आई.एन.वी.सी,,
हरयाणा,,
हरियाणा साहित्य अकादमी और दिल्ली की सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था चेतना इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से नई दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन जिसमें प्रख्यात हास्य कवि अल्हड़ बीकानेरी को याद किया गया। समारोह के शुरू में अल्हड़ जी के जीवन पर बना वृतचित्र दिखाया गया, जिसमें अल्हड़ स्वयं अपनी कविता भी गाकर सुना रहे थे। श्रोताओं को ऐसे लग रहा था कि अल्हड़ जी वहां मौजूद हैं और वे उन्हें सुन रहे हैं। समारोह की अध्यक्षता दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष योगानंद शास्त्री ने की। दिल्ली के उद्योगमंत्री रमाकांत गोस्वामी समारोह में विशिष्ट अतिथि थे। आमंत्रित कवियों में वरिष्ठ कवि जैमिनी हरियाणवी और सुरेश नीरव भी थे। हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक श्याम सखा श्याम और चेतना इंडिया के अध्यक्ष सतपाल भी मंच पर थे। योगानन्द शास्त्री जी ने अल्हड़ जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुये कहा कि कुछ कवियों की विधा निराली होती है। अल्हड़ ने हर प्रकार की कवितायें लिखीं, लेकिन मुख्य रूप से उन्होंने हास्य रस को अपना संगी बनाया। अपनी हास्य कविताओं के माध्यम से उन्होंने खुशियां बाँटी। उनकी सटीक कविताओं ने दुनिया का मार्गदर्शन भी किया। रमाकांत गोस्वामी ने अल्हड़ की याद में उनके जन्म दिन पर कवि सम्मेलन का आयोजन करने पर आयोजकों को बधाई दी। कहा कि चेतना इंडिया की स्थापना से हिन्दी को एक मंच मिल गया है, जहां कवि सम्मेलन और साहित्य चर्चायें होती रहेंगी।
मंच संचालन प्रवीण शुक्ल ने किया। शुक्ल ने काव्य पाठ के लिये कवियों को बुलाने से पहले हर बार अल्हड़ बीकानेरी की काव्य रचनाओं में से कुछ अंश प्रस्तुत किये। सबसे पहले श्री वीरेन्द्र मेहता ने अल्हड़ जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि ‘जीना इसी का नाम है’। उन्होंने अपनी हास्य कविता सुनाई- यशोमती मैया से बोले ओबामा, हिलेरी क्यूं गोरी मै क्यूं श्यामा । आलोक भांडोरिया ने ‘जबसे चाल्या है मोबाईल घर का सत्यानास हो गया, जिसके धोरे कोन्या मोबाईल, वह मानस थर्ड क्लास हो गया’ से अपने व्यंग्य तीर छोड़े। बृजेश द्विवेदी ने ‘कुल्हड़ की जिन्दगी में अंधड़ से जीते रहे, उन अल्हड़ बीकानेरी को नमन है’ से अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की। सत्यदेव हरियाणवी ने कहा -‘दिल उसको देना, जो हारी बैठी हो, जो दहेज के कारण कुंवारी बैठी हो। आभा चौधरी ने कहा-इस बार मेरे घर के बाहर नीम की कोंपलें कुछ ज्यादा सुनहरी हैं। हलचल हरियाणवी ने कहा, अल्हड़ जी मेरे गुरू थे, मैं उन्हीं से कविता लिखना सीखा हूं। अल्हड़ जी को श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हुये कहा-हंसते हंसाते हंसा कर वह चल दिया, दुख: में भी मुस्करा कर चल दिया। कर्ज अल्हड़ का हमसे चुका तक नहीं, फर्ज अपना वह निभा कर चल दिया। श्रीमती जे.