गांधीवादी* मूल्यों की सहायता से सामुदायिक निर्माण के लिए सक्रिय नागरिकता और बाल सहभागिता को बढ़ावा देना.

**प्रोफेसर टी के थॉमस

 

“अगर आप दुनिया में वास्तविक शांति चाहते हैं और यदि हमें युद्ध के खिलाफ संघर्ष जारी रखना है, तो हमें बच्चों के माध्यम से इसकी शुरूआत करनी होगी.”

 

– महात्मा गांधी

 

महात्मा गांधी ने भारत में एक शक्तिशाली और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आबादी के सभी वर्गों की सहभागिता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था। उन्होंने लिखा है “ लोकतंत्र का सार वास्तव में विभिन्न वर्गों के लोगों के समस्त शारीरिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संसाधनों को सर्व कल्याण के लिए जुटाने की कला और विज्ञान है। (हरिजन –तिथि 27-05-1939)

 

यंग इंडिया में भी(01-12-1927) को एक स्थान पर उन्होंने लिखा है“ लोकतंत्र असंभव है अगर सब की सत्ता में भागीदारी ना हो, यहां तक कि निम्न, मजदूर समझे जाने वाले लोग जो आपकी आजीविका को कमाना संभव बनाते हैं उनकी भी स्व शासन में भागीदारी होगी।”

 

गांधी के सपनों के भारत को साकार करने के लिए बच्चों सहित सभी की समुचित भागीदारी बढ़ाने के वास्ते अनवरत प्रयास की आवश्यकता है।

 

युवाकाल में ही प्रेरित करना

 

सक्षम और सच्चरित्र नागरिक समूह को मज़बूत करने के प्रयास के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में शिशु पंचायतों के गठन की पहल की गई है। ये समूह ना केवल जानकारी से पूर्ण होंगे बल्कि सामाजिक मुद्दों का सामना करने में नेतृत्व प्रदान करेंगे।

 

प्रारम्भिक चरणों में बच्चों की सहभागिता की अवधारणा पर जागरूकता पैदा करने और जिन मुद्दों पर बच्चे अपना योगदान दे सकते हैं उन्हें लक्षित करके कार्यक्रम तैयार किए गए। बच्चे कैसे शांति और अहिंसा, पर्यावरण की सुरक्षा, आपदा प्रबंधन इत्यादि में योगदान दे सकते हैं , इसपर कार्यशालाएं आयोजित की गईं। लक्ष्य ये था कि बड़ी संख्या में बच्चों तक पहुंचा जाए और उन्हें कुछ सृजनात्मक कार्यों में स्वयं भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाए।

 

जल्दी ही ये महसूस किया गया कि केवल कुछ कार्यशालाएं आयोजित करना और कुछ स्थानों पर बच्चों को सृजनात्मक कामों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना ही पर्याप्त नही है। उनकी भागीदारी वास्तविक रूप से सुनिश्चित करने और एक उत्तरदायी नागरिक के बारे में उनमें समझ सुगम बनाने के लिए ,गांधी स्मृति और दर्शन समिति ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर शिशु पंचायतों की पहल आरम्भ कर बच्चों को एकजुट करने का निर्णय लिया। यह महसूस किया गया कि शिशु पंचायत बच्चों में ज़मीनी स्तर की वास्तविकता की समझ पैदा करने में वाहक का काम कर सकता है और सामुदायिक निर्माण में उनके योगदान को सुनिश्चित कर सकता है। इसके अलावा गांधीवादी मूल्य उत्पन्न करना , सदाचारी नागरिकता के लिए पहल का ही समानार्थक शब्द है।

 

लक्ष्य और उद्देश्य

 

बच्चों और संबंधित पक्षों से विचार विमर्श करके शिशु पंचायत के कुछ व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं। ये हैं

 

 

 

· बच्चों को सक्रिय और उत्तरदायी नागरिक के रूप में विकसित करना

 

· लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान

 

· गांधीवादी मूल्यों को आत्मसात करना और उन्हें प्रयोग में लाना

 

· गंभीर समझ की क्षमता विकसित करना और सामाजिक बदलाव के लिए संचार के प्रयोग को सुगम बनाना

 

· संवाद कौशल बढ़ाना और मीडिया के बारे में समझ विकसित करना

 

· आयोजन और प्रबंधन कौशल को विकसित करना

 

· निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेना

 

