{ डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी } मेरे जन्मदिन (26 जून) पर कुछ मित्रों ने बधाइयाँ दिया, मैं उन सभी का आभारी हूँ। पापड़ बेलकर जीवन जीते हुए कितने बसन्त बीत गए इसका खुलासा तो नहीं करूँगा, फिर भी आगामी बसन्त को जीवन के इस नए वर्ष में देखने हेतु पापड़ बेलने के लिए तैयार हूँ। ईश्वर को भी धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा, यदि उसने पैदा न किया होता तो यह स्थिति उत्पन्न ही न होती। बधाई देने वालों के औपचारिक प्रेम भाव को देखकर मुझे कुछ फिल्मी तराने याद आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह मुझे ही याद आते होंगे, मेरी उम्र के जितने भी लोग हैं और घर के किसी कोने में झिलंगही खटिया पर सोये परिवार के लिए भार स्वरूप होंगे वे भी इस तरह के गीत-गानों को जरूर याद करते होंगे-
दुनिया में गर आए हैं, तो जीना ही पड़ेगा।
जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पड़ेगा।।
दोस्तों! मैं परिस्थितियों का मारा जरूर हूँ, फिर भी आत्महत्या नहीं करूँगा, क्योंकि इससे बड़ा कोई अपराध नहीं होता है। ऐसा करने वाले को ईश्वर भी माफ नहीं करता। मैं ईश्वर से डरता हूँ। मैं पापड़ बेलते हुए जीवन काट रहा हूँ, मुझे किसी से कोई गिला-शिकवा नहीं।
‘‘जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-ओ-शाम।
ये रस्ता कट जाएगा मितरा…।’’
शायद यह पहला अवसर है जब मुझे मेरा जन्मदिन सेलीब्रेट करने का विचार आया। इसके पूर्व मैंने कभी अपने जन्मदिन पर हैप्पी बर्थडे या तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार कहलवाना पसन्द नहीं किया था। क्योंकि मैं जानता रहा हूँ कि जितना दिन जीऊँगा उतने दिन पापड़ ही बेलने पड़ेंगे। बहरहाल! मुझे खुशी है कि कम से कम दो लोगों को मेरा जन्मदिन याद रहा और इन लोगों ने हैप्पी बर्थडे कहा।
bhupendra.rainbownews@gmail.com