जल की बरबादी के लिए शासन-प्रशासन भी जि़म्मेदार *

Ambala City DC office k paas pipe line se leak hone wale paani ne sadak par Nadi jaisa drishy bana diya..{ तनवीर जाफरी * }           सृष्टि की रचना में विशेषकर वन,वनस्पति,जीव-जंतु,मानव जीवन तथा उद्योग आदि सभी में जल का क्या महत्व है इस विषय पर अधिक प्रकाश डालने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस यूूं समझा जा सकता है कि जल के बिना इनमें से किसी का अस्तित्व संभव ही नहीं है। आज भी वैज्ञानिक चंद्र अथवा मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की बात करते हैं तो सबसे पहले उन्हें इन ग्रहों पर जल की उपलब्धता की तलाश में शोध कार्य करने पड़ रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक तो ऐसी अवधारणा थी कि प्रकृति द्वारा प्रदान की गई यह बेश$कीमती नेमत कभी समाप्त न होने वाली अमूल्य सौ$गात है। परंतु अब वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर यह   अवधारणा बदल चुकी है। भूगर्भीय जल स्त्रोत के भंडारों में निरंतर कमी आती जा रही है। पीने का सा$फ पानी न केवल कम बल्कि दिन-प्रतिदिन दूषित होता जा रहा है जिसके परिणाम बेहद चौंकाने वाले हैं। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर पेयजल के संसाधनों में का$फी वृद्धि हुई है। विश्व बैंक द्वारा भी प्रत्येक गांव व मोहल्ले में पीने का सा$फ पानी मुहैया कराए जाने हेतु भारी-भरकम धनराशि $खर्च की जा रही है। इसमें का$फी बड़ी र$कम जल संरक्षण संबंधी विज्ञापनों तथा इससे संबंधित जागरूकता अभियानों पर भी $खर्च की जा रही है। परंतु इन सब का नतीजा लगता है वही ढाक के तीन पात।

                        अनपढ़ लोगों की तो बात ही क्या करनी,पढ़े-लिखे लोग तथा समाज में कथित प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों द्वारा भी जल संरक्षण संबंधी नियमों व दिशा निर्देशों की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं। अपने गार्डन,ब$गीचे में अनावश्यक रूप से रबड़ के पाईप द्वारा पानी डालना,लॉन की घास को तरोताज़ा रखने हेतु बेतहाशा पानी का प्रयोग करना, रबड़ पाईप से अपनी कारों को नहलाना-धुलाना, शेविंग व ब्रश करते समय पानी की टोंटी को चलते रहने देना तथा अपनी कोठी के $फर्श को दिन में कई-कई बार खुले पानी से धोने की $कवायद करना, शिक्षित,अमीर अथवा नवधनाढय लोगों के चोचलों में शामिल है। इसी प्रकार किसान भी भूगर्भीय जल के दुरुपयोग के कम दोषी नहीं हैं। खेती-बाड़ी में ज़रूरत से ज़्यादा पानी का इस्तेमाल किया जाता है। परिणास्वरूप लगभग पूरे देश में भूगर्भीय जलस्तर भी दिन-प्रतिदिन नीचे होता जा रहा है। और यदि पीने का पानी उपलब्ध है भी तो वह भंयकर रूप से दूषित है। परिणामस्वरूप यह दूषित जल जीवन देने के बजाए जीवन लेने का कारण बनता जा रहा है।

                        विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 21 प्रतिशत बीमारी का कारण केवल असुरक्षित व दूषित जल का सेवन करना है। लगभग 1600 लोग प्रतिदिन केवल डायरिया जैसी बीमारी से अपनी जान गंवा बैठते हैं और डायरिया का प्रमुख कारण प्राय: दूषित जल ग्रहण करना ही होता है। विकासशील देशों में बीमारी का अस्सी प्रतिशत कारण दूषित जल से पैदा होने वाली बीमारियां हैं। और इन्हीं विकासशील देशों में 90 प्रतिशत जल नाली व नालों के माध्यम से नदियों में मिलकर नदियों को प्रदूषित करता हुआ समुद्र में जा मिलता है और मीठा जल, खारे जल में परिवर्तित हो जाता है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के आधे से अधिक अस्पतालों के बिस्तर दूषित जल संबंधी बीमारियों का सामना करने वाले मरीज़ों से भरे होते हैं। जल के दोहन व दुरुपयोग में विकसित देश भी विकासशील देशों से पीछे नहीं हैं। एक आंकड़े के अनुसार अमेरिका में एक व्यक्ति एक भारतीय नागरिक की तुलना में आठ गुणा अधिक जल का प्रयोग करता है।Ambala City DC office k paas pipe line se leak hone wale paani ne sadak par Nadi jaisa drishy bana diya..1 (1)

                        जल की इस दर्दशा का परिणाम यह है कि विश्व में डेढ़ अरब लोगों को पीने का सा$फ पानी नहीं मिल पा रहा है। इस प्रकार पूरे विश्व में लगभग 40 लाख लोग प्रतिवर्ष जल संबंधी बीमारी से मर रहे हैं। दुनिया की आधी $गरीब आबादी एक ही समय में केवल दूषित जल के सेवन के कारण बीमार हो जाती है। जल संरक्षण संबंधी योजनाओं का अभाव तथा जल की बेतहाशा बरबादी की वजह से जल संकट विशेषकर सूखा पडऩे के समय पानी का अभाव देखने को मिलता है। आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में कृषि पर 70 प्रतिशत जल $खर्च होता है। जबकि उद्योग में 22 प्रतिशत जल की खपत होती है। सवाल यह है कि विश्व बैंक से लेकर देश व राज्य की सरकारें तथा स्थानीय स्तर पर जि़ला प्रशासन तक ‘जल ही जीवन है’ तथा जल संरक्षण संबंधी योजनाओं के प्रचार व प्रसार का दम भरते रहते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं लगता कि सरकार के इस जागरूकता अभियान का कोई प्रभाव आम लोगों पर पड़ता दिखाई देता हो। बल्कि बजाए इसके ऐसा प्रतीत होता है कि जल संरक्षण के संबंध में बरती जाने वाली लापरवाहियां दिनों-दिन और बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि $खासतौर पर हमारे देश में उद्योगों,नए रिहाईशी क्षेत्रों,कारों,कोठियों, $फ्लैटस, गार्डन, पार्क व नवधनाढयों की संख्या में भी तेज़ी से इज़ा$फा होता जा रहा है। अत: इसी अनुपान के अनुसार जल की खपत भी बेतहाशा बढ़ती ही जा रही है।

