– निर्मल रानी –
भारतवर्ष के मानचित्र में दक्षिणी छोर के सागर तट पर बसा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर राज्य केरल इन दिनों बाढ़ की भीषण विभीषका से जूझ रहा है। भारतीय सेना के तीनों अंग, थल सेना,नौसेना तथा वायु सेना के अतिरिक्त तटरक्षक व एनडीआरएफ की टीमें बड़े पैमाने पर राहत व बचाव कार्य में लगी हुई हैं। केरल देश के उन राज्यों में शामिल है जहां अन्य राज्यों की तुलना में प्राय: सामान्य से अधिक वर्षा रिकॉर्ड की जाती है। इन दिनों में देश में प्राय: ग्रीष्मकालीन मानसून आता है जिसके कारण भारी बारिश होती है। हालांकि सामान्य मानसून के दौरान कभी-कभी कम दबाव के क्षेत्र भी बनते हैं जिसकी वजह से अधिक बारिश की संभावना भी रहती है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय केरल में होने वाली भारी बारिश का कारण हिमालय की भौगोलिक स्थिति तथा पश्चिमी घाट के कारण असामान्य बारिश की स्थिति पैदा हुई है।
दक्षिण-पश्चिम तट पर हिमालय के समानांतर चलने वाली चोटियां दक्षिण-पश्चिम मॉनूसन के दौरान उत्तरी हिंद महासागर व अरब सागर से आने वाली गर्म हवाओं में पाई जाने वाली नमी इस पर्वत श्रेणी से टकराने के बाद ऐसी भीषण बारिश का रूप धारण कर लेती है। यह तो थे वह वैज्ञानिक तथ्य जो शिक्षित एवं योग्य मौसम वैज्ञानिकों द्वारा हमें केरल की बाढ़ के संबध में बताए गए हैं। परंतु हमारे देश में एक ऐसा निकृष्ट,निकम्मा तथा बेसिर-पैर की बातें करने वाला मु_ी भर जाहिलों का वर्ग भी है जो ऐसी प्राकृतिक विपदाओं को भी अपने अज्ञान के आधार पर परिभाषित करना चाहता है।
गौरतलब है कि केरल देश की लगभग साढ़े तीन करोड़ की जनसंख्या रखने वाला पहला ऐसा राज्य है जहां दशकों पूर्व से लगभग शत-प्रतिशत साक्षरता दर्ज की जाती रही है। इस राज्य में सभी धर्मों व जातियों के लोग शांतिप्रिय व सद्भावना पूर्ण तरीके से रहते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य व संपदा से भरपूर यह राज्य भारतवर्ष के लिए भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित करता है तथा पर्यट्कों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के निर्माण में इस राज्य का महत्वपूर्ण योगदान है। परंतु आमतौर पर वामपंथी विचारधारा का गढ़ समझे जाने वाले इस राज्य में केरलवासी अपनी मनमजऱ्ी का खानपान करते हैं। परंतु दलीय राजनीति तथा खान-पान को लेकर वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर पर जानबूझ कर मचाए जाने वाले शोर-शराबे ने केरल की बाढ़ को भी लपेटने की कोशिश की है। भारतीय जनता पार्टी के कर्नाटक के एक विधायक ने केरल में जारी बाढ़ की विभीषका पर अपना ‘ज्ञान’ बांटते हुए यह फरमाया है कि-‘इस राज्य के लोग हिंदुओं की भावनाओं को प्रभावित करने के कारण पीडि़त हैं’। विधायक महोदय आगे कहते हैं कि ‘गायों का वध करना हिंदुओं की भावनाओं के विरुद्ध है। अब आप स्वयं देख सकते हैं कि केरल में क्या हुआ’ वहां खुलेआम गायों को कत्ल कर दिया जाता था और एक साल से भी कम समय में आपको यह देखने को मिला है। उन्होंने श्राप देने के अंदाज़ में यह भी कहा कि जो भी हिंदू समुदाय की भावनाओं को नुकसान पहुंचाएगा भगवान उसे इसी तरह दंडित करेंगे।
