आई एन वी सी,
दिल्ली,
कल हैदराबाद में दो जोरदार धमाकों से 15 लोगों ने अपनी जान गंवाई। हार्ट केयर फाउंडेषन ऑफ इंडिया और ईमेडिन्यूज ने आज दिशा-निर्देश जारी किए कि किस तरह से आम लोग और मेडिकल प्रैक्टीशनर बम धमाकों का सामना करें। दिशा-निर्देश जारी करते हुए पद्मश्री और डॉ. बी सी राय नेशनल अवार्डी व हार्ट केयर फाउंडेषन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व आईएमए के निर्वाचित उपाध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने कहा कि आधे से ज्यादा मौत के मामले पहले एक घंटे के अंदर ही होते हैं। इनकी कुल संख्या जानने के लिए पहले घंटे में मरने वालों की संख्या दो गुनी होती है। इस फॉर्मूले को अक्सर मौत के आंकड़ों को पेश करने में किया जाता है। इससे देखभाल और जरूरी सुविधाओं की मांग का पता भी लगाया जाता है। सबसे ज्यादा गंभीर घायलों को पहुंचाने के बाद कम जख्मी वाले लोगों को परिवाहन से पास के अस्पताल पहुंचाएं ताकि आपातकाल में जल्द से जल्द उनका इलाज शुरू किया जा सके। यह महत्वपूर्ण होता है कि हम जैसे डॉक्टरों को जानना चाहिए कि कैसे बम धमाकों के घायलों का सामना करें और उनके घावों को भरें। बम धमाकों में घायलों को चार श्रेणियों में बांट सकते हैंः प्राइमरी ब्लास्ट इंजरी में वे व्यक्ति आते हैं जिनके बदन पर धमाके का सीधा असर होता है। इनमें रप्चर से बचाव के लिए फेफड़ों, इयर ड्रम या आंतों में गैस भरी जाती है। सेकंडरी ब्लास्ट इंजरी में धमाके की वजह से हवा में उड़ने वाली चीजों से अंगों को जैसे कि आंखों को बचाने के तरीके अपनाने होते हैं। टेरिटरी ब्लास्ट इंजरी में वे लोग आते हैं जो इसकी गिरफ्त में आने पर फ्रैक्चर के षिकार होकर गिर जाते हैं। क्वाटरनरी ब्लास्ट इंजरी में सीधे इसकी गिरफ्त में आने पर जलने से या गहरे जख्म के षिकार होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह होता है कि धमाके में जख्मी लोगों को बिना उनकी एनर्जी को बर्बाद किये तुरंत उन्हें उपचार उपलब्ध कराया जाए चाहे वे कम गैर गंभीर रूप से जख्मी क्यों न हों। जब धमाके का जख्मी को लाएं तो सबसे पहले डॉक्टर को सिर्फ दो चीजें देखनी चाहिए, एक इयरड्रम रप्चर के साथ ओटोस्कोप और सांस लेने में दिक्कत हो तो पल्स ऑक्सीमीटर का प्रयोग करें। अगर इयरड्रम सही हो तो मरीज को प्राथमिक उपचार देकर छुट्टी दी जा सकती है। धमाके में लंग इंजरी बिना टिम्पैनिक या इयर मेंब्रेन रप्चर के असंभव है। अगर इयर ड्रम रप्चर हो तो सीने का एक्स-रे तुरंत करवाएं और ऐसे मरीज को आठ घंटे तक देखभाल में रखना चाहिए जो कि प्राइमरी ब्लास्ट इंजरी के मामले होते हैं और जरूरी हो तो बाद में भी रोका जाए। ऑक्सीजन की कमी से पल्स ऑक्सीमेट्री सिग्नल से ब्लास्ट लंग इंजरी, में लक्षण पहले नजर आने संभव है। आईएमए नई दिल्ली शाखा के अध्यक्ष डॉ. रमेश होटचंदानी ने कहा कि अपने देश में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखते हुए डॉक्टरों को खासकर इमरजेंसी डॉक्टरों को हर छह माह में ओरिएंटेशन ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ताकि वे इसके लिए तैयार रहें और बेहतर तरीके से घायलों और गंभीर घायलों का इलाज कर सकें। एचसीएफआई के बारे में: एक ऐसी राष्ट्रीय गैर लाभांवित एनजीओ जिसके दो बड़े समुदाय स्वास्थ्य शिक्षा सम्बंधी कार्यक्रमों पर भारत सरकार ने दो बार डाक टिकट जारी किए और एक कैंसिलेशन स्टांप जारी किया। इसके अलावा एक के बाद एक ‘‘हैंड्स ऑनली सीपीआर’’ की ट्रेनिंग का आयोजन 1 नवंबर 2012 से किया और अब तक 29805 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है। मरने के 10 मिनट के अन्दर, 10 मिनट तक, 10ग10 =100 पर मिनट की स्पीड से, अपनी छाती पीटने के बदले मरे हुए आदमी की छाती पीटो
