथ महागठबंधन बनाकर सत्ता में वापस आए हैं। परंतु कांग्रेस व लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल दोनों ने ही बिहार के हित में नितीश कुमार की साफ-सुथरी व बेदाग छवि को ही आगे रखने व उन्हीें को मुख्यमंत्री स्वीकार करने जैसा समझदारी भरा काम किया है। हालांकि लालू यादव ने अपने दोनों बेटों तेजस्वी व तेज प्रताप यादव को मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री बनवा कर परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देने का काम ज़रूर किया है। परंतु यदि लालू यादव ने ‘दूध का जला मठा फूंक-फूंक कर पीता ह’ै वाली कहावत पर अमल करते हुए अपने दोनों बेटों को बिहार के विकास हेतु जी-जान से लगने के लिए प्रेरित किया तो निश्चित रूप से राज्य की जनता लालू यादव के परिवारवाद को बढ़ावा देने की कोशिशों की अनदेखी करते हुए राज्य के विकास में किए जाने वाले उनके योगदान को भविष्य में भी सराहेगी। खबरें आ रही हैं कि लालू यादव ने इसी दूरअंदेशी के मद्देनज़र अपने शासनकाल के समय के कई तजुर्बेकार व काबिल अधिकारियों को अपने पुत्रों के मंत्रालय में तैनात कराया है। यह भी समाचार है कि लालू यादव ने अपने पुत्रों को अपनी मित्रमंडली से दूर रहने तथा गैरज़रूरी सिफारिशों पर ध्यान न देने तथा अपने मंत्रालय से संबंधित विकासपरक योजनाओं को कार्यान्वित किए जाने की सलाह दी है।
चूंकि राज्य में विकास के नाम पर मतदान हुआ है और इसी बल पर नितीश कुमार की वापसी हुई है इसलिए इस बात की संभावना है कि महागठबंधन सरकार के तीनों प्रमुख घटकों में इस बात को लेकर परस्पर प्रतिस्पर्धा हो कि किस घटक के मंत्री के अंतर्गत् आने वाले विभाग ने बिहार के विकास में पांच सालों में अपनी क्या भूमिका अदा की? और ऐसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का लाभ निश्चित रूप से बिहार की जनता को तथा राज्य के विकास को मिलेगा। नितीश कुमार ने तो सत्ता में वापस होते ही पहली गेंद पर छक्का लगाए जाने जैसा निर्णय लेते हुए राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर डाली है। पहली अप्रैल 2016 से लागू होने वाली शराबबंदी महागठबंधन के चुनाव घोषणापत्र में जनता से किए गए वादों में प्रमुख घोषणा थी। इस फैसले से निश्चित रूप से राज्य को हज़ारों करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा परंतु उसकी कीमत समाज को नशे की लत से छुटकारा दिलाने से कहीं कम है। नशेड़ी प्रवृति के लोग बिहार से लगने वाले नेपाल व अन्य सीमावर्ती राज्यों से शराब की तस्करी का धंधा भी शुरु करेंगे। शराब के विकल्प के तौर में अन्य दवाईयां भी इस्तेमाल किए जाने की संभावना है। शराब न मिलने पर घरेलू शराब बनाने व ताड़ी सेवन के व्यापार में भी इज़ाफा हो सकता है। परंतु इन सबके बावजूद पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने से आसानी से शराब उपलब्ध न होने पर लाखों लोगों को शराब पीने से निजात मिल सकती है। और लाखों लोगों के घर उजडऩे से बच सकते हैं। इस खबर से राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है। समाचार ऐसे भी आ रहे हैं कि शराबबंदी की खबर सुनने के बाद अभी से राज्य में शराब के सेवनकर्ताओं ने शराब की लत छोडऩे की आदत डालनी शुरु कर दी है।