वी. मनीषा ने बेटियों की स्थिति पर मार्मिक कविता सुनाई-मेरे मन में टीस उठे, तो आँसूं बहते हैं। सुुरेश नीरव ने अल्हड़ बीकानेरी को गुरू भाव से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा -मैं अपने अन्दर अल्हड़ को जीता हूं, मैं नहीं, वह बोल रहे हैं। उन्होंने उनके काव्य अंश सुनाये-भावना को भक्ति मिल जाये बहुत है, साधना को शक्ति मिल जाये बहुत है, झूठ के इस माहौल में, सत्य को अभिव्यक्ति मिल जाये बहुत है। नीरव ने कहा, अल्हड़ जी को केवल हास्य कवि न कहा जाये, वे चहुंमुखी कवि थे, शब्द ऋषि थे, उनके अपने तेवर होते थे, वे आमजन) के साथ विशिष्ट वर्ग के भी कवि थे। उन्होंने सुनाया- ‘आज हम इतने बौने हो गये हैं, आदमी होकर आदमी की भाषा नहीं समझते हैं।’ ‘कल तक थे नौकरी में लकड़ी की टाल के, कविता में आज बन गये दादा फाल्के, अच्छी भली किताब का अकादमी, करती है फैसला सिक्का उछाल के।’ सविता असीम ने सुनाया-‘मैंने असूलों से कभी समझौता नहीं किया है, वह अगर खफ़़ा थे, तो खफ़़ा रहने दिया है ’ और ‘रघुकुल की रीत का जमाना तो है नहीं’। उन्होंने कहा कि अल्हड़ जी के सामने भी उन्होंने कविता पढ़ी थी- ‘किया रूह को किसी के हवाले, अब पड़ गये जुबां पर हैं ताले, मुझे पा के उसने हकीकत को पाया, उसे पा के मैंने ख्वाब ही पाले’ं। महेन्द्र शर्मा ने सुनाया-देखो राजनीति के रंग, कुछ उजले कुछ बदरंग, पड़े दिखाई रे, सुन लो भाई रे। उनकी कविता पर उन्हें तालियों की ताल मिली। चिराग जैन ने अपने काव्य पाठ में ‘मां’ को फोकस में रख कर सुनाया-मुद्दतों से तरकारी बनाती मेरी अनपढ़ मां वास्तव में अनपढ़ नहीं है, वह बातचीत के दौरान पिता जी का चेहरा पढ़ लेती है। सच, कोई भी मां अनपढ़ नहीं सयानी होती है, बेटियों को उसी से सीखना पड़ता है, गृहस्थी कैसे चलानी होती है। श्रीमती ममता किरण द्वारा प्रस्तुत कुछ काव्य अंश हैं ‘दिन ब दिन बढ़ते ही जाते हैं रावण, राम के हाथ में लगता है कोई तीर नहीं’। ‘बाग गूंजता है जैसे पंछियों से ,घर चहकता है ऐसे बेटियों से’। विवेक गौतम के बोल थे-सूखे पर्वत जब से निर्झर हो गये हंै, हम तब से आत्म -निर्भर हो गये हैं। प्रवीण शुक्ल ने अल्हड़ जी के प्रति समर्पित शिष्य भाव से उन्हीं की कविता के अंश सुनाये-लेता है अवतार सदियों में अल्हड़ सरीखा कोई संत, मेरे राम जी। अल्हड़ जी ने हंसी के भाव को भी संजीदगी से लिया और अपनी संवेदना को भी उसमें पिरो दिया- ‘खुद पे हंसने की कोई राह निकालूं तो हंसूं, अभी हंसता हूं ज़रा मूड में आ लूं तो हंसूं। जन्म लेते ही अभावों की जो चक्की में पिसे जान, पाए न जो बचपन यहां कहते हैं किसे, जिनके हाथों ने जवानी में भी पत्थर ही घिसे ,और पीड़ा में जो नासूर की मानिन्द रिसे, उन यतीमों को कलेजे से लगा लूं तो हंसूं। अभी हंसता हूं ज़रा मूड में आ लूं तो हंसूं।’ शुक्ल ने कहा कि अल्हड़ जी हर स्थिति में हास्य का पुट डालने में माहिर थे। उनकी गज़ल की परिभाषा भी अलग थी-‘सामने लाल छड़ी हो तो गज़ल होती है,जुल्फ गालों पे पड़ी हो तो गज़ल होती है,‘फेस’ को मोड़ के, कॉलिज की हसीना कोई, बस की लाईन में खड़ी हो तो गज़ल होती है, अपने दूल्हे से, कोई शोख नवेली दुलहिन, पूरे दस साल बड़ी हो तो गज़ल होती है’ लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने अपनी श्रद्धांजलि देते हुये कहा -दर्द खुद झेल के खुशियों की फसल देते हैं, जिनमें खतरे हों उन्हीं राहों पे चल देते हैं, जिनकी सोचों में है औरों की भलाई, ऐसे कुछ लोग ही दुनिया को बदल देते हैं। उनके काव्य पाठ के कुछ और अंश हैं ‘इन्टरनेट से करे वह दुनिया भर से बात, रहता कौन है पड़ोस में उसे नहीं ज्ञात’। अपनी कविता ‘वे लोग’ में उन्होंंने सुनाया – कहां हैं ऐसे लोग,जो कहते थे-राम की चिरैया, राम के खेत,खाओ चिरैया भर भर पेट। उन्होंने एक गज़ल भी कही, जिसमें कहा-जरा सी परवरिश भी चाहिये हर एक रिश्ते को, अगर सींचा नहीं जाये तो पौधा सूख जाता है। श्याम सखा श्याम ने अपनी यादों के झरोखों से अल्हड़ जी की कई बातें बताईं। उनके द्वारा प्रस्तुत कुछ काव्य अंश हैं- ‘उम्र चांद हो गयी, पर दिल जवंा ही है’, ‘गीत गज़ल या गाली लिख, बात मगर मतवाली लिख, रोज हथेली पर उसके, गज़लें मेंहदी वाली लिख’ ‘जब भी सवाल करती है, मेरा जीना मुहाल करती है, मौत भी तो कमाल करती है, सांसों की देखभाल करती है’। चेतना इंडिया के उपाध्यक्ष अशोक शर्मा ने अपने पिताश्री अल्हड़ बीकानेरी की यादों के बीच इस अवसर पर अपनी क्षणिका प्रस्तुत की- जहां आदमी स्टे्रचर पर आता है और अर्थी पर जाता है, वह सौभागयशाली स्थान अस्पताल कहलाता है। वयोवृद्ध कवि और अल्हड़ बीकानेरी के साथी जैमिनी हरियाणावी ने अल्हड़ जी को याद करते हुये कहा कि आज बृहस्पतिवार है, सरस्वती मां का दिन है और आज सरस्वती पुत्र अल्हड़ जी की जयंती है। पुरानी बातों को याद करते हुये उन्होंने कहा कि ओम प्रकाश आदित्य, अल्हड़ बीकानेरी और मैं, तीनों हरियाणा के हास्य कवि थे, जिनकी हरियाणा में पूछ नहीं थी। हमने एक किताब लिखी थी- हरियाणा के त्रिशंकु। जैमिनी जी ने इस अवसर पर अपने संस्मरणों को याद करते हुये अपनी कविताओं के कुछ अंश पेश किये- ‘होली के दिन एक नेता ने पीकर भंग, कुर्सी पर डाल दिया रंग, बोला असली तो यही है, जो मुझे संभाल रही है।’ शादी पर अपना मुक्तक पेश करते हुये उन्होंने कहा -शादी दो महाकाव्यों को जोड़ती है पिरोती है, शादी से पहले रामायण और बाद में महाभारत होती है। उन्होंने हरियाणवी भाषा में लिखी अपनी गज़ल ‘शादी’ के कुछ अंश भी सुनाये- ‘ब्याह तै गड़बड़ी हो गयी, खाट हमारी खड़ी हो गयी,’ ‘शक्ल पर बारह बज गये, शक्ल मेरी घड़ी हो गयी’।