– तनवीर जाफरी –
पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी के मध्य बर्लिन में 1961 में बनाई गई विशाल दीवार को मात्र तीस वर्षों के भीतर जून 1990 में दोनों देशों की जनता ने मिलकर ढहा दिया। ज़ाहिर है जर्मनी के दोनों हिस्सों में रहने वाले लोग यह समझ चुके थे कि एक बड़े राजनैतिक षड्यंत्र के तहत जर्मनी को दो टुकड़ों में बांटा गया है। वहां की जनता ही नहीं बल्कि दोनों ओर के स्थानीय नेताओं ने भी इस अंतर्राष्ट्रीय साजि़श को बड़ी बारीकी से समझा। और आिखरकार मीडिया ने अपनी ज़बरदस्त सकारात्मक भूमिका निभाते हुए दोनों ही ओर के नेताओं के दोनों देशों के पुन: एकीकृत होने की अपील का इतना पुरज़ोर प्रसारण किया कि बर्लिन की दीवार की रक्षा करने हेतु दोनों ओर से खड़े सैनिकों के बावजूद पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी की जनता अपने-अपने हाथों में फावड़े व कुदाल लेकर आगे बढ़ी और बर्लिन की विशाल दीवार को गिरा दिया। बताया जाता है कि जिस समय दोनों देशों को एक किए जाने के लिए यह दीवार जनता द्वारा गिराई जा रही थी उस समय उस दीवार के दोनों ओर खड़े पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी के सैनिकों ने भी दीवार गिराने में जनता का साथ दिया। इस पूरे घटनाक्रम में मीडिया की अत्यंत सक्रिय भूमिका रही। गोया यदि मीडिया सकारात्मक भूमिका अदा करे तो वह बर्लिन की दीवार भी ढहा सकता है।
अब आईए इसी संदर्भ में अपने देश के मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व टीवी चैनल्स पर भी नज़र डालते हैं। गत् कुछ वर्षों से भारतीय टीवी चैनल्स को दलाल मीडिया,बिकाऊ मीडिया और गोदी मीडिया का नाम भी दिया जाने लगा है। आिखर इसकी वजह क्या है? मीडिया जैसा जि़म्मेदार संस्थान जो अब तक स्वयं को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलवाने में फूला नहीं समाता था उसके मुंह पर दलाल,चाटुकार और बिकाऊ जैसे कलंक आिखर क्यों पोत दिए गए? अधिकांश भाारतीय टीवी चैनल्स देश की भोली-भाली जनता को आिखर क्यों गुमराह करने में लगे हुए हैं?ं टी वी चैनल्स की क्या प्राथमिकताएं होनी चाहिए,दलाल व बिकाऊ मीडिया इस बात की कतई परवाह नहीं कर रहा है। अपनी वास्तविक जि़म्मेदारियों को दरकिनार करता हुआ भारतीय टीवी चैनल्स का एक बड़ा वर्ग जनता की ज़रूरतों,देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों,बेरोज़गारी,गरीबी,मंहगाई,शिक्षा तथा स्वास्थय जैसी देश की बुनियादी आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ कर अपने व्यवसायिक फायदे के अनुसार मुद्दे निर्धारित करता है तथा उन्हीं पर उसकी बहस आधारित रहती है। दलाल व चाटुकार मीडिया द्वारा सत्ता से सवाल पूछने के बजाए अपनी पूरी ताकत इसी बहस पर झोंकी जा रही है कि विपक्ष कमज़ोर है,विपक्ष एकजुट नहीं है और वर्तमान सरकार के विरुद्ध कोई चुनौती नहीं है आदि-आदि। गोया बिकाऊ मीडिया सत्ता की भाषा बोलने में ज़रा भी हिचकिचा नहीं रहा है।
टीवी चैनल्स का यह वर्ग अपनी अधिकांश बहस हिंदू-मुस्लिम,मंदिर-मस्जिद,स्वर्ण-दलित, गाय,गंगा,लव जेहाद,तलाक,आरक्षण,मॉब लिंचिंग भारत-पाकिस्तान,कश्मीर,आतंकवाद जैसे विवादित तथा ज्वलंत विषयों तक ही सीमित रखना चाहता है। इतना ही नहीं वह अपनी इस प्रकार की बहस में ऐसे नेताओं अथवा कथित विशेषज्ञों को आमंत्रित करता है जो भडक़ाऊ या बेतुकी बयानबाजि़यों में माहिर हों। जो समाज में आग लगाने या सांप्रदायिकता अथवा जातिवाद फैलाने के विशेषज्ञ हों। हद तो यह है कि गत् चार-पांच वर्षों में टी वी डिबेट का स्तर इतना गिर गया है कि दर्शकों ने बहस के दौरान गाली-गलौज,धक्का-मुक्की,मार-पीट तथा एक-दूसरे को डराने-धमकाने जैसे निम्र दृश्य ऐसे ही टीवी चैनल्स द्वारा प्रसारित होते अपने-अपने घरों में बैठकर अनेक बार देखें हैं। जहां ऐसे घटिया व गैर जि़म्मेदार टीवी चैनल्स की प्राथमिकताओं में उपरोक्त विवादित विषय प्राथमिकता के आधार