· नेतृत्व क्षमता ग्रहण करना और टीम के रूप में काम करना सीखना

 

· नवीनता और सृजनशीलता विकसित करना

 

· समाज के विभिन्न मुद्दों के बारे में ज्ञान विकसित करना

 

· बच्चों के अधिकारों में बारे में ज्ञान हासिल करना

 

· सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता

शिशु पंचायत के लक्ष्य और उद्देशय वृहद रूप से आपस में जुड़े हुए हैं। उदाहरण स्वरूप यह माना गया कि हमारे विविधतापूर्ण समाज में जहां विभिन्न नस्ल, जाति और धर्म के लोग रहते हैं उनमें सक्रिय नागरिकता के लिए गंभीर समझदारी विकसित करना आवश्यक है। इस पहल में एक बड़ा ज़ोर इसमें भाग लेने वालों में संवाद क्षमता विकसित करना है। प्रभावी संवाद कौशल से ही शिशु पंचायत के सदस्य उन मुद्दों पर जागरूकता पैदा कर सकते हैं जिनपर वे काम करना चाहते हैं। इसके अलावा गंभीर चिन्तन क्षमता और संवाद कौशल उत्पन्न करके ही शिशु पंचायत, समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर वार्ता और विमर्श करने की योग्यता हासिल कर सकते हैं।

 

परिवर्तन लाने की मुहिम में मीडिया की समझ और संचार के विभिन्न साधनों के इस्तेमाल पर काफी ज़ोर दिया गया है।आज के सामाजिक दौर में मीडिया में आई व्यापकता के परिप्रेक्ष्य में, मीडिया के प्रति समझ और इसके काम करने के तरीके को जानना आवश्यक है। वॉलपेपर, समाचार पत्र, रेडियो और कॉमिक्स के ज़रिए शिशु पंचायत के सदस्यों को उन मुद्दों के समाधान के लिए जिन्हें वे आवश्यक समझते हैं, मीडिया के कुछ साधनों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

 

अच्छा नागरिक वर्ग तैयार करने के लिए क्षमता वृद्धि, विविधता की समझ, सामाजिक परिवर्तन के लिए संचार का इस्तेमाल, गंभीर सोच और सामाजिक समस्याओं से लड़ने के लिए सक्रिय होना इत्यादि सभी आवश्यक हैं। बच्चों की भागीदारी शिशु पंचायतों के माध्यम से सुनिश्चित करने की पहल का लक्ष्य केवल सक्रिय और ज़िम्मेदार नागरिक बनाना ही नहीं बल्कि इन सबसे उपर एक अच्छा इंसान बनाना है जो बाकी इंसानों से समान रूप से और समान मकसद से जुड़ा हो। इसी पृष्ठभूमि में इस पहल का आधार ही गांधीवादी मूल्यों को आत्मसात करने का है।

 

स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए शिशु पंचायत द्वारा ली गई कई पहल में से एक अति महत्वपूर्ण अभियान पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना है। यह केवल पंचायत के सदस्यों तक ही सीमित नही है बल्कि शिशु पंचायतों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे संगी साथियों में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के उन्हें दिए गए प्रशिक्षणों का इस्तेमाल करें। अधिकांश विद्यार्थी केवल पाठ्य पुस्तकों पर ही निर्भर रहते हैं और अपने खाली समय का उपयोग अन्य उपयोगी पुस्तकों को पढ़ने में नहीं लगाते। यह उनमें सोच की गहराई और प्रश्न उठने की क्षमता में बाधक साबित होती है। यह उनकी कल्पनाशीलता और सृजन प्रतिभा को बढ़ने नही देता। महात्मा गांधी ने कहा था., “निरन्तर प्रश्न पूछना और स्वस्थ जिज्ञासा किसी प्रकार की शिक्षा पाने की पहली अपेक्षा है.”