एक और समाचार यह भी प्राप्त हुआ है कि राज्य में किसानों को मात्र तीस रुपये प्रति लीटर की दर से डीज़ल मुहैया कराया जाएगा। यह भी किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। इससे भी किसानों को आर्थिक लाभ होगा तथा खेती-बाड़ी को लेकर उनका उत्साह और बढ़ेगा। परंतु चूंकि बिहार राज्य देश के चंद बीमारू राज्यों में पहले नंबर पर गिना जाता रहा है इसलिए ऐसे सभी कदम बिहार की विकास की राह के शुरुआती कदम ही कहे जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार के लोग देश के सबसे बुद्धिमान,जागरूक तथा शिक्षित लोगों में गिने जाते हैं। परंतु यह भी एक कड़वा सच है कि गरीबी,अशिक्षा,अज्ञानता व अंधविश्वास ने बिहार के माथे पर अभी भी कई बदनुमा दाग लगा रखे हैं। मिसाल के तौर पर तमाम अच्छाईयों के बावजूद अभी भी वहां के लोग सबसे अधिक खैनी,गुटका व तंबाकू आदि का सेवन करते हैं। यह आदतें उनके स्वास्थय पर ही विपरीत प्रभाव नहीं डालतीं बल्कि ऐसी विसंगति के शिकार लोगों के द्वारा कदम-कदम पर थूक कर भरपूर गंदगी भी फैलाई जाती है। राज्य में आप किसी भी कार्यालय यहां तक कि स्टेशन या अस्पताल में जाएं,किसी भी दुकान या सडक़ पर नज़र डालें पान की लालिमा बिखरी नज़र आएगी। जगह-जगह लोग खैनी व गुटका खाकर थूकते दिखाई देते हैं।
इसके अतिरिक्त सडक़ों के किनारे शौच करने में भी राज्य के लोगों का प्रथम स्थान है। हालांकि यह समस्या हमारे देश की राष्ट्रव्यापी समस्या है परंतु बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस मामले में सबसे आगे हैं। आज यदि आप पंजाब से लेकर दिल्ल्ी तक कहीं भी सडक़ों के किनारे शौच करने वाले व्यक्ति से उसका परिचय पूछें तो वह स्वयं को या तो बिहार का निवासी बताएगा या उत्तरप्रदेश का। देश में चल रहे स्वच्छता अभियान को बिहार में लागू कराए जाने हेतु यह भी ज़रूरी है कि राज्य के लोग अपनी इन आदतों में सुधार करें। यह आदतें उनके अपने व उनके परिवार के लोगों के स्वास्थय के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। नितीश सरकार को इस विषय में अत्यंत गंभीर होने की ज़रूरत है। इसमें जहां सरकार को गांव-गांव व घर-घर में शौचालय की व्यवस्था कराए जाने हेतु सरकार की ओर से सहायता दिए जाने की आवश्यकता है वहीं इस विषय पर आम लोगों में जनजागरण कराए जाने की भी सख्त ज़रूरत है। राज्य के विकास की ओर बढ़ते कदम उपरोक्त कमियों व बुराईयों की वजह से ठीक वैसे ही नज़र आएंगे जैसे नाचते हुए मोर के पैर।
ठीक इसके विपरीत बिहार अभी मात्र एक दशक पूर्व लालूप्रसाद यादव व राबड़ी देवी के शासनकाल में ही अराजकता,भ्रष्टाचार,अपहरण,बाढ़ जैस्ी त्रासदियों का शिकार था। सडक़-बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं जनता को नसीब नहीं थीं। उसी दौर में बिहार को लेकर ही यह कहावत प्रचलित थी कि बिहार में सडक़ में गड्ढे नहीं बल्कि वहां गड्ढों में सडक़ है। परंतु नितीश कुमार के प्रथम कार्यकाल में खासतौर पर तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा बिहार से हरित क्रांति की शुरआत किए जाने के आह्वान करने के बाद बिहार ने विकास की जो राह पकड़ी और खासतौर पर नितीश कुमार ने जिस गंभीरता के साथ बिना किसी मार्किटिंग किए व ‘वाईब्रेंट’ नौटंकी किए बिना बिहार को विकास के पथ पर ले जाने का जो संकल्प लिया तथा नितीश के इस संकल्प को पूरा करने में जिस प्रकार यूपीए सरकार ने अपना पूरा योगदान दिया उसने निश्चित रूप से बिहार की काया ही पलट कर रख दी। आज बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग के अतिरिक्त शहरों व कस्बों को जोडऩे वाली सडक़ें भी देखी जा सकती हंै। बिहार के जिन इलाकों में महीने या हफ्ते में एक-दो बार चंद घंटों के लिए बिजली आया करती थी आज उन्हीं क्षेत्रों में 18 से लेकर 20-22 घंटे तक की विद्युत आपूर्ति होती देखी जा सकती है। बिहार के बाज़ारों में रौनक़ दिखाई दे रही है। राज्य में अनेकानेक नए स्कूल व कॉलेज खुल गए हैं जिससे शिक्षा का स्तर ऊंचा हो रहा है। नितीश कुमार ने राज्य में हज़ारों अपराधियें को जेल भिजवा कर कानून व्यवस्था पर भी नियंत्रण पाने में काफी सफलता हासिल की।
