-कोच फैक्ट्री की 420 एकड़ जमीन का मामला, कुर्की के आदेश को स्थगित कराने ली जा रही शरण
-सिविल कोर्ट में आवेदन खारिज
आई एन वी सी ,
जिला न्यायालय से कुर्की के आदेश पर राहत न मिलने पर जिला प्रशासन अब हाईकोर्ट की शरण लेगा। 28 साल पहले रेलवे के सवारी डिब्बा पुनर्निमाण कारखाना (कोच फैक्ट्री) के लिए अधिग्रहित की गई 420 एकड़ जमीन का उचित मुआवजा न मिलने पर किसान भी मप्र शासन को चुनौति देने को तैयार हैं।
20 दिसंबर, 2013 को जमीन के एवज में मुआवजा न मिलने पर एडीजे बीके द्विवेदी से कलेक्टर कार्यालय के आला प्रशासनिक अफसरों के वाहनों की कुर्की बनाने के आदेश दिए थे। इस कुर्की से राहत पाने जिला प्रशासन जिला न्यायालय से ही स्टे लेने आवेदन दिया था, लेकिन इसे कोर्ट ने 7 जनवरी को खारिज कर दिया। प्रशासन अब हाईकोर्ट में स्टे के लिए अपील करने जा रहा है। इधर किसानों के अधिवक्ता ने कहा, शुक्रवार को ही जबलपुर हाईकोर्ट में कैविएट दायर करेंगे, जिससे उनका पक्ष सुने बिना जिला प्रशासन या रेलवे को स्टे न मिल सके।
इधर जिला प्रशसन के अधिकारियों ने आवेदन में मुख्य पार्टी सेंट्रल रेलवे को मानते हुए राशि उससे मिलने के बाद ही किसानों को यह राशि दिए जाने की बात कही। एक वरिष्ठ अफसर ने बताया, रेलवे को इस मामले का जल्द से जल्द निराकरण के लिजए कहा गया है।
-नहीं मिली राहत
किसानों की तरफ से अधिवक्ता बीएल रघुवंशी ने कहा, सोमवार को जिला प्रशासन की ओर से स्टे के लिए आवेदन दिया गया था। कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए खारिज कर दिया। प्रशासन ने आवेदन में कहा था कि उक्त जमीन रेलवे के कारखाने के लिए अधिग्रहित की गई है, इसलिए सेंट्रल रेलवे से राशि ली जाए। रेलवे से राशि उपलब्ध होने पर किसानों को राशि वितरित की जाएगी। रेलवे से राशि दिए जाने के संबंध में लगातार चर्चा चल रही है।
-23 को होनी है पेशी
श्री रघुवंशी ने कहा, 28 साल पहले किसानों से ली गई, 420 एकड़ जमीन के मुआवजे को लेकर कुर्की के आदेश के बाद तीन बार न्यायालय का अमला कलेक्टर कार्यालय जा चुका है। बावजूद इसके कार्यवाही नहीं हो सकी। एडीजे कोर्ट में 23 जनवरी को अगली पेशी है। इस पेशी में जहां कुर्की की कारर्वाई में अवरोध उत्पन्न करने के चलते अवमानना संबंधी एक याचिका लगाई जाएगी। अब कोर्ट से कलेकटर कार्यालय की अचल संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए जाने का अग्रह किया जाएगा।
-रेलवे को भी लपटेंगे
420 एकड़ जमीन अधिग्रहण के मामले में कुछ किसानों ने पहले ही हाईकोर्ट में जिला प्रशासन को पार्टी बना रखा है। इसमें रेलवे भी शामिल है। हाईकोर्ट में रेलवे विभाग पहले ही जिला प्रशासन के विपक्ष में याचिका लगाए बैठा है, लेकिन जिला प्रशासन भी हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है। इससे स्पष्ट है कि जिला प्रशासन रेलवे को भी मुख्य पार्टी बनाएगा।
-यह है मामला
सन 1983-84 में प्रदेश सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भोपाल रेलवे को कोच फैक्ट्री स्थापित करने के लिए करीब 420 एकड़ जमीन किसानों से अधिगृहीत करके दी थी। करारिया, भानपुर व छोला क्षेत्र के करीब 44 किसानों की यह जमीन थी, जिसका भू-अर्जन कर मुआवजा भी दिया गया। इसमें किसानों से एक एकड़ से लेकर 21 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी। इन जमीनों का मुआवजा भी 18 हजार रुपए प्रति एकड़ असिंचित व 28 हजार रुपए प्रति एकड़ सिंचित के हिसाब से दिया गया। मुआवजा कम दिए जाने की मांग को लेकर 18 किसानों ने सिविल कोर्ट में जिला प्रशासन केखिलाफ केस लगा दिया। कोर्ट ने वर्ष 2004 में अपना निर्णय सुनाते हुए 1200 रुपए प्रति एकड़ असिंचित व 1800 रुपए प्रति एकड़ सिंचित केहिसाब से किसानों की अतिरिक्त राशि (मुआवजा) देने के निर्देश दिए। इसके बाद जिला प्रशासन ने किसानों को रेलवे के पास भेज दिया। रेलवे ने अपना मामला न होने की बात कहते हुए किसानों को वापस जिला प्रशासन के पास भेज दिया।
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