शिशु पंचायत की संरचना

 

अधिकांश स्थानों पर शिशु पंचायत का गठन विद्यालय स्तर पर किया गया है। प्रत्येक पंचायत में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, मीडिया सचिव, सांस्कृतिक सचिव और कोषाध्यक्ष हैं। ज़्यादातर पंचायत हर सप्ताह बैठक कर विभिन्न मुद्दों और ली जाने वाली पहल पर चर्चा करते हैं। प्रत्येक पंचायत में 20 से 25 सदस्य हैं। कुछ पंचायत में पदाधिकारियों का चुनाव किया जाता है जबकि कुछ में वे मनोनीत किए जाते हैं। किसी भी स्थिति में पदाधिकारियों का कार्यकाल छह महीने का ही होता है। चूंकि लक्ष्य सबमें नेतृत्व क्षमता विकसित करना है इसलिए पदाधिकारी दोबारा मनोनीत नहीं किए जा सकते।

 

कोई पहल शुरू करने से पूर्व पदाधिकारियों द्वारा कार्यक्रम के बारे मे पहले विचार किया जाता है और उसके बाद शिशु पंचायत की बैठकों में इस पर चर्चा होती है।

 

युवा मस्तिष्कों को प्रशिक्षण

 

*गांधीवादी मूल्यों को उनके मन में बिठाना.

 

शिशु पंचायतों के सदस्यों को निम्नलिखित व्यवहार विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए: सत्यवादिता, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, समय की पाबंदी, सत्यनिष्ठा, गंभीरता, दृढ़ता, रचनात्मकता, उत्तरदायित्व, साहस, शांति और अहिंसा, अनुशासन, दूसरों के प्रति सम्मान, न्याय, सहायता और सेवा की भावना, दूसरों की देखभाल।

 

शिशु पंचायत की बैठकों के दौरान इन बातों पर चर्चा होती है कि सिद्धांतों से उपर भी कैसे बेहतर मानव होना अधिक महत्वपूर्ण है। शिशु पंचायत के सदस्यों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे उपर्युक्त मूल्यों पर रचनात्मक पोस्टर, कॉमिक्स, वॉल पेपर, मोबाइल का उपयोग कर वीडियो क्लिप्स बनाएं। उन्हें इसके लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है कि वे इन मूल्यों के संदर्भ अपने अनुभवों के आधार पर जोड़ कर देखें।

 

प्रत्येक शिशु पंचायत का अपना एक विषय गान भी हो सकता है।

*वास्तविक स्थिति की जांच: शिशु पंचायतों को अपने क्षेत्र में विभिन्न् मुद्दों की वास्तविता की जांच के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह उन्हें आधारभूत जानकारी एकत्रित करने में मदद करता है। इसके द्वारा बच्चे साक्षात्कार लेने का कौशल, समुदाय की जटिलताओं को समझने और प्राथमिक स्रोतों के साथ काम करने की क्षमता विकसित करते हैं।

 

*ग्रामीण मूल्यांकन तकनीक में भागीदारी: शिशु पंचायत से सदस्यों को पीआरए अभ्यासों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है

 

*स्थिति का विश्लेषण: वास्तविकता की जांच के बाद विद्यार्थी उन मुद्दों का स्थिति जन्य विश्लेषण करते हैं जिनपर वे काम करना चाहते हैं। अपने प्रयासों से वे विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित करते हैं।

 

*कार्य योजना विकसित करना: बच्चों को प्रशिक्षित किया जाता है कि वे जिस योजना को लागू करना चाहते हैं उनकी आव्यूह योजना तैयार करें

 

*संचार योजना: कार्य योजना लागू करने के लिए , शिशु पंचायत के सदस्य संचार के विभिन्न साधनों का उपयोग करते हैं।

 

· मीडिया साक्षरता प्रशिक्षण

 

· नेतृत्व क्षमता विकास

· टीम का निर्माण

बड़ी भूमिका की ओर छोटे कदम

 

हाल ही में कर्नाटक के बेलगाम ज़िले के गोकाक में विभिन्न विद्यालयों का प्रतिनिधित्व कर रहे करीब सौ बच्चों ने एक अनूठी चित्रकला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसका विषय था “ एक बेहतर दुनिया के लिए स्वयंसेवा : शिशु पंचायत की भूमिका।”

 

उनके द्वारा बनाए गए चित्र इस बारे में बृहद जानकारी देते हैं कि कैसे किशोर और युवा अपनी दुनिया का भविष्य बदलना चाहते हैं। देश भर में बच्चों के इन छोटे पर बड़े ही सार्थक समूह समेतिक विकास के महात्मा गांधी के संदेशों को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।

 

बापू ने एक बार कहा था, “अपने अभियान के प्रति विश्वास से भरा एक प्रतिबद्ध छोटा समूह भी इतिहास की धारा मोड़ सकता है।”

**लेखक सिक्किम केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और जन संचार के विजिटिंग प्रोफेसर हैं

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