और निश्चित रूप से बिहार में धरातल पर किए गए ऐसे ही अनेक विकास कार्यों की वजह से ही एक बार फिर राज्य की जनता ने वास्तविक विकास के पक्ष में अपना मतदान करते हुए नितीश कुमार को ही पुन: सत्ता सौंपी है। हालांकि देश में संप्रदाय के नाम पर हो रहे राजनैतिक ध्रुवीकरण की वजह से बिहार में तीन प्रमुख राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी अर्थात् कांग्रेस,नितीश कुमार व लालू यादव इस बार एक साथ महागठबंधन बनाकर सत्ता में वापस आए हैं। परंतु कांग्रेस व लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल दोनों ने ही बिहार के हित में नितीश कुमार की साफ-सुथरी व बेदाग छवि को ही आगे रखने व उन्हीें को मुख्यमंत्री स्वीकार करने जैसा समझदारी भरा काम किया है। हालांकि लालू यादव ने अपने दोनों बेटों तेजस्वी व तेज प्रताप यादव को मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री बनवा कर परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देने का काम ज़रूर किया है। परंतु यदि लालू यादव ने ‘दूध का जला मठा फूंक-फूंक कर पीता ह’ै वाली कहावत पर अमल करते हुए अपने दोनों बेटों को बिहार के विकास हेतु जी-जान से लगने के लिए प्रेरित किया तो निश्चित रूप से राज्य की जनता लालू यादव के परिवारवाद को बढ़ावा देने की कोशिशों की अनदेखी करते हुए राज्य के विकास में किए जाने वाले उनके योगदान को भविष्य में भी सराहेगी। खबरें आ रही हैं कि लालू यादव ने इसी दूरअंदेशी के मद्देनज़र अपने शासनकाल के समय के कई तजुर्बेकार व काबिल अधिकारियों को अपने पुत्रों के मंत्रालय में तैनात कराया है। यह भी समाचार है कि लालू यादव ने अपने पुत्रों को अपनी मित्रमंडली से दूर रहने तथा गैरज़रूरी सिफारिशों पर ध्यान न देने तथा अपने मंत्रालय से संबंधित विकासपरक योजनाओं को कार्यान्वित किए जाने की सलाह दी है।
चूंकि राज्य में विकास के नाम पर मतदान हुआ है और इसी बल पर नितीश कुमार की वापसी हुई है इसलिए इस बात की संभावना है कि महागठबंधन सरकार के तीनों प्रमुख घटकों में इस बात को लेकर परस्पर प्रतिस्पर्धा हो कि किस घटक के मंत्री के अंतर्गत् आने वाले विभाग ने बिहार के विकास में पांच सालों में अपनी क्या भूमिका अदा की? और ऐसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का लाभ निश्चित रूप से बिहार की जनता को तथा राज्य के विकास को मिलेगा। नितीश कुमार ने तो सत्ता में वापस होते ही पहली गेंद पर छक्का लगाए जाने जैसा निर्णय लेते हुए राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर डाली है। पहली अप्रैल 2016 से लागू होने वाली शराबबंदी महागठबंधन के चुनाव घोषणापत्र में जनता से किए गए वादों में प्रमुख घोषणा थी। इस फैसले से निश्चित रूप से राज्य को हज़ारों करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा परंतु उसकी कीमत समाज को नशे की लत से छुटकारा दिलाने से कहीं कम है। नशेड़ी प्रवृति के लोग बिहार से लगने वाले नेपाल व अन्य सीमावर्ती राज्यों से