कल हैदराबाद में दो जोरदार धमाकों से 15 लोगों ने अपनी जान गंवाई। हार्ट केयर फाउंडेषन ऑफ इंडिया और ईमेडिन्यूज ने आज दिशा-निर्देश जारी किए कि किस तरह से आम लोग और मेडिकल प्रैक्टीशनर बम धमाकों का सामना करें। दिशा-निर्देश जारी करते हुए पद्मश्री और डॉ. बी सी राय नेशनल अवार्डी व हार्ट केयर फाउंडेषन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व आईएमए के निर्वाचित उपाध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने कहा कि आधे से ज्यादा मौत के मामले पहले एक घंटे के अंदर ही होते हैं। इनकी कुल संख्या जानने के लिए पहले घंटे में मरने वालों की संख्या दो गुनी होती है। इस फॉर्मूले को अक्सर मौत के आंकड़ों को पेश करने में किया जाता है। इससे देखभाल और जरूरी सुविधाओं की मांग का पता भी लगाया जाता है। सबसे ज्यादा गंभीर घायलों को पहुंचाने के बाद कम जख्मी वाले लोगों को परिवाहन से पास के अस्पताल पहुंचाएं ताकि आपातकाल में जल्द से जल्द उनका इलाज शुरू किया जा सके। यह महत्वपूर्ण होता है कि हम जैसे डॉक्टरों को जानना चाहिए कि कैसे बम धमाकों के घायलों का सामना करें और उनके घावों को भरें। बम धमाकों में घायलों को चार श्रेणियों में बांट सकते हैंः प्राइमरी ब्लास्ट इंजरी में वे व्यक्ति आते हैं जिनके बदन पर धमाके का सीधा असर होता है। इनमें रप्चर से बचाव के लिए फेफड़ों, इयर ड्रम या आंतों में गैस भरी जाती है। सेकंडरी ब्लास्ट इंजरी में धमाके की वजह से हवा में उड़ने वाली चीजों से अंगों को जैसे कि आंखों को बचाने के तरीके अपनाने होते हैं। टेरिटरी ब्लास्ट इंजरी में वे लोग आते हैं जो इसकी गिरफ्त में आने पर फ्रैक्चर के षिकार होकर गिर जाते हैं। क्वाटरनरी ब्लास्ट इंजरी में सीधे इसकी गिरफ्त में आने पर जलने से या गहरे जख्म के षिकार होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह होता है कि धमाके में जख्मी लोगों को बिना उनकी एनर्जी को बर्बाद किये तुरंत उन्हें उपचार उपलब्ध कराया जाए चाहे वे कम गैर गंभीर रूप से जख्मी क्यों न हों। जब धमाके का जख्मी को लाएं तो सबसे पहले डॉक्टर को सिर्फ दो चीजें देखनी चाहिए, एक इयरड्रम रप्चर के साथ ओटोस्कोप और सांस लेने में दिक्कत हो तो पल्स ऑक्सीमीटर का प्रयोग करें। अगर इयरड्रम सही हो तो मरीज को प्राथमिक उपचार देकर छुट्टी दी जा सकती है। धमाके में लंग इंजरी बिना टिम्पैनिक या इयर मेंब्रेन रप्चर के असंभव है। अगर इयर ड्रम रप्चर हो तो सीने का एक्स-रे तुरंत करवाएं और ऐसे मरीज को आठ घंटे तक देखभाल में रखना चाहिए जो कि प्राइमरी ब्लास्ट इंजरी के मामले होते हैं और जरूरी हो तो बाद में भी रोका जाए। ऑक्सीजन की कमी से पल्स ऑक्सीमेट्री सिग्नल से ब्लास्ट लंग इंजरी, में लक्षण पहले नजर आने संभव है। आईएमए नई दिल्ली शाखा के अध्यक्ष डॉ. रमेश होटचंदानी ने कहा कि अपने देश में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखते हुए डॉक्टरों को खासकर इमरजेंसी डॉक्टरों को हर छह माह में ओरिएंटेशन ट्रेनिंग दी जानी चाहिए ताकि वे इसके लिए तैयार रहें और बेहतर तरीके से घायलों और गंभीर घायलों का इलाज कर सकें। एचसीएफआई के बारे में: एक ऐसी राष्ट्रीय गैर लाभांवित एनजीओ जिसके दो बड़े समुदाय स्वास्थ्य शिक्षा सम्बंधी कार्यक्रमों पर भारत सरकार ने दो बार डाक टिकट जारी किए और एक कैंसिलेशन स्टांप जारी किया। इसके अलावा एक के बाद एक ‘‘हैंड्स ऑनली सीपीआर’’ की ट्रेनिंग का आयोजन 1 नवंबर 2012 से किया और अब तक 29805 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है। मरने के 10 मिनट के अन्दर, 10 मिनट तक, 10ग10 =100 पर मिनट की स्पीड से, अपनी छाती पीटने के बदले मरे हुए आदमी की छाती पीटो