– अरुण तिवारी –
पृथ्वी दिवस – हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 22 अप्रैल को आ ही गया अंतर्राष्ट्रीय मां पृथ्वी का यह दिन। सोचना यह है कि हम इसे कैसे मनायें ? सीधे कहूं तो पृथ्वी दिवस पर दुनियाभर में गोष्ठी, सेमिनार, संवाद, कार्यशालायें आयोजित होती ही हैं। इनमें भाग ले सकते हैं; इनका आयोजन कर सकते हैं; इनके आयोजन में मदद कर सकते हैं। इसके लिए कोई बङे खर्च और आयोजन की जरूरत नहीं। आप चाहें तो अपने आसपास के बच्चों को इकट्ठा कर पृथ्वी की चुनौतियों और उसके समाधान में उनकी भूमिका चर्चा कर सकते हैं। उनकी नदी, बरगद, गोरैया से मित्रता करा सकते हैं।
सरोकार समझें और समझायें
प्रथम पृथ्वी दिवस के आयोजन में शामिल सरोकारों का संदेश साफ है कि पृथ्वी के सरोकार व्यापक हैं। अतः संचेतना और सावधानियां भी व्यापक ही रखनी होगी। यदि पृथ्वी की चिंता करनी है, तो सृष्टि के हर अंश की चिंता करनी होगी। हम इंसानों की चिंता इसमें स्वयमेव शामिल है। इसके लिए आप कुछ छोटे कदम तय कर सकते हैं। बङे, बच्चों को बता सकते हैं कि यदि वे अपनी काॅपी के पन्ने बर्बाद न करें, तो इससे कैसे धरती की मदद होगी। उन्हे यह भी बतायें कि इससे अंततः कैसे इंसानी जीवन को बेहतर रखने में मदद मिलेगी। प्रकृति की सुरक्षा और हमारी सेहत, रोजगार, आर्थिकी व विकास के रिश्ते को बताये बगैर बात बनेगी नहीं। इस रिश्ते को समझाना भी पृथ्वी दिवस का ही काम है। लेकिन बच्चों को बताने से पहले एक बात सुनिश्चित कर लें कि आप खुद भी उस काम को अंजाम दे दें, जिसे करने की आप बच्चों से अपेक्षा कर रहे हैं। कोरी बातें न करें । अच्छी बातों को कार्यरूप दें; वरना् वे बेअसर रहेंगी। बच्चे भी यही काम, बङों को समझाकर कर सकते हैं।
चौपाई गायें: पृथ्वी समझायें
हनुमान चालीसा में एक चौपाई है: ”युग सहस्त्र योजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू।” इसका मतलब है कि बाल हनुमान ने एक हजार युग योजन दूर स्थित सूर्य को मधुर फल समझकर निगल लिया। एक युग यानी 12,000 वर्ष, एक सहस्त्र यानी 1000 तथा एक योजन का मतलब होता है – 8 मील। एक मील बराबर होता है – 1.6 किलोमीटर। इस प्रकार एक हजार युग योजन का मतलब है – 12000 गुणा 1000गुणा 8 गुणा 1.6 = 153.60 करोङ किलोमीटर; अर्थात पृथ्वी, सूर्य से 153.60 करोङ किलोमीटर दूर स्थित एक ग्रह है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह वैज्ञानिक आंकङा एक चौपाई के रूप में पेश किया। नासा ने भी सूर्य से पृथ्वी की यही दूरी मानी है। विज्ञान के ऐसे अनेक सूत्र और धरती व इसकी रचनााओं के लिए हितकारी अनेक निर्देश भारत के पुरातन शास्त्रों, लोकगाथाओं में मौजूद है। इन्हे नई पीढी के समक्ष पेशकर हम न सिर्फ पृथ्वी दिवस के संदेश को आगे बढाने का काम करेंगे, भारतीय ज्ञानतंत्र के प्रति विश्वास और सम्मान बढाने का भी काम करेंगे। अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए परावलंबन, कभी किसी जीव के लिए हितकारी नहीं होता।
कुछ नारे
हम चाहें तो पृथ्वी दिवस के संदेश को आगे ले जाने के लिए लिए नारे लिख सकते हैं। कहीं और नहीं, तो अपने घर के बाहर, स्कूल के अंदर या अपनी मेज पर धरती बचाने के लिए कोई एक नारा लिखकर टांग सकते है:
”पानी बचेगाः सेहत बचेगीः पैसा बचेगा: पलायन रुकेगाः रोजगार बढेगा”
”भगवान यानी भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि, न से नीर”
”पंचतत्व ही है भगवान, इनकी समृद्धि कार्य महान”
”कचरा फैलाना गंदी बात”
”नदियां हमारी जीवन रेखा हैं, कोई कूङादान नहीं।”
‘धरती बचाओ: पेङ लगाओ।”
”अपव्यय घटेगा: पृथ्वी बचेगी”
”क्लीन स्ट्रीट: ग्रीन सिटी”
कुछ संकेत
हां, पर कुछ खास बताओ यार ?