शराब की तस्करी का धंधा भी शुरु करेंगे। शराब के विकल्प के तौर में अन्य दवाईयां भी इस्तेमाल किए जाने की संभावना है। शराब न मिलने पर घरेलू शराब बनाने व ताड़ी सेवन के व्यापार में भी इज़ाफा हो सकता है। परंतु इन सबके बावजूद पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने से आसानी से शराब उपलब्ध न होने पर लाखों लोगों को शराब पीने से निजात मिल सकती है। और लाखों लोगों के घर उजडऩे से बच सकते हैं। इस खबर से राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है। समाचार ऐसे भी आ रहे हैं कि शराबबंदी की खबर सुनने के बाद अभी से राज्य में शराब के सेवनकर्ताओं ने शराब की लत छोडऩे की आदत डालनी शुरु कर दी है।
एक और समाचार यह भी प्राप्त हुआ है कि राज्य में किसानों को मात्र तीस रुपये प्रति लीटर की दर से डीज़ल मुहैया कराया जाएगा। यह भी किसानों के लिए एक अच्छी खबर है। इससे भी किसानों को आर्थिक लाभ होगा तथा खेती-बाड़ी को लेकर उनका उत्साह और बढ़ेगा। परंतु चूंकि बिहार राज्य देश के चंद बीमारू राज्यों में पहले नंबर पर गिना जाता रहा है इसलिए ऐसे सभी कदम बिहार की विकास की राह के शुरुआती कदम ही कहे जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार के लोग देश के सबसे बुद्धिमान,जागरूक तथा शिक्षित लोगों में गिने जाते हैं। परंतु यह भी एक कड़वा सच है कि गरीबी,अशिक्षा,अज्ञानता व अंधविश्वास ने बिहार के माथे पर अभी भी कई बदनुमा दाग लगा रखे हैं। मिसाल के तौर पर तमाम अच्छाईयों के बावजूद अभी भी वहां के लोग सबसे अधिक खैनी,गुटका व तंबाकू आदि का सेवन करते हैं। यह आदतें उनके स्वास्थय पर ही विपरीत प्रभाव नहीं डालतीं बल्कि ऐसी विसंगति के शिकार लोगों के द्वारा कदम-कदम पर थूक कर भरपूर गंदगी भी फैलाई जाती है। राज्य में आप किसी भी कार्यालय यहां तक कि स्टेशन या अस्पताल में जाएं,किसी भी दुकान या सडक़ पर नज़र डालें पान की लालिमा बिखरी नज़र आएगी। जगह-जगह लोग खैनी व गुटका खाकर थूकते दिखाई देते हैं।
इसके अतिरिक्त सडक़ों के किनारे शौच करने में भी राज्य के लोगों का प्रथम स्थान है। हालांकि यह समस्या हमारे देश की राष्ट्रव्यापी समस्या है परंतु बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस मामले में सबसे आगे हैं। आज यदि आप पंजाब से लेकर दिल्ल्ी तक कहीं भी सडक़ों के किनारे शौच करने वाले व्यक्ति से उसका परिचय पूछें तो वह स्वयं को या तो बिहार का निवासी बताएगा या उत्तरप्रदेश का। देश में चल रहे स्वच्छता अभियान को बिहार में लागू कराए जाने हेतु यह भी ज़रूरी है कि राज्य के लोग अपनी इन आदतों में सुधार करें। यह आदतें उनके अपने व उनके परिवार के लोगों के स्वास्थय के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। नितीश सरकार को इस विषय में अत्यंत गंभीर होने की ज़रूरत है। इसमें जहां सरकार को गांव-गांव व घर-घर में शौचालय की व्यवस्था कराए जाने हेतु सरकार की ओर से सहायता दिए जाने की आवश्यकता है वहीं इस विषय पर आम लोगों में जनजागरण कराए जाने की भी सख्त ज़रूरत है। राज्य के विकास की ओर बढ़ते कदम उपरोक्त कमियों व बुराईयों की वजह से ठीक वैसे ही नज़र आएंगे जैसे नाचते हुए मोर के पैर।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
संपर्क : – Nirmal Rani : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana , Email : nirmalrani@gmail.com – phone : 09729229728
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