दोहे
दिखे नहीं वो चाव अब, …..रहा नहीं उत्साह !
तकते थे मिलकर सभी, जब फागुन की राह !!
होली है नजदीक ही, बीत रहा है फाग !
आया नहीं विदेश से ,मेरा मगर सुहाग !!
पिया मिलन की आस मे, रात बीतती जाग !
बैठ रहा मुंडेर पर,……… ले संदेसा काग !!
छूटे ना अब रंग यह, छिले समूचे गाल !
महबूबा के हाथ का,ऐसा लगा गुलाल !!
सूखी होली खेलिए, मलिए सिर्फ गुलाल !
आगे वाला सामने , कर देगा खुद गाल !!
पिचकारी करने लगी,… सतरंगी बौछार !
मीत मुबारक हो तुम्हे, होली का त्यौहार !!
देता है सन्देश यह ,…. होली का त्यौहार !
रंजिश मन से दूर कर,करें सभी से प्यार !!
करें प्रतिज्ञा एक हम,होली पर इस बार !
बूँद नीर की एक भी, करें नहीं बेकार !!
छोड पुरानी रंजिशें ,….काहे करे मलाल !
इक दूजे के गाल पर,.आओ मलें गुलाल !!
सच्चाई के सामने ,……..गई बुराई हार !
यही सिखाता है हमें, होली का त्यौहार !!
सूना-सूना है बडा, …..होली का त्योहार !
ओठों पे मुस्कान ले, आ भी जाओ यार !!
दिखी नहीं त्यौहार में, शक्लें कुछ इस बार !
थी जिनकी मुस्कान ही, पिचकारी की धार !!
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रमेश शर्मा
लेखक व् कवि
बचपन राजस्थान के जिला अलवर के एक छोटे से गाँव में गुजरा , प्रारंभिक पढाई आठवीं तक वहीं हुई, बाद की पढाई मुंबई में हुई, १९८४ से मुंबई में एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी की शुरुआत की , बाद में नौकरी के साथ साथ टैक्स कन्सल्टन्ट का भी काम शुरू किया जो कि आज तक बरकरार है , बचपन से ही कविता सुनने का शौक था काका हाथरसी जी को बहुत चाव से सुनता था , आज भी उनकी कई कविता मुझे मुह ज़ुबानी याद है बाद में मुंबई आने के बाद यह शौक शायरी गजल की तरफ मुड गया , इनकम टैक्स का काम करता था तो मेरी मुलाकात जगजीत सिंह जी के शागिर्द घनशाम वासवानी जी से हुई उनका काम मैं आज भी देखता हूँ उनके साथ साथ कई बार जगजीत सिंह जी से मुलाकात हुई ,जगजीत जी के कई साजिंदों का काम आज भी देखता हूँ , वहीं से लिखने का शौक जगा जो धीरे धीरे दोहों की तरफ मुड़ गया दोहे में आप दो पंक्तियों में अपने जज्बात जाहिर कर सकते हैं और इसकी शुरुआत फेसबुक से हुई फेसबुक पर साहित्य जगत की कई बड़ी हस्तियों से मुलाकात हुई उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला
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