दोहे
मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज !
उत्तरायणी पर्व का,……..हो जाता आगाज !!
कनकअौं की आपने,ऐसी भरी उड़ान !
आसमान मे हो गये ,.पंछी लहू लुहान !!
घर्र-घर्र फिरकी फिरी, ..उड़ने लगी पतंग !
कनकअौं की छिड़ गई,.आसमान मे जंग !!
अनुशासित हो कर लडें,लडनी हो जो जंग !
कहे डोर से आज फिर , उडती हुई पतंग !!
भारत देश विशाल है, अलग-अलग हैं प्रांत !
तभी मनें पोंगल कहीं, कहीं मकर संक्रांत !!
उनका मेरा साथ है,…जैसे डोर पतंग !
जीवन के आकाश मे,उडें हमेशा संग !!
मना लिया कल ही कहीं,कही मनायें आज !
त्योंहारो के हो गये,.अब तो अलग मिजाज !!
त्योहारों में घुस गई, यहांँ कदाचित भ्राँति !
मनें एक ही रोज अब,नही मकर संक्राँति !!
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रमेश शर्मा
लेखक व् कवि
बचपन राजस्थान के जिला अलवर के एक छोटे से गाँव में गुजरा , प्रारंभिक पढाई आठवीं तक वहीं हुई, बाद की पढाई मुंबई में हुई, १९८४ से मुंबई में एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी की शुरुआत की , बाद में नौकरी के साथ साथ टैक्स कन्सल्टन्ट का भी काम शुरू किया जो कि आज तक बरकरार है , बचपन से ही कविता सुनने का शौक था काका हाथरसी जी को बहुत चाव से सुनता था , आज भी उनकी कई कविता मुझे मुह ज़ुबानी याद है बाद में मुंबई आने के बाद यह शौक शायरी गजल की तरफ मुड गया , इनकम टैक्स का काम करता था तो मेरी मुलाकात जगजीत सिंह जी के शागिर्द घनशाम वासवानी जी से हुई उनका काम मैं आज भी देखता हूँ उनके साथ साथ कई बार जगजीत सिंह जी से मुलाकात हुई ,जगजीत जी के कई साजिंदों का काम आज भी देखता हूँ , वहीं से लिखने का शौक जगा जो धीरे धीरे दोहों की तरफ मुड़ गया दोहे में आप दो पंक्तियों में अपने जज्बात जाहिर कर सकते हैं और इसकी शुरुआत फेसबुक से हुई फेसबुक पर साहित्य जगत की कई बड़ी हस्तियों से मुलाकात हुई उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला
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