जन्मतिथि निर्धारण में हाई-स्कूल के शैक्षिक प्रमाण-पत्र ही प्रमाणिक दस्तावेज होंगें

invc-news3आई एन वी सी न्यूज़
लखनऊ ,

सेना कोर्ट, लखनऊ के माननीय न्यायमूर्ति देवीप्रसाद सिंह एवं माननीय  लेफ्टिनेंट जनरल ज्ञान भूषण की खण्ड-पीठ ने ओ.ए. नं. 279/2015, सूबेदार सत्यपाल सिंह बनाम भारत सरकार एवं अन्य में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, प्रकरण यह था कि सत्यपाल सिंह वर्ष 12.12.1985  को सेना की इलेक्ट्रिक मेकेनिक इंजीनियर कोर में भर्ती हुआ था और, तीस वर्ष के सैन्य-सर्विस करने के बाद सेना से रिटायर हुआ लेकिन सेना ने उसके लडके देवेन्द्र कुमार की जन्म-तिथि सेना के रिकार्ड में 10.04.1994 दर्ज कर दी जबकि, उसके शैक्षणिक-दस्तावेजों, ई.सी.एच.एस. कार्ड, इलेक्ट्रानिक-शीट-रोल, पैन-कार्ड और पिता के डिस्चार्ज-बुक में उसकी जन्म-तिथि 10.04.1996 थी, उसका पुत्र भी सेना में भर्ती होना चाहता था जसको बदलवाने के लिए सूबेदार सत्यपाल ने सेना को प्रार्थना-पत्र दिया तो सेना ने रिलेशनशिप-सर्टिफिकेट 10 अप्रैल 1994 का दे रही थी जो शैक्षणिक दस्तावेजों से मेल नहीं खाती थी तब; सूबेदार ने जन्म-तिथि बदलकर 10 अप्रैल 1996 करने के लिए सेना को दरख्वास्त दी जिसे सेना ने 9 जुलाई  2015 को सेना की पॉलिसी का हवाला देते हुए बदलने से इनकार कर दिया उसके बाद याची के सामने आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल लखनऊ में मुकदमा दायर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा.

मामलें की सुनवाई में भारत सरकार ने दलील दी की हम रिलेशनशिप सर्टिफिकेट उसी तिथि का जारी कर सकते हैं जो सेना के रिकार्ड में है क्योंकि, थल-सेनाध्यक्ष की पालिसी दिनांक 13 नवम्बर 2014 हमारे लिए बाध्यकारी है, कोर्ट ने कहा कि इस पालिसी को मनमानी तरीके से सरकार लागू नहीं कर सकती या तो उसे इस पालिसी को पूरा मानना होगा या पूरा नकारना होगा क्योंकि, देश कानून के मुताबिक़ चलेगा न कि सरकार की मनमानी से जबकि; माननीय  उच्चतम-न्यायालय ने तमिलनाडु राज्य बनाम टी.वी.वेणुगोपालन, बर्न स्टैण्डर्ड कम्पनी ली. बनाम दीनबंधु मजुमदार, उड़ीसा राज्य बनाम रामनाथ पटनायक एवं उ.प्र.राज्य बनाम गुलैची के मामले में इस विषय पर व्यवस्था दे चुकी है जो सरकार के लिए बाध्यकारी है, और कहा कि सरकार के इस कदम से एक सैनिक का पुत्र सेना में भरती नही हो पायेगा उसका पूरा जीवन बर्बाद हो जायेगा, जो उचित नहीं होगा और सरकार द्वारा सूबेदार के पुत्र की जन्म-तिथि न बदलना गलत और बगैर दिमाग का प्रयोग किये पारित आदेश है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और साक्ष्य अधिनियम 1872 के अनुच्छेद 35 का उल्लंघन है जिसे भारत सरकार नहीं कर सकती इसलिए, सरकार हाई-स्कूल में दर्ज जन्म-तिथि सेना के रिकार्ड में दो महीने के अन्दर दर्ज करे, खंडपीठ पीठ ने कहा कि पिता द्वारा की गयी गलतियों का खामियाजा आने वाली पीढ़ियों पर सरकार नहीं थोप सकती, कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि उच्च-न्यायालय और उच्चतम-न्यायालय की व्यवस्थाये जब समर्थन करती हैं तो मामले में मनमाना आदेश पारित किया जाना गलत है.

ए.ऍफ़.टी. बार के जनरल सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने उपस्थित मिडिया कर्मियों को बताया कि निर्णय की कापी बार को प्राप्त हो गयी है, निर्णय दूरगामी प्रभाव डालने वाला महत्वपूर्ण निर्णय है इससे जहा एक तरफ सेना अपने नियमों में परिवर्तन लाने को बाध्य होगी वही दूसरी तरफ बदलते ‘सामाजिक-संदर्भो, मूल्यों और प्रतिमानों में यह निर्णय पीड़ित सैन्य-कर्मियों को दूरगामी परिणाम प्रक्षेपित करेगा जिससे भविष्य में अन्य लोग इस निर्णय का लाभ उठाने में सफल होंगे क्योंकि, न्यायालय ने जन्मतिथि के मामले में हाई-स्कूल के शैक्षिक प्रमाण-पत्र को ही प्रमाणिक माना है, अब भविष्य में ऐसे विवादों पर विराम लगेगा और न्याय पाने में समय कम लगेगा, निर्णय में ‘वर्तमान’ द्वारा की गयी गलतियों का खामियाजा ‘भविष्य’ पर नहीं थोपने का आदेश दिया गया है.

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