आखिर अनेक झंझावतो को झेलते हुये गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री को भारतीय जनता पार्टी ने आगामी 2014 लोकसभा चुनाव में अपना प्रधानमंत्री पद के लिये नामित कर दिया। हांलाकि लोकतांत्रिक पद्धति में कोई भी राजनीतिक दल किसे अपना नेता बनाता है यह उसका नीतिगत मामला होता है ।13 सितम्बर 2014 को भारतीय राजनीति में जब श्री नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रिय राजनीति में आए तो देष में अलग बातावरण का संचार हुआ।जहां दहषतगर्दों की जमातों ने स्यापा करना षुरू कर दिया वहीं देषभक्तों ने होली दिवाली मनाना प्रारंभ कर दिया । वंषवादियों और लाल आतंकियों ने लोकतंत्र खतरे में है का ढ़ोल पीटना षुरू किया। वहीं भारतीय चिन्तको और चिन्तन को अफीम मानने बाले आतातायियों का गिरोह देष के स्वनामधन्य संस्थाओं के द्वारा अपने जरखरीद गुलाम मीडिया के सहारे जहां समाचार पत्रों में अर्नगल आलेखेंा की रफतार बढा दी बहीं टी.वी के परिचर्चाओं में श्री नरेन्द्र मोदी पर मनगढ़न्त आरोपों की बौछार लगा दी। लगा इस देष के स्वनामधन्य तथाकथित बुद्धिजीवि ठेकेदारों के गिरोह में श्री मोदी के सिवा कुछ दिखता ही नही है।खैर भारतीय चिन्तक और चिन्तन को अफीम मानने बाला यह गिरोह तथा लोकतंत्र को अपहरण करने वाली वन्षवादी और देष में दहषतगर्दों की जमात वाले तथाकथित दलों के लोगों ने अपना परलोक सुधारने हेतु श्री मादी के बहाने ‘‘ नमो ’’ का जाप करना प्रारंभ कर दिया।पुरे देष में चाहे किसी बहाने हो ‘‘नमो’’ लहर फैला। अबतक विरोधियों के तरकष से निकलने बाला हर तीर का बार खुद प्रहार करनेबालो को हीं झेलना पड़ रहा है।ऐसे में अनाप -सनाप आरोपों को दौर मीडिया के लिये मसाला और भारतीय राजनीति का टुच्चेपन का सूचक है।
कुछ तथाकथित लोगों ने मांग किया कि ‘‘अगर श्री नरेन्द्र मोदी 2002 गुजरात दंगों के लिये माफी मांग ले तो देष का मुसलमान श्री मोदी के बारे में नरम रूख अख्तियार कर सकता है।’’ कितनी हास्यास्पद सोच है इस देष के ऐसे जमातों की । गुजरात में गुजराती जनता के द्वारा तीन-तीन विधान सभा चुनावों में श्री मोदी चुने गये । ये दिल्ली दरवार के द्वारा राजमाता की ओर से नहीे थेापे गये और ना हीं ये किसी रसुखदार वंषावली की छत्रछाया में पल बढ़कर इस मुकाम तक पहुंचे बल्कि अपनी मेहनतकष और आम जनता के प्रति समर्पित जीवनषैली ने श्री मोदी को आज इस मुकाम तक लाया है। जब इन्होने विकास की यात्रा प्रदेष में प्रारंभ किया तो इन्होनें अपने पूर्ववर्ती विरोधी सरकार की तरह उसे वोटों की तराजू में नहीं तौला और ना हीं मत और सम्प्रदाय की चस्मों में देखा। उन्हानें सिर्फ गुजारातियेंा के विकास का स्वप्न देखा। उन्होने भारत को सषक्त बनाने का ही स्वप्न देखा ।उस स्वप्न को साकार करने का बीडा़ उन्होनंे उठाया किन्तु वोटो के सौदागरों के आगे विकास कोई मायने नहीं रखता जिसने देष को 66 सालों तक दीमक की तरह खाया हो उसके लिये तो विकास जैसा कोई भी स्वप्न मे सिर्फ साम्प्रदायिकता ही दिखता है । कारण साफ है खुद नेहरू ने इस देष के करोड़ों लोगो के लाषों की ढ़ेर पर चढ़कर इस देष का प्रधानमंत्री बना वैसे में उसके कुनवों से विकास की बात करना रेत से तेल निकालने जैसा कार्य है। अब समय बदल रहा है इस देष की आधी आवादी जो युवा है वह वोट वैंक में नही विकास में विस्वास करता है उसे पारदर्षी प्रषासन और दूरदृृस्टि की सेाच बाला नेता चाहिये ना कि पप्पूछाप नेता?
