टी. नन्दकुमार**
[आईएएस सचिव, कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार]
कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यह राष्ट्रीय आय में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान करता है और देश के आधे से अधिक श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इतने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद आजादी के बाद के पिछले छह दशकों में इसकी प्रगति अनियमित रूप में रही है। यहां तक कि कृषि क्षेत्र के अंतर्गत ही कुछ क्षेत्रों में सराहनीय वृध्दि हुई है तो वही कुछ क्षेत्रों में बहुत धीमी गति देखी गई है। चार वर्ष पूर्व सरकार ने कृषि क्षेत्र में वृध्दि की संभावनाओं-ताकतों और कमजोरियों पर समग्र दृष्टिकोण से विचार करने और इसमें पुन: जागृति लाने के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक दोनों प्रकार के उपायों को अमल में लाने का निश्चय किया।
इसके सम्बध्द मुद्दों की उचित समझ आवश्यक थी — इसलिए सरकार ने प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया। आयोग द्वारा की गई अनेक सिफारिशों पर अमल किया भी जा चुका है और कुछ पर कार्यान्वयन अनेक चरणों में चल रहा है।
राज्यों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद यह महसूस किया गया है कि दसवी योजना में कृषि क्षेत्र की वार्षिक वृध्दि दर लगभग 2.5 प्रतिशत से बढक़र ग्यारहवीं योजना में 4 प्रतिशत तक की जा सकती है, बशर्ते कि केन्द्रित रूप में उन पर कार्य किया जाए। शुरू के दो वर्षों के दौरान 4 प्रतिशत से अधिक की वृध्दि हासिल कर लेने से हमें विश्वास हो गया है कि अगले तीन वर्षों और उसके बाद भी वृध्दि की इस रपऊतार को जारी रखा जा सकेगा।
कृषि क्षेत्र में समग्र रूप से तीव्र वृध्दि दर का लक्ष्य रखते हुए सूझबूझ के साथ यह निर्णय लिया गया है कि नीति संबंधी सभी पहलों में कृषकों को केन्द्र बिन्दु में रखा जाए। 2007 की नीति में, कृषि क्षेत्र में सभी सरकारी प्रयासों का प्रमुख लाभ प्राप्तकर्ता किसान को माना गया है।
कृषि-उत्पादन बढ़ाने की एक प्रमुख नीति यह रखी गई कि ऐसे जिलों की पहचान की जाए जहां सरकार द्वारा केन्द्रित उपायों के जरिये प्रमुख खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता में सुधार लाया जा सके। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए 5000 करोड़ का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू किया गया। इस मिशन के तहत लगभग 300 चिन्हित जिलों में बढ़िया किस्म के बीजों और उर्वरकों, त्रऽण तथा प्रसार सहयोग उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया। परिणामस्वरूप वर्ष 2012 तक चावल, गेहूँ और दालों की उत्पादकता में वृध्दि हुई। चावल का अतिरिक्त उत्पादन 100 लाख टन, गेहूं का 80 लाख टन और दालों का 20 लाख टन हुआ। इसके कार्यान्वयन के प्रथम वर्ष के दौरान ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं अन्य प्रमुख योजना– राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शुरू की गई जिसका उद्देश्य कृषि और अन्य सम्बध्द कार्यकलापों में और अधिक निवेश करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहन देना था। केन्द्र सरकार 11वीं योजना के दौरान कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए राज्यों को 25000 करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध करा रही है। राज्यों से भी अतिरिक्त धनराशि प्राप्त होने पर कृषि क्षेत्र में पर्याप्त निवेश होने लगेगा, इससे न केवल खाद्यान्नों का उच्चतर उत्पादन होगा बल्कि अन्य फसलों और पशु उत्पादों में भी वृध्दि होगी और इस प्रकार इस क्षेत्र में परिसम्पत्तियों का उत्पादन होगा और इसकी दीर्घकालीन वृध्दि में योगदान मिलेगा।
विभिन्न मौजूदा योजनाओं के विस्तार से पिछले तीन वर्षों के दौरान कृषि एवं सम्बध्द क्षेत्रों में निवेश बढा है। तिलहनों, दालों तथा मक्के के लिए समेकित योजना के लिए व्यय तथा कृषि योजना के वृहद प्रबंधन में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है।
इस समय किए जा रहे निवेशों के परिणामस्वरूप बेहतर प्रौद्योगिकी अपनाने, निवेशों के और अधिक उपयोग तथा विपणन सुविधाओं के स्थापित होने में सहायता मिलेगी। 11वीं योजना और उसके बाद भी ग्रामीण विकास तथा रोजगार योजनाओं के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में टिकाऊ वृध्दि होगी।
बड़े पैमाने पर एक अन्य हस्तक्षेप है–2008-09 में ऋण वसूली रोक देना और ऋण राहत। एक ही झटके में 71,000 करोड़ रुपए से अधिक रकम लगभग 4 करोड़ रुपए कर्ज से ग्रस्त किसानों के ऋण खातों में चली गई है। इसने न केवल उन किसानों से कर्ज का बोझ हटा लिया है बल्कि जो अपने ऋण चुका नहीं पा रहे थे, बल्कि उसने उन्हें बैंकिंग क्षेत्र से ताजा ऋण लेने के योग्य बना दिया है।