खास ? ..तो यह भी कर सकते हैं कि गली में कचरा फेंकने वाले घर/दुकान अथवा प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरी को चिन्हित करें और पृथ्वी दिवस पर उसके बाहर एक पोस्टर लगायें: ”इस घर/ दुकान/फैक्टरी को कचरा फैलाना पसंद है।’’ ….या फिर कचरा फेंकने के खिलाफ कचरा फेंकने वाले के दरवाजे पर मौन.. शांतिपूर्ण सांकेतिक प्रदर्शन करें। उनकी सूची बनाकर किसी एक सार्वजनिक स्थल पर लगायें।
अपनी भूमिका तलाशें
ये तो बस एक आइडिया है। यदि आपको ये काम अपने लिए मुफीद नहीं लगते, तो आप कुछ और काम सोच और कर सकते हैं। बस! कुछ भी करने से एक बात जरूर समझ लें कि पृथ्वी कोई एक गोेला मात्र नहीं है; पृथ्वी पंचतत्वों से निर्मित जींवत प्रणालियों का एक अनोखा रचना संसार है। रचना और विनाश, ऐसी दो प्रक्रियायें जो इसे हमेशा नूतन और सक्रिय बनाये रखती हैं। इसकी रचना, विकास और विनाश में हर जीव की अपनी एक अलग भूमिका है। जब-जब हम इस भूमिका का निर्वाह करने में चूक करते हैं, पृथ्वी हम चेताती है। अमीबा, चींटी, बिल्ली, सियार, कौआ, बाघ तक सभी की कुछ न कुछ भूमिका है। सहयोगी भूमिका पहाङ, पठार, रेगिस्तान, तालाब, झील, समंदर, नमी से लेकर उस पत्थर की भी है, जो नदी के बीच खङा नदी के प्रवाह को चुनौती देता सा प्रतीत होता है। यदि हमने धरती की चुनौतियों और इनके समाधान में प्रत्येक की भूमिका समझने का थोङा भी प्रयास किया, तो हमें अपनी भूमिका स्वयंमेव समझ आ जायेगी।
नामकरण का संदेश फैलायें
भारतीय संस्कृति तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कहती ही रही है। 22 अप्रैल – ‘अंतर्राष्ट्रीय मां पृथ्वी का दिन’ का नामकरण भी यही संदेश देता है कि हम सभी की मां एक है। इसके मायने व्यापक हैं। इसकी पालना करें तो दुनिया के देशों के बीच दूरियां स्वतः काफी कम हो जायें; राजनैतिक, आर्थिक और सामरिक समीकरण काफी बदल जायें। काश! कभी हम यह कर सकें।
चुनौती और समाधान की पहचान भी एक काम
हमें विचार करना चाहिए कि आखिर वे कौन से कारण हैं, जो वैश्विक माता पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कौन से कार्य हैं, जो पृथ्वी की हवा, पानी, मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं ? किन वजहों से धरती की गर्म हो रही है ? पृथ्वी मां को हो रहे बुखार के कारण को पहचानें। वनस्पतियां, पृथ्वी माता के फेफङे हैं; नदियां, इसकी धमनियां। इनके काम में कौन और कैसे रुकावट डाल रहा है ? सोचें कि कैसे पृथ्वी पर प्रकृति के बनाये ढांचों को नष्ट किए बगैर, इंसान अपने लिए जरूरी ढांचे बना सकता है ? पृथ्वी दिवस पर एक पौधा लगाकर उसकी सेवा का संकल्प इसमें मददगार हो सकता है।
प्याऊ लगाओ: भूजल बढाओ
पृथ्वी दिवस से छह दिन बाद 28अप्रैल को अक्षय तृतीया है। यह अबूझ सावा होता है। शुभ काम करने के लिए इस दिन किसी से मुहूर्त पूछने की जरूरत नहीं। शास्त्रों में इस दिन से आगे पूरे बैसाख-जेठ तक प्याऊ लगाने को पुण्य का काम माना गया है। भारत के कई इलाकों में ऐसा होता है। आप भी अपना एक छोटा सा प्याऊ लगा सकते हैं। प्याऊ: पानी के बाजार के खिलाफ एक औजार !