अभी हाल में उतर प्रदेष के मुज्ज्फरनगर में दंगे की जो आग फैली उसका ठीकरा श्री नरेन्द्र मोदी पर फोड़ने से भी परहेज इन सेकुलर वेषर्मो ने नही किया। एक विचारक है श्री कुलदीप नैयर।भारत के प्रति इनका वही सोच है जो पाकिस्तान का भारत के प्रति है। मुज्जफरनगर के अमानवीय घटना पर ये लिखते है।- मुज्जफरनगर के गांवों से आए मुसलमान और जाट षरणार्थियों का कहना है कि बाहर के लोगों ने उनपर हमले किये। मुझे याद आया कि देष के बंटबारे के बाद हमें भी बाहर के लोगों ने घर छोड़ने को मजबुर किया।सियालकोट छोड़ने के पहले हमारे मुसलमान मित्रों ने पूरे महीने षरण दी और राषन भी दिया।’’ काष तथाकथित बुद्धिजीवियों का यह सिरमौर यह भी लिखते कि मैं तेा कायर की तरह भागकर अपने आपको बचा लिया और जो मेरे रिष्तेदार वहां बचे इस्लाम के आगोष में समा गये।भारत के छद्म सेकुलरवादियों के गिरोह का यह पैरोकार का स्यापा देष के लिये घातक है। विष्व के सवसे बड़े स्वयंसेवी संगठन रास्ट्ृीय स्वयंसेवक संघ यानि आर.एस.एस. के प्रति इनका नजरिया वही है जो देषद्रोहीयो का है। मुज्जफरनगर की घटना एक दिन में घटित नही हुई । इसके पीछे सांप्रदायिक सोच के बजाय मान और सम्मान से जुड़ी है। अखिलेष सरकार की मुस्लिमपरस्त घृणित विचार का यह ज्वलन्त उदाहरण है। आखिर समाजवाद और साम्यवाद के पैरोकारो की मिलीभगत में मुज्जफरनगर दंगों की आग में झुलसा। इन दंगो को श्री मोदी से जोड़ना कितनी बचकाना और जिहादी सोच है। जब प्रषासन के सामने अपराधी अपराध का नंगा नाच समाज के सामने खेले और खददरधारी उस अपराधी को बचाये तब मुज्जफरनगर जैसा घटना होगा हीं। वैसे भी इतिहास साक्षी है जहां मुस्लिमों की आक्रामक छवि ही दंगा का कारण बनता है।मुज्जफरनगर की घटना हो या बिहार के नवादा जिले में जहां मुरगे की मांस ,खाने के बाद पैसा मांगने पर भड़का दंगा हो। आखिर क्यों नही मुसलमान दूसरों की इज्जत और मान-सम्मान के बारे में सोचते है। इतना ही नही कभी तो किसी मुस्लिम आबादी बाले क्षेत्र में चल रहे गैरकानूनी काम को रोकने व उस क्षेत्र में रह रहे अपराधियों को पकड़ने की हिम्मत भी इस देष की पुलिस नही कर पाती । उस क्षेत्र के थानों पर इनके द्वारा हमला आम बात है। ऐसे फिरकापरस्त जमातों को श्री कुलदीप नैयरों जैसे लोगो का बरदहस्त होता है जो ना मुसलमानों के हक के लिये ना इस देष के प्रगति के लिये अच्छी है। क्या गुजरात में मुसलमान नही है? क्या वहां के मुसलमानों ने सामुहिक विकास नही किया? चूंकि अब गुजरात के मुसलमान किसी जाकारिया के झण्डे लेकर नही बल्कि अपने परिवार के विकास के झण्डे ढ़ो रहे है तो इन देषद्रोही तत्वों को नागबार गुजर रहा है।गुजरात दंगों के लिये रात दिन पानी पी पी कर कोसने वाले कुलदीप नैयर मुज्जफरनगर दंगे पर कहते है कि ‘‘ मुलायम सिंह को समझ में नही आया कि वो क्या करे।’’ षर्म आती है ऐसे देषद्रोही तथाकथित विचारको से, घृणा होती है उनके समाजद्रोही सोच से।