पर चुने जाते हैं वहीं जनसमस्याओं से जुड़े विषय तो इन्हें दिखाई ही नहीं देते। क्योंकि यह भलीभांति जानते हैं कि इनकी टीआरपी इसी प्रकार की भडक़ाऊ व उकसाऊ बहस व शोर-शराबे से ही बढ़ती है जबकि जनसमस्याओं से जुड़े मुद्दे उठाना सत्ता की कारगुज़ारियों पर प्रश्रचिन्ह लगाना है और दलाल मीडिया समूह का मालिक सत्ता के विरुद्ध कतई नहीं जाना चाहता। सत्ता की आलोचना करना या पत्रकारिता की जि़म्मेदारी निभाते हुए निष्पक्ष भूमिका अदा न कर पाने का कारण यही है कि उसे सत्ता प्रतिष्ठानों से भरपूर विज्ञापन तो मिलता ही है साथ-साथ और दूसरे बड़े व्यवसायिक लाभ भी हासिल होते हैं। कई चतुर मीडिया समूह स्वामी तो सत्ता के गलियारों में अपनी घुसपैठ बनाकर राज्यसभा की सदस्यता भी झटक लेते हैं।
ऐसे टीवी चैनल्स के जहां सबसे दुलारे मेहमान भारतीय जनता पार्टी के संबित पात्रा हैं वहीं कुछ गैा जि़म्मेदार कथित मुस्लिम मौलानाओं के चेहरे भी गत् पांच वर्षों से टीवी पर नज़र आने लगे हैं। टीवी चैनल्स जानबूझ कर इस प्रकार के लोगों को बहस के लिए आमंत्रित करते हैं जो बहस शुरु होते ही अपना आपा खो बैठते हैं। और यदि बहस शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ रही हो तो टीवी एंकर स्वयं जलती आग में घी डालने का काम करते हुए बहस को विस्फोटक बना देता है और देखते-देखते वही गंभीर बहस हिंदू-मुस्लिम, या मंदिर-मस्जिद का रूप धारण कर लेती है। और जनता में सनसनी फैलाने वाली इस बहस की टीआरपी बढ़ जाती है। संबित पात्रा को तो भारतीय टीवी दर्शकों ने गंभीरता से लेना ही छोड़ दिया है क्योंकि वह एक नेता या भाजपा के प्रवक्ता तो कम एक नौटंकी बाज़ अधिक प्रतीत होते हैं। परंतु भारतीय जनता पार्टी उनके इसी ‘गुण व कौशल’ की वजह से उसी को किसी भी चैनल पर होने वाली टीवी डिबेट में आगे करती है क्योंकि वह अपनी कला से बहस का रुख अपनी इच्छा के अनुसार बदलने में माहिर हंै। किसी धर्मनिरपेक्ष नेता को पाकिस्तानी कह देना,कांग्रेसी नेता को मिस्टर रोम या मिस्टर इटली कहना,राहुल गांधी को गुजरात में जनेऊधारी हिंदू और यूपी बिहार में मौलाना कहना,राहुल गांधी को निकम्मा कांग्रेस अध्यक्ष बताना,किसी मुस्लिम नेता को जिन्ना या मियां कहकर संबोधित करना जैसी शब्दवली पात्रा द्वारा अपनी बहस के दौरान इस्तेमाल की जाती है। पात्रा ने एक बार राहुल गांधी को जूते मारने जैसा निम्रस्तरीय व अशोभनीय बयान तक दे डाला था जिसके बाद उसे माफी भी मांगनी पड़ी थी।
इस प्रकार की टीवी डिबेट तथा इसमें शरीक होने वाले विवादित व गैर जि़म्मेदार नेता तथा इस प्रकार के कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने वाला गैर जि़म्मेदार मीडिया यदि जर्मनी के मीडिया से सबक लेकर समाज को जोडऩे तथा विभाजन की रेखाओं को समाप्त करने का काम नहीं कर सकता और अपनी स्वार्थ सिद्धि के सिवा उसे कुछ सुझाई नहीं देता तो कम से कम स्वयंभू चौथा स्तंभ ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण करने से तो ज़रूर बाज़ आए जो भारतीय समाज में पहले से खिंची हुई धर्म-जाति,वर्ग आदि की रेखाओं को और गहरा न करें। बड़े आश्चर्य की बात है कि इन्हीं मीडिया घरानों द्वारा ऐसे टीवी प्रस्तोताओं को प्राथमिकता दी जा रही है जिन्हें दर्शक भी देखना व सुनना नहीं चाहते और जो लोग रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार जैसे आरोपों में संलिप्त रहे हैं। ठीक इसके विपरीत जो टीवी एंकर निष्पक्ष होकर एक सजग पत्रकार की भूमिका निभाते हुए अपने किसी अतिथि से कुछ चुभते हुए ऐसे सवाल पूछ बैठता है जिसके जवाब जनता जानना चाहती है तो ऐसे एंकर्स को दलाल मीडिया समूह का स्वामी बाहर का रास्ता दिखा देता है। ऐसे में बिकाऊ टीवी चैनल्स की ऐसी भडक़ाऊ बहसें देश व समाज को कहां तक ले जाएंगी कुछ कहा नहीं जा सकता।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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