– निर्मल रानी –
‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ जैसी कहावत न केवल हमारे देश की प्राचीन कहावतों में शामिल हैं बल्कि हमारा समाज बहुतायत में इस कहावत को चरितार्थ करता हुआ भी प्राय: दिखाई देता है। उदाहरण के तौर पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की बातें करते तो सभी सुनाई देते हैं परंतु भारतीय पुरुष प्रधान समाज तथा उसका प्रतिनिधित्व करने वाले पुरुष राजनेता आज तक संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिला सके। भारतीय नारी को देवी तथा पूज्या का दर्जा देने जैसी खोखली बातें करने वाला पुरुष समाज आए दिन भारतीय महिलाओं के साथ किस तरह पेश आता है यह बातें भी किसी से लुकी-छुपी नहीं हैं। राजनीति से लेकर न्यायपालिका,प्रशासनिक विभाग तथा धर्म व अध्यात्म क्षेत्र से लेकर अशिक्षित वर्ग तक सभी जगह महिलाओं के शोषण तथा उत्पीडऩ के समाचार आते रहते हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में महिलाओं के विरुद्ध 39 अपराध हर एक घंटे में दर्ज किए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से तो हमारे देश के साथ बलात्कार की घटनाओं का ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण संबंध स्थापित हो गया कि दुनिया के कई देशों को अपने नागरिकों को भारत आने के लिए सुरक्षा संबंधी विशेष गाईडलाईन तक जारी करनी पड़ी। आिखर क्यों हम अपने भाषणों तथा सार्वजनिक वार्तालाप में तो महिलाओं के सम्मान,नारी उत्थान, उसकी सुरक्षा तथा बराबरी का दर्जा दिए जाने जैसी बातें तो करते हैं परंतु जब ऐसा करने का मौका आता है उस समय हम बगलें झांकने लगते हैं?
कन्याओं को पूजने की परंपरा हमारे ही देश में है। हमारे समाज में धार्मिक रूप से स्वीकार्य नौ देवियां महिला शक्ति व पराक्रम का प्रतीक मानी जाती हैं। परंतु इसी धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश कर चुके अनेक यौनाचारी तथा दुष्चरित्र बाबाओं के िकस्से भी हमें आए दिन सुनने को मिलते हैं। महिलाओं की शिक्षा व धार्मिक संस्कारों के नाम पर देश में अनेक ऐसे आश्रम संचालित हो रहे हैं जहां कन्याओं को शिक्षा-दीक्षा के नाम पर माता-पिता द्वारा भेज दिया जाता है परंतु बाद में जब माता-पिता को यह पता चलता है कि उनकी लाडली बेटी पर तो ‘गुरू महाराज’ की कोप दृष्टि पड़ गई और वह उसकी हवस का शिकार हो गई ऐसे में उस मां-बाप के विश्वास को कितनी ठेस लगती होगी यह भुक्तभोगी ही समझ सकते हैं। परंतु आश्चर्यजनक बात तो यह है कि ऐसी खबरों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। ज़ाहिर है जब नारी तिरस्कार या यौन उत्पीडऩ के मामले इस इन्तेहा तक पहुंच जाएं कि गुरु-शिष्या अथवा गुरू या शिष्य की बेटी या पिता-पुत्री जैसे रिश्तों के भी कलंकित होने की नौबत आ जाए तो निश्चित रूप से यह समझ लेना चाहिए कि नारी के प्रति ऐसे व्यवहार की जड़ें कहीं न कहीं हमारी मानसिकता या हमारी सोच में ही छुपी हुई हैं। वैसे भी इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि प्रत्येक व्यक्ति यहां तक कि प्रत्येक मां भी पुत्री की तुलना में पुत्र की अधिक चाहवान होती है।
भारतीय समाज के ऐसे ही विचारों ने तथा ऐसी सोच पर अमल करने के तरीकों ने ही आज भारत की स्थिति वहां पहुंचा दी है जहां इसे महिलाओं के लिए विश्व का सबसे असुरक्षित देश माना जाने लगा है। अफसोस की बात तो यह है कि अफगानिस्तान,सीरिया,सोमालिया,अरब,पाकिस्तान, कांगो,यमन व नाईजीरिया जैसे देश भी भारत की तुलना में महिलाओं के लिए ज़्यादा सुरक्षित हैं। पिछले दिनों महिलाओं के मुद्दे पर थॉम्सन राईटर्सफाऊंडेशन द्वारा 550 अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर आधारित एक सर्वेक्षण जारी किया गया जिसमें यह शर्मनाक आंकड़े निकल कर सामने आए। हमारे देश में महिलाओं द्वारा पुरुषों के चरण धोने की परंपरा है। यह परंपरा शायद किसी दूसरे देश अथवा