भारत हिन्दू भूमि है, यह हिन्दू देष है यह आर.एस.एस. के कहने या श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री पद के लिये नामित होने और कुलदीप नैयरों जैसे भारत विरोधियों के ना कहने से नही है। यह सत्य सनातन हिन्दू देष है और रहेगा इसमें लेषमात्र भी संषय नही है।जबतक भारत हिन्दूदेष के रूप में विó पटल पर है तभी तक नैयरों जैसे लोगों की आबाज भी है वर्ना उन उन क्षेत्रो की ओर नजर दौड़ाईये जो कल तक जब भारत का अंग था तब की स्थिति और आज की स्थिति क्या और कैसी है।जिन्हे भारत को हिन्दू देष के रूप मे मानने से परहेज है उन्हे स्वयं इस पवित्रभूमि का परित्याग उसी तरह कर देना चाहिये जिस तरह मुहम्मद अली जिन्ना और उसके कारकूनो ने यहां से हिजरी किया था। स्मरण रहे कि हिन्दूत्व सदैव सह अस्तित्व की कल्पना को साकार करता है। विóवंधुत्व का पर्याय रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहने वाला व्यक्ति कभी भी ‘सभ्यताओं के संघर्स’ के सिद्धान्त में विóास नही रखता । हिन्दूत्व में तो इस संघर्स का कोई स्थान नही है। इस हिन्दूत्व को मानने वाले चाहे महाराज वीर षिवाजी हो या महाराण प्रताप, वीर सावरकर हो या पंडित दीनदयाल जी, श्री नरेन्द्र मोदी हो या आर. एस. एस. कभी भी संर्घसों के सिद्धान्त को आत्मसात नही कर सकते है। बाबरी या अफजली चरित्रों को अपना सत्य मानने वालों के लिये हीं इस देष का मूल चिन्तन और चिन्तक अफीम या साम्प्रदायिक नजर आता है। हाल में पाकिस्तान के चर्च में हुये वर्वर हमला हो या केन्या के नैरोवी के मॉल में हुये अमानवीय कुकृत्य सभ्यताओं के संघर्स के सिद्धान्त का विभत्स परिचायक है।
भारत जैसे देष में श्री नरेन्द्र मोदी का अभ्युदय भारत के लिये साकारात्मक कदम है। एक लुटता देष , एक पीटता देष, एक घिसटता देष, एक सिसकता देष, एक सिमटता देष जैसे उपनामो से अलंकृत भारत के लिये श्री मोदी आषाओं का वह सुनहरी किरण है जो इन उपनामों से भारत को मुक्त कराने का हिम्मत रखता है। नयी पौध के लिये प्रेरणा का स़्त्रोत श्री नरेन्द्र मोदी में देष के लिये कुछ करने का अदम्य साहस एवं दृढ़ निष्चय है । उनके इसी साकारात्मक सोच से देष में ही नही विदेषों में भी भारत विरोधियों का दम निकल रहा फलतः अनाप सनाप आरोप उनपर लगाये जा रहें है।
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*संजय कुमार आजाद
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** लेखक- संजय कुमार आजाद, प्रदेश प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र झारखंड एवं बिरसा हुंकार हिन्दी पाक्षिक के संपादक हैं।
**लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।