भगवान बिरसा मुण्डा का आंदोलन एवं बलिदान भारतीय स्वाधीनता संग्राम का एक स्वर्णिम एवं महत्वपूर्ण अध्याय है। वे एक प्रखर पुंज की तरह है जिसने सम्पूर्ण झारखण्ड क्षेत्र के लोगों को देकर के स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य धारा की ओर प्रवाहित करने तथा उसमें समर्पित एवं उत्सर्ग होने के लिए एक सही दिषा दी।
अपनी लोकप्रियता का सदुपयोग उन्होंने जंगलों में रहनेवाले आदिम जातियों के उत्थान के लिए किया तथा उन सम्पूर्ण आदिम जन-जातियों को एक सामाजिक एंव राजनैतिक सूत्र में लाने का भरपूर प्रयास किया । इन आदिम जातियों को राजनैतिक एवं सामाजिक रूप से सबल बनाने के लिए एक नयी जीवन ष्षैली एवं षिक्षा की ष्षुरूआत उन्होंने चलकद नामक स्थान से की। इससे हजारों लोग उनके दल में ष्षामिल हो गये और इन्हें लोग धरती आबा के नाम से जानने लगे।
बिरसा मुण्डा के 1895 के आंदोलन कीे सामाजिक क्रांति से समस्त छोटानागपुर क्षेत्र में राजनैतिक चरित्र का प्रादुर्भाव हुआ। बिरसा के संदेष का स्वर बदला और ष्षीघ्र ही जमींदार एवं ब्रिटिष अधिकारीगण उनकी कठोर आलोचना के केन्द्र बन गये। आंदोलनात्मक कार्रवाई को देखते हुए बिरसा मुण्डा को ब्रिटिष सरकार ने 23 अगस्त, 1895 को चलकद मे गिरफ्तार कर लिया। 30 नवम्बर, 1897 को बिरसा मुण्डा के कारावास से मुक्त होने के पषचात् आंदोलनकारियों ने चलकद, बोराडीह एवं डोम्वारी आदि स्थानों में गुप्त बैठकें की जिनमें सषास्त्र आंदोलन की योजना बनी और 24 दिसम्बर, 1899 को सषó आंदोलन की षुरूआत कर दी गई।
विद्रोह अपने चरमोत्कर्ष पर 9 जनवरी, 1900 के दिन डोम्बारी के निकट सैल रकब नामक स्थान पर पहुँच गया जहाँ पर हजारों लोगों ने अपने से बहुसंख्य दुषमनों से तीर- धनुष, कुठारी, भाला, पत्थरों एवं लाठियों के सहारे ब्रिटिषों की बंदूकों के विरूद्ध अपनी वीरता का परिचय देते हुए संघर्ष किया। इस आंदोलन से आतंकित होकर ब्रिटिष सरकार ने 3 फरवरी, 1900 के दिन बिरसा मुण्डा को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें, राँची कारागार में कैद कर लिया गया। जेल में उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा और सुनवायी के दौरान ही 9 जून, 1900 को उनका जेल में ही निधन हो गया।