स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम इतिहास में कुछ गिने चुने व्यक्तिओ और उनसे जुड़े परिवारों का ही नाम हमें बताया जाता रहा है ।उन परिवारों के त्याग और बलिदान की गाथा ऐसी सुनाई और पढ़ाई जाती रही है मानो भारत का सृजक ही यही परिवार रहा हो।देश की बलिवेदी पर जीवन आहुति देने वाले अधिकाँश हुतात्माओ का नामो निशान मिटाने का अथक प्रयास इन परिवार के वारिशो और उनके चाटुकारों ने किया है किन्तु अपने प्रपच भरे प्रलापो से भारत की महान जनता को धोखा ये परिवार और उनके चाटुकार हमेशा देता आया और भारत की महान जनता पृथ्वीराज चौहान की तरह हमेशा माफ़ी दिया है और उस माफ़ी का खामियाजा हमारी पीढियां भुगत रही है।
देश की सम्पति को अपनी सम्पति में बदलने के लिए कुख्यात इस परिवार की थोपी नीतिया लोकतंत्र पर लगा गहरा घाव है जिससे निजात पाना अत्यंत कठिन है।आजादी के बाद से इस परिवार के शाशको ने लोकतंत्र के नाम पर जिस निष्ठा को आम नागरिको में लाने का प्रयास किया वह इस परिवार के प्रति निष्ठा थी ना की के राष्ट्र के प्रति लोगों में निष्ठा का प्रादुर्भाव हुआ हो।जिसका कारण है की आजादी के बाद सौ ने अस्सी फीसदी से भी अधिक सरकारी उधौग धंधे या कल कारखाने घाटे में चलते हुए दम तोड़कर आज हमारे युवाओं को वेरोजगारी के गर्त में धकेल रखा है।सरकारी स्कुलो और अस्पतालों की विश्वसनीयता कैसी है किसी से छुपी नही ?
आजादी के बाद इस परिवार की नीतिया थी भारत की सत्ता पर काविज रहने के लिए भारत के समाज को ज़ाति,मत,पंथ,भाषा ।।।।।आदि विषमताओ में बाँट कर खैरात की रोटी खिलाने की आदत डालना ।और इस परिवार के नीतिकारों ने काफी हद तक इस घृणित सोच में सफल भी हुआ? आज हमारा स्वाभिमान सरकारी खैरात का गुलाम है।लोकमंगल की उदात भावना के जगह हमने स्वमंगल को अपना लिया है।झूठ की तिलिस्म के सहारे एक ऐसा इंद्रजाल यह परिवार और इसके चाटुकारों ने बना रखा है इसका उदाहरण नेशनल हेराल्ड के मामले में देखने को मिला।
न्यायलय के आदेश पर नेशनल हेराल्ड के मामले में जिस तरह से यह परिवार यानी नेहरु-गांधी परिवार और उसके चाटुकरों ने संसद और संसद के बाहर तमाशा किया उससे तो ऐसा लगा मानो इस देश का हर व्यवस्था उसका गुलाम और इस देश की सम्पति उसके जागीर हों?अगर घटना की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो १९३८ में नेहरु ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) का गठन लखनऊ में किया था।यह कम्पनी अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज नामक अखवार का प्रकाशन करती है।इस कम्पनी के प्रारंभ में १०३७ शेयर धारक थे और उस समय खुद नेहरु भी १०० रूपये के शेयर धारक थे।इस कम्पनी के पास दिल्ली,हरियाणा,लखनऊ,पटना,मुंबई,इंदौर जो वेशकीमती अचल सम्पति है उसका आज बाज़ार मूल्य लगभग दो हजार करोड़ से भी अधिक की है।
वर्ष २००८ में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया।इस कंपनी पर महज नब्बे करोड़ का कर्ज था जबकि इस कम्पनी के पास उस समय भी अपने अचल सम्पति के रूप में हजारों करोड़ रूपये थे ?२०१० में इस शातिर परिवार ने यंग इंडियन नाम की एक कम्पनी बनाई जिसकी उस समय पूंजी महज पांच लाख रूपये थी। जिसके ३८ फीसदी शेयर सोनिया गांधी और ३८ फीसदी शेयर राहुल गांधी यानी कुल शेयर का ७६ फीसदी इस परिवार के पास और शेष के शेयर धारक मोतीलाल वोरा,आस्कर फर्नाडिज और सैम पित्रोदा के पास वेचे गये ।वर्ष २०१० में ही यंग इंडिया ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL)के सभी कर्ज अपने ऊपर ले लिया बदले में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की ९९ फीसदी शेयर यंग इंडिया को मिल गया।यानी अरवों का माल लाखों में इस शातिर परिवार ने हडप आर्थिक अपराध किया है।भला हो सुब्रमणियम स्वामी का जिन्होंने इस आर्थिक अपराध की पोल खोल इस परिवार को कठघरे में खड़ा करवाया।
इस पुरे घटना क्रम को जिस तरह से यह फिरकापरस्त कांग्रेस ने उठाया वह देश के लिए चिंतनीय है।संसद और संसद के बाहर जिस तरह का तमाशा इस आर्थिक अपराध को लेकर किया गया वह संसद पर बदनुमा दाग है इस परिवार के इस नाटक में देश के अन्य राजनितिक दल जिनके चाटुकार भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की रोटियां तोड़ रहे उनलोगों का भी साथ मिला जो चोरे चोर मौसेरे भाई के कहावत को चरितार्थ करती है ?इस मामले पर फिरकापरस्त कांग्रेस और उसके साथ भर्ष्टाचार में डूबे दलों ने आरोप लगया की यह केन्द्र सरकार द्वरा विपक्ष को दवाने का प्रयास है? और संसद के दोनों सदनों में खूब हंगामा किया।इतना ही नही देश के प्रधान मंत्री पर भी बदले की भावना से कार्य करने का आरोप लगया? वेशर्मी की हद इन दलों में इस मुद्दे पर देखने को मिली?
