प्रत्येक प्रौद्योगिकी विकसित होने में समय लेती है। प्रौद्योगिकी के विकास में अनुसंधान का महत्वपूर्ण स्थान है।अनंत काल तक इंतजार करते रहने की बजाय हमें नई प्रौद्योगिकियां प्रयोग में लानी चाहिए क्योंकि इनमें सुधारहोते रहते हैं। भारत जैसा देश जहां कृषि उत्पादन को निरंतर बढ़ाने और ग्रामीण गरीबी को दूर करने पर जोररहता है, उपयोगी प्रौद्योगिकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता। खुद भारत में ही एकमात्र एप्रूव्ड ट्रेट- बीटीकॉटन ने किसानों को शानदार परिणाम दिए हैं। कीटनाशकों पर उनकी निर्भरता कम हुई है और पैदावार बढ़ी है।भारतीय पेटेंट अधिनियम के तहत किसी पौधे या उसके भाग, जैसे कि बीज, का पेटेंट नहीं कराया जा सकता,यहां बीजों का पेटेंट नहीं होता।
एसोसिएशन के अनुसार हमें बीजों और बायोटैक ट्रेट्स में फर्क समझना होगा। जो कंपनियां अपने अनुसंधानोंके जरिए बीज विकसित करती हैं वे इन्हें प्लांट वैराइटी प्रोटेक्शन एक्ट, 2002 के तहत सुरक्षित कराती हैं। इसअधिनियम के तहत किसानों को बीज बचाने और दोबारा इस्तेमाल करने का अधिकार होता है। यदि कोई बीजमांगा जाए और कंपनी उसे उपलब्ध न कराए तो सरकार को दखल देने का पूरा हक है। इसके लिए एक्ट मेंपर्याप्त व्यवस्थाएं हैं। बायोटैक ट्रेट्स को पेटेंट एक्ट के अंतर्गत पेटेंट कराया जा सकता है। इससे किसी तरह काफूड सीक्योरिटी इश्यू पैदा नहीं होगा क्योंकि बीज तो बायोटैक ट्रेट के बिना भी उपलब्ध रहते हैं।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि बायोटैक ट्रेट किसी कंपनी को किसी डोनर बीज के जरिए एक ही बारदिया जाता है और इस प्रोसेस को उल्टा नहीं किया जा सकता। हमें यह समझ लेना चाहिए कि बीज का आयातनहीं किया जाता। बीटी कॉटन के सभी बीज भारत में ही तैयार हुए हैं। एबल- जी ने जीएम ट्राइल्स से संबंधित15 सीधे सवाल पूछे गए हैं। संस्था ने कहा कि अगर किसी भी प्रौद्योगिकी की शुरुआत में सामाजिक चर्चा होनाचाहिए, तो उन विभिन्न तकनीकियों का क्या जो शहरी लोगों द्वारा उपयोग की जा रही हैं। इस नोट में संस्था नेउस 60 प्रतिशत आबादी के सवालों का जवाब ढूढंने की कोशिश की है, जो कृषि पर निर्भर है।