गौकशी केरल का एक ऐसा विषय है जिसमें किसी धर्म विशेष के नहीं बल्कि केरल के सभी धर्मों व सभी राजनैतिक दलों के लोग शामिल रहते हैं। स्वयं भाजपा नेताओं द्वारा केरल व पूर्वोत्तर जैसे राज्यों में बीफ पार्टी का आयोजन कर मतदाताओं को यह बताने की कोशिश की जा चुकी है कि भाजपा को गौमांस खाने या खिलाने से कोई आपत्ति नहीं है। गोआ तथा मणिपुर जैसे राज्यों में भी यह बात साबित हो चुकी है। परंतु नासा द्वारा बताए गए केरल की बाढ़ के कारण अपनी जगह और कर्नाट्क के विधायक का बयान अपनी जगह। अब आिखर जनता इनमें से किस बयान को सही समझे और बाढ़ के किस कारण को सही मानें? कर्नाट्क के विधायक वसंत गौड़ा पाटिल को इसी क्रम में यह भी बताना चाहिए कि केदारनाथ में 2013 में आई भयंकर बाढ़ जिसमें लगभग 6 हज़ार लोग मौत की आगोश में समा गए थे और तकऱीबन पैंतालीस सौ गांव तबाह हो गए थे उस आपदा का कारण क्या था? उत्तरांचल के लोग तो अत्यंत सज्जन,सौम्य व धार्मिक प्रवृति रखने वाले तथा प्रकृति प्रेमी माने जाते हैं। इस राज्य में तो गौकशी नहीं होती? ऐसे समाचार अक्सर मिलते रहते हैं कि कभी किसी तीर्थयात्रा में जाने वाले परिवार पर कुदरत का कहर टूट पड़ा तो कभी ऐसे ही तीर्थयात्री किसी दुर्घटना का शिकार हो गए। कोई भूस्खलन में दब गया तो कोई बर्फबारी का शिकार हो गया। कभी हज के दौरान भगदड़ में लोग मारे गए तो कभी हाजियों के तंबुओं में आग लगने से कोई बड़ा हादसा पेश आ गया। कुंभ के मेले के दौरान तो कई बार भगदड़ मच चुकी है और सैकड़ों लेाग मारे भी जा चुके हैं। गोया किसी भी प्राकृतिक या आप्रकृतिक घटना या दुर्घटना का किसी के धर्म-कर्म या खान-पान से क्या नाता?
एक ओर तो बाढ़ की विभीषका को इस प्रकार से परिभाषित करने का बड़े पैमाने पर खेल खेला जा रहा है तो दूसरी ओर इसी राज्य की शिक्षित जनता इस मुसीबत में भी कई ऐसे उदाहरण पेश कर रही है जो शेष भारत की जनता तथा भारत सरकार व अन्य राज्यों की सरकारों के लिए भी आदर्श पेश करते हैं। उदारहण के तौर पर भारत सरकार द्वारा जहां 6 सौ करोड़ रुपये की सहायता केरल राज्य को दी गई है वहीं इससे कई गुणा अधिक धनराशि स्वयं केरलवासियों ने मध्य एशियाई देशों से इक_ी कर भेजी है जो उन देशों में अप्रवासी भारतीयों के रूप में काम कर रहे हैं। दूसरी ओर जहां गौकशी को बाढ़ से जोडक़र सामाजिक ताना-बाना बिगाडऩे का प्रयास किया जा रहा है वहीं इसी राज्य में बाढ़ के दौरान ही लोगों की धार्मिक सद्भावना भी सिर चढक़र बोल रही है। केरल के वाएनाड जि़ले में दर्जनों मुस्लिम युवकों द्वारा कीचड़ व गाद से भरे हुए वेनियोडे श्री महाविष्णु मंदिर की सफाई की गई तथा उसे पूजा-अर्चना योग्य बनाया गया। यही काम मुस्लिम युवकों ने ही पलक्कड़ जि़ले के अयप्पा मंदिर में भी किया। मंदिर की मुसलमान युवकों द्वारा सफाई करने के बाद ही यहां भी पूजा-अर्चना शुरु हो सकी। इसी प्रकार बकरीद का दिन होने के कारण नमाजि़यों की संख्या अधिक होने की वजह से बाढ़ की चपेट में आई मस्जिद नमाज़ पढऩे योग्य नहीं थी। ऐसे में एक मंदिर के प्रांगण राज्य के मुसलमान भाईयों के नमाज़ अदा करने के लिए खोल दिए गए जहां मुसलमानों ने बकरीद की नमाज़ अदा की।
इस प्रकार की घटनाओं का एक अंतहीन सिलसिला जारी है। ऐसी सोच रखने वाले लोग समाज में दरार पैदा करने का कोई भी अवसर गंवाना नहीं चाहता। ऐसे शातिर,चतुरबुद्धि लोग न तो प्राकृतिक आपदा की घड़ी देखते हैं न ही इन्हें त्यौहारों में किसी की खुशी अच्छी लगती है। भाईचारा,सद्भाव समाज में लोगों का मिलजुल कर रहना इन्हें बिलकुल नहीं भाता। यही वजह है कि इनके मुंह से या तो ज़हर निकलता दिखाई देता है या फिर यह अपने ‘महाज्ञान’ की ‘अंधेरी ज्योति’ इसी प्रकार जलाते रहते हैं। जब तक हमारे देश को ऐसे अज्ञानियों से छुटकारा नहीं मिलेगा तब तक देश की जनता इसी प्रकार के उटपटांग,निरर्थक व छिछोरे बयानों को सुनने के लिए मजबूर रहेगी।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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