अक्षय तृतीया से जलसंरचनाओं की गाद निकालने और पाल को ठीक करने का काम करने के निर्देश हैं। ऐसा कर आप धरती और स्वयं की मदद ही करेंगे।
अपव्यय घटायें: पृथ्वी बचायें
जिस चीज का ज्यादा अपव्यय करते हों, संकल्प ले सकते हैं – ”मैं इसका त्याग करुंगा अथवा अनुशासित उपयोग करुंगा।” सामर्थ्य होते हुए भी कम से कम कपङे, एक जोङी जूते में गुजारा चलाने का संकल्प ले सकते हैं। ध्यान रहे कि अपव्यय और कंजूसी में फर्क होता है। ”खाऊंगा मनभरः छोङूंगा नहीं कणभर” यानी थाली में झूठा नहीं छोङूंगा। यह जूठन छोङना कंजूसी नहीं, अपव्यय है। गांव में तो यह जूठन मवेशियों के काम आ जाता है अथवा खाद गड्ढे में चला जाता है। ऐसा करके आप भोजन का अपव्यय रोक सकते हैं।
तय कर सकते हैं कि दूध लेने के लिए मैं दुकानदार से पाॅलीथीन की झिल्ली नहीं लूंगा। इसके लिए घर से सदैव एक पाॅलीथीन बैग लेकर जाऊंगा। ऐसा कर आप एक वर्ष में 364 झिल्लियों का कचरा कम करेंगे।
यदि हम बाजार से घर आकर कचरे के डिब्बे में जाने वाली पाॅलीथीन की झिल्लियों को घर में आने से रोक दें तो गणित लगाइये; एक अकेला परिवार ही अपनी जिंदगी में कई सौ किलो कचरा कम कर देगा; दुकानदार का झिल्ली खरीदने पर खर्च कम होगा, सो अलग। मात्र एक झोला अपने साथ रखकर हम यह कर सकते हैं। इस तरह एक बात तो तय है कि हम जो कुछ भी बचायेंगे, अंततः उससे पृथ्वी का हित ही होगा। इससे धरती बचेगी और हम भी। …..तो मित्रों, इस पृथ्वी दिवस पर आप क्या करने वाले है ? पहले से सोचें और करना तय करें। हमें भी बतायें। अपने दोस्तों से साझा करें। उन्हे ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।
ऐसा कर आप पृथ्वी के दोस्त बन जायेंगे और पृथ्वी आपकी। दोनो मिलकर ही एक-दूसरे की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। आइये, इस पृथ्वी दिवस पर कोई अच्छी पहल करें। भूले नहीं कि हर अच्छी शुरुआत स्वयं से ही होती है। यह भी याद रखें कि हर बङे बदलाव की शुरुआत छोटी ही होती है। परिणाम की चिंता करे बगैर आइये, करें।
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अरुण तिवारी
लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता
1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।
1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।
इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।
1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम।
साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।
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ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी, जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश , डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844
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