जो ‘उनको’ है पसंद वही बात करेंगे?

– तनवीर जाफरी –

fake-mediaआपातकाल के 1975-77 के दिनों को जहां कांग्रेस विरोधी दल लोकतंत्र की हत्या के दौर के रूप में याद करते हैं वहीं उन दिनों को मीडिया अथवा प्रेस का गला घोंटने के दौर के रूप में भी याद किया जाता है। 1977 में इंदिरा गांधी के अजेय समझे जाने वाले शासन को उखाड़ फेंकने में जहां स्वर्गीय इंदिरा गांधी की अनेक तानाशाहीपूर्ण बातें कारण बनीं वहीं प्रेस पर सेंसरशिप लगाया जाना भी इसका एक महत्वूपर्ण कारण था। मीडिया की ताकत का एक और रंग 2014 के पूर्व के दो वर्षों में देखा जा सकता है। उस समय देश का लगभग पूरा मीडिया यूपीए शासनकाल में होने वाले घोटालों को उजागर करने में तथा उनपर विस्तार से चर्चा कराने में मशगूल था। कोयला घोटाला,आदर्श सोसायटी घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला,2जी स्पेक्ट्रम घोटाला जैसे और भी कई घोटाले उन दिनों मीडिया के लिए चर्चा का मुख्य केंद्र बने रहते थे। यही वह दौर भी था जबकि जनलोकपाल कानून बनाए जाने तथा विदेशों से काला धन वापस लाने की मुहिम के अगुआकार अन्ना हज़ारे तथा बाबा रामदेव जैसे नेता सडक़ों पर उतर आए थे और अपने साथ न केवल लाखों लोगों को सरकार के विरुद्ध उकसाते देखे जा रहे थे बल्कि उन दिनों ऐसा प्रतीत हो रहा था गोया इन दोनों नेताओं से बढक़र राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रप्रेम का जज़्बा किसी दूसरे विपक्षी अथवा सत्ताधारी नेता में है ही नहीं। ज़ाहिर है हमारा मुख्य धारा का राष्ट्रीय मीडिया 24 घंटे इन्हीं नेताओं की गतिविधियों के प्रसारण में लगा रहता था। और यही वह दौर भी था जब दिल्ली में हुए वीभत्स निर्भया रेप कांड होने से पहले ही दिल्ली को ‘बलात्कार की राजधानी’ का नाम इसी मुख्यधारा के मीडिया द्वारा दे दिया गया था।

2014 से पहले का ही वह दौर भी था जब गुजरात राज्य की उपलब्धियों को मीडिया ने खूब बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना शुरु कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था गोया देश के सबसे विकसित समझे जाने वाले राज्य पंजाब एवं हरियाणा को भी पीछे छोडक़र गुजरात आगे निकल गया हो। और इसी दौरान मीडिया ने यह बताना भी शुरु कर दिया था कि टाटा,अंबानी,अडानी तथा भारती मित्तल जैसे देश के प्रथम श्रेणी के उद्योगपति ‘वाईबं्रेट गुजरात’ के महानायक तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी में देश का प्रधानमंत्री बनने की योग्यता व क्षमता देख रहे थे। यह और बात है कि 2014 के बाद इसी मीडिया में न तो गुजरात के किसी विकास का जि़क्र होता है और न ही वहां के मुख्यमंत्री के किन्हीं अच्छे-बुरे,सकारात्मक या नकारात्मक फैसलों की चर्चा मीडिया में सुनाई देती है। कभी-कभी तो ऐसा महसूस होता है कि गुजरात में कोई मुख्यमंत्री इन दिनों है भी या नहीं। कुल मिलाकर मीडिया के सहयोग तथा एक सोची-समझी लंबी साजि़श के परिणामस्वरूप देश में सत्ता परिवर्तन हो गया और देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाने की मनोकामना रखने वालों ने राहत की सांस ली।

बहरहाल, 2014-17 के मध्य तीन साल का समय गुज़र चुका है। वाईब्रेंट गुजरात के महानायक मेक इन इंडिया,स्वच्छ भारत अभियान ,स्टार्टअप इंडिया-स्टैंडअप इंडिया,सबका साथ सबका विकास,अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे अनेक लुभावने नारों के साथ देश का नेतृत्व कर रहे हैं। देश ने उनको अपना लोकप्रिय प्रधानमंत्री चुना है परंतु वे लाल िकले से अपने पहले संबोधन में स्वयं को प्रधानमंत्री नहीं बल्कि देश का प्रधानसेवक बता चुके हैं। उन्होंने एक प्रधानमंत्री के नाते अपने कार्यकाल में सबसे अधिक विदेश यात्राएं करने का भी कीर्तिमान बनाया है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी अमित शाह जो उनके मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात के गृहमंत्री हुआ करते थे और गुजरात दंगों के बाद उनपर भी कई आपराधिक मुकद्दमे चले यहां तक कि गुजरात उच्च न्यायालय ने उनके गृहमंत्री रहते हुए उन्हें राज्य बदर रहने का आदेश दिया, आज वही सत्ताधारी भाजपा की कमान पार्टी अध्यक्ष के रूप में संभाले हुए हैं। परंतु सत्ताधारी भाजपा व केंद्र सरकार में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की स्थिति क्या है इस बात का अंदाज़ा केवल लाल कृष्ण अडवाणी,मुरली मनोहर जोशी, यशवतं सिन्हा,शांता कुमार जैसे और भी कई वरिष्ठ नेताओं की हालत को देखकर लगया जा सकता है।

अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे लोकलुभावने नारे को कार्यान्वित होते हुए देखने की आस में तीन वर्ष गुज़र चुके हैं। देश में काला धन अभी तक वापस नहीं आया। जबकि मध्यप्रदेश में भाजपा के शासनकाल में देश का सबसे बड़ा व्यापम घोटाला जिसमें इस घोटाले से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से जुड़े अथवा इससे संबंधित जानकारी रखने वाले या इस घोटाले की खबर रखने वाले कुछ पत्रकारों सहित लगभग 40 लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठे हैं। जनलोकपाल का भी अभी तक कुछ पता नहीं है। ज़ाहिर है देश की वही जनता जो 2014 से पहले अन्ना हज़ारे व रामदेव के पीछे खड़ी थी वह आज इन्हीं नेताओं के पते पूछती फिर रही है। दिल्ली को बलात्कार की राजधानी बताने वाले लोगों को हरियाणा में होने वाली निर्भया से भी खतरनाक बलात्कार व हत्या जैसी घटनाएं आज बिल्कुल नज़र नहीं आ रही हैं। रोहतक में हुआ वह खतरनाक सामूहिक बलात्कार व हत्याकांड की वह घटना जिसमें पीडि़ता के पूरे शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया उसके विरुद्ध न ही मीडिया का हंगामा नज़र आया न ही किसी कैंडिल मार्च को नेतृत्व देने वाले नेता नज़र आए। आिखर क्यों?

आज उत्तर प्रदेश में योगी राज की महिमा का बखान तो मीडिया द्वारा किया जा रहा है परंतु यह नहीं बताया जा रहा कि उत्तर प्रदेश में गुंडाराज के खात्मे तथा कानून व्यवस्था का राज कायम करने के जिस वायदे के साथ भाजपा ने यूपी में अपनी सरकार बनाई है उस राज्य में मात्र तीन महीने के भीतर अराजकता व गुंडागर्दी के कैसे तांडव दिखाई दे रहे हैं? 15 मार्च से पंद्रह अप्रैल के केवल एक महीने के अंतराल में ही बलात्कार की 179 घटनाएं,20 डकैतियां, 273 लूट की घटनाएं तथा 240 हत्याएं हो चुकी हैं। परंतु मीडिया योगी जी के गुणगान करने के सिवा और कुछ देख ही नहीं रहा है। इसी तथाकथित सुशासन के दौरान सहारनपुर में जातिवादी व सांप्रदायिक संघर्ष भडक़े,यहीं एक भाजपा सांसद ने वरिष्ट पुलिस अधीक्षक के सरकारी आवास पर अपने समर्थकों के साथ धावा बोल दिया, आगरा में सत्ताधारी लोगों ने एक उपपुलिस अधीक्षक को पीटा,मथुरा में सर्राफा व्यापारी की दिनदहाड़े हत्या की गई और इसी तरह पूरे राज्य में अनेक अधिकारियों को अपमानित किए जाने के समाचार सुने जा रहे हैं। गोया शासन तो निरकुंश लगने ही लगा है साथ-साथ शासन पर नकेल कसने की क्षमता रखने वाला मीडिया भी पूरी तरह विकलांग दिखाई दे रहा है।

ऐसे में यह सवाल ज़रूरी है कि क्या 2014 से पहले मीडिया की सत्ता विरोधी सक्रियता उसके कर्तव्यों तथा उसकी निष्पक्षता पर आधारित सक्रियता थी या वह सक्रियता किसी साजि़श का हिस्सा मात्र थी? आज यही मीडिया यदि किसी सत्ताधारी की खाल खींचता दिखाई भी देता है तो वह है दिल्ली की आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार। न तो यह मीडिया देश के प्रधान सेवक से कश्मीर के बिगड़ते हालात व भारतीय सैनिकों व अर्धसैनिक बलों के साथ सीमा से लेकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों तक होने वाली ज़्यादतियों के बारे में सवाल पूछ रहा है न ही उत्तर प्रदेश,हरियाणा,छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में अराजकता व भ्रष्टाचार के विषय में कोई सवाल उठाता दिखाई दे रहा है। काला धन वापस लाने का लालीपॉप दिखाने वाले बाबा रामदेव ने 2014 के बाद लगभग सभी टीवी चैनल्स के मुंह अपने उत्पाद के विज्ञापनों से ऐसे भर दिये हैं कि मीडिया उनसे भी काले धन की वापसी के संबंध में कुछ पूछ ही नहीं सकता। ऐसे में अपने कर्तव्य तथा दायित्व से विमुख होने वाले मीडिया जगत से यह सवाल पूछना क्या गैर वाजिब है कि क्या आप-जो ‘उनको’ है पसंद वहीं बात करेंगे’?

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tanveer-jafri-story-by-tanveer-jafri-writer-tanveer-jafri-tanveer-jafri-social-thinkerAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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