संस्कृति में नहीं होगी। हमारे देश में पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है। चाहे पति शराबी हो,जुआरी हो,दुष्चरित्र,भ्रष्ट या अय्याश हो परंतु उसे परमेश्वर मानना ही पड़ेगा। उधर माता-पिता अपनी लड़कियों का विवाह लडक़ी से कम शिक्षित व कम योग्य लडक़े के साथ करने में भी नहीं हिचकिचाते। क्योंकि उन्हें जल्दी से जल्दी बेटी का विवाह कर स्वयं को भारमुक्त होने की चिंता सताए रहती है। अभी पिछले ही दिनों एक दर्दनाक घटना हमारे ही देश में पेश आई। एक पिता ने अपनी एक नवजात बेटी को चाकुओं से गोदकर मार डाला। कारण यह था कि वह उसके घर में पैदा होने वाली छठी बेटी थी।
हमारे राजनेता भी समय-समय पर महिलाओं के विषय में कुछ ऐसे ‘अमोल’ उद्गार व्यक्त करते रहते हैं जिससे यह पता चलता है कि महिलाओं के सम्मान को लेकर उनका नज़रिया क्या है? पिछले दिनों मध्य प्रदेश में गुना क्षेत्र का एक भाजपा विधायक यह बोलते सुना गया कि माताएं-बहनें समाज में विकृति पैदा करने वाले बच्चे न पैदा करें। भले ही महिलाएं बांझ रहें परंतु असंस्कारी बच्चे न पैदा करें। ऐसे मूर्खों से कोई यह पूछने वाला नहीं है कि क्या बच्चों का संस्कारी या असंस्कारी होना केवल मां पर ही निर्भर करता है? क्या ऐसे अतार्किक विचार व्यक्त करने वाला व्यक्ति खुद संस्कारी कहने लायक है? इसी प्रकार समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव ने एक बार यह कहा था कि संसद में महिलाएं अधिक होंगी तो लोग उनके पीछे सीटियां बजाएंगे। दुर्भाग्यवश कैसे रुगण मानसिकता वाले लोग हमारे देश का नेतृत्व कर रहे हैं? इसी तरह करनाल का एक सांसद जो स्वयं को पत्रकार भी जताता है तथा पत्रकारिता की आड़ में ही संसद की सीढिय़ों पर भी चढ़ गया इस भाजपाई सांसद ने पिछले दिनों हरियाणा की प्रसिद्ध गायिका सपना चौधरी की कांग्रेस पार्टी से बढ़ती नज़दीकियों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ऐसे भोंडे शब्दों का प्रयोग किया जो एक संासद खासतौर पर एक पत्रकार सांसद को शोभा नहीं देता। । अश्विनी चोपड़ा नामक इस भाजपा सांसद ने सपना चौधरी पर तंज़ कसते हुए कहा कि ठुमके लगाने वाले लोग कांग्रेस में शामिल होकर ठुमके ही लगाएंगे। इसी प्रकार के एक-दो अशोभनीय वाक्य और भी इस सांसद ने सपना चौधरी को निशाना बनाकर कहे। अपने साथ स्मृति ईरानी जैसी अभिनेत्री को रखने वाली पार्टी के सांसद दूसरे दल की समर्थक अभिनेत्री में ही ठुमका देख रहे हैं?
इसी प्रकार कभी कोई पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं संत का चोला ओढ़े व्यक्ति अपनी शिष्या के साथ कई वर्षों तक बलात्कार करता रहता है। कोई देश का भविष्य समझा जाने वाला राजनेता विधान भवन में ब्लू िफल्में अपने मोबाईल पर देखने में व्यस्त रहता है। कहना गलत नहीं होगा कि इस समय महिला शोषण व उत्पीडऩ के क्षेत्र में सबसे प्रदूषित क्षेत्र धर्म और अध्यात्म का क्षेत्र बन चुका है। गोया जहां हमें सबसे अधिक संस्कार व सुरक्षा मिलनी चाहिए वहीं हम सबसे अधिक असुरक्षित व गैर संस्कारी होने का खतरा झेल रहे हैं। अन्यथा जितने उपदेश हमारे देश में महिलाओं के पक्ष में बड़े-बड़े धर्मगुरुओं,नेताओं व वक्ताओं द्वारा दिए जाते हैं,देवी पूजन व कन्या पूजन के रूप में नारी के सम्मान जैसा ढोंग हमारे देश में रचा जाता है यदि वास्तव में इनमें ज़रा भी सच्चाई होती तो हमारे देश में महिलाओं की स्थिति कम से कम इतनी खराब तो हरगिज़ न होती कि हम सीरिया,अफगानिस्तान व पाकिस्तान तथा कई गरीब अफ्रीकी देशों से भी गए-गुज़रे देशों में गिने जाते?थॉम्सन राईटर्स फाऊंडेशन की इस सर्वे रिपोर्ट ने हमारे देश को तो शर्मिंदा किया ही है साथ- साथ नारी की इस देश में क्या हकीकत है और नारी का कितना मान-सम्मान व सुरक्षा है इसे भी उजागर किया है।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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