राज्य सभा में गुलाम नवी आजाद ने कहा-मोदी सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख राजन कटोच को इसलिए हटा दिया था की उन्होंने इस केस की फ़ाइल बंद कर दी थी और इसके बाद बने प्रमुख ने फिर इस केस की फ़ाइल खोल दी।कितनी हास्यस्पद बात इन्होने संसद के उच्च सदन में कही।गुलाम नवी आजाद को ये मालुम है की राजन कटोच का प्रवर्तन निदेशालय के अतरिक्त भी दुसरे पद के प्रभार में थे ऐसे में उनका तीसरा कार्यकाल का विस्तार भारी उद्योग विभाग के सचिव पद पर हुआ था तो उन्हें हर हाल में एक पद छोड़ना ही था फिर इसे आप कैसे पद से हटाये जाने की घटना से जोड़ते है।ये घटना अगस्त १५ की है ऐसे में संसद में झूठ बोलकर संसद को गुलाम नवी आजाद ने गुमराह किया है।
फिरकापरस्त कांग्रेसियो के युवराज राहुल गांधी ने आरोप लगाते हुए कहा की – यह प्रधानमन्त्री कार्यालय के इशारे पर हुआ है।तो इसे इतनी तो मालुम ही होगी की जब इस आर्थिक अपराध के केस दर्ज हुए थे तो केंद्र में सोनिया नियंत्रित सरकार थी।०१ नवम्बर २०१२ को सुब्रमन्यम स्वामी ने नेशनल हेराल्ड को यंग इंडियन कंपनी को हस्तांतरित करने की शिकायत दर्ज करवाई।तब केंद्र में इसी फिरकापरस्त कांग्रेस की सरकार और प्रधानमन्त्री इसी कांग्रेसी के इशारे पर नाचती थी।फिर केंद्र सरकार या मोदी जी कैसे जिम्मेबार हुए?दूसरी बात इस मामले में भाजपा को लपेटना यह भी निंदनीय है क्योंकि जब सुब्रह्मण्यम स्वामी सोनिया और राहुल सहित कांग्रेसियो के पापो का उजागर कर रहे थे तब वो भाजपा के सदस्य भी नही थे? आखिर इतने झूठ के सहारे अपने पापो पर पर्दा डालने की जो कुत्सित प्रयास इन फिरकापरस्तों की ज़मात कर रही इससे क्या देश का भला होगा?
भारतीय कानून के छिद्रों का सहारा लेकर फिरकापरस्तों की ज़मात को बचाने का अथक प्रयास के बाद भी 19 दिसम्बर 2015 को आर्थिक अपराध में संलिप्त दोनों माँ-बेटे कठघरे में खड़े हुए यह भारतीय न्याय की जीत है? एक आर्थिक अपराध में संलिप्त सोनिया और राहुल गांधी को जिस तरह से महिमामंडित करने का प्रयास किया गया वह देश की न्याय तंत्र के लिए घातक है।न्याय के प्रति सम्मान की भावना यदि इस परिवार में होती तो कठघरे में खड़े होने से बचने के लिए इतनी तिकडम नही रचाई गयी होती।और थक हारकर कोर्ट में पेश होकर जिस न्याय के सम्मान की बात कर रही वह झूठ की भी पराकाष्ठा है।
एक आर्थिक अपराध में संलिप्त राहुल ने जिस तरह से देश के प्रधानमन्त्री पर आरोप लगाने का कुत्सित प्रयास किया वह निंदनीय और चिंतनीय है।ऐसे झूठ के सहारे देश की छवि धूमिल करने बाले देश की विकास में सदा वाधक रहे हैं।आज देश को ऐसे भ्रष्ट नेताओं की नही बल्कि भविष्यद्रष्टा एक सृजक की चाहत रखती है।राहुल जैसे प्रपंचकारी तत्वों की सोच से देश की एकता अखंडता और संप्रभुता पर खतरा है ऐसे तत्वों से हमें हर हाल में समाज को बचानी होगी ?न्याय की प्राक्रतिक अवधारणा में और समाज में ऐसे झूठे प्रपंचकारी तत्व अत्यंत घातक होते है। समय की मांग है की न्याय को तथ्यों के सहारे निर्णय करने दे और देश और कानून से ऊपर समझने बाले अपने आपको सामान्य नागरिक मानकर जीवन जीने की कला को सीखे तभी लोकतंत्र की सार्थकता होगी।
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संजय कुमार आजाद
स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं
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