                        अ$फसोस तो इस बात का है कि जनता से जल संरक्षण की उम्मीद करने वाली सरकार अथवा सरकार के निर्देश पर ‘जल बचाओ अभियान’ की मुहिम को लागू करने वाला प्रशासन भी पानी की बर्बादी का कम जि़म्मेदार नहीं है। बल्कि कुछ उदाहरण तो ऐसे हैं जिन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि सरकारी लापरवाही के परिणामस्वरूप अधिक जल बर्बाद होता है। उदाहरण के तौर पर महानगरों में बड़े आकार के पानी के पाईप अक्सर लीक होते देखे जा सकते हैं। कई जगह तो यह लीकेज नियमित रूप से होते ही रहते हैं। प्रशासन से इस लीकेज के बारे में यदि आप पूछेंगे तो पाईप लाईन का बहुत पुराना जोड़ बताकर अधिकारी अपनी ड्यूटी पूरी समझते हैं। इसी प्रकार रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बों में भरे जाने वाले पानी की पाईप लाईन कई-कई जगहों से लीक होते देखी जा सकती है। रेलवे स्टेशन के प्लेट$फार्म पर या तो गर्मियों में पानी रहता ही नहीं है और वाटर टेप सूखा पड़ा रहता है। या फिर टोंटी नदारद रहती है और पानी यूं ही बेवजह बहता रहता है। ज़मीन के नीचे से होकर घर-घर व मुहल्ले-मुहल्ले पहुंचने वाली पाईप लाईन भी कभी भारी वाहन के गुज़रने की वजह से अथवा प्रगति के नाम पर केबल आदि बिछाए जाने के नाम पर होने वाली खुदाई के चलते मज़दूरों के हाथों से पाईप लाईन क्षतिग्रस्त हो जाती है। नतीजतन मुख्य मार्ग पानी से कुछ इस तरह भर जाता है जैसे कि मोहल्ले में नदी का प्रवाह होने लगा हो। और ऐसी भूमिगत पाईप लाईन के रिसाव का परिणाम केवल जल की बरबादी मात्र नहीं होता बल्कि इसी रिसाव वाले स्थान से बाहरी गंदगी पाईप में प्रवेश कर जाती है जोकि पानी की सप्लाई के द्वारा घर-घर पहुंच जाती है। और यही दूषित व गंदा पानी आम लोगों की बीमारी का एक बड़ा कारण बनता है।

                        कभी-कभी तो पानी की उस टंकी से भी जल प्रपात अथवा लीकेज होता देखा जा सकता है जिस टंकी से शहर में पानी की आपूर्ति की जाती है। शहरों में पानी की आपूर्ति के अनेक सार्वजनिक पाईप ऐसे मिलेंगे जिन पर से टोंटी $गायब रहती है। बेशक टोंटियां चुराना जनता के बीच के लोगों का ही कार्य है परंतु यह प्रशासन का भी $फजऱ् है कि वह इसकी रोकथाम के लिए भी ऐसे उपाय तलाश करे जिससे पानी की टोंटी कोई चोरी न कर सके और पेयजल यंू ही न बहता रहे। इसी प्रकार सरकारी अस्पतालों में व कार्यालयों में भी पानी की बरबादी के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। लिहाज़ा यदि वास्तव में जल संरक्षण की मुहिम को अमली जामा पहनाना है तो स्वयं सरकार व प्रशासन को अत्यंत गंभीर व पारदर्शी होना पड़ेगा। देश में कहीं भी पुरानी पाईप लाईन जिनसे कि जल रिसाव होता रहता है सरकार को ऐसे सभाी पाईप तुरंत बदलने अथवा उनके जोड़ दुरुस्त करने के उपाय करने चाहिए। रेलवे विभाग को भी जल संरक्षण हेतु स्थायी व उपयुक्त $कदम उठाने चाहिए। नाली व गंदे नालों के बीच से होकर गुज़रने वाले तथा सीवर पाईप लाईन के मध्य होकर जाने वाली पाईप लाईन के रास्ते बदल देने चाहिए। ऐसे पाईप भी बीमारी फैलने का एक अहम कारण हैं। सही मायने में सरकार व प्रशासन को आम जनता के लिए जल संरक्षण संबंधी दिशा निर्देश तथा दूषित जल ग्रहण करने से अपना बचाव करने का निर्देश जारी करने का अधिकार भी तभी है जबकि सरकार व प्रशासन पहले स्वयं को जल संरक्षण व इसकी स्वच्छता के लिए गंभीरतापूर्वक $कदम उठाए। अन्यथा जल संरक्षण व दूषित जल से आम लोगों का बचाव हो या न हो परंतु इसके नाम पर करोड़ों रुपयों की बरबादी ज़रूर होती रहेगी।

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Tanveer-Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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