एक मदरसा ऐसा भी

{ जावेद अनीस }  ”हिंदुस्तान दारुल अमन है, (ऐसा मुल्क जहॉ गैर इस्लामी हुकूमत हो लेकिन वहॉ मुसलमानों के जान-माल की हिफाज़त हो और उनको अपने मज़हब की पाबंदी की पूरी आजादी हो ) और यहॉ का संविधान अपने अल्पसंख्यकों को खास अधिकार देता है। इसलिए ये जरुरी हो जाता है कि हिन्दुस्तान के सभी आलिमों और दीनी तालीम हासिल कर रहे तालिब इल्मों ( विद्यार्थियों ) को मुल्क के आईन (संविधान) सहित उन सभी चीजों को जानना और सीखना बहुत जरुरी है जिनको एक आम भारतीय को रोजमर्रा की जिदंगी में जरुरत पड़ती है।”

वैसे तो उपरोक्त बातें नयी नही हैं लेकिन अगर किसी दीनी मदारिस के सदर मुदर्रिस इस तरह की बात कहते हैं तो आम धारण के विपरीत यह नयी बात ही है। उपरोक्त बातें सूबा मध्यप्रदेश के छोटे से शहर खंड़वा (जो कि महान गायक किशोर कुमार की पैदाईस स्थल है ) से करीबन 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित मदरसा जामिया खैरुल उलूम के सदर मुदर्रिस ने कही थी।

मदरसा अरबी भाषा का शब्द है एवं इसका अर्थ है शिक्षा का स्थान। इस्लाम धर्म एवं दर्शन की उच्च शिक्षा देने वाली शिक्षण संस्थाएं भी मदरसा कहलाती है। वास्तव में मदरसों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा देने वाले मदरसों को मकतब कहते है। यहाँ इस्लाम धर्म का प्रारंभिक ज्ञान कराया जाता है। मध्यम श्रेणी के मदरसों में अरबी भाषा में कुरान एवं इसकी व्याख्या, हदीस इत्यादि पढ़ाई जाती है। इससे भी आगे उच्च श्रेणी के मदरसे होते हैं । इनके अध्ययन का स्तर बी.ए. तथा एम.ए. के स्तर का होता है। इनमें अरबी भाषा का साहित्य, इस्लामी दर्शन, यूनानी विज्ञान इत्यादि विषयों का अध्ययन होता है। इन उच्च शिक्षा संस्थानों का पाठ्यक्रम दार्से-निजामी कहलाता है। इसे मुल्ला निजामी नाम के विद्वान ने अठारहवीं शताब्दी में बनाया था ।

वर्तमान में मदरसों के सामने सबसे बड़ी चुनौती वहाॅ से पढ़ कर निकलने वाले स्नातकों के रोजगार का है। यहाँ  से पढ़ कर निकलने वाले बच्चों के सामने बहुत सीमित विकल्प होते हैं जैसे कि मदरसों में शिक्षण, मस्जिदों में इमामत, इस्लामी फतवा देने वाले संस्थाओं में नौकरी और अरबी से अन्य भाषा में अनुवादक का ही विकल्प होता है। इन सब बातों का ध्यान रखते हुए कुछ मदरसों ने अपने पाठ्यक्रम में समय की जरूरत के हिसाब से बदलाव कर रहे रहीं। लेकिन ऐसे मदरसों की संख्या बहुत कम है । मदरसा जामिया खैरुल उलूम, खंड़वा भी इन्हीं गिने – चुने मदरसों में से एक हैं ।

मदरसा जामिया खैरुल उलूम के बारे में हमें जानकारी भोपाल से निकलने वाले अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइमस में अगस्त माह में छपी एक न्यूज स्टोरी से हुई, जिसमें बताया गया था कि किस तरह से मदरसा अपने 450 तालिब इल्मों को दीनी के साथ साथ दुनियाबी तालीम भी दे रहा है। स्टोरी पढ़ने के बाद हमें भी मदरसा देखने की दिलचस्पी हुई थी।

