पापांकुशा एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु की पूजा : इस दिन हुआ था राम-भरत मिलाप

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी पर मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 9 अक्टूबर, बुधवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल प्राप्त करते हैं, वही फल इस एकादशी पर शेषनाग पर शयन करने वाले श्रीविष्णु को नमस्कार करने से ही मिल जाते हैं और मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पड़ते हैं। यह एकादशी उपवासक (व्रत करने वाले) के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक लेकर जाती है।

इस व्रत की विधि इस प्रकार है
– इस व्रत का पालन दशमी तिथि (8 अक्टूबर, मंगलवार) के दिन से ही करना चाहिए। दशमी तिथि पर सात धान्य अर्थात गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्यों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है।

– जहां तक संभव हो दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना चाहिए। दशमी तिथि को भोजन में तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

– एकादशी तिथि पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लेना चाहिए यानी एक समय फलाहार का या फिर बिना भोजन का।

– संकल्प लेने के बाद घट स्थापना की जाती है और उसके ऊपर श्रीविष्णुजी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को रात्रि में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।

– इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि (10 अक्टूबर, गुरुवार) की सुबह ब्राह्मणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद होता है।

ये है पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा
– प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन पाप कर्मों में बीता।

– जब उसका अंत समय आया तो वह मृत्यु के भय से कांपता हुआ महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचकर याचना करने लगा- हे ऋषिवर, मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं।

– कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करके को कहा।

– महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया।

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हिंदू धर्म में माह की एकादशी तिथि को बहुत ही पवित्र माना गया है। आश्विन माह में नवरात्र और दशहरा पर्व के बाद एकादशी तिथि पड़ती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 9 अक्टूबर बुधवार को है। पापांकुशा एकादशी व्रत को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्रदान कर सुख देनेवाला माना गया है। विजयदशमी के बाद राम और भरत का मिलन भी इसी एकादशी को हुआ था।

ऐसे पड़ा नाम

पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापाकुंशा एकादशी हुआ। इस दिन मौन रहकर भगवद् स्मरण तथा भजन-कीर्तन करने का विधान है। इस प्रकार भगवान की आराधना करने से मन शुद्ध होता है और मनुष्य में सदगुणों का समावेश होता है। इस व्रत के प्रभाव से अनेकों अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है। इसलिए पापाकुंशा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है।

पापांकुशा एकादशी का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैसा फल कठिन तपस्या करके प्राप्त किया जा सकता है, वैसा ही फल पापांकुशा एकादशी का व्रत करके प्राप्त किया जा सकता है। पापांकुशा एकादशी से जुड़ी धार्मिक मान्यतानुसार, जो भी व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से इस एकादशी का व्रत करता है, उसे साक्षात बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। पापंकुशा एकादशी का व्रत करने से चंद्रमा के खराब प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

मोक्ष की होती प्राप्ति
एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी प्रारम्भ: 8 अक्टूबर 2019 को दोपहर 2 बजकर 50 मिनट से
पापांकुशा एकादशी समाप्त: 9 अक्टूबर 2019 को शाम 05 बजकर 18 मिनट तक।

पापांकुशा एकादशी पारण मुहूर्त : 10 अक्टूबर 2019 को सुबह 06 बजकर 18 मिनट से सुबह 08 बजकर 38 मिनट तक तक।
पापांकुशा एकादशी व्रत पूजन विधि

–  इस व्रत के नियमों का पालन एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए। दशमी पर सात तरह के अनाज, इनमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों अनाजों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है।

– एकादशी तिथि पर प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।संकल्प लेने के पश्चात कलश स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करनी चाहिए।

– इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति पर गंगाजल छिड़कते हुए भगवान की तस्वीर या मूर्ति पर रोली और अक्षत से तिलक करें और सफेद फूल चढ़ाएं।

– इसके बाद घी का दीपक जलाकर आरती उतारें। इसके बाद उनका भोग लगाएं। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान व दक्षिणा देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है।

– व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत खोलना चाहिए।

पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी जिंदगी, हिंसा,लूट-पाट, मद्यपान और झूठ बोलकर गुजारी। जब उसके जीवन के अंतिम समय में यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। मृत्यु भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने दया दिखाकर उससे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इस प्रकार पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हो गई। PLC.

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