पहले ऋण राहत से मात्र एक बार के लिए सुविधा हो पाती थी परन्तु अब सरकार कृषि क्षेत्र के लिए अधिक से अधिक त्रऽण उपलब्ध कराने के लिए बैंकों को प्रोत्साहन दे रही है। उधार लेने को आसान तथा पारदर्शी बनाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। 300,000 रुपए तक का ऋण 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दर की छूट पर डिस्काउन्टेड दर दी जाती है। इनके अतिरिक्त अन्य प्रयासों के परिणामस्वरूप पिछले पाँच वर्षों में कृषि ऋण में तीन गुनी से अधिक वृध्दि हुई है।
पिछले चार वर्षों में प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों को बढ़ाने का कृषि पर बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ा था, इसने किसानों के लिए लाभकारी कीमतें सुनिश्चित कर दी है। इससे खाद्यान्नों की रिकार्ड सरकारी खरीद भी हुई है तथा खाद्य पदार्थों की कीमतें स्थर रहीं। हाल में सरकार ने अधिकतम बिक्री मूल्य निर्धारित करने के फार्मूले में संशोधन किया है, जिससे किसानों को उनकी उपज की क्षतिपूर्ति बेहतर तरीके से हो सके।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में खाद्यान्नों तथा कुछ अन्य प्रमुख फसलों का उत्पादन रिकार्ड स्तरों तक पहुंच चुका है। स्थिरता की लम्बी अवधि के बाद इसने पुनर्जागरण के प्रारंभ का संकेत दिया है। खाद्यान्नों की मांग जो अपने आप बढती रही है, उसके लिए खाद्यान्न का पर्याप्त सुरक्षित भंडार तैयार करने के मामले में हम सक्षम हो चुके हैं। ऐसे समय, जबकि विश्व भर में खाद्यान्न सुरक्षा चिन्ता का विषय बनी हुई है, भारत खाद्यान्न मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर है। सरकार की कार्यसूची में कृषि से लेकर बागवानी और अन्य क्षेत्रों को भी सरकारी सूची में ऊंचाई पर रखा गया है।
किसानों की आमदनी बढ़ाने के अलावा संसाधनों का बेहतर उपयोग, खाद्यान्न और उत्पादन बढ़ाने के अलावा, रोजगार का सृजन करना और अन्य गतिविधियों की वृध्दि एवं संसाधनों का बेहतर उपयोग करना आवश्यक है। बागवानी अत्यधिक क्षमता वाली ऐसी ही प्रमुख गतिविधि है। बागवानी को एक मिशन का रूप देकर उसे प्रोत्साहन देने के लिए उत्तर-पूर्व और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में हार्टिकल्चर को राष्ट्रीय बागवानी मिशन का रूप दे दिया गया है। इन मिशनों द्वारा की गई पहल का प्रभाव कुछ वर्षों के बाद हो सकेगा, जबकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की वृध्दि और बागवानी उत्पादन में पहले ही उच्च वृध्दि दिखाई पड़ने लगा है। मछली पालन, डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण जैसे सहयोगी क्षेत्रों को भी पोषाहार सुरक्षा, रोजगार तथा ग्रामीण आय में वृध्दि अर्जित करने के लिए प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
कृषि क्षेत्र में उभरते हुए आर्थिक अवसरों को देखते हुए निजी कम्पनियों और व्यक्तिगत उद्यमों ने भी निवेशों तथा सेवाओं में प्रवेश शुरू कर दिया है। लोजिस्टिक सुविधाएं, मौसम संबंधी सूचना, मछली पालन, डेयरी, पोल्ट्री, फूलों की खेती, जड़ी-बूटियों वाली दवाएं तथा निर्यात आदि। सरकार इन कार्यों में प्रोत्साहन देने तथा कृषि क्षेत्र में उनके प्रवेश करने में आने वाली रुकावटें दूर करने की इच्छुक है।
निसंदेह, कृषि तथा अन्य सम्बध्द क्षेत्रों की पूरी क्षमता का उपयोग करने के रास्ते में आने वाली तमाम समस्याओं का तुरन्त और दृढता से समाधान करने की जरूरत है। अधिकतर किसानों की वर्षा पर निर्भरता और छोटे-छोटे खातों की समस्या आदि कृषि के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के मामले में कठिनाइयां पैदा करती हैं। इनका समाधान करने का एक ही तरीका है–केन्द्रित नीतियां और सरकार इसी दिशा में कार्यरत हैं। पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान इन नीतियों की कड़ी परीक्षा हुई है और उनसे तीव्र वृध्दि, किसानों को बेहतर कीमतें तथा खाद्य पदार्थों की उपयुक्त कीमतें प्राप्त होने में सफलता मिली है। हम कृषि के लिए इस तरह सहयोग देने के लिए वचनबध्द हैं और हम ऐसा सब कुछ करेंगे जिससे देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
लेखक टी. नन्दकुमार **
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और भारत सरकार के कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय में सचिव पद पर कार्यरत हैं,
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