मदरसा जामिया खैरुल उलूम के इस खुली सोच और माहौल के पीछे इसके बानी तथा “जामिया अरबिया हिथोरा”, बांदा के संस्थापक और बुन्देलखंड़ के मशहूर आलिम मौलाना कारी सिद्दीक अहमद बांन्दवी जैसी शख्सियत का दारुल उलूम पर प्रभाव है।

सदर मुदर्रिस मौलाना मोहम्मद हाशिम तथा लखनऊ से अपने बच्चों का यहॉ दाखिला कराने आये उनके पुराने दोस्त ने हमसे बातचीत के दौरान जिस तरह से सिद्दीक अहमद बांन्दवी साहब के संबधित घटनाओं और उनके चमत्कारों के बारे में बता रहे थे वह संगठित इस्लाम के उस दायरे से बाहर भारत के स्थानीय इस्लाम और सूफी परम्परा के करीब थी जो आज भी देश के दूसरे सम्प्रदायों के लिए सम्मानजनक और काफी हद तक सांझी आस्था का प्रतीक है।

कारी सिद्दीक अहमद बांन्दवी बुंन्देलखंड़ के मशहूर आलिम थे जिन्हें उनकी रुहानिय्त और सूफीयाना मिजाज के लिए माना जाता है, बांन्दवी साहब ने कई सारे तालीमी इदायरे कायम किये हैं।

दरअसल इस इदारे का कयाम हजरत् कारी सिद्दीक अहमद बांन्दवी के फिक्र और कोशिश की वजह से ही 1989 में हो सका था। बांन्दवी साहब ने अपने दो तालिम इल्मों को इस मदरसे के खिदमद के लिए चुना था। ये दोनों हजरात पिछले करीब 25  सालों से मुसलस दारुल उलूम की खिदमत करते आ रहे हैं। बांन्दवी साहब ने इस मदरसे के तालिमी निगरानी की जिम्मेदारी मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी के सूपूर्द की थी। वस्तानवी साहेब आज भी इस मदरसे के सरपरस्त और निगरां है।

मदरसे की अपनी 12 एकड जमीन है जहॉ 30 कमरे और एक मस्जिद है। फिलहाल यहॉ करीबन 450 बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं। जिसमें 30 बच्चे यतीम हैं। यहॉ 30 उस्ताद हैं। सभी बच्चे मदरसे के हॉस्टल में कयाम करते हैं।  मदरसे में कई शोब:  (विभाग) है,

शोब: अरबी
 शोब:  फारसी
शोब: हिज़
शोब: दीनयात
शोब: कम्प्यूटर
 शोब: असरी उलूम ( आधुनिक शिक्षा )

मदरसे का अपना एक छोटा सा कुतुबखाना (लायब्रेरी) हैं। जिससे तुलबा को किताबं आरियतन (थोड़े समय के लिए) दी जाती हैं जिसे वो पढ़ कर वापस कर देते हैं। तालिबइल्मों को सिलेबस की पूरी किताबें एक साल के लिए आरियतन दी जाती है जिसे वे साल के आखीर में जमा कर देते हैं।

मदरसे का शोब: नसर ओ इशाअत( प्रकाशन विभाग ) की तरफ से समय समय पर विभिन्न मुददों पर हिन्दी और उर्दू में छोटे छोटे पम्पलेट निकाले जाते हैं साथ ही साथ शोब: की तरफ से साल में कई बार शहर खंड़वा में पैगामें इन्सानियत के लिए जलसों का आयोजन किया जाता है। जिसमें सभी मजहबों के लोग शामिल होते हैं।

इसके अलावा मदरसे द्वारा जिला खंड़वा के अलग अलग इलाकों की गरीब बस्तीयों में 40 मकतब चलाये जा रहे हैं। जिसमें मदरसे की तरफ से हर साल तकरीबन 4 लाख रुपये खर्च किया जाता है। इस मदरसे में  मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, दिल्ली, बंगाल, महाराष्ट्र, नेपाल आदि जगहों के बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं जिसमें ज्यादातर बच्चे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के हैं।

जामिया की एक मुस्तकिल शूरा (परार्मश मंड़ल) है जो मदरसे के निज़ाम व हिसाब किताब पर पूरी निगाह रखते हैं। मदरसे की रोज के खर्च व आमद के हिसाब किताब के लिए रोजाना एकाउन्ट मेन्टेन किया जाता है इसके लिए एक एकाउन्टेन्ट हैं। भविष्य में मदरसे का हिसाब किताब टेली में रखे जाने की सोच है। मदरसा हर तालीबइल्म पर करीब 10000/प्रति वर्ष खर्च करता है जिसमें बच्चे के साल भर के रहने, खाने, किताब, कपड़े सहित सभी जरुरीयात शामिल हैं।

इस मदरसे में तुलबा को दीनी तालीम के साथ साथ असरी (दुनियाबी) तालीम भी दी जाती है। दीनी और दुनियाबी तालीम के लिए अलग अलग टाइम-टेबल है, चूंकि सभी बच्चे मदरसे के हॉस्टल में रहते है इसलिए इस टाइम टेबल को फॉलो करने में परेशानी नही होती है। सभी बच्चों के लिए मदरसे में दोनो तरह का तालीम लेना जरुरी होता है। असरी तालीम ( आधुनिक शिक्षा )  अलग तरीके से क्लासेस बनायी गई है जिसमें जरुरी नही है कि जो बच्चे दीनी तालीम की कक्षा में एक साथ हो वो असरी उलूम में भी साथ हो। असरी उलूम में बच्चों को उनकी जरुरत और क्षमता के हिसाब से ही अलग अलग कक्षाओं में बॉटा जाता है। हर साल मदरसे के को  8वी का इंम्तहान भी दिलवाया जाता  है। मदरसे के जिम्मेदारान बताते है कि आइंदा सालों के लिए मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड से 10वी का सेन्टर लेने की कोशिश जारी है।

मदरसे में तालिब इल्मों से भी बातचीत करने पर ये अंदाजा हुआ कि बच्चों के अंदर काफी आत्म विश्वास है और उनके जानकारी का स्तर काफी हद तक सरकारी स्कूलों के बच्चों से बेहतर है। हालाकि यह जानना दिलचस्प होगा कि बच्चों में दीनी और दुनिया के तालीम की ये जानकारी और समझ रटने वाली है या कुछ समझ पर आधारित है।

सदर मुदर्रिस बताते हैं कि मौजुदा दौर में मदारिस के लिए बहुत जरुरी हो जाता है कि वे अपने तालीब इलमों को दुनियाबी तालीम भी दे, यही वक्त का तकाजा है। वे बताते है कि 1857 क्रांति से पहले मदारिस तालीम के ऐसे मरकज़ हुआ करते थे जहॉ दीनी के साथ साथ दुनियाबी तालीम भी दी जाती थी। 1857 के बाद इसमें बदलाव देखने में आया और अंग्रेजी सामा्रज्य का पुरजोर विरोधी होने के कारण मदारिस और आलीमों ने अंग्रेजी और ज़दीदी तालीम का बहिष्कार किया और यही से मदारिस जदीदी तालीम से कट गये। दुख की बात यह है कि यह कटाव अभी तक चला आ रहा है।

मदरसा जामिया खैरुल उलूम दीनी और दुनियाबी तालीम को एक साथ बेलेन्स करने की कोशिश कर रहा हैं और ऐसे मरकज़ की तौर पर अपनी पहचान बना रहा है जहॉ से निकलने वाले भावी आलिमों को दीन, दुनिया और हिंदुस्तान के उस सेक्युलर आईन के बारे में जरुरी जानकारी हो जिसकी जरुरत रोजर्मरा की जिंदगी में पड़ती है। उम्मीद कर सकते है कि बदलाब का ये मरकज़ आने वाले दिनों में दूसरों के लिए भी एक नज़ीर बनेगा ।

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जावेद अनीस जावेद अनीस
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लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़  कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द  के मुद्दों पर काम कर रहे हैं,  विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास  मुद्दों पर  विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और  वेबसाइट में  स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं

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3 COMMENTS

  1. क्या सच में ऐसे भी मदरसे होते हैं ? ….अगर सच तो फिर देश के दुसरे मदरसों को यहाँ से सीख लेनी चाहिए

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